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विद्युत प्रकाश मौर्य
प्रस्तुति-- दिनेश कुमार सिन्हा
रांची से रामगढ़ कैंट की ओर जाती
नेशनल हाईवे नंबर 33 फोर लेन एक्सप्रेस वे का रूप ले चुकी है। सड़क इतनी शानदार बन
गई है कि बस से चलते हुए कब रांची से रामगढ़ आ जाता है पता भी नहीं चलता। रास्ते
में मनोरम घाटियां की हरियाली मनमोह लेती है। इन सड़कों और हरितिमा को देखकर कत्तई
नहीं लगता है कि राष्ट्रीय मीडिया में झारखंड की जैसी नक्सल प्रभावित छवि दिखाई
देती है हम उस राज्य से गुजर रहे हैं। रांची से रामगढ़, मांडू, हजारीबाग होते हुए
बरही तक सड़क शानदार बन चुकी है।
कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण छह हजार वर्ष पहले हुआ था तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है। मां छिन्नमस्तिके की तीन आंखें हैं। बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में हैं। दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। मां गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं। मंदिर का मुख्य द्वारा पूरब मुखी है।
रामगढ़ शहर में दो बस स्टैंड है
एक लंबी दूरी के लिए तो दूसरा स्थानीय। स्थानीय बस स्टैंड से रजरप्पा जाने के लिए
टेकर और दूसरी गाड़ियां हमेशा तैयार मिलती हैं। 27 किलोमीटर का सफर आधे घंटे में।
पर रजरप्पा में तो बिहार, झारखंड और बंगाल के श्रद्धालु बड़ी संख्या में अपनी निजी
गाड़ियों और बाइक से पहुंचते हैं। लोग अपने नए वाहन का यहां पूजा कराना सौभाग्य
समझते हैं। भैरवी नदी के जल में स्नान करने वाले हजारों श्रद्धालुओं का हुजुम रोज उमड़ता
है। मां के दरबार में लोग पुत्र की कामना और निरोग होने का वरदान लेने आते हैं, पर
इन कामनाओं के साथ बलि के लिए बकरा चढ़ाते हैं। रोज सैकडो निरीह बकरों की खरीद
फरोख्त होती है मंदिर के आसपास की बकरा मंडी में। एक जीव की रक्षा के लिए दूसरे
जीव के प्राण ले लेना...क्या ये मां को पसंद आता होगा...मेरा मन कहता है हरगिज
नहीं...
आमवस्या का दिन है इसलिए मंदिर
में श्रद्धालुओं की भीड़ कुछ ज्यादा है। लोग बता रहे हैं कि आद्रा नक्षत्र में अमावस
120 साल बाद आया है। वैसे भी हर अमावस को माता के दरबार में भीड़ कुछ ज्यादा ही
होती है। लिहाजा आज ( 27 जून 2014) को रजरप्पा श्रद्धालुओं से पटा पड़ा है। मंदिर
परिसर में अव्यवस्था का आलम है। जिन पुलिस वालों के व्यवस्था को संभालनेकी
जिम्मेवारी है वही रिश्वत लेकर श्रद्धालुओं को मंदिर में जल्दी दर्शन करा देते
हैं। पर भगवान के घर में ऐसा अनैतिक मार्ग अपनाने का मेरा जी बिल्कुल नहीं चाहता।
मां छिन्नमस्तिके का दरबार
असम के कामाख्या के बाद बड़े
शक्तिपीठ के रूप में रजरप्पा का मां छिन्नमस्तिके मंदिर लोकप्रिय है। रामगढ़ के
पास दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर मां छिन्नमस्तिके का मंदिर है। यहां महाकाली
मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर जैसे सात मंदिर भी हैं।
कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण छह हजार वर्ष पहले हुआ था तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है। मां छिन्नमस्तिके की तीन आंखें हैं। बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में हैं। दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। मां गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं। मंदिर का मुख्य द्वारा पूरब मुखी है।
बलि और प्रदूषण
कामाख्या, तारापीठ और त्रिपुर
सुंदरी मंदिरों की तरह रजरप्पा में भी बलि चढाने की परंपरा चली आ रही है। मंदिर के
सामने बलि-स्थान पर रोज सौ-दो सौ बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। श्रद्धालु मंदिर
परिसर में बकरों की बलि चढ़ाने के बाद उसी स्थल में मांस भोज करते हैं। पत्तल, प्लेट आदि नदी में
बहा देते हैं। बलि किए गए बकरों का मुंडन भी पास के भैरवी नदी के बीचों बीच किया
जाता है और उसकी गंदगी खून आदि नदी की धारा में बहा दी जाती है। इसके कारण मां छिन्नमस्तिका
मंदिर परिसर में पर्यावरण का खतरा मंडरा रहा है।
मंदिर परिसर के पास अवस्थित भैरवी व दामोदर नदी भी पर्यावरण प्रदूषण की चपेट में हैं। पास में स्थित सीसीएल का प्रोजेक्ट और जिला प्रशासन की और मंदिर और आसपास के पर्यावरण को बचाने की कोशिशें बेअसर दिखाई देती हैं।
मंदिर परिसर के पास अवस्थित भैरवी व दामोदर नदी भी पर्यावरण प्रदूषण की चपेट में हैं। पास में स्थित सीसीएल का प्रोजेक्ट और जिला प्रशासन की और मंदिर और आसपास के पर्यावरण को बचाने की कोशिशें बेअसर दिखाई देती हैं।
दामोदर भैरवी का सुंदर संगम
रजरप्पा में दामोदर और भैरवी नदी का संगम स्थल भी अत्यंत मनोहारी है। भैरवी
नदी स्त्री नदी मानी जाती है जबकि दामोदर सोन और ब्रह्मपुत्र की तह पुरुष
है। संगम स्थल पर भैरवी नदी ऊपर से काफी वेग में दामोदर नदी में समाहित
होती नजर आती है। ये मिलन का दृश्य अदभुत है।
कहा जाता है कि जहां भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है उस स्थल की
गहराई का सही अंदाजा किसी को नहीं है। रजरप्पा आने वाले सैलानी और
श्रद्धालु दामोदर नदी में बोटिंग का भी आनंद उठाते हैं। यहां नाव पर घूमते
हुए प्राकृतिक सौंदर्य का सुंदर नजारा किया जा सकता है।
रजरप्पा में दामोदर और भैरवी का संगम। |
आदि कथा
मां छिन्नमस्तिके की महिमा की कई कथाएं प्रचलित हैं। प्राचीन काल में
छोटानागपुर में रज नामक एक राजा राज करते थे। राजा की पत्नी का नाम रूपमा
था। इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा जो बाद में
रजरप्पा हो गया। एक कथा के अनुसार एक बार भगवती भवानी अपनी सहेली जया और
विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भूख से
उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन मांगा। देवी ने उनसे प्रतीक्षा
करने को कहा। बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख
मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया। कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले
से तीन धाराएं निकलीं। वह दो धाराओं को सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं।
तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं।
कैसे पहुंचे
झारखंड के जिला मुख्यालय रामगढ़ से शहर से रजरप्पा की दूरी 27 किलोमीटर है।
रामगढ़ बोकारो हाईवे (एनएच 320) पर 16 किलोमीटर आगे जाने के बाद रजरप्पा
मोड ( चित्तरपुर) आता है। यहां से 11 किलोमीटर का सफर स्टेट हाईवे से है।
पीडब्लूडी की सड़क बहुत शानदार बनी है। रामगढ़ से रजरप्पा के लिए टेकर,
मैक्सिमो जैसी छोटी गाड़ियां हमेशा मिलती हैं। वापसी के लिए शाम 6 बजे के
बाद कोई वाहन नहीं मिलता। रामगढ़ शहर रामगढ़ कैंट, रांची रोड और बरकाकाना
जैसे तीन बड़े रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।
कहां ठहरें
मंदिर के आसपास ठहरने के लिए समान्य धर्मशाला बने है। खाने के लिए बेहतर
रेस्टोरेंट नहीं है। थोडा बेहतर ठहरने खाने का विकल्प चाहिए तो आपको रामगढ़
शहर में ही अपना ठिकाना बनाना चाहिए। वैसे आप झारखंड की राजधानी रांची या
बोकारो स्टील सिटी से सुबह चलकर मां के दर्शन कर दोपहर तक लौट भी सकते हैं।
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