रविवार, 27 जुलाई 2014

जापान की शर्मनाक ( कहानी) चेहरा





प्रस्तुति-- मोहडर नरेश- दिनेश कुमार सिन्हा

 

1910 से 1945 के बीच जापानी सेना ने अपने कब्जे वाले देशों में लाखों महिलाओं से बलात्कार किया. इसके लिए बकायदा बलात्कार केंद्र बनाए गए थे. अफसोस यह है कि कुछ जापानी नेता अब इसे जायज ठहरा रहे हैं.
ली ओक-सिओन अब 86 साल की हैं. उनकी पूरी जिंदगी जापानी सेना की यौन और मानसिक यातनाओं में घिरी रही. ली को तीन साल तक एक चकलाघर में कैद रहना पड़ा. इसे जापान की सेना चला रही थी. ली अब खुद पर और अपनी ही जैसी दूसरी महिलाओं पर हुए जुल्मों की दास्तां से दुनिया को रूबरू कराना चाहती हैं. इसी कोशिश में जर्मनी आईं ली आज भी उस दिन का जिक्र करती हैं जब कोरिया से उनका अपहरण किया गया. तब वो 14 साल की थीं और बुसान में शाम को घूम रही थीं. इसी दौरान 5-6 बजे के आस पास कार में कुछ आदमी आए और उन्हें जबरन उठा ले गए. फिर उन्हें चीन में बनाए गए चकलाघर ले जाया गया. ये सैनिकों के मनोरंजन के लिए बनाया गया था. वहां ली पर हर दिन बलात्कार किया गया. ये सिलसिला 1945 में विश्वयुद्ध खत्म होने तक चला. ली कहती हैं, "वो जगह इंसानों के लिए नहीं थी. वे एक बूचड़खाना था."
ली ओक-सिओन जैसी लाखों महिलाएं जापानी सेना के बलात्कार का शिकार हुई. जर्मनी की पोट्सडाम यूनिवर्सिटी के इतिहासकार बेर्नड स्टोवर कहते हैं, "अनुमान के मुताबिक वहां ऐसी दो लाख महिलाएं थीं." अगवा की गई महिलाओं को 'कंफर्ट विमेन' कहा जाता था. 1910 से 1944 के बीच कोरियाई प्रायद्वीप जापान के कब्जे में था. इस दौरान कोरिया, चीन, मलेशिया और फिलीपींस की महिलाओं से बलात्कार किया गया. जापान के नियंत्रण वाले पूरे इलाके में कई बलात्कार केंद्र खोले गए थे. वहां क्या होता था इस बारे में ली बताती हैं, "हमें अक्सर पीटा जाता था, चाकुओं से हमला किया जाता था, धमकाया भी जाता था. वहां 11,12,13 या 14 साल की बच्चियां थीं, हमें कोई उम्मीद नहीं थी कि कोई हमें बचाने आएगा. कई लड़कियों ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली." एक बार तो ली को भी लगा कि वो भी जान दे दें, "लेकिन तभी अहसास हुआ कि ये कहना आसाना है और करना मुश्किल."
ली ओक सिओन
1945 में विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद गर्मियों में चकलाघर का मालिक अचानक गायब हो गया. सभी महिलाएं बलात्कारियों के चंगुल से तो आजाद हो गईं लेकिन समाज के भंवर में फंस गईं. ली कहती हैं, "तब मुझे पता नहीं था कि अब कहां जाना चाहिए. मेरे पास पैसा भी नहीं था. मैं बेघर थी और सड़कों पर सोती थी. फिर मैंने तय किया कि मैं घर क्यों लौटूं, क्यों न मैं अपनी जिंदगी चीन में ही बिता दूं. मेरे चेहरे पर लिखा हुआ था कि मैं एक 'कंफर्ट विमेन' हूं. मैं अपनी मां से आंखें मिला ही नहीं सकती थी."
चीन में नई जिंदगी
चीन में ली कोरियाई मूल के एक व्यक्ति से मिली. दोनों ने शादी कर ली. उनके पति की पहली पत्नी गुजर चुकी थी. उनके बच्चे भी थे. ली कहती हैं, "मुझे लगा कि इन बच्चों की मां मर चुकी है लिहाजा इनकी परवरिश करना मेरी ही जिम्मेदारी है. मैं खुद बच्चे पैदा नहीं करना चाहती थी. एक चकलाघर में रहने के बाद मैं अपने बच्चों को बीमारियों के अलावा देती भी क्या."
सालों तक लगातार बलात्कार का शिकार होने की वजह से ली मौत के मुंह तक पहुंच गईं. वो इतनी बीमार हुईं कि डॉक्टरों को उनका गर्भाशय निकालना पड़ा. लेकिन बुरे दौर में पति के अच्छे व्यवहार ने राह आसान की, "अगर ऐसा नहीं होता तो मैं इतने साल तक उनके साथ क्यों रहतीं."
जापानी सैनिकों के लिए 'कंफर्ट विमेन' रह चुकी ज्यादातर महिलाओं की दास्तान आज भी बहुत अच्छी नहीं है. इतिहासकार स्टोवर के मुताबिक, "ऐसी महिलाओं को समाज से कोई सहयोग नहीं मिलता." वे बताते हैं कि समाज ने कई महिलाओं पर ऐसा दवाब बनाया कि उन्हें गुजर बसर के लिए देह व्यापार में जाना पड़ा. इन महिलाओं का समाज ने कई दशकों तक बहिष्कार किया.
इस सामाजिक धब्बे को धुंधला होने में करीब सात दशक लगे. 'कंफर्ट विमेन' रह चुकी एक महिला ने 1991 में पहली बार खुद पर हुए जुल्मों की दास्तान सार्वजनिक की. उन्हें कुछ सामाजिक संगठनों का भी सहयोग मिला. इसके बाद 250 और महिलाएं सामने आईं, उन्होंने भी जापानी सेना के बलात्कारी चेहरे का जिक्र किया.
ओसाका के मेयर तोरू हाशिमोटो
दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में आज भी प्रदर्शन किए जाते हैं. इन महिलाओं की मांग का समर्थन करने वाले भी हर बुधवार को जापानी दूतावास के सामने प्रदर्शन करते हैं. ये लोग जापान सरकार से माफी मांगने को कह रहे हैं. जापान का स्याह इतिहास रहा है. स्टोवर के मुताबिक 1993 में जापान सरकार ने पहली बार आधिकारिक रूप से इस तथ्य को माना कि उनकी सेना ने महिलाओं को कंफर्ट विमेन बनाकर रखा. सरकार ने तब कुछ आयोजनों में इसके लिए हल्के ढंग से माफी भी मांगी, कई महिलाओं को बिना आधिकारिक योजना के मुआवजा भी दिया गया. लेकिन सच सामने आने के बावजूद जापान ने आज तक कभी भी संजीदगी से इसके लिए पूरी तरह माफी नहीं मांगी. 2007 में जापान के सुप्रीम कोर्ट ने इस मुआवजे पर रोक लगा दी.
अब तो आलम यह है कि कई मौके पर जापानी नेता कंफर्ट विमेन बनाने की बातों को ही निराधार करार देते हैं या उन पर ध्यान ही नहीं देते. इसी साल ओसाका प्रांत के गवर्नर तोरु हाशिमोतो ने कहा कि सैनिकों में अनुशासन बनाए रखने के लिए ये करना जरूरी था. बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच चुके पीड़ित इससे खासे आहत है. ली कहती हैं, "मैं इस बात को समझ ही नहीं सकती हूं कि कोई ऐसा कैसे कह सकता है. जो कोई भी जापानी की पुरानी हरकत को सही ठहराता है वो इंसान ही नहीं है."
बुढ़ापे में घर वापसी
ली ओक-सिओन अब दक्षिण कोरिया में रहती हैं. सन 2000 में पति की मौत के बाद वो खुद को अकेला महसूस करने लगीं और घर लौट आईं. देश लौटने के बाद उन्होंने पहली बार अपनी दास्तान सार्वजनिक की. फिलहाल वो राजधानी सियोल के पास 'हाउस ऑफ शेयरिंग' में रहती हैं. ये जगह पूर्व यौन बंधकों के पुर्नवास के लिए है. कोरिया आने के बाद उन्हें पहली बार मनोचिकित्सक की सहायता मिली. नया पासपोर्ट मिला.
घर लौटने पर उन्हें पता चला कि उनके माता-पिता गुजर चुके हैं. भाई जिंदा है. ली ने किसी तरह अपने भाई को खोज निकाला. शुरुआत में तो भाई ने भी बहन की मदद की. लेकिन जब उसे पता चला कि ली यौन बंधक रह चुकी हैं, तो भाई भी उस भीड़ का हिस्सा बन गया जिसे ली, सिर्फ यौन बंधक रह चुकी महिला लगती हैं. भाई ने जिंदगी भर बर्बर यातनाएं झेल चुकी बहन से सारे संबंध तोड़कर उसे एक और जख्म दे दिया.
रिपोर्ट: एस्थर फेलडन/ओ सिंह
संपादन: आभा मोंढे

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