प्रस्तुति- रोहित सिंह बघेल
एम्सटर्डम में हर शाम रेड लाइट इलाके में हजारों सैलानी चहलकदमी करते नजर आएंगे. शीशे की दूसरी तरफ कम कपड़ों में खड़ी महिलाओं को घूरते सैलानी. अब ऐसा म्यूजियम खुला है जो इन महिलाओं के बारे में बताता है.
शीशे के उस पार की दुनिया बिलकुल अलग है. घर चलाने के लिए उन्हें जिस्म
बेचना पड़ता है. इन यौनकर्मियों की जिंदगी पर अब एक शैक्षिक संग्रहालय खोला
गया है. म्यूजियम इन महिलाओं की असल जिंदगी के बारे में
लोगों को बताता है. इसके आयोजक मेलशर डे विंड कहते हैं के रेड लाइट के
रहस्यों वाली यह जगह उन लोगों के लिए है जो इस बारे में और जानकारी चाहते
हैं. ये उन लोगों के लिए है जो बिना किसी यौनकर्मी के पास जाए उनकी जिंदगी
के बारे में जानना चाहते हैं.
संग्रहालय उस इमारत में बनाया गया है जहां पहले कभी सेक्स वर्कर काम किया करती थीं. संकरी सी इस इमारत में उनकी तस्वीरें लगी हैं. इन महिलाओं की जिंदगी से जुड़ी एक छोटी फिल्म भी यहां दिखाई जाती है. जो इनके रोजमर्रा के कामों में मदद करने वालों पर आधारित है. फिल्म में उन लोगों के बारे में बताया गया है, जो यौनकर्मियों के दूसरे कामों में हाथ बंटाते हैं. जैसे कमरा साफ करने वाले या कमरे की मरम्मत करने वाले, कपड़े धोने वाले, काम के दौरान कॉफी या खाना पहुंचाने वाले.
मुश्किल भरी जिंदगी
एम्सटर्डम में सेक्स वर्कर आधे दिन के हिसाब से किराये पर जगह लेती हैं. खिड़की के आगे शीशे लगे होते हैं. अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए वे यहीं खड़ी होती हैं. शिफ्ट 11 घंटे की होती है, जिसमें से ज्यादातर वक्त इंतजार में बीत जाता है. जब कोई ग्राहक नहीं आता तो यह अपना खाली समय बाल बनाने, नाखून वाले सैलून जाने या कपड़ों की खरीदारी में बिताती हैं. रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट के बीचों बीच एक नर्सरी स्कूल भी है. फिल्म के एक दृश्य में दिखाया गया है कि अधेड़ उम्र की सेक्स वर्कर से दोपहर के वक्त उसकी बेटी मुलाकात करने आती है.
इलाके का इतिहास
16वीं सदी में एम्सटर्डम की पहचान ऐसी जगह के तौर पर होने लगी जहां नाविक थकान मिटाने के लिए रुकते थे और आराम के लिए तट के पास बसे रेड लाइट इलाके में घूमने जाते थे. उस जमाने में मसालों के कारोबारी बहुत धनी थे और वे सेक्स वर्करों पर अच्छी खासी रकम खर्च कर सकते थे. नगर प्रशासन उन्हें नजरंदाज कर देता था. संग्रहालय साल 2000 के बाद के युग पर केंद्रित है, जब नीदरलैंड्स में देह व्यापार को कानूनी रूप दे दिया गया.
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संग्रहालय उस इमारत में बनाया गया है जहां पहले कभी सेक्स वर्कर काम किया करती थीं. संकरी सी इस इमारत में उनकी तस्वीरें लगी हैं. इन महिलाओं की जिंदगी से जुड़ी एक छोटी फिल्म भी यहां दिखाई जाती है. जो इनके रोजमर्रा के कामों में मदद करने वालों पर आधारित है. फिल्म में उन लोगों के बारे में बताया गया है, जो यौनकर्मियों के दूसरे कामों में हाथ बंटाते हैं. जैसे कमरा साफ करने वाले या कमरे की मरम्मत करने वाले, कपड़े धोने वाले, काम के दौरान कॉफी या खाना पहुंचाने वाले.
मुश्किल भरी जिंदगी
एम्सटर्डम में सेक्स वर्कर आधे दिन के हिसाब से किराये पर जगह लेती हैं. खिड़की के आगे शीशे लगे होते हैं. अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए वे यहीं खड़ी होती हैं. शिफ्ट 11 घंटे की होती है, जिसमें से ज्यादातर वक्त इंतजार में बीत जाता है. जब कोई ग्राहक नहीं आता तो यह अपना खाली समय बाल बनाने, नाखून वाले सैलून जाने या कपड़ों की खरीदारी में बिताती हैं. रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट के बीचों बीच एक नर्सरी स्कूल भी है. फिल्म के एक दृश्य में दिखाया गया है कि अधेड़ उम्र की सेक्स वर्कर से दोपहर के वक्त उसकी बेटी मुलाकात करने आती है.
इलाके का इतिहास
16वीं सदी में एम्सटर्डम की पहचान ऐसी जगह के तौर पर होने लगी जहां नाविक थकान मिटाने के लिए रुकते थे और आराम के लिए तट के पास बसे रेड लाइट इलाके में घूमने जाते थे. उस जमाने में मसालों के कारोबारी बहुत धनी थे और वे सेक्स वर्करों पर अच्छी खासी रकम खर्च कर सकते थे. नगर प्रशासन उन्हें नजरंदाज कर देता था. संग्रहालय साल 2000 के बाद के युग पर केंद्रित है, जब नीदरलैंड्स में देह व्यापार को कानूनी रूप दे दिया गया.
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DW.DE
- तारीख 08.02.2014
- पन्ना 1 | 2 | पूरी रिपोर्ट
- कीवर्ड संग्रहालय, सेक्स वर्कर, एम्सटर्डम, देह व्यापार, यौनकर्मी
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