विश्व स्वास्थ्य संगठन
(डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़ हर साल लगभग पाँच करोड़ साठ लाख लोगों की मौत
होती है. माना जाता है कि इनमें से आधी मौतों का पंजीकरण नहीं होता. इसलिए
इन लोगों की मौत के कारणों के बारे में भी बहुत सी जानकारी नहीं मिल पाती.
मौत के कारण की सटीक जानकारी के अभाव में आम लोगों के लिए लाभकारी स्वास्थ्य नीतियाँ बनाना मुश्किल होता है.
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"द मिलियन डेथ स्टडी" शोध में भारत में हुई दस लाख मौतों की जाँच की जा रही है.इस जाँच में कई आश्चर्यजनक जानकारी सामने आने की उम्मीद है.
पढ़िए, रिपोर्ट विस्तार से
बंगलौर के नज़दीक एक छोटे से घर में रहने वाली मनियम्मा एक व्यक्ति को अपने पति की मौत का विवरण दे रही हैं.वो कहती हैं, "जिस दिन उनकी मौत हुई उस दिन वह पास गाँव में रहने वाली हमारी बेटी को देखने गए थे. वहां से लौटने के बाद उनको कुछ परेशानी हो रही थी शायद मामूली दिल का दौरा पड़ा था."
निधन से जुड़ी सारी जानकारी एक प्रशिक्षित फील्डवर्कर अशोक कुमार इकट्ठा कर रहे हैं. अशोक इस शोध के लिए "मौखिक पोस्ट मार्टम" करते हैं.
विकासशील देशों में अक्सर मौत के कारणों का लिखित प्रमाण रखने के लिए 'मौखिक पोस्ट मार्टम' जैसे तरीक़े का इस्तेमाल किया जाता है.
अस्पताल में मौत 'अपवाद'
विकसित देशों में लगभग सभी मौतों का पंजीकरण कराया जाता है और एक सरकारी चिकित्सा मृत्यु प्रमाण पत्र पर मौत का कारण दर्ज किया जाता है.वहीं विकासशील देशों में ज्यादातर मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं होता. ऐसे में मौत के कारणों के बारे में सटीक जानकारी नहीं मिल पाती.
टोरंटो में विश्व स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र के इस शोध का नेतृत्व करने वाले प्रोफ़ेसर प्रभात झा कहते हैं, "भारत में एक साल में 90 लाख लोगों की मौत होती है, इनमें से ज़्यादातर लोगों की मौत घर में या ग्रामीण क्षेत्रों में होती है."
द मिलियन डेथ स्टडी (एमडीएस) के तहत मृतकों के क़रीबियों से उनकी मौत से पहले की पूरी जानकारी लेने के लिए बातचीत की जाती है जिसके लिए मौखिक पोस्टमार्टम विधि का इस्तेमाल किया जाता है.
असर
लेकिन इस शोध का प्रभाव दिखाई देने लगा है.
2010 में इस शोध दल ने एक विवादास्पद निष्कर्ष में कहा था कि भारत में मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या डब्ल्यूएचओ के अनुमान से 13 गुना ज़्यादा है.
डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता कहते हैं, "मलेरिया से जुड़े एमडीएस के अनुमानित आंकड़े अप्रत्याशित रूप से ज़्यादा थे और इसमें आगे जांच की गुंजाइश है."
उनका कहना है कि अक्सर मौखिक पोस्टमार्टम से मौत के कारण के तौर पर मलेरिया की पहचान करना मुश्किल होता है क्योंकि बुखार के लक्षण दूसरी बीमारियों में भी होते हैं.
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