सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

जोर का झटका कर गया आहत


आम बजट 2016 :


प्रस्तुति-  कृति शरण







Alok Kumar Rao
आलोक कुमार राव
नई दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तीसरी बार सोमवार को आम बजट पेश किया। इस बजट से मध्यम वर्ग को बहुत सारी उम्मीदें थीं लेकिन बजट की घोषणाओं से मध्यम वर्ग को निराशा हाथ लगी है। मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा उम्मीद आय कर स्लैब में बदलाव को लेकर थी लेकिन वित्त मंत्री ने आय कर स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया है बल्कि सर्विस टैक्स में 0.5 फीसदी का इजाफा कर जोर का झटका दिया है। बजट में सर्विस टैक्स 14.5 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी कर दिया गया है। यानी सर्विस टैक्स से जुड़ी सभी सेवाएं महंगी हो जाएंगी। सर्विस टैक्स में 0.5 फीसदी का कृषि कल्याण कर लगाया गया है।  
सर्विस टैक्स बढ़ने का सीधा असर आम आदमी के जन-जीवन पर होगा। सर्विस टैक्स बढ़ने से हर सेवा महंगी हो जाएगी। मसलन हवाई यात्रा, एटीएम से पैसे निकालना, रेस्तरां में खाना, फिल्म देखना, मोबाइल बिल, जिम, ब्यूटी पार्लर जाना और रेल टिकट भी महंगा होगा। महंगाई की मार बीमा पॉलिसी पर भी पड़ेगी। यही नहीं सर्विस टैक्स बढ़ने से सिगरेट, सिगार, गुटखा और पान मसाला महंगा हो जाएगा। बजट में छोटी-बड़ी सभी तरह की कारें भी महंगी कर दी गई हैं। ब्रांडेड कपड़ों को लेकर भी आपको अब ज्यादा कीमत चुकानी होगी।
वित्त मंत्री ने सलाना ढाई लाख रुपए की आमदनी को टैक्स के दायरे से बाहर रखा है। यानी सलाना ढाई लाख रुपए की आय करने वाले लोगों को आय कर नहीं देना होगा जबकि 2.5 लाख रुपए से 5 लाख रुपए तक की सालाना आमदनी पर 10 फीसदी की दर से टैक्स लगता है। वहीं 5 लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक की सालाना आमदनी पर 20 फीसदी और 10 लाख रुपए से ज्यादा की सालाना आमदनी पर 30 फीसदी की दर से इनकम टैक्स लगाया जाता है। सीनियर सिटीजन को 3 लाख रुपए तक की सालाना आमदनी पर 10 फीसदी की दर से टैक्स देना होता है। जबकि महिलाओं को तीन लाख रुपए की सलाना आमदनी पर कोई आयकर नहीं देना होता है। महिलाओं को 3 लाख से पांच लाख रुपए तक 10 फीसदी, 5 लाख से 10 लाख रुपए तक- 20 फीसदी, 10 लाख रुपए से ऊपर 30 फीसदी आयकर देना होता है।
कहा जा सकता है कि जिस मध्यमवर्ग के दम पर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और एनडीए सत्ता में आया, उसी मिडील क्लास की उम्मीदों पर सरकार ने पानी फेर दिया है। आम बजट 2016-17 में मध्यम वर्ग को मामूली राहत दी गई है उसके बदले में उस पर महंगाई का बोझ डाल दिया गया है। वित्त मंत्री ने हालांकि मिडिल क्लास को कुछ राहत देने की घोषणा की है। अगर आप 50 लाख तक का मकान खरीदते हैं तो आपको 50 हजार रुपए की अतिरिक्त छूट मिलेगी। हालांकि यह पहली बार मकान खरीदने वालों के लिए ही होगी।
बजट में अमीरों पर कर का बोझ डाला गया है। एक करोड़ से ज्यादा आय वाले लोगों पर सरचार्ज 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत किया गया है। डीजल कारें, ब्रैंडेड कपड़े और गहने मंहगे हो जाएंगे। तो गरीबों के लिए वित्त मंत्री ने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने की घोषणा की है। गरीब बुजुर्गों को एक लाख तीस हजार का स्‍वास्‍थ्‍य बीमा, गरीब महिलाओं के नाम पर होगा एलपीजी कनेक्‍शन, गरीबों के लिए नई सुरक्षा बीमा योजना, गरीबों को रसाई गैस के लिए 200 करोड़, किसानों की आय पांच सालों में दोगुनी करना, परंपरागत खेती को लाभ की खेती बनाना, किसानों के विकास के लिए 35984 करोड़ रुपए, किसानों के लिए देश में 12 ई-पोर्टल खुलेंगे, मनरेगा के लिए 38500 करोड़ रुपए, गांवों में विद्युतिकरण के लिए 8500 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है।
कुल मिलाकर 2016-17 का बजट देखने से यही लगता है कि वित्त मंत्री के बजट में अमीर और मध्यमवर्ग की अपेक्षा गरीबों और किसानों की ज्यादा सुध ली गई है। यह बजट गरीब परिवारों और किसानों को ज्यादा समर्पित है। आगामी महीनों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उसकी झलक भी बजट में दिखाई देती है। वित्त मंत्री ने अमीर औऱ मध्यमवर्ग की जेब पर कैंची चलाकर राजस्व जुटाने की व्यवस्था की है। 

दिल्ली से करीबी का अभिशाप झेल रहा है मेवात


 

 

रेल बजट से मेवात के लोग निराशा

प्रस्तुति- कृति शऱण
रेल बजट से मेवात के लोगों को निराशा लगी हाथ, सांसद से नाराज हैं लोग
प्रभु! से गुड़गांव को कुछ नहीं मिला

रेल बजट मेंफिर से हाथ मलते रह गए गुड़गांववासी, उद्योग जगत मायूस, मेवाती फिर उपेक्षित

रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को लोकसभा में साल 2016-17 का रेल बजट पेश किया। एक ओर जहां रेल किराए में बढ़ोतरी नहीं होने से लोग खुश हैं, वहीं गुड़गांव और मेवात को कुछ नहीं मिलने से लोग मायूस हैं। गुड़गांव स्टेशन को मॉडल स्टेशन बनाने की योजना भी ठंडे बस्ते में है, ऊपर से रेलवे लाइन विद्युतीकरण के बजट का प्रावधान नहीं हुआ है। बाहरी प्रदेश के लोगों को फिर निराशा हाथ लगी है। मेवातियों का रेल दर्शन फिर सपना ही रह गया। बजट पर उद्योग जगत की मिली-जुली प्रतिक्रिया है।

^दूसरी तरफ गुड़गांव इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट वीपी बजाज का कहना है कि रेलमंत्री द्वारा माल भाड़े में किसी प्रकार की कोई वृद्धि नहीं करने, रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए विभिन्न सेवाओं एसएमएस द्वारा कोच की सफाई, वरिष्ठ नागरिकों के लिए नीचे की बर्थ के लिए 50 प्रतिशत का कोटा, रिजर्वेशन में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत का आरक्षण का कोटा, 400 रेलवे स्टेशनों पर वाईफाई सुविधा तथा यात्रियों को बेहतर सुरक्षा उपलब्ध कराने की बात सभी के हित में है।

^गुड़गांव की 90 हजार करोड़ रुपए का वार्षिक कारोबार करने वाली इंडस्ट्री को रेल मंत्री सुरेश प्रभु से बहुत अपेक्षाएं थीं। गुड़गांव में छोटी-बड़ी 15 हजार से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं, जिसके लिए रेल बजट काफी अहमियत रखता है, लेकिन इसमें किसी भी प्रकार की नई घोषणा नहीं होने और उद्योगों को कोई विशेष सुविधा नहीं मिलने पर एनसीआर चेंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के चेयरमैन एचपी यादव ने नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की पूरी अर्थव्यवस्था गुड़गांव पर निर्भर है। यहां के उद्योगों में पूरे देश के लोगों को रोजगार मिला है। इसके बावजूद रेल सर्विस में गुड़गांव की हर बार उपेक्षा होती है। चेंबर काफी समय से मेवात तक के लिए रेल सुविधा का विस्तार और गुड़गांव से मानेसर रेवाड़ी तक मेट्रो रेल की मांग करता रहा है, लेकिन रेल बजट में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई। इससे दक्षिणी हरियाणा के वाणिज्य एवं उद्योगों में निराशा है। साथ ही दिल्ली से कोंडली तक मेट्रो रेल पानीपत तक रेपिड मेट्रो के निर्माण संबंधी घोषणा की भी आशा थी, लेकिन बजट में कुछ नहीं मिला।

पटेल विकास मंच के संयोजक राजेश पटेल का कहना है कि यात्री किराया नहीं बढ़ाने से यात्रियों को राहत मिली है, मगर गुड़गांव में रहने वाले बाहर के लोगों की मांग नहीं मानी गई, इसका दुख है। पूर्वांचल समाज के लोगों ने रेल मंत्री को ज्ञापन सौंपकर आनंद विहार टर्मिनल रेलवे स्टेशन की तर्ज पर ही गुड़गांव स्टेशन से भी दूर की ट्रेनें चलाने की मांग की थी। मंच ने बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जाने वाली लंबी रूट की कम से कम दो ट्रेनों का स्टॉपेज गुड़गांव में करने की मांग की थी। मगर, इस दिशा में एक बार फिर मायूसी हाथ लगी है। उन्होंने कहा कि गुड़गांव में पूर्वांचल के पांच लाख से अधिक लोग रहते हैं।

मारुती उद्योग कामगार यूनियन के महासचिव कुलदीप जाघूं ने कहा कि गुड़गांव, खेड़की दौला, मानेसर, बिनौला, सिन्धरावली, धारूहेड़ा, बावल औद्योगिक क्षेत्रों में हजारों उद्योग हैं। इनमें हर प्रांत के लाखों लोग काम करते हैं। आईएमटी मानेसर में हजारों कर्मचारी सीधे दिल्ली से आते हैं और गढ़ी हरसरु रेलवे स्टेशन मानेसर आईएमटी से नजदीक पड़ता है। यहां पर सभी रेलगाडिय़ों का ठहराव नहीं है।

^राजेंद्रा पार्क निवासी रूपा पटेल का कहना है कि अपने प्रदेश की ट्रेन पकड़ने के लिए उन्हें आनंद विहार टर्मिनल तक मेट्रो ट्रेन और बसों में धक्के खाने पड़ते हैं। बच्चों को बहुत परेशानी होती है। इसमें कम से कम चार घंटे बर्बाद होते हैं। कई बार देरी होने पर ट्रेन छूट भी जाती है। लंबी दूरी की ट्रेनों की शुरुआती और अंतिम स्टॉप गुड़गांव किया जा सकता है। मगर, सरकार को इससे कोई लेना-देना नहीं है।

^लियाकत हवननगर ने कहा किकिसी सरकार ने मेवात के लोगो की रेल मांग पूरी नहीं की। हाजी हक्की त्रिवाड़ा ने रेल बजट पर निराशा जताते हुए कहा कि मेवात मात्र 40 किलोमीटर दूरी पर गुड़गांव हैं। वहां हर सुविधा है। मेवात को पिछड़ेपन से दूर करने को रेल से जोड़ना बहुत आवश्यक हैं। पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भी स्थानीय सांसद वर्तमान मंत्री राव इंद्रजीत सिंह रेल को लेकर लोगों को झूठे आश्वासन देते रहे हैं।

^शिक्षा विदसौराब खां ने कहा किसरकार किसी की भी हो, मेवात के लोगों से हमेशा झूठ बोला जाता रहा है। रेल लाइन मेवातवासियों की पुरानी मांग है। भाजपा सरकार को इस बजट अवश्य मेवात के लिए रेल लाइन देना चाहिए था।

^क्षेत्रीय निवासीदीन मोहम्मद ने कहा किरेल बजट को मेवात विरोधी है। उन्होंने कहा कि कि राजनैतिक पार्टियां जानबूझ कर रेल से नहीं जोड़ना चाहती। सिर्फ रेल लाईन की मांग पर 60 सालों से राजनीति करती रही हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा की प्रदेश केन्द्र में सरकार है। इसलिए इस बजट में रेल लाइन की मांग पूरी होने की उम्मीद ज्यादा लगी हुई थी।

सबसे उपेक्षित है अरबी-फारसी विश्वविद्यालय

 

 

प्रस्तुति- कृति शऱण 

बिहार में एक ऐसा विश्वविद्यालय है जो 1982 से अब तक खानाबदोशी का जीवन जी रहा है. इस विश्वविद्यालय का नाम है मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय. राज्य के मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को खुश रखने के लिए खानकाहों और मज़ारों पर बराबर हाजरी देते रहने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शायद यह बात समझ में आ गई है कि खानकाहों में मुसाफिर खाना, अतिथिशाला बनवा देने, मजारों की मरमम्त करा देने, कब्रिस्तानों की घेराबंदी का काम जैसे-तैसे करा देने और इमारत-ए-शरईया, इदारा-ए-शरईया तथा खानकाह रहमानी मुंगेर जैसी बड़ी-बड़ी मज़हबी संस्थाओं के माध्यम से मुस्लिम बच्चियों के लिए सिलाई-बुनाई का हुनर प्रोग्राम चलाकर ही जब मुसलमानों के दिलों को जीता और उनके वोटों पर क़ब्ज़ा किया जा सकता है तो फिर पटना में मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय या फिर किशनगंज में एएमयू शाखा की आवश्यकता ही क्या है?
विश्वविद्यालय की प्रति कुलपति डा एस. के. जबीं राज्य की पहली मुस्लिम महिला हैं, जिन्हें इस पद पर लाया गया है. विगत 37 वर्षों का शैक्षणिक अनुभव रखने वाली इस विद्वान महिला ने उर्दू और फारसी में कई शोध परक पुस्तकें लिखीं हैं जो विद्यार्थियों के लिये काफी लाभप्रद भी हैं. लेकिन सवाल उठता है कि राज्य की मदरसा शिक्षा प्रणाली को लचर बना देने तथा राज्य के स्कूलों से फारसी और अरबी की शिक्षा को चौपट करने की प्रभावी व्यवस्था के बाद मुसलमानों में पसरी चुप्पी का फायदा उठाते हुए नीतीश सरकार अरबी-फारसी विश्वविद्यालय की जगह अब अन्तरराष्ट्रीय म्यूज़ियम के निर्माण को क्यों प्राथमिकता देने लगी हैं.
राज्य की नीतीश सरकार में जब बेली रोड के सरकारी आवास सं-5 के मुख्य द्वार पर मौलाना मजरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय का बड़ा सा साइन बोर्ड लगा था तो राज्य के अरबी-फारसी के विद्वानों, खासकर मदरसा शिक्षा प्रणाली से जुड़े शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को यह विश्वास हो गया था कि अब मौलाना मजहरूल हक विश्वविद्यालय के साथ भेद-भाव नहीं होगा. नीतीश कुमार को लोगों ने बोलने से अधिक कार्य करने वाले मुख्यमंत्री के रूप में देखा था. लेकिन यह विश्वास तब टूट गया जब नीतीश सरकार के भवन निर्माण विभाग के एक कनीय पदाधिकारी रंजन कुमार के हस्ताक्षर से विश्वविद्यालय के कुल सचिव गुलाम मो. मुस्तफा के हाथों में आवास सं-05 को शीघ्र खाली कर इसे कार्यपालक अभियंता, पाटिलीपुत्रा भवन प्रमंडल, भवन निर्माण विभाग को सौंप देने का फरमान थमा दिया गया. भवन निर्माण विभाग के पत्रांक 6645 दिनांक 19.07.2011, 8080 दिनांक 30.08.2011 तथा 8736 दिनांक 20.09.2011 के द्वारा बार-बार ताकीद की जा रही है कि भवन खाली किया जाए. भवन को खाली करने की बात नीतीश सरकार के पदाधिकारी ज़रूर कर रहे हैं लेकिन खाली करने के बाद विश्वविद्यालय को अब किस के आवास में ले जाया जाएगा, नीतीश सरकार के लोगों से पूछने वाला कोई नहीं है. बिहार के महान स्वतंत्राता सेनानी तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले मौलाना मजहरूल हक के नाम से नामित इस विश्वविद्यालय का यह दुर्भाग्य रहा है कि 31 वर्षों बाद भी इसे एक अदद अपना कमरा तक नसीब नहीं हो सका है. इस विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा सबसे पहले 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा जगन्नाथ मिश्र ने की थी लेकिन वर्षों तक इसका वजूद सरकार के बजट भाषणों से बाहर नहीं निकल सका. जब लालू प्रसाद की सरकार बनी तो 1992 में मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय एक्ट बना. एक्ट क्या बना मुस्लिमनुमा सरकारी दलालों ने लालू यादव का भजन कीर्तन शुरू कर दिया और इसी के नाम पर अगले विधनसभा चुनाव के लिए मुस्लिम वोटों की खेती आरंभ कर दी गई. वित्तीय वर्ष 1998-99 के बजट भाषण में तो इस विश्वविद्यालय के खुल जाने का भी दावा कर दिया गया था. लेकिन जब सदन में बजट भाषण पढ़ने से पहले तत्कालीन राज्यपाल डॉ ए.आर. किदवाई ने सरकार से पूछा कि विश्वविद्यालय कहां हैं तो रातो-रात तंबू-शामियाना डालकर डम्मी विश्वविद्यालय का उद्घाटन 10 अप्रैल, 1998 को कर दिया गया. साथ ही हार्डिंग रोड स्थित एक खाली सरकारी आवास सं-28 के सामने मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय का बोर्ड लगा दिया गया. अरबी-फारसी के विद्वान डॉ. मुखतारूद्दीन आरजू को इस विश्वविद्यालय का कुलपति भी बना दिया गया. पहले कभी इस आवास में कॉलेज सेवा आयोग के अध्यक्ष बालेश्वर प्रसाद रहते थे. लेकिन जब इस पर अरबी-फारसी विश्वविद्यालय का बोर्ड लगा तो इस आवासीय परिसर में एक धोबी, एक ड्राइवर और एक माली रहता था. माली संजय गांधी जैविक उद्यान का कर्मचारी था. परिवार के आवासियों को कभी यह पता नहीं चल पाया कि यहां कोई विश्वविद्यालय भी है. लगता है इस सरकार में मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय सहित अल्पसंख्यक सरोकार के सभी मुद्दे गौण होकर रह गए हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए बेली रोड के आवास सं-05 से कथित अरबी-फारसी विश्वविद्यालय को निकाल बाहर करने के सरकारी फरमान को अल्पसंख्यक समुदाय निश्चित रूप से गंभीरता से लेता. धरना-प्रदर्शन होता और फिर नीतीश कुमार से यह सवाल पूछा जाता कि बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 के तहत जे.पी. विश्वविद्यालय, छपरा, बीर कुंअर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, बी.एन.मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा एवं कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा के साथ-साथ 1992 में मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी तो फिर वह क्या कारण है कि एक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय को छोड़कर बाकी सब वर्षों से पूरी तरह कार्यरत हैं तथा इन्हें भूमि, भवन, शैक्षणिक एवं शिक्षकेत्तर पदों की स्वीकृति, पर्याप्त फंड, आधरभूत संरचना तथा अन्य सभी प्रशासनिक, वित्तीय एवं शैक्षणिक सुविधएं प्राप्त हैं. विकास का ढोल पीटने वाली नीतीश सरकार से यह भी बहुत पहले पूछा गया होता कि राजधनी की मुख्य सड़क बेली रोड स्थित तक बड़े सरकारी बंगले के मुख्य द्वार पर अरबी-फारसी विश्वविद्यालय का बोर्ड लगा देने तथा इसके सुविधा भोगी कुछ प्रशासनिक पदों पर चन्द लोगों को बैठा देने मात्र से राज्य में अरबी-फारसी शिक्षा तथा शोध का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा?
अरबी-फारसी विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति डॉ. एस. जोहा पहली बार अरबी-फारसी के विद्वान कुलपति बनाये गए हैं. प्रोफेसर एस.जोहा चन्द माह पूर्व इस पद पर आसीन हुये हैं. इन्होंने अल्प अवधि में अरबी-फारसी के विकास तथा प्रचार-प्रसार पर बल दिया है. मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय का कार्य क्षेत्र पूरा बिहार है. परंतु यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मापदंड पर पूरा नहीं उतरता है. जिसके कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मिलने वाली करो़डों रुपये के अनुदान से वंचित है. नतीजतन, विश्वविद्यालय का बहुमुखी विकास नहीं हो पा रहा है. राज्य सरकार इसे अब तक अपने योजना मद से राशि आवंटित करती आ रही है. यदि ग़ैर योजना मद में इसे रखा जाता तो विश्वविद्यालय का भला होता. चालू वित्तीय वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार द्वारा 9 करोड़ रुपये की स्वीकृति मिली है परंतु अभी तक विश्वविद्यालय को राशि आवंटित नहीं की गई है. फलस्वरूप विकास कार्य वाधित है. मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय राज्य के 117 आलीम और फाजिल स्तर के मदरसों से जुड़ा है. जिसमें लगभग 15 हजार बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
विश्वविद्यालय की प्रति कुलपति डा एस. के. जबीं राज्य की पहली मुस्लिम महिला हैं, जिन्हें इस पद पर लाया गया है. विगत 37 वर्षों का शैक्षणिक अनुभव रखने वाली इस विद्वान महिला ने उर्दू और फारसी में कई शोध परक पुस्तकें लिखीं हैं जो विद्यार्थियों के लिये काफी लाभप्रद भी हैं. लेकिन सवाल उठता है कि राज्य की मदरसा शिक्षा प्रणाली को लचर बना देने तथा राज्य के स्कूलों से फारसी और अरबी की शिक्षा को चौपट करने की प्रभावी व्यवस्था के बाद मुसलमानों में पसरी चुप्पी का फायदा उठाते हुए नीतीश सरकार अरबी-फारसी विश्वविद्यालय की जगह अब अन्तरराष्ट्रीय म्यूज़ियम के निर्माण को क्यों प्राथमिकता देने लगी हैं. असंवेदनशीलता, निष्क्रियता और सरकारी दलाली के इस ऐतिहासिक काल में नीतीश सरकार जो कुछ भी कर रही है, राज्य के आम मुसलमानो को इस पर तनिक भी हैरत नहीं होनी चाहिए.

भारतीय रेल का इतिहास





प्रस्तुति-  कृति शऱण 

 नयी दिल्ली। भारतीय रेल का इतिहास 168 साल पुराना है। इसकी शुरूआत भारत में अंग्रेजों के शासन काल से हुई। भारतीय रेलवे ने सबसे पहली ट्रेन 18वीं सदी में चलाई गई थी। पहली रेल 16 अप्रैल 1853 को बंबई के बोरी बंदर स्टेशन से ठाणे के बीच चलाई गई थी। इस ट्रेन में लगभग 400 यात्रियों ने सफर किया था। railway भाप इंजन भारत की पहली ट्रेन भाप इंजन से चलने वाली ट्रेन थी। यह रेल मालगाडी थी। शुरू में तो यह मानव शक्ति से खींची जाती थी, लेकिन बाद में भाप का इस्तेमाल होने लगा था। ये ट्रेन रुड़की में चलाई गई थी। जबकि बोरी बंदर स्टेशन से ठाणे के बीच चलने वाली ट्रेन सवारी गाड़ी थी। steam engine भारतीय रेल को आधिकारिक पहचान पहली रेल 16 अप्रैल 1853 को बंबई के बोरी बंदर स्टेशन से ठाणे के बीच चलाई गई थी। पहली ट्रेन ने लगभग 34 किलो मीटर लंबे रेलखंड पर सफर तय किया था। 1855 का ‘फेयरी क्वीन' इंजन आज भी ट्रैक पर दौड़ रहा है। हरियाणा के रेवाड़ी में एक लोको शेड तैयार किया गया, जहां 10 से अधिक भाप इंजन को संजो कर रखे गए हैं।इस ट्रेन में 14 कोच लगे थे, जिसे लोकोमोटिव सुल्तान, सिंधु और साहिब नाम के इंजन खींच रहे थे। railway डीजल इंजन भाप इंजन में आने वाली परेशानियों से बचने के लिए रेलवे ने भाप के बजाए डीजल इंजन की पहल शुरु कर दी। डीजल इंजन के इस्तेमाल के साथ 88 फीसदी ईधन का बचत होनी लगी। वहीं ट्रेन की स्पीड भी बढ़ गई। ऐसे में समय और धन होने की बचत होनी लगी। इलैक्ट्रानिक इंजन 1904 में रेलवे में इलैक्ट्रानिक इंजन की प्रपोजल रेलवे के सामने आया। वहीं 3 फरवरी 1925 को मुंबई से कुर्ला के बीच 16 किमी की लाइन पर ईएमयू रेल चलाई गई। धीरे-धीरे इसका विस्तार कर मुंबई, चैन्नई, दिल्ली, कोलकाता, पूणे, हैदराबाद और बैंगलुरु में किया गया। हाईस्पीड रेलवे इंजन जुलाई 2014 में भारत की पहली हाई स्पीड बुलेट ट्रेन की शुरुआत की गई। पहली हाईस्पीड ट्रेन का ट्रायल आगरा से दिल्ली के बीच किया यगया। आगरे से दिल्ली की दूरी महज 90 मिनट में तय की गई। माना जा रहा है कि 2015 में इस हाई स्पीड ट्रेन को पूरी तरह से चलने के लिए तैयार कर लिया जाएगा। गतिमान एक्सप्रेस के नाम से ये ट्रेन 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी। फिलहाल भोपाल शताबिदी ट्रेन बारत की सबसे तेज रफ्तार की ट्रेन है। जिसकी रफ्तार 150 किमी प्रति घंटा है। तारिखों में भारतीय रेलवे विश्व का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है भारतीय रेल 16 अप्रैल 1853 के दिन मुंबई ठाणे के बीच देश की प्रथम ट्रेन चली थी 26 जनवरी 1950 के दिन बंगाल के चितरंजन मे ब्रोड्गोटिव फेकटरी का उदघाटन 1 नवंबर 1950 के दिन देश का प्रथम स्टीम एंजिन बना देश का प्रथम एलेक्ट्रिक एंजिन 1961 मे बना था डीजल एंजिन बनाने की फेकटरी वाराणसी मे 1961 मे चालू हुई थी 1972 मे स्टीम एंजिन को बंद कर दिया गया मात्र 21 km के रूट से चालू की गई रेल आज 115000 km पर दौड़ रही है 7500 स्टेशन है ,65000 किलोमीटर के रूट पर 115000 किलोमीटर का रेल नेटवर्क दिसंबर 2012 के मुताबिक रोज 25 मिलियन यात्रिने मुसफ़री की थी जब की साल के 9 अब्ज लोग रेल से मुसफ़री करते है 8900 मिलियन यात्रियो को रेल ने एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाया था 2.8 मिलियन टन चीजों को रेल रोज एक जगह से दूसरे जगह पहुँचती है 2011-12 मे रेल को 104278.79 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी यात्री टिकट से रेल ने 2011-12 मे 28645.92 करोड़ रुपये कमाए थे 31 मार्च 2012 के मुताबिक 22224 किलोमीटर इलेक्ट्रिक मार्ग कर दिया गया है

आम बजट में क्या है खास




प्रस्तुति-  कृति शऱण


वित्त मंत्री अरूण जेटली के 2016-17 के बजट में जहां एक तरफ छोटे आयकर दाताओं को राहत दी गयी वहीं एक करोड़ रपये से अधिक की कमाई करने वालों पर अधिभार तीन प्रतिशत बढाने का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही यात्री कारों पर अलग अलग दर से प्रदूषण उपकर तथा देश में कालाधन रखने वालों के लिये 45 प्रतिशत कर एवं जुर्माने के साथ एक बारगी अनुपालन खिड़की का प्रस्ताव किया गया है। अपना तीसरा बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कषि क्षेत्र में सुधार के लिये सभी कर योग्य सेवाओं पर 0.5 प्रतिशत कषि कल्याण उपकर लगाने का भी प्रस्ताव किया। साथ ही शीत गह, रेफ्रिजरेटेड कंटेनर्स तथा अन्य वस्तुओं पर परियोजना आयात पर शुल्क में छूट की घोषणा की।
'सरकार पर अतिरिक्त बोझ'
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार पर 2016-17 में सातवें वेतन आयोग और ओआरओपी खर्च का अतिरिक्त बोझ आएगा। उन्होंने कहा कि सरकारी लाभ सिर्फ जरूरतमंदों को मिले, इसके लिए सरकार कानून बनाएगी। उन्होंने कहा कि वैश्विक निर्यात में गिरावट के बावजूद 2015-16 में वद्धि दर बढ़कर 7.6 प्रतिशत पर पहुंच गई है। हमारी बाहरी स्थिति मजबूत है। चालू खाते का घाटा घटकर 14.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। यह जीडीपी के 1.4 प्रतिशत के बराबर होगा।
9 क्षेत्रों पर केंद्रित बजट
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि उपभोक्ता थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पिछली साल के तीन साल में 9.4 प्रतिशत रही। यह अब घटकर 5.5 प्रतिशत पर आ गई है। उन्होंने कहा कि बजट नौ क्षेत्रों- कषि क्षेत्र, ग्रामीण ढांचा, सामाजिक क्षेत्र, शिक्षा एवं कौशल विकास, जीवनस्तर में सुधार, वित्तीय क्षेत्र, कारोबार सुगमता और कर सुधारों पर केंद्रित होंगे।
ई-मार्केटिंग प्लेटफॉर्म होगा शुरु
जेटली ने कहा कि हमें ढांचागत सुधारों कें जरिये अपनी बचाव क्षमता को मजबूत करना होगा। घरेलू बाजार पर निर्भर रहना होगा जिससे वद्धि सुस्त न पड़े। उन्होंने घोषणा की कि ई मार्केटिंग प्लेटफार्म 14 अप्रैल, 2016 को बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2016-17 के लिए कषि ऋण का लक्ष्य 9 लाख करोड़ रुपये है। साथ ही सरकार 2016-17 में दलहन की खरीद को बढ़ावा देगी।
2018 तक हर गांव को बिजली मिलेगी
अपनी बड़ी घोषणाओं में उन्होंने कहा कि आधार प्लेटफार्म पर लाभ के पात्र लोगों के लिए कानून बनाया जाएगा। मनरेगा के लिए 2016-17 में 38,500 करोड़ रुपये का प्रावधान है। साथ ही एक मई, 2018 तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाई जाएगी। उन्होंने कषि क्षेत्र के लिए 35,984 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की। और 2016-17 में डेढ़ करोड़ गरीब परिवारों को रसोई गैस कनेक्शन के लिए 2,000 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया।
गहरे पानी में खोजेंगे गैस
उन्होंने कहा कि सरकार गहरे पानी में गैस खोज के लिए प्रोत्साहन उपलब्ध कराएगी। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के लिए 8,500 करोड़ रुपये की घोषणा की। उन्होंने कहा कि कषि विकास योजना के तहत तीन साल में पांच लाख एकड़ जमीन को जैविक खेती के तहत लाया जाएगा। साथ ही नाबार्ड में 20,000 करोड़ रुपये के कोष के साथ दीर्घावधि का एक समर्पित सिंचाई कोष बनाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि भूजल बढ़ाने के प्रयासों के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के लिए 2016-17 में 19,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा। राज्यों के योगदान के बाद यह राशि 27,000 करोड़ रुपये होगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय डायलिसिस योजना के तहत देश के हर जिले में मूल सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क में छूट का प्रावधान किया गया है।
62 नए नवोद्य विद्यालय खोले जाएंगे
उन्होंने कहा कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत 62 नए नवोदय विद्यालय खोले जाएंगे, स्कूल प्रमाणपत्रों को सुरक्षित रखने के लिए डिजिटल डिपाजिटरी खोली जाएगी और फसल बीमा योजना के लिए सरकार 5,500 करोड़ रुपये का आवंटन करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार 300 आर अर्बन संकुलों का विकास करेगी।
उन्होंने कहा कि सरकार संगठित क्षेत्र में कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रोत्साहन देगी। ढांचागत क्षेत्र के लिए 2016-17 में 2,21,243 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा। स्वच्छ भारत मिशन के लिए उन्होंने 9,000 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की और कहा कि छह करोड़ ग्रामीण परिवारों के लिए डिजिटल साक्षरता योजना शुरू की जाएगी। 2016-17 में ग्राम सड़क योजना सहित सड़क क्षेत्र के लिए कुल 97,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा जबकि ग्रामीण विकास के लिए 87,765 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा।
3500 मेडिकल स्टोर खोले जाएंगे
उन्होंने कहा कि 75 लाख लोगों ने एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी। एक बड़ी घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि उच्चस्तरीय दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत 3,500 मेडिकल स्टोर खोले जाएंगे। उन्होंने कहा कि अगले तीन साल में एक करोड़ युवाओं को कुशल बनाया जाएगा। एनएचएआई, आरईसी और नाबार्ड अगले वित्त वर्ष में पूंजी बाजार से 31,300 करोड़ रुपये जुटाएंगे।
वित्त मंत्री ने कहा कि कौशल विकास कार्यक्रम के तहत युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए 1,500 बहु कौशल प्रशिक्षण संस्थान खोले जाएंगे। नौकरी पेशा लोगों के लिए बड़ी घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि EPF में 8.33 प्रतिशत का योगदान सरकार करेगी। इसके अलावा शॉपिंग मॉल्स अब सप्ताह में सातों दिन खुलेंगे।
हैल्थ बीमा भी देगी सरकार
प्रति परिवार एक लाख रुपये का बीमा कवर प्रदान करने के लिए एक नई स्वास्थ्य सुरक्षा योजना दी जाएगी और 60 साल से उपर के लोगों को इस योजना में 30,000 रुपये का अतिरिक्त लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2016-17 में बुनियादी ढांचा के लिए कुल परिव्यय 2.21 लाख करोड़ रुपये है और सार्वजनिक परिवहन में परमिट कानून को समाप्त करना हमारा मध्यावधि का लक्ष्य है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत इस साल फरवरी तक ढाई करोड़ छोटे व्यवसायियों को एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया। अगले वित्त वर्ष में 1.80 लाख करोड़ रुपये के ऋण वितरण का लक्ष्य है। उन्होंने बताया कि बजट में सागरमाला परियोजना के लिए 8,000 करोड़ रुपये का प्रावधान है। साथ ही वर्ष 2016-17 में रेल और सड़क के लिए कुल आवंटन 2.18 लाख करोड़ रुपये रखा है। उन्होंने बताया कि दो हजार किलोमीटर राज्य राजमार्गों को राष्ट्रीय राजमार्गों में बदला जाएगा।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 का कुल बजट खर्च 19.78 लाख करोड़ रुपये है जिसमें योजना व्यय 5.50 लाख करोड़ रुपये और गैर योजना व्यय 14.28 लाख करोड़ रुपये है। साथ ही सरकार परमाणु उर्जा उत्पादन के लिए एक वृहद योजना तैयार कर रही है। इसके लिए वार्षिक आवंटन 3,000 करोड़ रुपये हो सकता है।
टैक्स में राहत
उन्होंने कहा कि किराये के मकान में रहनों वालों को 24,000 रुपये सालाना के बजाय अब 60,000 रुपये की कर राहत दी जाएगी। सीपीएसई की परिसंपत्तियों की रणनीतिक बिक्री के लिए सरकार नई नीति लाएगी। साथ ही अगले वित्त वर्ष में छोटी कंपनियों के लिए कारपोरेट कर में कटौती की शुरआत की जाएगी।
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुन:पूंजीकरण के लिए 25,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे, बैंक बोर्ड ब्यूरो अगले वित्त वर्ष से परिचालन शुरू करेगा। बड़ी घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत आयकर की दरों में कोई बदलाव नहीं होगा। साथ ही पहली बार मकान खरीदने वालों को ब्याज में 50,000 रुपये की अतिरिक्त छूट मिलेगी।
सरकार कारोबार में सुगमता के लिए कंपनी कानून में संशोधन का विधयेक लाएगी। कंपनियों का पंजीकरण एक दिन में संभव होगा। एनपीएस में निकासी के समय 40 प्रतिशत कोष पर कर छूट मिली। और भारत में पैदा हुए और भारत में तैयार खाद्य उत्पादों पर 100 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी मिलेगी।

अंग्रेजों ने शुरू की थी रेलवे बजट की प्रथा



प्रस्तुति- कृति शरण 
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। रेल बजट का लंबा इतिहास है। अंग्रेजी राज के समय से ही रेल बजट को पेश करने की परम्परा शुरू हो गई थी। इसका आगाज हुआ था सन 1924 से। उससे पहले तक रेल विभाग के लिए कोई अलग से बजट का प्रावधान नहीं था।

History of Railway budget in India
आम बजट का 70 प्रतिशत
1924 में रेल का बजट भारत के आम बजट का लगभग 70 प्रतिशत था जो अब लगभग 14-15 प्रतिशत तक रह गया है। रेल के इतिहास के पन्नों को पलटने पर आप पाएंगे कि रेल के लिए धन की व्यवस्था आम बजट में से किसी अन्य मंत्रालय की तरह से ही की जाती थी। सन 1921 में ईस्ट इंडियन रेलवे समिति ने इसे अलग करने की सिफारिश की, फलस्वरूप 1924 से रेलवे को वित्त मंत्रालय से अलग कर दिया गया, तभी से इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान कर दिया गया।
ख्वाब का सच होना
इसमें कोई शक नहीं है कि जब हम भारत में हाईस्पीड वाली बुलेट ट्रेनों के चलने का ख्वाब सच होता देख रहे हैं, वहीं एक समय ऐसा भी था जब बैल ट्रेन को खींचा करते थे। यह बात सबको आश्चर्य में डालने वाली है।
नैरोगेज ट्रेन की शुरुआत
बता दें कि गुजरात में नैरोगेज ट्रेन की शुरुआत हुई थी। बड़ोदा के शासक खांडेराव गायकवाड़ ने एक अंग्रेज इंजीनियर मिस्टर ए.डब्ल्यू फोर्ड से पहली डभोई-मियागांव में रेल लाइन की डिजाइन तैयार करवाई और फिर इन्हीं की देखरेख में रेल लाइन का निर्माण किया गया।
नैरोगेज ट्रेन के डिब्बे
इसके बाद यह तय किया कि इस नैरोगेज रेल लाइन पर भाप से चलने वाले इंजन चलाए जाएं। इस लाइन पर चलने वाली नैरोगेज ट्रेन के लिए कुछ डिब्बे भी भारत में तैयार किए गए थे। गुजरात में डभोई-मियागांव नैरोगेज रेल लाइन अंतत: इंजन से चलने वाली ट्रेन के लिए 1862 में खोल दिया गया। इस तरह से भारत की पहली नैरोगेज लाइन बनाई गई। हालांकि यह भी बताना जरूर है कि स्वतंत्र भारत में रेलवे का इस्तेमाल विभिन्न दलों और नेताओं ने अपने लाभ के लिए खूब किया।
सोलह क्षेत्रों में बंटी
बता दें कि भारतीय रेल सोलह क्षेत्रों में बंटी हुई है। प्रत्येक क्षेत्र में कई मंडल हैं। जो इस तरह स हैं- उत्तर पश्चिम रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, उत्तर रेलवे, दक्षिण पश्चिम रेलवे, दक्षिण मध्य रेलवे, दक्षिण रेलवे, दक्षिणपूर्व मध्य रेलवे, दक्षिणपूर्व रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, पश्चिम रेलवे, पूर्व तटीय रेलवे, पूर्व रेलवे, पूर्वमध्य रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, मध्य रेलवे,कोंकण रेलवे।

1860 में बना था भारत का पहला BUDGET




, और इस अंग्रेज ने किया था पेश

1860 में बना था भारत का पहला BUDGET, इस अंग्रेज ने किया था पेश

फोटोः भारत का पहला बजट पेश करने वाले वित्त विशेषज्ञ जेम्स विल्सन
नई दिल्‍ली. वित्‍त मंत्री अरुण जेटली एनडीए सरकार का दूसरा बजट 28 फरवरी को पेश करेंगे। आजादी से पहले अं‍तरिम सरकार का बजट लियाकत अली खां ने पेश किया था। यह बजट 9 अक्‍टूबर, 1946 से लेकर 14 अगस्त 1947 तक का था। इसके बाद आजाद भारत का पहला बजट तत्कालीन वित्त मंत्री आर के षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 में पेश किया था।
बजट का है पुराना इतिहास
हर साल आने वाले बजट का भारत के आजाद होने से भी पुराना इतिहास हैं। बजट से जुड़ी कई ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं हैं जिन्‍हें शायद आप नही जानते होंगे। कुछ ऐसी ही बातों को हम यहां बताने जा रहे हैं। भारत में वित्‍त वर्ष की शुरुआत कब हुई और किसने पहला बजट पेश किया। जानिए भारत के बजट यात्रा की वो तमाम बातें।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। जो कि भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है। जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंतिम कार्य-दिवस को भारत के वित्त मंत्री संसद में पेश करते हैं। भारतीय वित्‍त वर्ष की शुरुआत 1 अप्रैल से होती है। बजट को लागू करने से पूर्व संसद द्वारा पास करना आवश्यक होता है।
जेम्‍स विल्‍सन ने की भारत में बजट की शुरुआत
भारत के पहले बजट को प्रस्तुत करने का श्रेय जेम्स विल्सन को जाता है, जिन्होंने 18 फरवरी 1860 को वायसराय की परिषद में पहली बार बजट पेश किया। विल्सन को पहली बार एक वित्त विशेषज्ञ जेम्स विल्सन को वायसराय की कार्यकारिणी का वित्त सदस्य नियुक्त किया गया। जेम्स विल्सन को भारतीय बजट का संस्थापक भी कहा जाता है। 1860 के बाद से ही प्रतिवर्ष देश की वित्तीय स्थिति का विवरण प्रस्तुत करने वाला बजट वायसराय की परिषद में पेश किया जाने लगा, लेकिन उस समय भारत गुलाम था, इसलिए इस बजट पर भारतीय प्रतिनिधियों को बहस करने का अधिकार नहीं था।

भारत का केंद्रीय बजट



भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केन्द्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है[1], जो कि भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है, जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंतिम कार्य-दिवस में भारत के वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता है। भारत के वित्तीय वर्ष की शुरूआत, अर्थात 1 अप्रैल से इसे लागू करने से पहले बजट को सदन द्वारा इसे पारित करना आवश्यक होता है। पूर्व वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने अभी तक सबसे ज्यादा आठ बार बजट प्रस्तुत किया है।[2]

अनुक्रम

कालक्रम

उदारीकरण-पूर्व

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री, डॉ॰ मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
स्वतंत्र भारत का प्रथम केन्द्रीय बजट 26 नवम्बर 1947 को आर.के. शनमुखम चेट्टी द्वारा प्रस्तुत किया गया था।[2]
1962-63 के अंतरिम बजट के साथ 1959-60 से 1963-64 के वित्तीय वर्ष के लिए केंद्रीय बजट को मोरारजी देसाई द्वारा प्रस्तुत किया गया।[2] 1964 और 1968 में फरवरी 29 को वे अपने जन्मदिन पर केंद्रीय बजट पेश करने वाले एकमात्र वित्त मंत्री बने.[3] देसाई द्वारा प्रस्तुत बजट में पांच वार्षिक बजट शामिल हैं, अपने पहले कार्यकाल के दौरान एक अंतरिम बजट और दूसरे कार्यकाल के दौरान एक अंतरिम बजट और तीन अंतिम बजट प्रस्तुत किया, इस समय वे वित्त मंत्री और भारत के उप-प्रधानमंत्री दोनों थे।[2]
देसाई के इस्तीफा देने के बाद, उस समय की भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वित्त मंत्रालय के पदभार को संभाल लिया और साथ ही वित्त मंत्री के पद को हासिल करने वाली एकमात्र महिला भी बन गई।[2]
वित्त पोर्टफोलियो को हासिल करने वाले राज्य सभा के पहले सदस्य प्रणव मुखर्जी ने 1982-83, 1983-84 और 1984-85 के वार्षिक बजट को प्रस्तुत किया।[2]
वी.पी. सिंह के सरकार छोड़ने के बाद 1987-89 के बजट को राजीव गांधी ने प्रस्तुत किया और मां और दादा के बाद बजट प्रस्तुत करने वाले वे एकमात्र तीसरे प्रधानमंत्री बने.[2]
एन.डी. तिवारी ने वर्ष 1988-89 के लिए बजट प्रस्तुत किया, 1989-90 के लिए एस.बी. चव्हाण, जबकि मधु दंडवते ने 1990-91 के लिए केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया।[2]
डॉ॰ मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री बने लेकिन चुनाव की विवशता वश उन्होंने 1991-92 के लिए अंतरिम बजट ही प्रस्तुत किया।[2]
राजनीतिक घटनाक्रम के कारण, प्रारम्भिक चुनाव को मई 1991 में आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राजनीतिक सत्ता को पुनः प्राप्त किया और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने 1991-92 के लिए बजट प्रस्तुत किया।[2]

उदारीकरण-पश्चात

मनमोहन सिंह ने अपने अगले बजट 1992-93 में अर्थव्यवस्था को मुक्त कर दिया[4], विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया और आयात कर को कम करते हुए 300 से अधिक प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक किया।[2]
1996 में चुनाव के बाद, एक गैर-कांग्रेसी मंत्रालय ने पद ग्रहण किया। इसलिए 1996-97 के अंतिम बजट को पी. चिदम्बरम द्वारा प्रस्तुत किया गया जो उस समय तमिल मानिला कांग्रेस से संबंधित थे।[2]
एक संवैधानिक संकट के बाद जब आई. के. गुजराल का मंत्रालय समाप्त हो रहा था तब चिदंबरम के 1997-98 बजट को पारित करने के लिए संसद की एक विशेष सत्र बुलाई गई थी। इस बजट को बिना बहस के ही पारित किया गया था।[2]
मार्च 1998 के सामान्य चुनाव के बाद जिसमें भारतीय जनता पार्टी केंद्रीय सरकार का गठन करने वाली थी, तब इस सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने 1998-99 के अंतरिम और अंतिम बजट को प्रस्तुत किया।[2]
1999 के सामान्य चुनाव के बाद, सिन्हा एक बार फिर वित्त मंत्री बने और वर्ष 1999-2000 से 2002-2003 तक चार वार्षिक बजट प्रस्तुत किया।[2] मई 2004 में चुनाव होने के कारण अंतरिम बजट को जसवंत सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया।[2]

बजट घोषणा का समय

वर्ष 2000 तक, केंद्रीय बजट को फरवरी महीने के अंतिम कार्य-दिवस को शाम 5 बजे घोषित किया जाता था। यह अभ्यास औपनिवेशिक काल से विरासत में मिला था जब ब्रिटिश संसद दोपहर में बजट पारित करती थी जिसके बाद भारत ने इसे शाम को करना आरम्भ किया।
अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार (बीजेपी द्वारा नेतृत्व) के तत्कालीन वित्त मंत्री श्री यशवंत सिन्हा थे, जिन्होंने परम्परा को तोड़ते हुए 2001 के केंद्रीय बजट के समय को बदलते हुए 11 बजे घोषित किया।[5]. इससे यह भी पता चलता है, कैसे पिछली सरकार ने बिना किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य के स्वतंत्रतापूर्व अवधि से इस प्रक्रिया को जारी रखा था।

इन्हें भी देंखे

संदर्भ



  • http://indiacode.nic.in/coiweb/welcome.html

  • "Chidambaram to present his 7th Budget on Feb. 29". The Hindu. 2008-02-22. अभिगमन तिथि: 2008-02-22.

  • "The Central Budgets in retrospect". Press Information Bureau, Government of India. 2003-02-24. अभिगमन तिथि: 2008-02-22.

  • "Meet Manmohan Singh, the economist". [http://www.rediff.com Rediff.com. 2004-05-20. अभिगमन तिथि: 2008-02-22.

    1. "Budget with a difference". 2001-03-17. अभिगमन तिथि: 2009-03-08.

    बाह्य लिंक

    दिक्चालन सूची

    बजट की रोचक कहानी



    क्यों बेमतलब है यह बजट आपके लिए : 5 कारण





    प्रस्तुति -कृति शरण   
     
    भारत का बजट सोमवार को आ रहा है. लगभग हर टीवी चैनल, हर अख़बार बजट की ख़बरों से रंगे हुए हैं. पर आम आदमी के लिए यह कवरेज और बजट बेतुका है.
    पर क्यों? इसके पाँच बड़े कारण निम्न हैं.
    वित्तीय घाटा: सारे वित्तमंत्री और विशेषज्ञ बजट में वित्तीय घाटे के बारे में ख़ूब बोलते हैं. भारत की सभी सरकारें साल 2008 तक क़ानूनन देश के वित्तीय घाटे को कम कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन फ़ीसदी के बराबर लाने के लिए बाध्य थीं. ऐसा फ़िस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट 2003 के तहत किया जाना था.
    लेकिन सरकारें ऐसा नहीं करतीं. वो संसद से इस सीमा को लांघने की इजाज़त ले लेती हैं. पिछली बार जेटली ने भी यही किया था. वो इस बार फिर ऐसा कर सकते हैं.
    उनके पहले भी ऐसा हुआ है. जब संसद के पास किए क़ानून को सांसद आगे खिसका देते हैं और साल भर में वित्तीय घाटे के टारगेट रिवाइज़ होते हैं, बजट कि ओर क्यों ताकें?
    महंगाई: सरकारें साल के बीच में सेस या अधिभार लागू कर पैसा वसूलती हैं. इससे महंगाई बढ़ती है.हालिया उदाहरण है स्वच्छ भारत अधिभार. सरकार ने यह सेस नवंबर में लगाया. जनता की जेब से फ़रवरी तक 1,917 करोड़ रुपए निकल कर सरकार की तिजोरी में चले गए. इसी तरह से बीते दिसंबर में किराए बढ़ा दिए गए.
    कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय क़ीमतों में आई भारी गिरावट से हो रही बचत का 70-75 फ़ीसद हिस्सा (डीज़ल और पेट्रोल पर टैक्स बढ़ाकर) सरकार ख़ुद अपनी तिजोरी में रख रही है. जबकि इसका 25-30 फ़ीसद हिस्सा पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में कम करके जनता को दिया जा रहा है.
    अगर क़ीमतें और कम की जातीं तो इससे महंगाई भी कम होती, खाद्य पदार्थों की, क्योंकि ट्रांसपोर्ट लागत में डीज़ल की क़ीमतों का अहम हिस्सा होता है.भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि होलसेल प्राइस इंडेक्स पिछले 15 महीनों से नकारात्मक रहा है. लेकिन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बढ़ रहा है.
    सरकार ने ये सब तो नहीं बताया था बजट में कि ऐसा करेंगे. अब बताइए, बेचारे आम आदमी के लिए बजट हुआ ना बेमतलब का.
    आयकर: लेकिन हर अख़बार, टीवी यहाँ तक की एफ़एम तक टैक्स में छूट...टैक्स में छूट चिल्लाते हैं. लेकिन 120 करोड़ से ज़्यादा लोगों के इस मुल्क में 97 फ़ीसदी लोग आयकर या इनकम टैक्स नहीं देते हैं.
    अप्रत्यक्ष कर: आम आदमी के लिए उत्पादन कर, सेवा कर जैसे या इस तरह की दूसरी ड्यूटी महत्व रखती है. इससे उसके इस्तेमाल की चीज़ें सस्ती या महंगी होती हैं.इससे इतर समझने की बात यह है कि हर वित्त मंत्री बताता है कि देंगे क्या, पर ये सब छुपा जाते हैं कि लेंगे क्या. मसलन उत्पादन कर सरकार ने बार-बार बढ़ाया.
    पिछले साल अप्रैल से दिसंबर के बीच अप्रत्यक्ष करों से वसूली क़रीब 33 फ़ीसदी बढ़ी. ऐसा नहीं कि इस दौरान देश में उत्पादन बढ़ा हो. सरकार ने ख़ुद बताया कि देश में उत्पादन कम हुआ है.
    ग्रामीण अर्थव्यवस्था: इस बार तय है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली जी बजट में ज़ोर शोर से बताएंगे कि वो किसानों के लिए, गाँवों में रहने वाले भूमिहीन मज़दूरों के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए क्या हैं.
    पिछली बार भी बताया था लेकिन बाद में हुआ क्या? बजट में वित्त मंत्री ने कहा था कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार योजना (मनरेगा) बजट में भले कम पैसे का प्रावधान किया हो. लेकिन बाद में पैसे की कमी नहीं होगी. हुआ क्या?राज्यों ने जब पैसा माँगा तो सरकार ने दिया आधे से भी कम. नतीजा मज़दूरों को सूखा प्रभावित इलाक़ों में भी लंबे समय तक मज़दूरी नहीं मिली.
    मज़दूर अब इस योजना से भागने लगा है. बजट में यह तो नहीं बताया था. मज़दूरों और गाँवों में काम करने वाले कहते हैं कि यूपीए-2 और एनडीए दोनों इस योजना को मारना चाहते हैं.
    बजट की हक़ीक़त पता लगती हैं आठ-दस महीने बाद. उसके पहले बजट में जो प्रावधान करते हैं, उसे ख़र्चते नहीं हैं.
    नए-नए बहानों तरीक़ों से पैसे जनता से निकालते रहते हैं. आम लोग अब समझते हैं कि बजट में सरकारें बात बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती हैं. लेकिन असलियत और कुछ होती है.

    जेटली की बजट परीक्षा और मोदी पास






    प्रस्तुति- कृति शरण



    वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में 2016-17 का बजट पेश करते हुए कहा कि विपरीत वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में तेज़ी आई है.
    जानिए बजट की ख़ास बातें.
    -देश में सड़क और हाइवेज़ का जाल बिछाने के लिए 97 हज़ार करोड़ रुपए का प्रावधान. चालू वित्त वर्ष में नेशनल हाइवेज़ को 10,000 किलोमीटर और स्टेट हाइवेज़ को 50 हज़ार किलोमीटर तक बढ़ाया जाएगा.
    -ग्रामीण विकास के लिए 87,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है.
    -मनरेगा के लिए 38,500 करोड़ रुपए दिए जाएंगे. मनरेगा के तहत गांवों में पांच लाख कुंए और तालाब खुदवाए जाएंगे.

    Image copyright PIB
    -प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत आवंटन बढ़ाकर 19,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है.-किसानों पर ऋण का बोझ कम करने के लिए 15,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.

    -प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के लिए 5,500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है.-वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों के लिए 25000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया.
    -आसमान पर पहुंची दाल की क़ीमतों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने दालों की पैदावार बढ़ाने के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है.
    -सरकार ने 1 मई 2018 तक सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का दावा किया.
    -ग्रामीण भारत के लिए एक नया डिजिटल साक्षरता अभियान चलाया जाएगा. इसके तहत तीन साल के भीतर 6 करोड़ अतिरिक्त घरों को शामिल किया जाएगा.

    Image copyright PTI
    -2015-16 में राजस्व घाटा 2.5 फ़ीसद रहा.-पांच लाख रुपए की आमदनी पर कर छूट को 2,000 रुपए से बढ़ाकर 5,000 रुपए किया गया.
    -मकान किराए भत्ता पर कर छूट 24,000 रुपए से बढ़कर 60,000 रुपए हुई.
    -50 लाख रुपए तक के घर ख़रीदने पर 50 हज़ार रुपए तक की छूट
    -बीपीएल परिवारों को एलपीजी कनेक्शन देने के लिए 2,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. यह योजना 5 साल तक चलेगी जिसमें बीपीएल परिवारों को कवर किया जाएगा.
    -सरकार नई स्वास्थ्य सुरक्षा योजना लॉन्च करेगी. इसके तहत हरेक परिवार को एक लाख रुपए का हेल्थ कवर दिया जाएगा. वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह सीमा थोड़ी बढ़ाई गई है.

    Image copyright Other
    -सरकार मार्च 2017 तक सस्ते राशन की तीन लाख नई दुकानें खोलेगी.-स्वच्छ भारत अभियान के तहत कचरे से खाद बनाने की योजना.
    इससे पहले बजट पेश करते हुए जेटली ने कहा कि अर्थव्यवस्था में 7.6 फ़ीसदी की तेज़ी आई है और चालू खाता घाटे में भी कमी आई है.


    Image copyright AFP
    उन्होंने बताया कि विदेशी मुद्रा भंडार 350 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' में कहा था कि बजट उनकी 'परीक्षा' है.
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