मंगलवार, 1 जुलाई 2014

हंसते हंसते जमाने से जाएंगे हम

 

 

 

 

 प्रस्तुति-- अखौरी प्रमोद / रुपेश कुमार

मशहूर संगीतकार कल्याणजी ने संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं पाई थी लेकिन अपनी मेहनत और कुछ कर दिखाने की लगन से देश के चोटी के संगीतकारों में शामिल हुए. उनके गीतों ने कई पीढ़ियों का मन मोहा है और मनोरंजन किया है.
हिन्दी सिने जगत के मशहूर संगीतकार कल्याणजी ने एक फिल्मी गीत को संगीत दिया था, "जिंदगी से बहुत प्यार हमने किया/मौत से भी मोहब्बत निभाएंगे हम/ रोते रोते जमाने में आए मगर/ हंसते हंसते जमाने से जाएंगे हम." जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले कल्याणजी का जीवन से प्यार उनकी संगीतबद्ध इन पंक्तियों में समाया हुआ है.
गुजरात में कच्छ के कुंडरोडी में 30 जून 1928 को जन्मे कल्याणजी वीरजी शाह बचपन से ही संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी. अपने इसी सपने को पूरा करने के लिये वह मुंबई आ गए और संगीतकार हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम करने लगे.
बतौर संगीतकार सबसे पहले वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म "सम्राट चंद्रगुप्त" में कल्याणजी को संगीत देने का मौका मिला. 1960 में उन्होंने अपने छोटे भाई आनंदजी को भी मुंबई बुला लिया. इसके बाद कल्याणजी ने आंनदजी के साथ मिलकर फिल्मों में संगीत देना शुरू किया. 1960 में ही प्रदर्शित फिल्म "छलिया" की कामयाबी से बतौर संगीतकार कुछ हद तक वह अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए. फिल्म छलिया में उनके संगीत से सजा गीत "डम डम डिगा डिग और छलिया मेरा नाम" श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है.
वर्ष 1965 में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म "हिमालय की गोद में" की सफलता के बाद कल्याणजी आनंदजी शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे. मनोज कुमार की फिल्म उपकार में उन्होंने "कसमे वादे प्यार वफा" जैसा दिल को छू लेने वाला संगीत देकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया.
इसके अलावा मनोज कुमार की ही फिल्म "पूरब और पश्चिम" के लिए भी कल्याणजी ने "दुल्हन चली वो पहन चली तीन रंग की चोली" और "कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे" जैसा सदाबहार संगीत देकर अलग ही समां बांध दिया. 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म "जॉनी मेरा नाम" में नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं और पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले जैसे रूमानी संगीत देकर कल्याणजी आनंदजी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया. मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म सच्चा झूठा के लिये कल्याणजी आनंदजी ने बेमिसाल संगीत दिया. मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां को आज भी शहरों और देहातों में शादी के मौके पर सुना जा सकता है.
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म "सरस्वती चंद्र" के लिए कल्याणजी आनंदजी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया. इसके अलावा 1974 में प्रदर्शित फिल्म कोरा कागज के लिए भी कल्याणजी आनंदजी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला.
कल्याणजी ने अपने सिने करियर में लगभग 250 फिल्मों में संगीत दिया. वर्ष 1992 में संगीत के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया. लगभग चार दशक तक अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले कल्याणजी 24 अगस्त 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.
एमजे/आईबी (वार्ता)

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