बुधवार, 31 अगस्त 2022

रेचक और कुंभक प्राणायाम का विज्ञान -

 रेचक और कुंभक प्राणायाम का विज्ञान - 


कुंडलिनी जागरण में रेचक और कुंभक प्राणायाम की भूमिका - 


रेचक और कुंभक करने से शारीरिक और आध्यात्मिक तल पर क्या प्रभाव होते हैं? 


हमारे फेफड़ों के छेदों में धुंए और धूल के कण कार्बन के रूप में जमा हो जाने से शरीर को जितनी आक्सीजन की जरूरत होती है उतनी आक्सीजन मिल नहीं पाती है। फेफड़ों में कार्बन जमा होने के कारण श्वास के साथ भीतर आई आक्सीजन फेफड़ों में प्रवेश नहीं कर पाती है और हमारे शरीर में आक्सीजन की कमी होने लगती। अतः धीरे-धीरे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है। बिमारियों से लड़ने की शक्ति कम होती जाती है। 


हमारी भीतर जाती श्वास अपने साथ आक्सीजन लेकर जाती है और बाहर आती श्वास अपने साथ कार्बन लेकर आती है। 


योग में सारी श्वास को भीतर भरकर कुछ समय तक भीतर रोकने को कुंभक कहते हैं और फिर सारी श्वास को बाहर निकालकर कुछ समय के लिए श्वास को बाहर रोकने को रेचक कहते हैं। 


रेचक में यदि हम पेट को सीकोड़कर सारी श्वास बाहर निकालकर कुछ क्षणों के लिए रूक जाते हैं, दस या बीस सेकंड या जितनी देर हम रोक सकें तो हमारे फेफड़े सिकुड़ जाते हैं जिससे उनके छिद्रों में भरी हुई कार्बन सतह पर आ जाती है और फेफड़ों के छिद्र खुल जाते हैं। फिर थोड़ी देर बाद कुंभक में हम धीरे से श्वास को पूरा भीतर ले लेते हैं जिसमें पेट भी फूल जाता है और अब हम श्वास को भीतर रोके रहते हैं तो श्वास के साथ आई सारी की सारी आक्सीजन फेफड़ों के  खुले हुए छिद्रों से होती हुई रक्त में प्रवेश कर जाती है और जब रेचक करते हुए पुनः हम सारी श्वास को धीरे से बाहर निकालते हैं तो फेफड़ों की सतह पर आई कार्बन श्वास के साथ बाहर जाने लगती है। 


इस तरह से सारी श्वास को बाहर निकालकर कुछ समय तक बाहर रोकने पर रेचक द्वारा हमारे फेफड़ों से कार्बन बाहर चली जाती है और  श्वास को कुछ समय तक भीतर रोककर कुंभक करने से श्वास के साथ आई सारी की सारी आक्सीजन फेफड़ों से होती हुई रक्त में मिल जाती है। और इस तरह से धीरे-धीरे हमारे शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगती है और हमारी रोग- प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने लगती है। 


हम सतत भूत और भविष्य के विचारों में खोये होते हैं लेकिन रेचक और कुंभक करते समय हम वर्तमान में आ जाते। उस समय हम सोच-विचार नहीं कर सकते हैं। क्योंकि जो आदमी सोच-विचार में उलझा हुआ था वह अब श्वास को बाहर-भीतर रोक रहा है। यानि अब वह उपस्थित हो गया है! साक्षी हो गया!!


सोच-विचार और काम के तनाव के कारण सामान्यतः हमारी श्वास नाभि तक नहीं जाती है और छाती तक आकर ही लौट जाती है जिससे नाभि को प्राण ऊर्जा नहीं मिलती है और नाभि चक्र सोया रहता है। कुंभक में ज्यों ही हम श्वास को भीतर लेकर रोकते हैं तो श्वास के साथ आए प्राण तत्व नाभि को मिलने लगते हैं और नाभि चक्र सक्रिय होने लगता है। नाभि चक्र के सक्रिय होने से हम भय मुक्त हो अभय में प्रवेश करने लगते हैं। नाभि चक्र के सोये हुए होने के कारण ही हम भयभीत होते रहते हैं। 


कुंभक में श्वास भीतर रोकने पर श्वास के साथ आए प्राण तत्व से मूलाधार चक्र के नीचे सोयी हुई कुंडलिनी उर्जा सक्रिय होने लगती है। प्राण तत्व कुंडलिनी उर्जा का भोजन है। श्वास नाभि तक जाएगी तो कुंडलिनी उर्जा को प्राण मिलेंगे और वह सक्रिय होने लगेगी। 


रेचक में ज्यों ही हम सारी श्वास को बाहर निकालकर पेट को भीतर सिकोड़ लेते हैं तो गुदाद्वार भी भीतर की ओर सिकुड़ जाता है और मूलबंध लग जाता है। मूलबंध के लगते ही नीचे का रास्ता बंद हो जाता है और पेट के सिकुड़े होने से नाभि के पास शून्य निर्मित हो जाता है और शून्य उर्जा को अपनी ओर खींचता है! अतः प्राण तत्व से सक्रिय हुई कुंडलिनी उर्जा स्वतः ही शून्य में प्रवेश कर जाती है और जागरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। 


इस प्रक्रिया में रेचक से शुरुआत करते हैं। पहले रेचक फिर कुंभक। पहले बाहर श्वास को रोकना होता है फिर भीतर। 


रेचक और कुंभक हम कहीं भी और कभी भी कर सकते हैं। दिन में जितनी बार हम कर सकें, उतनी बार कर सकते हैं। कुछ सेकंड के लिए सारी श्वास को बाहर निकालकर पहले बाहर रोकना है और फिर धीरे से सारी श्वास भीतर ले जाकर भीतर रोकना है। भोजन के एकदम बाद नहीं करना है और जहां पर धूल और धुंआ हो उस जगह पर भी नहीं करना है। सुबह दस से बीस मिनट करने से ज्यादा लाभ मिलता है क्योंकि सुबह के समय प्रकृति में आक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। 

स्वामी ध्यान उत्सव

मंगलवार, 30 अगस्त 2022

आज भी रहस्य ?

 भारत में आज भी कई ऐसे अनसुलझे रहस्य हैं, जिनका जवाब विज्ञान के पास भी नहीं हैं। इन रहस्यों का आज तक खुलासा नहीं पाया है। भले ही इन प्राचीन रहस्यों के बारे में सभी के अपने विचार हों, लेकिन सही जवाब किसी के भी पास नहीं हैं। हमारे देश में कई अनसुलझे रहस्य हैं, उनमे से पांच सबसे अद्भुत रहस्य:


भानगढ़ का किला


राजस्थान के अनवर जिले में स्थित भानगढ़ के खौफनाक किले के बारे में शायद ही कोई होगा, जिसने न सुना हो। भानगढ़ का किले दुनिया के सबसे डरावनी जगहों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यहां रात में रुकने वाला सुबह तक जिन्दा नहीं रहता। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी रात में यहां जाने पर पाबन्दी लगा रखी है। इश्क़ में बर्बाद हुआ यह किला आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है।


2. शापित गाँव-कुलधरा


एक समय में राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गाँव में सैकड़ो लोग रहते थे। लेकिन एक रात को गाँव के लोग एकदम से गायब हो गए। गाँव के लोग सब कुछ जैसे का तैसा छोड़कर सब लोग कहाँ गायब हो गए, ये आजतक रहस्य है। कहते हैं कि लगभग 170 साल से वीरान पड़े इस गाँव में आज भी यहां रहने वालों की आवाजे सुनाई देती हैं। लोग यहां सोने की तलाश में आते हैं। लोगों का मानना है गाँव की सुरंगों में सोना छिपा हुआ है। इस गाँव में रात में सैलानियों का जाना शख्त मना है। ऐसा माना जाता है कि गाँव छोड़ते वक्त ग्रामीणों ने श्राप दिया था कि उनके बाद इस गाँव में कोई नहीं बस पायेगा।


गुलज़ार

 गुलज़ार साहब को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं


एक नर्म, मुलायम, संवेदनशील एहसासात के nरचयिता का नाम है गुलज़ार। सीधे शब्दों में कहा जाय तो वह यह कि "धड़कती हैं गुलज़ार साहब की नज़्में और कविताएं" ।

वैसे इनकी नज़्मों और कविताओं में जो दर्द झलकता है वह उनके अपने जीवन का भोगा हुआ यथार्थ है। एक तो देश के विभाजन की जिस त्रासदी को उन्होंने झेला वे ताउम्र उससे पीछा छुड़ा न सके और वही त्रासदी जब तब उनकी नज़्मों में दर्द बन कर छलक जाती। इनका जन्म हुआ था झेलम जीले का एक गाँव "दीना" में  जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में चला गया और वहां से इनके पिता नें सब कुछ छोड़ कर भारत ,अमृतसर आने का फैसला किया। 

उस घटना की याद इनके दिल से नहीं निकल सकी जो इनकी कलम से इस तरह फिल्म माचिस के गीत में बयां हुई


"यहाँ तेरे पैरों के कंवल गिरा करते थे

हंसें तो दो  गालों में भंवर पड़ा  करते थे

छोड़ आए हम वो गलियां "


दूसरा यह कि राखी जी से शादी तो की उन्होंने लेकिन साल भर के बाद ही वैचारिक असमानता के कारण वे दोनों एक दूसरे से एक बेटी के जन्म के बाद अलग हो गए। बेटी के लिए इन्होंने लिखा 


"बूँद गिरी है ओस की, जिसका नाम है बोस्की"


हालांकि उन्होंने आपस में तलाक नहीं लिया। और मन से एक दूसरे से जुड़े रहे जिसे इनके इस नज़्म से  समझा जा सकता है जो इन्होंने लिखा 


"हाँथ छूटे भी रिश्ते नही छोड़ा करते 

वक्त की शाख से लमहे नहीं तोड़ा करते"


लेकिन एक दूसरे से अलग होने की टीस इनकी नज़्मों और गीतों में हमेशा बरक़रार रही 


"शाम से आँख में नमीं सी है 

आज फिर आपकी कमी सी है"


मोटर गैराज से ऑस्कर अवार्ड तक के सफर में कवि, लेखक,  फिल्म निर्देशक, निर्माता के पायदानों पर आगे  बढ़ते हुए इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।


"फिर एक सफ़ा पलट कर उसने बीती बातों की दुहाई दी है 

फिर वहीं लौट कर जाना होगा यार ने ये कैसी  रिहाई दी है "


वैसे इन्होंने  कुछ हल्के फुल्के गीत भी लिखे जैसे फिल्म बंटी और बबली का 

"कजरारे कजरारे तेरे कारे कारे नैना"


या फिल्म ओमकारा की 


" बिड़ी जलाईले जिगर से पिया"


या बच्चों के लिए फिल्म मोगली का 


"जंगल जंगल बात चली है पता चला है

चड्डी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है"


इन सब के बावजूद  गुलज़ार साहब और राखी जी एक बाॅडिंग शेयर करते हैं जो इनके इस शेर से साफ पता चलता है।


"उम्रें लगी कहते हुऐ दो लब्ज़ थे एक बात थी

वो एक दिन सौ साल का, वो सौ साल की एक रात थी"


माला सिन्हा

Mala Sinha

धार्मिक प्रश्नोतरी*🌻

 🌻 *धार्मिक  प्रश्नोतरी*🌻


प्रश्न.1.श्री कृष्ण के धनुष का क्या नाम था?

उत्तर - शारंग

प्रश्न.2. अर्जुन के धनुष का क्या नाम है?

उत्तर- गांडीव

प्रश्न.3. शिव के धनुष का क्या नाम था?

उत्तर- पिनाक

प्रश्न.4. राम का नामकरण किस ऋषि ने किया था?

उत्तर- वशिष्ठ

प्रश्न.5. कृष्ण के कुलगुरु कौन थे?

उत्तर- गर्गाचार्य

प्रश्न.6. कृष्ण के शिक्षा गुरु कौन थे?

उत्तर- महार्षि सांदीपनि

प्रश्न.7. संजय को दिव्य दृष्टि किसने प्रदान की थी?

उत्तर- वेदव्यास

प्रश्न.8. शिखण्डी राजा किसके पुत्र थे?

उत्तर - द्रुपद

प्रश्न.9.अर्जुन को गांडीव किसने दिया था?

उत्तर - वरुण

प्रश्न.10. अहिल्या किसकी पत्नी थी?

उत्तर- महार्षि गौतम ऋषि

प्रश्न.11. वेदव्यास के पिता का क्या नाम था ?

उत्तर- पराशर

प्रश्न.12. पांडवों के राज पुरोहित कौन थे? 

उत्तर- धौम्य

प्रश्न.13. गुडाकेश किसका नाम था?

उत्तर- अर्जुन

प्रश्न.14. महाभारत में ऋषि किंडम ने किसे श्राप दिया था?

उत्तर- पाण्डु


प्रश्न.15. महाभारत में गृहस्थ आश्रम का वर्णन किसने  किससे किया था?

उत्तर - शिव ने पार्वती से।

प्रश्न.16.महाभारत में कितने श्लोक हैं?

उत्तर - एक लाख शत सहस्री।

प्रश्न.17. शुकदेव किसके पुत्र थे?

उत्तर- वेदव्यास

प्रश्न.18. शुकदेव की पत्नी का क्या नाम था?

उत्तर- पीवरी

प्रश्न.19 शुकदेव की माता का नाम क्या था?

उत्तर- वाटिका

प्रश्न.20. बलराम के पिता का क्या नाम था?

उत्तर- वसुदेव

प्रश्न.21. अहिल्या को किसने श्राप दिया था?

उत्तर- महार्षि गौतम ।

प्रश्न.22. देवताओं के सेनापति कौन थे?

उत्तर - कार्तिकेय

प्रश्न.23. असुरों के गुरू कौन थे?

उत्तर- शुक्राचार्य

प्रश्न.24. देवताओं के गुरु कौन थे?

उत्तर - बृहस्पति

प्रश्न.25. पुत्रमोह के लिए कौन प्रसिद्ध थे?

उत्तर- धृतराष्ट्र

प्रश्न.26.भीष्म की माता का नाम क्या था?

उत्तर- गंगा

प्रश्न.27. कर्ण के गुरु थे?

उत्तर- परशुराम।

प्रश्न.28.कृपाचार्य अश्वत्थामा के कौन थे?

उत्तर- मातुल

प्रश्न.29. नरक के कितने द्वार हैं?

उत्तर- तीन 1. काम 2. क्रोध 3.मोह

प्रश्न.30.योगी कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर  आठ (१. कर्मयोगी २.ज्ञानयोगी ३.ध्यानयोगी ४.लययोगी ५.हठयोगी ६.राजयोगी ७.मंत्रयोगी ८.अनाशक्तयोगी)।

प्रश्न.31 महाभारत का युद्ध किस युग में हुआ था ?

उत्तर - द्वापरयुग।

प्रश्न.32. धृतराष्ट्र के कितने पुत्र थे?

उत्तर- 101 । पुत्री की नाम  - दुःशला

प्रश्न.33. बलराम की पत्नी का नाम क्या था?

उत्तर- रेवती

प्रश्न.34. इन्द्र की पत्नी का नाम क्या था? 

उत्तर - शची

प्रश्न.35. पांडव भाईयों में ज्यैष्ठ कौन थे? 

उत्तर- युधिष्ठिर

प्रश्न. 36. अर्जुन को मारने की प्रतीज्ञा किसने की थी? 

उत्तर - कर्ण

प्रश्न.37. कुंती के ज्यैष्ठ पुत्र कौन था ?

उत्तर - कर्ण

प्रश्न.38. धृतराष्ट्र की पुत्री दुःशला का विवाह किसके साथ हुआ था? 

उत्तर- जयद्रथ

प्रश्न.39.योग कितने होते हैं? 

उत्तर- 27

प्रश्न.40. कितने संवत् सर होते हैं? 

उत्तर- 60

प्रश्न.41. ऋषि तर्पण किस दिशा में करना चाहिए? 

उत्तर- उत्तर दिशा

प्रश्न.42.देव तर्पण किस दिशा में करना चाहिए? 

उत्तर- पूर्व दिशा

प्रश्न.43.पितृ तर्पण किस दिशा में करना चाहिए? 

उत्तर- दक्षिण दिशा में

प्रश्न.44. राम के कुलगुरु कौन थे? 

 उत्तर- वशिष्ठ

प्रश्न.45. राम को  अस्त्र शस्त्र की शिक्षा गुरु कौन थे? 

उत्तर- विश्वामित्र

प्रश्न.46.सीता का जन्म कब हुआ था? 

उत्तर- वैशाख शुक्ल पक्ष नवमी तिथि पुष्य नक्षत्र

प्रश्न.47. गंगा अवतरण आख्यान किस काण्ड में वर्णित है? 

उत्तर-  बालकाण्ड

प्रश्न.48. रामायण में कुल कितने सर्ग हैं? 

उत्तर- 500 सर्ग

प्रश्न.49. गंगा दशहरा कब मनाया जाता है? 

उत्तर - ज्यैष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि

प्रश्न.50. राम का जन्म नक्षत्र क्या था? 

उत्तर- पुनर्वसु

प्रश्न.51. राम का विवाह कब हुआ था? 

उत्तर- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि

प्रश्न.52. राम का जन्म कब हुआ था? 

उत्तर- चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि

प्रश्न. 53. सीता का जन्म कब हुआ था? 

उत्तर - वैशाख शुक्ल पक्ष नवमी तिथि पुष्य नक्षत्र

प्रश्न.54. जाह्नवी किसका नाम था? 

उत्तर- गंगा

प्रश्न.55 गंगा सप्तमी कब मनाई जाती है? 

उत्तर- वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी

प्रश्न.56. पृथ्वी पर गंगा का अवतरण किस तिथि को हुआ था? 

उत्तर- ज्यैष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी

प्रश्न.57. रामायण किस रस की प्रधानता है? 

उत्तर- करुण रस

प्रश्न.58. श्री कृष्ण का जन्म किस युग में हुआ था? 

उत्तर- द्वापरयुग

प्रश्न.59.कृष्ण के भाई और बहन का क्या नाम था? 

उत्तर- बलराम और सुभद्रा

प्रश्न.60. मंदाकिनी साहनी के पति का क्या नाम था ?

उत्तर - अशोक कुमार सिंह


🙏

शनिवार, 27 अगस्त 2022

❤️ स्वस्थ रहना हैं तो....... ❤️

 *" दवाई " केवल दवाई की बोतलें और गोलियां ही नहीं होती हैं*

*कुछ ऐसी " दवाएं " भी होती हैं ! जिनके उपयोग से बीमारी ही नहीं हो सकती...*


*जैसे : -*


*01) कसरत exercise एक दवाई हैं !*

*02) सुबह सैर करना एक दवाई हैं !*

*03) व्रत रखना एक दवाई हैं !*

*04) परिवार के संग भोजन एक दवाई हैं !*

*05) हंसी मजाक एक दवाई हैं !*

*06) गहरी नींद एक दवाई हैं !*

*07) अपनों संग वक्त बिताना एक दवाई हैं !*

*08) हमेशा खुश रहना दवाई हैं !*

*09) कुछ मामलों में चुप्पी भी एक दवाई हैं !*

*10) सबको सहयोग करना एक दवाई हैं !*

*11) एक अच्छा दोस्त तो दवाई की दुकान हैं!*


*इन सबका अनुसरण  कीजिए*

*न इसमें पैसा खर्च होता हैं  !*

*न हीं इसके कोई साइड इफेक्ट होते हैं....*💐

❤️❤️❤️🙏

बिहार के पाखंडियों से चंद प्रश्न / वीरेंद्र सेंगर

हिंदुत्व के सभी पाखंडियों से चन्द सवाल / वीरेंद्र सेंगर 



गया के विष्णुपद मंदिर में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मंत्री मो०इसराइल मंसूरी के प्रवेश करने पर भगवान विष्णु को अपच हो गया है। भगवान की तबियत खराब होने से वहाँ के ब्राह्मणों ने हो हल्ला मचाना शुरु कर दिया है और कह रहा है कि अब मेरे भगवान का जान खतरे में है। हिन्दुओं एक हो जाओ नहीं तो तेरे भगवान का जीना असम्भव है। मैं उन पाखंडियों से पूछना चाहता हूँ कि मंसूरी साहब मुस्लिम हैं लेकिन बाबू जगजीवन राम क्या थे ?

         उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम जब बनारस में सम्पूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण  कर लौटे तब तोन्द वाले  ब्राह्मण ने उस मूर्ति को गो मूत्र और गंगाजल से धोने का काम किया था। .जगजीवन राम  हिन्दू थे या मुस्लिम? 

           2017 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री पद से हटे तब आदित्य नाथ योगी ने उनके आवास को गंगाजल से धोकर और गो मूत्र का छिड़काव करवाया था। अखिलेश यादव हिन्दू हैं या मुस्लिम? 

           18 मार्च 2018 को जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपनी पत्नी सविता कोविंद के साथ ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में पूजा करने गए तो वहाँ के पंडा ने मंदिर के गर्भगृह में उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया और बदतमीजी भी की । पाखंडियों कोविंद साहब हिन्दू हैं या मुस्लिम? 

           जब जीतनराम माँझी मुख्यमंत्री थे तो उनके मधुबनी जिला के एक मंदिर परिसर में मूर्ति के दर्शन के बाद उस मंदिर और मूर्ति को गंगाजल और गो मूत्र से धोकर शुध्द किया गया। पाखंडियों माँझी जी हिन्दू हैं या मुस्लिम? 

          जय भीम जय भारत जय संविधान।

सोमवार, 22 अगस्त 2022

श्रेष्ठ धर्म की तलाश

 एक बार एक राजाने

घोषणा की किजो भी धर्म श्रेष्ठ होगा, मैं

उसे स्वीकार करूंगा। अब तो उसके पास एक

सेबढ़कर एक विद्वान आने लगे, जो अपने धर्म

की श्रेष्ठता का बखान करते हुए दूसरे के धर्म

के दोष गिनाते। यह तय न हो सका कि आखिर

वह सर्वश्रेष्ठ धर्म कौन सा है, जिसे

राजा अपनाए। वह बेहद दुखी हुआ। लेकिन

खोज जारी रही। राजा अधर्म में

ही जीता रहा क्योंकि यह तय

नहीं हो पाया था कि सर्वोत्कृष्टधर्म कौन

सा है।


वर्षों बीत गए। राजा बूढ़ा होने लगा। अधर्म

का जीवन उसे पीड़ा देने लगा। अंतत: वह एक

प्रसिद्ध फकीर के पास गया। राजा ने संत

को अपनी परेशानी बताते हुए कहा - मैं

सर्वश्रेष्ठ धर्म की खोज में हूं। लेकिन आज

तक मुझे वह नहीं मिल सका है। फकीर ने

कहा - सर्वश्रेष्ठ धर्म! क्या संसार में बहुत से

धर्म होते हैं, जो श्रेष्ठ और अश्रेष्ठ धर्म

की बात उठे। धर्म तो एक ही है, अहंकार

अवश्य अनेक हैं। धर्म तो वही होता है

जहां व्यक्ति निष्पक्ष होता है।

पक्षपाती मन में धर्म नहीं हो सकता।

राजा फकीर की बातों से प्रभावित होकर

बोला - तो मैं क्या करूं,आप ही बताएं।

फकीर ने कहा- आओ नदी के किनारे चलते हैं

वहीं बताऊंगा।


नदी पर पहुंच फकीर ने कहा - जो सर्वश्रेष्ठ

नाव हो उस पर बैठकर हम उस पार चलें। तुरन्त

सुन्दर नावें लाई गईं लेकिन फकीर उनमें कुछ न

कुछ कमी बताकर खराब बता देता। सुबह से

शाम हुई भूखा प्यासा राजा फकीर से

बोला - इनमें से कोई भी नाव पार

करा देगी और अगर नाव पसंद नहीं है, तो खुद

ही तैर कर पार कर लें, छोटी सी नदी तो है।

फकीर हंसने लगा और बोला - यही तो मैं

सुनना चाहता हूं। राजन! धर्म की कोई नाव

नहीं होती। धर्म तो तैरकर ही पार

करना होता है, खुद। कोई किसी दूसरे

को बिठाकर पार नहीं करा सकता।

राजा की समझ में सारी बात आगई थी।

रविवार, 21 अगस्त 2022

कालिदास का घमंड 🕉️

 🌹🕉️ 🌹


राजा भोज के दरबार में कालिदास नामक एक महान और विद्वान कवि थे । उन्‍हें अपनी कला और ज्ञान का बहुत घमंड हो गया था । प्राचीन काल में यात्रा करने के लिए रेल अथवा बस जैसे कोई साधन नहीं होते थे । अधिकतर लोग एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए पैदल ही यात्रा करते थे । एक बार कवि कालिदास भी यात्रा पर निकले । मार्ग में उन्‍हें बहुत प्‍यास लगी । वह अपनी प्‍यास बुझाने के लिए मार्ग में किसी घर अथवा झोपडी को ढूंढ रहे थे, जहां से पानी मांगकर वह अपनी प्‍यास बुझा सकें ।


चलते चलते उन्‍हें एक घर दिखाई दिया । उस घर के सामने पहुंचकर कालिदासजी बोले, ‘माते, कोई है ? मैं बहुत प्‍यासा हूं, थोडा पानी पिला दीजिए, आपका भला होगा ।’


उस घर से एक माताजी बाहर आई और बोली, ‘मैं तो तुम्‍हें जानती भी नहीं । तुम पहले अपना परिचय दो । उसके बाद मैं तुमको पानी अवश्‍य पिला दूंगी ।


कालिदासजी बोले, ‘माते, मैं एक पथिक हूं, कृपया अब पानी पिला दें ।’


वह माताजी बोली, ‘तुम पथिक कैसे हो सकते हो, इस संसार में तो केवल दो ही पथिक हैं, एक है सूर्य और दूसरे चंद्रमा ! वे कभी नहीं रुकते, निरंतर चलते ही रहते हैं । तुम झूठ न बोलो, मुझे सत्‍य बताओ ।


कालिदासजी बोलें, ‘मैं एक अतिथि हूं, अब तो कृपया पानी पिला दें ।’


माताजी बोली, ‘तुम अतिथी कैसे हो सकते हो ? इस संसार में केवल दो ही अतिथि हैं । पहला है धन और दूसरा है यौवन । इन्‍हें जाने में समय नहीं लगता । अब सत्‍य बताओ, तुम कौन हो ?


कालिदासजी प्‍यास के कारण और तर्क से पराजित होकर हताश हो चुके थे । जैसे-तैसे करके वह बोलें, ‘मैं सहनशील हूं । अब तो आप पानी पिला दें ।


माताजी बोली, ‘तुम पुन: झूठ बोल रहे हो । सहनशील तो केवल दो ही हैं, एक है धरती जो कि पापी और पुण्‍यवान सबका भार सहन करती है । धरती की छाती चीरकर बीज बो देनेपर भी वह अनाज के भंडार देती है । दूसरे सहनशील हैं पेड, जिनको पत्‍थर मारो तो भी मीठे फल देते हैं । तुम सहनशील नहीं हो । सच बताओ, तुम कौन हो ?’


कालिदासजी अब मूर्च्‍छा की स्‍थिति में आ गए और बोले, ‘मैं एक हठी हूं ।’


माताजी बोली, ‘क्‍यों असत्‍य पर असत्‍य बोलते जा रहे हो ? संसार में हठी तो केवल दो ही हैं, पहला है नख और दूसरे हैं केश अर्थात बाल ! उन्‍हें कितना भी काटो वे पुन: निकल आते हैं । अब सच बताओ, तुम कौन हो ?’


अब कालिदासजी पूर्णत: पराजित और अपमानित हो चुके थे । वे बोले, ‘मैं मूर्ख हूं ।’


माताजी बोली, ‘तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो ? मूर्ख तो दो ही हैं, पहला है वह राजा जो बिना योग्‍यता के भी सभी पर शासन करता है, और दूसरा है उसके दरबार का पंडित जो राजा को खुश करने के लिए उसकी गलत बातों को भी सही सिद्ध करने की चेष्‍टा में ही लगा रहता है और सदैव उसका झूठा गुणगान करता रहता है ।


अब कालिदास जी लगभग मूर्च्‍छित होकर उन माताजी के चरणों में गिर पडे और पानी की याचना करने लगे, गिडगिडाने लगे ।

माताजी ने कहां, ‘उठो वत्‍स !


उनकी आवाज सुनकर कालिदासजी ने ऊपर देखा तो वहां साक्षात सरस्‍वती माता खडी थीं । कालिदासजी ने उनके चरणो में पुन: नमस्‍कार किया ।


सरस्‍वती माता ने कहा, ‘शिक्षा से ज्ञान आता है, अहंकार नहीं । तुम्‍हें अपने ज्ञान और शिक्षा के बलपर मान और प्रतिष्‍ठा तो मिलीं परंतु तुमको उसका अहंकार हो गया । इसलिए मुझे तुम्‍हारा घमंड तोडने के लिए, अहंकार नष्‍ट करने के लिए मुझे यह लीला करनी पडी ।


कालिदासजी को अपनी गलती समझ में आ गई और उन्‍होंने सरस्‍वती माता के चरणों में शरण जाकर उनसे क्षमा मांग ली । माता सरस्‍वती ने उन्‍हें आशीर्वाद दिया ।


कालिदासजी ने वहां भरपेट पानी पिया और वह अपनी यात्रापर आगे निकल पडे ।

शनिवार, 20 अगस्त 2022

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण

 परीक्षा में शोले वाले गब्बरसिंह का (के ) चरित्र के बारे में लिखने के लिए कहा गया



दसवीं के एक छात्र ने लिखा-😉

1. सादगी भरा जीवन-:- शहर की भीड़ से दूर जंगल में रहते थे,

एक ही कपड़े में कई दिन गुजारा करते थे,

खैनी के बड़े शौकीन थे.😊

2. अनुशासनप्रिय-:- कालिया और उसके साथी को प्रोजेक्ट ठीक से न करने पर सीधा गोली मार दिये थे.😁

3.दयालु प्रकृति-:- ठाकुर को कब्जे में लेने के बाद ठाकुर के सिर्फ हाथ काटकर छोड़ दिया था, चाहते तो गला भी काट सकते थे😛


4. नृत्य संगीत प्रेमी-;- उनके मुख्यालय में नृत्य संगीत के कार्यक्रम चलते रहते थे..


'महबूबा महबूबा',

'जब तक है जां जाने जहां'.

बसंती को देखते ही परख गये थे कि कुशल नृत्यांगना है.😊


5. हास्य रस के प्रेमी-:- कालिया और उसके साथियों को हंसा हंसा कर ही मारे थे. खुद भी ठहाका मारकर हंसते थे, वो इस युग के 'लाफिंग बुद्धा' थे.😁


6. नारी सम्मान-:- बंसती के अपहरण के बाद सिर्फ उसका नृत्य देखने का अनुरोध किया था,😀


7. भिक्षुक जीवन-:- उनके आदमी गुजारे के लिए बस सूखा अनाज मांगते थे,

कभी बिरयानी या चिकन टिक्का की मांग नहीं की.. .😛☺️


8. समाज सेवक-:- रात को बच्चों को सुलाने का काम भी करते थे ..


😥टीचर ने पढा तो उनकी आँख भर आई और बोला


सारी गलती जय और वीरू की ही थी....बेचारा गब्बरवा तो बहुत बड़ा समाज सेवक था......

❤️❤️❤️👏👏👏👏❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

पंजाबी कौन है? / कृष्ण मेहता

 पंजाबी कौन है?


🙏 जी ध्यान से सुनिएगा...!  


पंजाबी कौन हैं ?


जो केवल हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए 1947 में राजनीतिज्ञों के स्वार्थ की बलि चढ़कर अपना सर्वस्व छोड़कर पूर्वी पंजाब में विस्थापित हुआ। बिना किसी की दया एवं आरक्षण के अपनी मेहनत के बल पर पुन: स्थापित हुआ। वो पंजाबी है ‼️ 


जो आत्मनिर्भर भारत के सपने को सदा से पूरा कर रहा है। वो पंजाबी है ‼️ 


जिस व्यक्ति पर एट्रोसिटी_एक्ट 89 के तहत बिना इन्क्वारी के भी कार्यवाई की जा सकती है, वो  पंजाबी है‼️   


जिसको जाति सूचक शब्द इस्तेमाल करके, रिफ्यूजी कहकर बेखौफ गाली दी जा सकती है, वो पंजाबी  है‼️

 

देश में आरक्षित 131 लोकसभा सीटो और 1225 विधानसभा सीटो पर चुनाव नही लड़ सकता है, लेकिन वोट दे सकता है, वो पंजाबी है‼️


जिसके हित के लिए आज तक कोई आयोग नही बना, वो पंजाबी है‼️


जिसके लिए कोई सरकारी योजना न बनी हो, वो पंजाबी है‼️


मात्र जिसे सजा देने के लिए हर जिले में विशेष SC/ST न्यायालय खोले गए हैं, वो अभागा पंजाबी है‼️


नौकरी, प्रमोशन, घर allotment आदि में जिसके साथ कानूनन भेदभाव वैध है, वो पंजाबी है‼️


सबसे ज्यादा वोट देकर भी खुद को लुटापिटा, ठगा सा महसूस करने वाला.. पंजाबी है‼️


सभाओं में फर्श पर दरी तक बिछा कर एक अच्छी सरकार की चाह में आपको सत्ता सौंपने वाला.. वो पंजाबी है ‼️


देश हित मे आपका तन, मन, धन से साथ देने वाला.. वो पंजाबी है‼️


इतने भेदभाव के बावजूद भी,

धर्म की जय हो,अधर्म का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो,विश्व का कल्याण हो की भावना जो रखता है,वो पंजाबी है‼️


सबका साथ..  सबका विकास, में हमारी स्थिति क्या है.. ? विचार अवश्य करें‼️


समस्त पंजाबी परिवारों की तरफ से हरियाणा एवं भारत सरकार को समर्पित ...


अगर आप को उपरोक्त बातें सही लगी हो तो कम से कम 5 समूहों एवं अन्य सोशल मीडिया पर अविलम्ब शेयर करें । 

अगर


बुधवार, 17 अगस्त 2022

भादौ की छठ : दूध और अन्न के व्यंजन की स्मृति

 

प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


भादौ की अमावस्या से लेrastutiकर आश्विन तक के सारे पर्व कृषिकर्म, पशुपालन, जीविका और जीवन चर्या के लिए अर्जित होते गए अनुभवों के जोड़ हैं। छठ तो गाय जैसे पशुपालन और उससे प्राप्त दूध में धरती से प्राप्त अन्न को भाप कर खीर खाने, खिलाने का पर्व है। इसके साथ कृषि क्रिया संकर्षण की स्मृतियां जुड़ी है जो बाद में बलदेव का कृषि उजाड़ने वाले दुष्ट के संहार और हली होने के कारण नाम हुआ। जब लोक देवता देवनारायण का बलदेव और वासुदेव में अंतर विलय हुआ तो यह पर्व देवजी की छठ या भैरव की जागरण की छठ मान कर मनाया जाने लगा। इसका नाम है दूधारणी। यह बलदेव की पूजा का दुग्‍धपर्वहै।

मेवाड-मालवा में भादौ मास में प्राय शुक्‍ल पक्ष की छठ से आठौं तक कई जगह 'दूधारणी' पर्व मनाया जाता है। यह पर्व अहीर-गुर्जरों के भारत में प्रसार के काल से ही प्रचलित रहा है और खासकर कृषिजीवी जातियों की बहुलता वाले गांवों में मनाया जाता है। 


यद्यपि आज यह देवनारायण की पूजा के साथ जुड गया है, मगर यह बलदेव की पूजा का प्राचीन लोकपर्व है। उस काल का, जबकि बलदेव को संकर्षण कहा जाता था। वे हलधर है, हल कृषि का चिन्‍ह है और कर्षण होने से वे संकर्षण अर्थात हल खींचने वाले कहलाए। मेवाड के नगरी मे मिले ईसापूर्व पहली-दूसरी सदी के अभिलेख में वासुदेव कृष्‍ण से पूर्व संकर्षण का नाम मिलता है।

 मेवाड में बलदेव के मंदिर कम ही हैं, पहला नगरी में नारायण वाटिका के रूप में बना और फिर चित्‍तौडगढ जिले में आकोला गांव में 1857 में महाराणा स्‍वरूपसिंह के शासनकाल में बना।


इस पर्व के क्रम में जिन परिवारों में दूधारू पशु होते हैं, उनका दूध निकालकर एकत्रित किया जाता है। प्राय: पंचमी तिथि की संध्‍या और छठ की सुबह का दूध न बेचा जाता है, न ही गटका जाता है बल्कि जमा कर गांव के चौरे पर पहुंचा दिया जाता है। वहीं पर बडे चूल्‍हों पर कडाहे चढाए जाते हैं और खीर बनाई जाती है। पहले तो यह खीर षष्ठितंडुल (साठ दिन में पकने वाले चावल) अथवा सांवा (ऋषिधान्‍य, शाल्‍यान्‍न) की बनाई जाती थी मगर आजकल बाजार में मिलने वाले चावल से तैयार की जाती है।

इस खीर का ही पूरी बस्ती के निवासी पान करते हैं, खासकर बालकों को इस दूध का वितरण किया जाता है। बच्‍चों को माताएं ही नहीं, पिता और पितामह भी मनुहार के साथ पिलाते हैं। 


इस पर्व के दिन गायों को बांधा नहीं जाता, बैलों को हांका नहीं जाता। प्राचीन लोकपर्वों की यही विशेषता थी कि उनमें आनुष्‍ठानिक जटिलता नहीं मिलती। उदयपुर के पास कानपुर, गोरेला आदि में यह बहुत उत्‍साह के साथ मनाया जाता है ओर पलाश के पत्‍तों के दोनें बनाकर उनमें खीर का पान किया जाता है। (श्रीकृष्‍ण जुगनू - मेवाड का प्रारंभिक इतिहास, तृतीय अध्‍याय) कानपुर के मांडलिया बावजी स्थान पर 22 कड़ाह भर कर छठ के अवसर पर खीर बनी और यह गेहूं के दलिए वाली थी।


मुझे लगता है यह पूरी अवधि कृषि, उपज की है :

अमावस : कुशा ग्रहणी, रस्सी से साध्य काम काज को जानकार कुशा को ग्रहण करने की स्मृति का दिन।

बीज / दूज : बीज का कार्य

तीज : हरतालिका तीज, 16 प्रकार की उपज का संग्रह करने अवसर, निश्चित ही पुरातन वार्ता, शिव को केतकी अर्पण।

चतुर्थी : दूर्वा चौथ, चूरमा चौथ यानी गेहूं का पीसकर उपयोग करने का अवसर 

पंचमी : सांवा पांचम : आहार के योग्य पहले अनबोए अनाज सावा का संग्रह 

छठ : दुधारणी, दूधपान का अवसर, खीर बनाकर उपयोग आदि।

दूब सातौं : दूर्वा की पूजा।


आश्विन मास तो पूरा ही जड़ी बूटियों के संग्रह कार्य का अवसर, अश्विनी कुमार वैद्य के नाम...

✍🏻श्रीकृष्ण जुगनु


षष्ठी - (मातृका और कार्तिक मास)

भाद्रपदशुक्लाषष्ठी  हल-षष्ठी नाम से मनती है, यह तिथि बलराम जी के जन्मदिन से संयुक्त भी मानी गई है, इस दिन महिलायें हल से उत्पन्न अन्न नहीं खाती हैं। इसके ६० दिनों बाद मनाई जाने वाली डाला-छठ भी ऐसा व्रत है जिसमें निराहार रहती हैं। उपज का षष्ठांश राजा ले जाता था ,  हलषष्ठी एवं डालाछठ ६० दिनों में उत्पन्न होने वाली धान की सस्य से जुड़ा हुआ  लगता है, एवं षष्ठांश प्रकृति राजा को दिया जाने वाला कर।

चातुर्मास के व्रतों में प्राजापत्यादि व्रत में अन्तिम ३ दिन निराहार रहकर व्रत का निर्देश पुराणों में प्राप्त है। डालाछठ में भी ३ दिनों का व्रत उन्हीं व्रतों का संक्षिप्त रूप ही है।

( इस टिप्पणी के प्रत्युत्तर में नेपालदेशनिवासी श्री उद्धब भट्टराई अपनी स्मृति लिखते हैं कि -

जी बिल्कुल सत्य तथ्य आधारित है।मुझे याद है पहले हमारे यहां साठ़ी प्रजाति के धान की चावल से ही आज की शाम भोग में प्रयोग होनेवाली रसीआव रोटी वाली गुड़ प्रयुक्त खीर और उसी साठ़ी चावल 

 के आटे से ही "डाला छठ"पूजा के लिये शुद्ध देशी घी में ठेकूवा प्रसाद तैयार किया जाता रहा।

✍🏻अत्रि विक्रमार्क


कृष्णाष्टम्यां तु रोहिण्यां प्रौष्ठपद्यां शुभोदये

रोहिणी जनयामास पुत्रं संकर्षणं प्रभुम्


रोहिण्यां कृषिकर्माणि कारयेत् 

(शाङ्खायनगृह्यसूत्रम्)


वराहं पूजयेद्देवं प्रारम्भे कृषिकर्मणि - विष्णुधर्मोत्तर


वराह और उनकी शक्ति वाराही के आयुधों में हल तथा मुसल भी हैं।

हल में एकदंष्ट्र ही तो होता है. !

यह कृषि-सभ्यता का अध्याय वाराह कल्प के आदि से चला आ रहा है।

एकदंष्ट्र से लेकर शतबाहु तक का उल्लेख

कृषि उपकरणों व कृषि की विधियों के विकास की गाथा है। 

अवतारों में फिर आठवें अवतार बल-राम के हाथों में यही आयुध आते हैं, वे यमुना का संकर्षण करते हैं ताकि कृषि केवल इन्द्र के सहारे न रहे।

हाथों में हल होगा तो श्रम करना पड़ेगा, कृषि में श्रम की महत्ता है।


व्रतियों को कृषि-अन्न अर्थात् यज्ञफल से वञ्चित रखा गया है, उनके लिये समाधान है। समा धान,  समा चावल (जो कि चावल नहीं होते) , एक प्रकार की घास के बीज होते हैं जो बिना हल के उपयोग के उत्पन्न होते हैं. व्रतधारी व्रत में इसे ही खाते हैं, यह कदन्न की श्रेणी में आता है।

महावीर व्रती थे उन्होंने श्रम निषेध करते हुये कृषि-कर्म वर्जित कर दिया। महावीर के अनुयायियों को हल से उत्पन्न किये हुये अन्न का सेवन नहीं करना चाहिये।

✍🏻अत्रि विक्रमार्क 


भ्रातप्रेम की महान प्रेरणा , श्री कृष्ण के सबसे बड़े साथी हलधर श्रेष्ठ जिनका रूप भारत भूमि के किसानों को प्रस्तुत करता है । जिन्होंने अपने जीवन में योद्दा और प्रजापालक के रूप अपनी पहचान स्थापित की थी ।

में श्री बलदाऊ जी महाराज से आप सभी के उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करता हूं ।

ब्रज में कहा भी जाता है की 

शक्ति अपार बलराम की 

कांधे पर हल साजे 

जहाँ बैठे कृष्ण कन्हैया

वहीं दाऊ विराजे।

मंगलवार, 16 अगस्त 2022

महान राम प्रसाद बिस्मिल

 “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है”


– राम inन से सुनते आ रहे हैं। यह कविता, महान क्रन्तिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने लिखी थी। प्रसिद्ध ‘काकोरी कांड’ के लिए फांसी दिए जाने वाले क्रांतिकारियों में से बिस्मिल मुख्य थे, जिन्होंने काकोरी कांड की योजना बनाई थी।


पर बिस्मिल के साथ ऐसे बहुत से और भी देशभक्त थे, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना, खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया था। कुछ तो उनके साथ ही फिज़ा में मिल गए, तो कुछ ने अपना कारावास पूरा करने के बाद आज़ादी तक संग्राम की मशाल को जलाए रखा।


काकोरी कांड के लिए गिरफ्तार होने वाले 16 स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे मन्मथ नाथ गुप्त। जब उन्होंने काकोरी कांड में बिस्मिल का साथ देने का फैसला किया, तब वह मात्र 17 साल के थे। अपने जीवन की आखिरी सांस तक वह भारत के लिए ही जिए।


मन्मथ नाथ, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य थे। यहाँ वह सबसे युवा क्रांतिकारियों में से थे। राम प्रसाद बिस्मिल की अगुवाई में 9 अगस्त 1925 को हुई काकोरी डकैती में मन्मथ भी शामिल थे।


9 अगस्त 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन लूटी थी। इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ के नाम से जाना जाता है। क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके। इस लूट में कुल 4,601 रुपये लूटे गए थे। यह ब्रिटिश भारत में हुई सबसे बड़ी लूट थी।


क्रान्तिकारियों ने डकैती के दौरान, पिस्तौल के अतिरिक्त, जर्मनी के बने चार माउज़र भी इस्तेमाल किए थे। उन दिनों यह माउज़र आज की ऐ.के- 47 रायफल की तरह चर्चित हुआ करता था। लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुककर जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। पहले तो उसे खोलने की कोशिश की गई, किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक़ उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथ नाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए।


मन्मथ ने गलती से माउजर का ट्रिगर दबा दिया, जिससे छूटी गोली एक आम यात्री को लग गई और उसकी वहीं मौत हो गई। इससे मची अफरा-तफरी में, चाँदी के सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बाँधकर वहाँ से भागने के दौरान एक चादर वहीं छूट गई। अगले दिन यह ख़बर सब जगह फैल गई।


ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को बहुत गम्भीरता से लिया और सी. आई. डी इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की सबसे तेज़ तर्रार पुलिस को इसकी जाँच का काम सौंप दिया।


पुलिस को घटनास्थल पर मिली चादर में लगे धोबी के निशान से इस बात का पता चल गया कि चादर शाहजहाँपुर के किसी व्यक्ति की है। शाहजहाँपुर के धोबियों से पूछने पर मालूम हुआ कि चादर बनारसीलाल की है। बिस्मिल के साझीदार बनारसीलाल से मिलकर पुलिस ने इस डकैती के बारे में सब उगलवा लिया।


इसके बाद, एक-एक कर सभी क्रांतिकारी पकड़े गए और उन पर मुकदमा चला। इनमें से चार क्रांतिकारियों- राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, अशफाक़ उल्ला खॉं व ठाकुर रोशन सिंह को फांसी हुई और बाकी सभी को 5 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।


मन्मथ उस वक़्त नाबालिग थे, इसलिए उन्हें फांसी की सजा न देकर आजीवन कारावास (14 साल) की कड़ी सजा मिली। साल 1939 में जब वह जेल से छूटकर आए, तो उन्होंने फिर एक बार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया।


हालांकि, इस बार उनका हथियार उनकी लेखनी थी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ समाचार-पत्रों में लिखना शुरू किया, जिसके चलते उन्हें एक बार फिर कारावास की सजा सुनाई गई। साल 1939 से लेकर 1946 तक उन्हें जेल में रखा गया। उनके रिहा होने के एक साल बाद ही देश आजाद हो गया।


स्वतंत्रता के बाद भी उनका लेखन-कार्य जारी रहा। स्वतन्त्र भारत में वह योजना, बाल भारती और आजकल नामक हिन्दी पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली में लगभग 120 किताबें लिखीं। जिनमें शामिल हैं- द लिवड़ डेंजरसली- रेमिनीसेंसेज ऑफ़ अ रेवोल्यूशनरी, भगत सिंह एंड हिज़ टाइम्स, आधी रात के अतिथि, कांग्रेस के सौ वर्ष, दिन दहाड़े, सर पर कफन बाँधकर, तोड़म फोड़म, अपने समय का सूर्य : दिनकर, शहादतनामा आदि।


साल 2000 में 26 अक्टूबर को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। आज उनकी किताबें ही बहुत से लोगों के लिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर के बारे में जानने का जरिया हैं।


माँ भारती के इस सच्चे सपूत को हमारा नमन्।


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#शहीद_समरसता_मिशन 

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कीटो की इंसानियत / virendra Sengar

 कीटो की इंसानियत / virendra Sengar 

आज मैं यहां किसी दोपाया इंसान की बात नहीं कर कर रहा।इस नये भक्ति युग में इंसानियत लगातार छीजती जा रही है।तमाम संवेदनहीन किस्से ,अब हमको बहुत चौंकाते नहीं है।लालच और खुदगर्ज़ी ने लोगों से इंसानियत काफी हद तक छीन ली है।देश विकास कर रहा है।लोग स्मार्ट होते जा रहे हैं।धर्म की पैठ बढ़ी है।

करीबी रिश्तों में भी मोह ममता सूखती जा रही है।अंध तकनीकी विकास में शायद हमारे दिल का भी डिजिटलीकरण हो रहा है।जिससे करुणा और स्नेह जैसी भावनाओं का रस काफी सूखा है। निस्वार्थ स्नेह का संसार तेजी से रूखा हुआ है।भक्त काल में ये बीमारी तेज हुई है।

इस दौर में इंसान जरूर लोभी, कुटिल व धर्मांता की तरफ बढा़ है।लेकिन आदमी के करीब रहने वाले पालतू जानवर और पक्षी इंसान से संक्रमति नहीं हुए।  

हमारे प्यारे बिल्ले कीटो को ही देख लेजिए।वो कल दोपहर से बहुत उदास है।भूख हड़ताल पर है।क्योंकि उसके साथ के बिल्ले टाको को हमने कल नोएड़ा के फ्लैट के लिए रवाना कर दिया है।क्योंकि वो ज्यादा केयर मांगता है।मैं पहाड़ के अपने हरे भरे गांव में कीटो जी के साथ रह गया हूं।

कोई आए जाए या बिछुड़े।अब करीबियों को भी कहां ज्यादा अंतर पड़ता है+बशर्तें आप के उससे ज्यादा स्वार्थ न जुड़े हों।देखा जाए, तो कीटो के सीधे स्वार्थ  टाको से नहीं है।वह विदेशी नस्ल का है।देखने में सफेद है।बहुत सुंदर है।उसे सबका ज्यादा दुलार मिलता है।

कीटो धूसर देशी नस्ल का है।बहुत निडर और घर के बाहर खेतों और जंगल में विचरण करने वाला है।क ई बार रात में भी नहीं लौटता।लेकिन आते ही टाको को  छोटे भाई की तरह जमकर चूमा चाटी करता है।इसमें सेवा भाव ज्यादा रहता है।जंगली बिल्लों से उसकी रक्षा, जान की बाजी लगाकर भी करता है।इस चक्कर में क ई बार लहू लुहान भी चुका है।

कीटो रफटफ है, लेकिन दुबला है।टाको की तरह से गोल मटोल नहीं है।टाको बेहद डरपोक है ,लेकिन सबका चहेता है।कल से कीटो को टाको नहीं दिखा।मानकर चल रहे थे,जानवर है घंटे दो घंटे में सब कुछ भूल जाएगा ।

लेकिन ये क्या, कीटो दर्दीली आवाज निकाल कर मुझसे जैसे पूछ रहा है, उसके छोटू को कंहा भेज दियाः उसे बहलाने के लिए उसके मन पंसद फूड पैकेट दिए, लेकिन उसने घंटों सूंघा तक नहीं।मुझे गुस्से से घूरता रहा ,जैसे कि उसका मैं ही अपराधी हूं।उसने गुस्सा जताने के लिए नुकीला पंजा भी मारा।बगैर कुछ खाए, भाई के गम में आज अल सुबह ही जंगल चला गया है।सात घंटे हो गये लौटा नहीं।सोचता हूं, अब आमतौर पर अपने करीबियों से बिछुड़ने पर हम इंसान भी इतने गमगीन अब कहां होते हैंः लेकिन मूक जानवरों में अभी ज्यादा इंसानियत बाकी है।मैं गलत तो नहीं ,बताइये।


भारत ही भारत है

 समयसूचक AM और PM का उद्गम


भारत ही था। पर हमें बचपन से यह रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दों AM और PM का मतलब होता है :


AM : एंटी मेरिडियन (ante meridian)

PM : पोस्ट मेरिडियन (post meridian)


एंटी यानि पहले, लेकिन किसके? 

पोस्ट यानि बाद में, लेकिन किसके?

यह कभी साफ नहीं किया गया, क्योंकि यह चुराये गये शब्द का लघुतम रूप था।


अध्ययन करने से ज्ञात हुआ और हमारी प्राचीन संस्कृत भाषा ने इस संशय को अपनी आंधियों में उड़ा दिया और अब, सब कुछ साफ-साफ दृष्टिगत है।


कैसे? 

देखिये...


AM = आरोहनम् मार्तण्डस्य Aarohanam Martandasya

PM = पतनम् मार्तण्डस्य Patanam Martandasya

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सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसीको गौण कर दिया। अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस 'मतलब' को नहीं इंगित करते जो कि वास्तव में है।


आरोहणम् मार्तण्डस्य Arohanam Martandasaya यानि सूर्य का आरोहण (चढ़ाव)।

पतनम् मार्तण्डस्य Patanam Martandasaya यानि सूर्य का ढलाव।


दिन के बारह बजे के पहले सूर्य चढ़ता रहता है - 'आरोहनम मार्तण्डस्य' (AM)।

बारह के बाद सूर्य का अवसान/ ढलाव होता है - 'पतनम मार्तण्डस्य' (PM)।


पश्चिम के प्रभाव में रमे हुए और पश्चिमी शिक्षा पाए कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि समस्त वैज्ञानिकता पश्चिम जगत की देन है।

शनिवार, 13 अगस्त 2022

शिव-लिंग" की धार्मिक सामाजिक व्याख्या

 "

मेरे घनिष्ठतम् मित्र कुँवर प्रताप सिंह के सौजन्य से-शिवलिंग का असली अर्थ जानिए ...और#शेयरकीजियेलिंग के नाम पर अनेख भ्रांतियों को तोड़ता ये लेख ,लिंग के सही अर्थ को समझाता ये लेख जरुर पढ़े अपने मित्रो को भी बतलाए।।लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते है..छोटे छोटे बच्चो को बताते है कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजाकरते है..बेवकुफो को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और छोटे छोटे बच्चो को हिन्दुओ के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते है…इसका अर्थ इस प्रकार है..पहले भाषा का ज्ञान ले......लिंग>>>लिंग का संस्कृत भाषा में चिन्ह ,प्रतीक अर्थ होता है…जबकी जनर्नेद्रीय (मानव अंग ) को संस्कृत भाषा मे (शिशिन) कहा जाता है..शिवलिंग >>>शिवलिंग का अर्थ शिव का प्रतीक…." शिवलिंग " शब्द में ' लिंग ' शब्द दो शब्दों से बना है, " लीन + गा (गति) " अर्थात, शिव में लीन होकर ही मनुष्य को गति प्राप्त होता है;यानी, शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है।तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है, शिवलिंग!शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का 'प्रतीक' मात्र है, जो परमात्मा - आत्म-लिंग का द्योतक है।शिवलिंग शाश्वत-आत्मा का स्वरूप है, जो न जल से प्रभावित होता है,न अग्नि से, न पृथ्वी से, न किसी अस्त्र-शस्त्र से... जो अजित है, अजेय है!शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है, शिवलिंग।>>पुरुषलिंग का अर्थ पुरुष का प्रतीकइसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ स्त्री का प्रतीक औरनपुंसकलिंग का अर्थ है ..नपुंसक का प्रतीक —-

अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए…और खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे—-”शिवलिंग”’क्या है >>>>>शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है नाही शुरुवात |—-शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ..दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है|खैर…..जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं|उदाहरण के लिए………यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो…….सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है| जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि |उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी |ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ |हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |

ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान हैअब बात करते है योनि शब्द पर —-मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनि”’पत्थरयोनि”’ >>>>योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है..जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है..कुछ धर्म में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है ..इसीलिए योनि शब्द केसंस्कृत अर्थ को नहीं जानते हैजबकी हिंदू धर्म मे ८४ लाख योनी यानी ८४ लाख प्रकार के जन्म हैअब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया है कि धरती मे ८४ लाख प्रकार के जीव (पेड, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है….मनुष्य योनी >>>>पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है..अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता ह

शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

ओशो का संभोग पर क्रांतिकारी प्रवचन

 ओशो का  प्रवचन 


ताओ कहता है अगर व्यक्ति संभोग में उतावला न हो, केवल गहरे विश्राम में ही शिथिल हो तो वह एक हजार वर्ष जी सकता है। अगर स्त्री और पुरुष एक दूसरे के साथ गहरे विश्राम में हो एक दूसरे में डूबे हों कोई जल्दी न हो, कोई तनाव न हो, तो बहुत कुछ घट सकता है रासायनिक चीजें घट सकती हैं। क्योंकि उस समय दोनों के जीवन-रसों का मिलन होता है दोनों की शरीर-विद्युत, दोनों की जीवन-ऊर्जा का मिलन होता है। और केवल इस मिलन से–क्योंकि ये दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं–एक पॉजिटिव है एक नेगेटिव है। ये दो विपरीत धुरव हैं–सिर्फ गहराई में मिलन से वे एक दूसरे को और जीवतंता प्रदान करते हैं।


वे बिना वृद्धावस्था को प्राप्त हुए लंबे समय तक जी सकते हैं। लेकिन यह तभी जाना जा सकता है जब तुम संघर्ष नहीं करते। यह बात विरोधाभासी प्रतीत होती है। जो कामवासना से लड़ रहे हैं उनका वीर्य स्खलन जल्दी हो जाएगा, क्योंकि तनाव ग्रस्त चित्त तनाव से मुक्त होने की जल्दी में होता है।


नई खोजों ने कई आश्चर्य चकित करने वाले तथ्यों को उद्धाटित किया है। मास्टर्स और जान्सन्स ने पहली बार इस पर वैज्ञानिक ढंग से काम किया है कि गहन मैथुन में क्या-क्या घटित होता है। उन्हें यह पता चला कि पचहत्तर प्रतिशत पुरुषों का समय से पहले ही वीर्य-स्खलन हो जाता है। पचहत्तर प्रतिशत पुरुषों का प्रगाढ़ मिलन से पहले ही स्खलन हो जाता है और काम-कृत्य समाप्त हो जाता है। और नब्बे प्रतिशत स्त्रियां काम के आनंद-शिखर ऑरगॉज्म तक पहुंचती ही नहीं, वे कभी शिखर तक गहन तृसिदायक शिखर तक नहीं पहुंचतीं नब्बे प्रतिशत स्त्रियां।


इसी कारण स्त्रियां इतनी चिड़चिड़ी और क्रोधी होती हैं और वे ऐसी ही रहेंगी। कोई ध्यान आसानी से उनकी सहायता नहीं कर सकता, कोइ दर्शन, कोई धर्म, कोई नैतिकता उसे पुरुष–जिसके साथ वह रह रही है–के साथ चैन से जीने में सहायक नहीं हो सकता। और तब उनकी खीझ उनका तनाव…क्योंकि आधुनिक विज्ञान तथा प्राचीन

तंत्र दोनों ही कहते हैं कि जब तक स्त्री को गहन काम-तृप्ति नहीं मिलेगी, वह परिवार के लिए एक समस्या ही बनी रहेगी। वह हमेशा झगड़ने के लिए तैयार होगी।


इसलिए अगर तुम्हारी पत्नी हमेशा झगड़े के भाव में रहती है तो सारी बातों पर फिर से विचार करो। केवल पत्नी ही नहीं, तुम भी इसका कारण हो सकते हो। और क्योंकि स्त्रियां काम संवेग, ऑरगॉज्म, तक नहीं पहुंचती, वे काम-विरोधी हो जाती हैं। वे संभोग के लिए आसानी से तैयार नहीं होतीं। उनकी खुशामद करनी पड़ती है; वे काम- भोग के लिए तैयार ही नहीं होतीं। वे इसके लिए तैयार भी क्यों हो उन्हें कभी इससे कोई सुख भी तो प्राप्त नहीं होता। उलटे, उन्हें तो ऐसा लगता है कि पुरुष उनका उपयोग करता है उन्हें इस्तेमाल किया गया है। उन्हें ऐसा लगता है कि वस्तु की भांति उपयोग कर उन्हें फेंक दिया गया है।


पुरुष संतुष्ट है क्योंकि उसने वीर्य बाहर फेंक दिया है। और तब वह करवट लेता है और सो जाता है और पत्नी रोती है। उसका उपयोग किया गया है और यह प्रतीति उसे किसी भी रूप में तृप्ति नहीं देती। इससे उसका पति या प्रेमी तो छुटकारा पाकर हल्का हो गया लेकिन उसके लिए यह कोई संतोषप्रद अनुभव न था।


नब्बे प्रतिशत स्त्रियों को तो यह भी नहीं पता कि ऑरगॉज्म क्या होता है? क्योंकि वे शारीरिक संवेग के ऐसी आनंददायी शिखर पर कभी पहुंचती ही नहीं जहां उनके शरीर का एक-एक तंतु सिहर उठे और एक-एक कोशिका सजीव हो जाए। वे वहां तक कभी पहुंच नहीं पातीं। और इसका कारण है समाज की काम-विरोधी चित्तवृत्ति। संघर्ष करनेवाला मन वहां उपस्थित है इसलिए स्त्री इतनी दमित और मंद हो गई है।


और पुरुष इस कृत्य को ऐसे किए चला जाता है जैसे वह कोई पाप कर रहा हो। वह स्वयं को अपराधी अनुभव करता है वह जानता है ”इसे करना नहीं चाहिए। ” और जब वह अपनी पत्नी या प्रेमिका से संभोग करता है तो वह उस समय किसी महात्मा के बारे में ही सोच रहा होता है। ”कैसे किसी महात्मा क पास जाऊं और किस तरह

काम-वासना से, इस अपराध से, इस पाप से पार हो जाऊं। ”


~ओशो, तंत्र अध्यात्म और काम

जश्न- ए- आज़ादी के रंग से सराबोर हैं टीएमयू कैंपस

 

अमृत महोत्सव के तहत कैंपस में 13 अगस्त को निकलेगी तिरंगा झंडा यात्रा, कुलाधिपति श्री सुरेश जैन,एमएलसी डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त समेत पूरी यूनिवर्सिटी हाथों में तिरंगा थामे देशभक्ति के नारों के बीच करेगी परिक्रमा



ख़ास बातें


फाइन आर्ट्स ने की पेंटिंग प्रतियोगिता

एनएसएस यूनिट की ओर से निकलेगी तिरंगा रैली

15 को पुराने एडमिन ब्लॉक पर चांसलर करेंगे झंडारोहण

टिमिट की ओर से 16 अगस्त को होगी सेल्फी विद तिरंगा

एफओईसीएस की ओर से होगी 17 को निबंध प्रतियोगिता



तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के हजारों - हज़ार स्टुडेंट्स और फैकल्टीज आज़ादी के अमृत महोत्सव के रंगों में सराबोर नज़र आएंगे। यूं तो इसका शंखनाद 12 अगस्त को हो चुका है। फाइन आर्ट्स के स्टुडेंट्स ने पेंटिंग और ड्राइंग प्रतियोगिता में अपने हुनर को दिखाया। उन्होंने पेंटिंग में स्वतंत्रता आंदोलन के वीर सपूतों के योगदान का भावपूर्ण स्मरण करके अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। जोश और जुनून के संग शनिवार को कैंपस में तिरंगा यात्रा निकलेगी। तिरंगा यात्रा में कुलाधिपति श्री सुरेश जैन,एमएलसी डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त, जीवीसी श्री मनीष जैन,वीसी प्रो. रघुवीर सिंह,रजिस्ट्रार डॉ. आदित्य शर्मा, निदेशक प्रशासन श्री अभिषेक कपूर, एसोसिएट डीन प्रो. मंजुला जैन, डीन स्टुडेंट्स वेलफेयर प्रो. एमपी सिंह,डायरेक्टर प्रो. आरके द्विवेदी  समेत सभी निदेशक, प्रिंसिपल्स , एचओडी, फैकल्टीज़ के संग संग स्टुडेंट्स शिरकत करेंगे।


प्रो. सिंह ने बताया, पेवेलियन स्थित स्टुडेंट्स वेलफेयर ऑफिस से प्रातः 09 बजे से फ्लैग्स का डिस्ट्रिब्यूशन प्रारंभ हो जाएगा। 12 बजे तक झंडे वितरण के बाद इंडोर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से अपरान्ह दो बजे तिरंगा यात्रा निकलेगी। यह यात्रा एफओईसीएस, क्रिकेट मैदान के सामने होते हुए  एग्जाम कंट्रोलर के सामने पहुंचकर जनसभा में तब्दील हो जाएगी। तिरंगा यात्रा  देशभक्ति के तरानों से लबरेज रहेगी। हाथों में तिरंगा और लबों पर भारत माता की जय सरीखे जयघोष होगा। इसमें यूनिवर्सिटी के सभी कॉलेज के स्टुडेंट्स और टीचर्स बढ़चढ़ कर भाग लेंगे। जनसभा में सबसे पहले ध्वजारोहण होगा। फिर कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद एमएलसी डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त आदि जश्न ए आज़ादी पर अपने विचार व्यक्त करेंगे।

रजिस्ट्रार डॉ. आदित्य शर्मा ने बताया, अमृत महोत्सव के प्रोग्राम्स के तहत 16 अगस्त को टिमिट की ओर से सेल्फी विद तिरंगा होगी,जबकि एफओईसीएस में 17 अगस्त को निबंध प्रतियोगिता होगी। उन्होंने बताया,यूनिवर्सिटी महीनों से अमृत महोत्सव के रंग में रंगी है।

 यूनिवर्सिटी ने कल तेरह जुलाई से तीन दिनी कल्चरल फेस्ट - परंपरा 2022 का आयोजन किया था। इसमें देश को जानी - मानी नृत्यांगना डॉ. सोनल मान सिंह, सूफियाना कव्वाली के हस्ताक्षर निजामी बंधुओं, सुप्रसिद्ध मोहन वीणा वादक एवम् पदम भूषण श्री विश्व मोहन भट्ट,पद्मश्री से सम्मानित एवम् राजस्थानी फोक गायक उस्ताद अनवर खां आदि की महफिलें जमी थीं। केंद्रीय विदेश एवम् संस्कृति राज्य मंत्री, भारत सरकार श्रीमती मीनाक्षी लेखी  बतौर मुख्य अतिथि आई थीं।

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए शीघ्र गठित होगा बोर्ड / राजेश सिन्हा

इकोफ्रेंडली जैविक खेती से जल जंगल जमीन और जन जन का उत्थान करेगी योगी सरकार

*पांच साल में जैविक खेती का रकबा 101459 से बढाकर 3,00,000 हेक्टेयर करने का लक्ष्य*

*लखनऊ*

जन,जल और जमीन की चिंता के लिए जैविक खेती समय की मांग है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति बेहद संजीदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इसीलिए जैविक खेती पर खासा जोर भी है। 3 दिन पहले ही उच्चाधिकारियों की बैठक में उन्होंने इसकी संभावनाओं की चर्चा करते हुए इसको बढ़ावा देने के लिए बोर्ड के गठन का भी निर्देश दिया। 


इसके पहले भी 14 जून को  उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के 33वें स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का वर्चुअली शुभारंभ करते हुए

मुख्यमंत्री ने इसमें भाग ले रहे देश भर के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा था कि प्राकृतिक खेती जन, जमीन और जल के लिए सुरक्षित होने की वजह से इकोफ़्रेंडली है। ऐसी खेती गोसंरक्षण में भी मददगार है। इस अभियान से वैज्ञानिकों के जुड़ने से अन्नदाता को बहुत लाभ होगा। इससे उनकी आमदनी में इजाफा होगा साथ ही तमाम प्रकार के रोगों से मुक्ति से भी मुक्ति मिलेगी। राज्य सरकार सभी मण्डल मुख्यालयों पर टेस्टिंग लैब स्थापित करा रही है। यहां बीज और उत्पाद के सर्टिफिकेशन की सुविधा होगी। प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करते हुए इस प्रकार हम अपने प्रदेश को जैविक प्रदेश के रूप में विकसित करने में सफल होंगे। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि कृषि क्षेत्र का सबसे बड़ा चैलेंजे है न्यूनतम लागत में अधिक्तम पैदावार। जैविक खेती  कम लागत में अच्छा उत्पादन और विष मुक्त खेती का अच्छा माध्यम है। इसके प्रोत्साहन के लिए इस अभियान से वैज्ञानिक जुड़ेंगे तो न केवल किसानों की आमदनी को कई गुना बढाने में हमें सहायता मिलेगी। आप सबकी मदद से हम उत्तर प्रदेश को जैविक प्रदेश बनाएंगे।

मुख्यमंत्री के ये बयान इस बात के प्रमाण हैं कि वह जैविक खेती को लेकर किस तरह संजीदा हैं। उनके मार्गदर्शन में प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिए जैविक यूपी के जरिए जैविक भारत के सपने को साकार करने में लगी है।


*यूपी में जैविक खेती की संभावनाएं*

उत्तर प्रदेश जैविक खेती के लिए भरपूर बुनियादी सुविधाएं पहले से मौजूद हैं। सरकार इन सुविधाओं में लगातार विस्तार भी कर रही है। मसलन जैविक खेती का मुख्यालय नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फॉर्मिंग (एनसीओएफ) गाजियाबाद में स्थित है। देश की सबसे बड़ी जैविक उत्पादन कंपनी उत्तर प्रदेश की ही है। यहां प्रदेश के एक बड़े हिस्से में अब भी परंपरागत खेती की परंपरा है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इसके किनारों पर जैविक खेती की संभावनाओं को और बढ़ा देती है। 2017 के जैविक खेती के कुंभ के दौरान भी एक्सपर्ट्स ने गंगा के मैदानी इलाकों को जैविक खेती के लिए आरक्षित करने की संस्तुति की गई थी। 


 सरकार द्वारा अब तक किए गए कार्य और नतीजे

जैविक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए योगी-1 से ही प्रयास जारी हैं। इसके तहत योगी-1 में जैविक खेती के क्लस्टर्स बनाकर किसानों को जैविक खेती से जोड़ा गया। तीन वर्ष के लक्ष्य के साथ 20 हेक्टेयर के एक क्लस्टर से 50 किसानों को जोड़ा गया। प्रति क्लस्ट सरकार तीन साल में 10 लाख रुपए प्रशिक्षण से लेकर गुणवत्तापूर्ण कृषि निवेश उपलब्ध कराने पर ख़र्च करती है। जैविक उत्पादों के परीक्षण के लिए एक प्रयोगशाला लखनऊ में क्रियाशील है। मेरठ और वाराणसी में काम प्रगति पर है। पिछले दो वर्षों के दौरान 35 जिलों में 38,703 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर जैविक कृषि परियोजना को स्वीकृति दी जा चुकी है। इसके लिए 22,86,915 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जैविक खेती के प्रति लोग जागरूक हों। इस बाबत 16 दिसंबर 2021 में कृषि विभाग वाराणसी में 22 जनवरी 2020 को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर में नमामि गंगे योजना के तहत कार्यशाला और प्रदेश के पांच कृषि विश्विद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), कृषि प्रबन्धन संस्थान रहमान खेड़ा पर जैविक खेती के प्रदर्शन के पीछे भी सरकार का यही मकसद रहा है।


*कार्ययोजना*

योगी-2 में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए जो लक्ष्य रखा है उसके अनुसार गंगा के किनारे के सभी जिलों में 10 किलोमीटर के दायरे में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। बुंदेलखंड के सभी जिलों में गो आधारित जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे इस पूरे क्षेत्र में निराश्रित गोवंश की समस्या हल करने में मदद मिलेगी। प्रदेश के हर ब्लॉक में जैविक खेती को विस्तार दिया जाएगा। ऐसे उत्पादों का अलग ब्रांड स्थापित करना, हर मंडी में जैविक आउटलेट के लिए अलग जगह का निर्धारण किया गया है।

सरकार का लक्ष्य अगले पांच साल में प्रदेश के 3,00,000 क्षेत्रफल पर जैविक खेती का विस्तार करते हुए 7,50,000 किसानों को इससे जोड़ने की है।

          जैविक खेती के लिए खरीफ के मौजूदा सीजन ( 2022) से शुरू होने वाली योजना के तहत जिन ब्लाकों  में जैविक खेती के लिए क्लस्टर बनेंगे उसमें से प्रत्येक में 1-1 चैंपियन फार्मर एवं लोकल रिसोर्स पर्सन, 10 कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन और 2 लोकल रिसोर्स पर्सन चयनित किए जाएंगे। कुल मिलाकर लक्ष्य जैविक उत्तर प्रदेश के जरिए जैविक भारत का है।


ऑर्गेनिक फॉर्मिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से 9 से 11 नवंबर 2017 में जैविक खेती के प्रोत्साहन के लिए इंडिया एक्सपो सेंटर एंड मार्ट ग्रेटर नोएडा में जैविक कृषि कुंभ का आयोजन किया गया था। इसमें 107 देशों ने भाग लिया था। इससे मिले आंकड़ों के अनुसार उस समय भारत के जिन प्रमुख राज्यो में प्रमाणित जैविक खेती होती थी उनमें राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, जम्मू कश्मीर, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश का नंबर सातवां था। प्रदेश में जैविक खेती का कुल रकबा 1,01,459 हेक्टेयर था। तबसे अब तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्ग दर्शन में इसमें खासी प्रगति हो चुकी है। जैविक क्लस्टर्स को बढ़ावा देकर प्रदेश सरकार 2021-2022 तक 95,680 हेक्टर तक किया जा चुका है। अगले पांच साल में जैविक खेती का रकबा बढ़ाकर क्रमशः 3,00,000 हेक्टेयर करने का है।

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बुधवार, 10 अगस्त 2022

मुहावरों ,लोकोक्तियों, गीतों में धन

 

मुहावरों ,लोकोक्तियों, गीतों में धन/ संजीव

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०१. टके के तीन

०२. कौड़ी के मोल

०३. दौलत के दीवाने

०४. लछमी सी बहू

०५. गृहलक्ष्मी

०६. नौ नगद न तरह उधार

०७. कौड़ी-कौड़ी को मोहताज

०८. बाप भला न भैया, सबसे भला रुपैया

०९. घर में नईंयाँ दाने, अम्मा चली भुनाने

१०. पुरुष पुरातन की वधु, क्यों न चंचला होय?

११. एक चवन्नी चाँदी की, जय बोलो महात्मा गाँधी की

गीत

०१. आमदनी अठन्नी अउ; खर्चा रुपैया

तो भैया ना पूछो, ना पूछो हाल, नतीजा ठनठन गोपाल

०२. पांच रुपैया, बारा आना, मारेगा भैया ना ना ना ना -चलती का नाम गाड़ी

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

जन्मदिन के अनुसार स्वभाव

 Check Out Your Birth Date



👇😭🎂

🎂31- Biggest Kamchor👹

🎂30 - Aadarsh Insan😇

🎂29 - Smiling Face Always😊

🎂28 - Happy Go Lucky😃

🎂27 - Intelligent Person😉

🎂26 - Play With Hearts😍

🎂25 - Fun Loving & Caring 😘

🎂24 - Make Others Jealous😏

🎂23 - Always Ready For Party💃

🎂22 - Sabka Baap 👨

🎂21- Helpful😀

🎂20 - Sharif☺

🎂19 - Perfect Person😄

🎂18 - Bazigar 🏇

🎂17 - Yaaro Ka Yaar👬

🎂16 - Maa Ka Ladla👶

🎂15 - Loving ❤💞💝

🎂14 -emotional😑

🎂13 - Hero😎

🎂12 - chanchal👻

🎂11 - Cutest 👸

🎂10 -True Happy Lover❤

🎂9 - Bade Dilwala 💖

🎂8 - Sensitive 💗

🎂7 - Good Person😧

🎂6 - Caring 😊

🎂5 - Smart Insan👏

🎂4 - Studious 😣

🎂3 - Smart & Honesty 😊

🎂2 - Lucky Person👍

🎂1 - Active 😏

*WHAT'S YOUR BIRTH DATE*

नोट: जिससे बात नही होती, उसे भी सेंड कर दो। खुश हो जाएगा।

दुआएं देगा बावला

😂😂😂

आदमी या आत्मा की सवारी?

 2019 के मई महीने के गर्मी के मौसम थे। कार से अकेले ही  अनुपपुर से बिलासपुर आते समय रात के 1 बज चुके थे। उसी समय "करियाम गाँव"मे एक सफेद परछाईं जैसे दिख रहे 20-22 साल के एक आदमी ने लिफ़्ट लेने के इशारा किया था। उस समय काफी अंधेरा था और अमाववास्या की रात थी। इसीलिए चाँद नही दिख रहा था। तो मैं अपनी सफेद मारूति डिज़ायर गाड़ी रोक दिया और पूछे "क्या हुआ है? वो आदमी बोले "कि मुझे आगे काल भैरव मंदिर रतनपुर तक छोड़ दीजिए। "                                                                                                     सामने आगे की सीट पर 2 महीने के हस्की नस्ल के 2 पिल्ले (मादा-नर) को एक बड़े से डब्बे में बैठाकर रखे थे।                                                                     इसीलिये  मैं पीछे के दरवाज़े खोलकर बैठने को बोले और उनको पानी के बोतल के पीने के तरफ और अंगूर खाने को इशारा किया ,जोकि पीछे की सीट पर रखा था। उन आदमी के केवल चेहरे ही दिख रहे थे। बाकी कुछ नही दिख रहा था। कार के आईना में उनके केवल चेहरे दिख रहे थे बाकी उनके हाथ- पैर ही नही दिख रहे थे।                                                                                                                                                                        धीरे- धीरे कार की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी। फिर देखे कि आगे  वाली सीट पर  दोनो पिल्ले खड़ा होकर अजीबोगरीब हरकतें करने लगे थे बार बार सीट के सहारे खड़े होकर  बार-बार भौंकने लगे थे।आस- पास कुछ अलग तरह की अजीब गंध आ रही थी।  फिर मैं गाड़ी रोककर देखने चाहे, यह पिल्ले इतने बेचैन होकर बार बार भोंक कर और पीछे क्या देख रहे है ?                                                                                                                         जब तक हमारी गाड़ी रतनपुर आ चुकी थी। पीछे वाले दरवाजे खोलकर देखे तो वहाँ वही लिफ़्ट मांगने वाले आदमी नही थे। वँहा पर पानी की बोतल और  अंगूर वैसे ही वैसे रखे है। उस आदमी ने ना तो पानी पिया और ना तो अंगूर  खाये। आस- पास देखे वो आदमी कही नही दिखे, हैरान हो रहे थे कि इतनी तेज दौड़ रही गाड़ी में वो   आदमी कैसे  उतर गये ?                                                                                                                  काफी देर तक तक इधर -उधर  देखते रहे और कुछ सुुराग नही मिलने पर और कुुुछ  समझ  नही पाने पर वापस जाना सही लगा।फिर  देखेे कि दोनों पिल्ले एकदम शांत होकर सोने की कोशिश करने लगे थे।                   फिर 30 मिनट बाद बिलासपुर अपने घर आ गया । तब तक रात के 3 बज चुके थे। और घर आकर सो गये।                                                                                                          सुबह करीब 8 बजे नींद खुली तो  दैनिक दिनचर्या से तरोताजा होकर अखबार पढ़ने लगे और चाय पीने लगे। फिर अखबार देखकर चौक पड़े, उसमें तस्वीरों के साथ लिखे थे "कि ओवरटेक करते समय एक आदमी के मौत हो गया" । जिस रास्ते मे उस आदमी ने लिफ्ट लिया था उसी रास्ते मे ट्रक से आगे निकलने के चक्कर मे ओवरटेक करते ही अपनी मोटरसाइकिल से आगे से  आ रही जीप से सीधे जा टकराये थे। उसी में उनके सिर में चोट लगने से तुरंत मौत हो गयी।                                                                                                             अब सवाल यही रह गया है कि क्या उस आदमी की आत्मा ने लिफ्ट लिया था ? क्या श्वान आदमी और आत्मा को पहचान लेते है या उसको लेकर अजीबोगरीब हरकतों से भौकने लगते है ? आख़िर वो चलती गाड़ी से बिना दरवाजे खोले कैसे उतर गया ?                            (छायांकन करियाम ग्राम तहसील रतनपुर 16 मई 2022)

अश्वथामा निवास

 अश्वत्थामा

“ कहते हैं कि पांडव यहीं से स्वर्ग गए थे। जाते-जाते उन्होंने जो पाँच चूल्हे जलाए थे, वही इन पाँच पहाड़ों में बदल गए। यहाँ इतनी ठंड है, उन्होंने सोचा होगा इस से अच्छा तो स्वर्ग ही चले जाओ।“

मैंने पलट कर देखा तो आवाज एक खूबसूरत होंठों की जोड़ी से आ रही थी, जो उतने ही एक खूबसूरत चेहरे पर जड़े हुए थे। मुहतरमा मुझी से मुखातिब थी। मैं मुंशियारी के नंदा देवी मंदिर के कम्पाउन्ड में एक बेंच पर बैठ कर सामने पहाड़ निहार रहा था और वह बेंच के पीछे खड़ी हो कर मुझ से ऐसे बोल रही थी जैसे उसे पता ही ना हो कि वह कितनी सुंदर है। सुंदर लड़कियां ऐसे अजनबियों से बात नहीं करती।

मैं मुस्कराया और फिर पहाड़ों को देख कर बोला, “अगर वह ना जाते तो क्या पता अश्वत्थामा उन्हें भी मार देता। उसने अकेले बहुत से पांडव वंशजों को मार डाला था। और सुना है, वह आज भी जिंदा है। भटक रहा है इधर से उधर।“

“कितना अजीब होगा ना, ऐसे हजारों सालों तक अकेले भटकना, ऐसी ज़िंदगी से तो मौत बेहतर है”

“अगर गौर से देखें तो बहुत सी ज़िंदगियों से मौत बेहतर है।“

“IT से हो?”

मैंने हँसते हुए हाँ में गर्दन हिलाई तो वह भी हंस पड़ी। ठंड में उसके मुंह से निकलती भाप उठते हुए कोहरे में मिल कर इन वादियों में लीन हो रही थी। हम जहां भी जाते हैं, अपना एक हिस्सा वहीं छोड़ आते हैं। शायद कुछ जगह इसलिए भी खूबसूरत होती होंगी क्योंकि वहाँ ज्यादा खूबसूरत लोग जाते होंगे।

“आप क्या करती हैं?”

“मैं भी अश्वत्थामा हूँ, इधर से उधर भटकती रहती हूँ।“

“आप क्या ढूंढ रही हैं?”

“अश्वत्थामा क्या ढूंढ रहा है?”

“उम्म..शायद कुछ नहीं।”

“बस मैं भी, शायद कुछ नहीं।“

“ऐसा लगता है, मैं पेड़ हूँ, हिल नहीं सकता, तुम पानी हो, रुक नहीं सकती।“

“फिलोस्फी? नोट बैड फॉर ऍन आईटी इंजीनियर!”

“ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा में वह सीन है ना- गलती तो हम सब से हो जाती हैं। “

वह फिर हंसी। जैसे संगमरमर के फर्श पर किसी ने कंचे बिखेर दिए हों। सूरज अब धीरे-धीरे डूबने लगा था। पंचचूली पर सोना बिखर रहा था। और 2 मिनट के लिए हम दोनों चुप होकर सम्मोहित से उस जादू को देखने लगे। थोड़ी देर के बाद बात फिर से शुरू करने के लिए काफी देर हो चुकी थी। बातों का क्रम टूट चुका था। क्या बात करूँ? मैं इसी असमंजस में था कि वह आकर बेंच पर बैठ गई। बेंच काफी बड़ी थी। उसके और मेरे बीच में इतनी जगह थी कि उसमे एक तेंदुआ बैठ सकता था। माफ कीजिए, अपनी इस 2 हफ्ते की यात्रा में मैं तेंदुए से काफी डरा हुआ था।

“सोलो ट्रिप?”

“हाँ।“

“क्यों? अकेले हो?”

“फिलहाल तो नहीं।“

हा-हा। मिस्टर मुंगेरीलाल। तुम्हारी फैव्रट बुक कौन सी है?

“आपको कैसे लगा कि मैं किताबें पढ़ता होऊँगा?”

“फुटबालर तो नहीं लगते तुम”

“दिस वास अफेन्सिव, मैडम!

हा-हा सॉरी। बुक?

फाउन्टन्हेड बाइ आयन रैन्ड।

अरे वह तो कहती थी कि सेल्फिश्नेस हमारा सबसे बड़ा गुण है। तुम स्वार्थी हो?

“पूरी तरह नहीं। कई बार औरों के बारे में भी सोच लेता हूँ।“ मैंने उसकी आँखों की तरफ देख कर यह बोला तो वह शर्मा गई।

पर लड़की दमदार थी। आंखें फिर उठी। होंठ फिर खुले और बोले, “तो जब उसकी बात से सहमत नहीं तो फिर वह सब से पसंद क्यों?”

“किसी को चाहने के लिए उसकी हर बात से सहमत होना जरूरी है?”

“तो तुम्हारी पसंदीदा किताब केवल रीज़न, लॉजिक और मतलब की बात करती है और तुम उसे बेमतलब चाहते हो?”

“वर्ल्ड इज फुल ऑफ आइयरोनीज़!”

“इन्टरिस्टिंग।“

वह फिर से पहाड़ों को देखने लगी। मैंने देखा वह घास के कुछ तिनकों को अपनी उंगलियों में घुमा रही थी। पीछे नंदा देवी मंदिर पर कोई घंटा बजा कर प्रसाद चढ़ा रहा था। घास में कुछ पहाड़ी कुत्ते एक दूसरे के पीछे दौड़ कर खेल रहे थे। उन पाँच चूल्हों की आग अब मंद होने लगी थी। शाम ढलने लगी थी और हवा में ठंडक बढ़ रही थी। शायद अब वापिस जाने का समय था। पर जन्नत से लौट कर तो पांडव नहीं आए कभी, मैं कैसे लौट जाऊँ।

वह उठ कर थोड़ा आगे चली और उसने झुक कर जमीन से थोड़ी मिट्टी उठा ली। पहाड़ों में उसकी नजरें जाने किस बिन्दु पर ठहरी हुई थी। वह अपनी हथेलियों से मिट्टी को मसल रही थी। उसने फिर धीरे-धीरे बाएं से दायें देखा, जैसे इन पहाड़ों को अपनी आँखों में भर रही हो। ताकि वापिस जाकर फिर उन्हें देख सके। मैं अपनी ठुड्डी पर हाथ टिकाए बस उसे देखता रहा। थोड़ी देर टहलने के बाद वह फिर बेंच पर आकर बैठ गई।

“तुम्हें पता है यहाँ से थोड़ी दूर गंधक के चश्मे हैं?”

“हाँ”

“और वहाँ उस पहाड़ के पास नीलम घाटी है, यहाँ से लगभग 6-7 दिन का ट्रैक है।”

“आप जा रही हैं ट्रैक पर?”

“हाँ, कल सुबह।“

“वॉव, मैं कल सुबह वापिस जा रहा हूँ। यहाँ 5 दिन से था।“

“अच्छा। कैसा लगा यहाँ आकर?”

“मैंने यह सीखा कि प्रकृति की सुंदरता जरूरी है पर काफी नहीं। यह सब बैकग्राउंड है। आप ज्यादा समय तक कुछ किए बिना नहीं रह सकते।“

“हाँ। किसी ने कहा है कि स्वर्ग की सुंदरता भी आधी रह जाएगी अगर तुम्हारे साथ उसे साझा करने के लिए कोई ना हो।“

“तो आपके साथ कौन है?”

“कोई नहीं?”

“बॉयफ्रेंड?”

“था। अब नहीं।“

“ब्रेकअप?”

“नहीं। कार एक्सीडेंट।“

“ओह नो। सॉरी।“

“उस दिन वेलेंटाइन डे था। हमारा शाम में रेस्टोरेंट जाने का प्लान था। वह मुझे लेने आ रहा था। जब वह ड्राइव कर रहा था तो मैंने उसे फोन किया। फोन को जेब से निकलते हुए उसका ध्यान भटका और सामने से आते हुए ट्रक से बचने के चक्कर में उसकी कार पहाड़ से नीचे गिर गई।“

“दिस इज रियली सैड।“

“2 साल हो गए इस बात को। आज भी उसकी लाश मेरे कंधे पर है। अगर उस समय मैं उसे फोन ना करती तो..”

“यार जो होना है उसे नहीं टाल सकते हम।“

“हाँ, शायद। इसलिए मैं इन पहाड़ों पर चढ़ती उतरती रहती हूँ, ताकि मेरे साथ सौरभ भी घूम ले। ताकि मैं इतना थक जाऊँ कि ज्यादा सोच ना पाऊँ। सौरभ को पहाड़ बहुत पसंद थे। कहता था, यहीं कहीं एक मकान बना कर रहेंगे। जो चीज हमें सबसे ज्यादा पसंद होती है, वही हमें मार डालती है।“ उसने अपने पर्स से एक लड़के कि फोटो मुझे दिखाई और फीकी सी मुस्कान के साथ फिर वापिस रख ली।

मेरे पास कहने को कुछ था नहीं। वह उठी, बाय बोला और चली गई।

मैं थोड़ी देर वहीं बैठा रहा। अब हल्का अंधेरा छाने लगा था। मुझे अभी 2 किलोमीटर पैदल जाना था। पर जाने क्यों मुझे अब तेंदुए का डर नहीं लग रहा था। मैंने पंचचूली कि तरफ देखा, उनका सोना पिघल चुका था और अब बस वें धूसर मिट्टी के ढेर थे। मैं फिर से अश्वत्थामा के बारे में सोचने लगा। कितना अकेला होगा ना वह…

-गौरी शंकर


सोमवार, 8 अगस्त 2022

असीरगढ़ का किला

 असीरगढ़ किला जो बुरहानपुर के समीप है ,किवदंती है कि महाभारत के अश्वत्थामा आज भी यहां पर आते हैं , और यहां स्थित शिवलिंग में सुबह सुबह प्रार्थना करते हैं और फूल चढ़ाकर जाते हैं मेरी उत्सुकता हमेशा इस किले को लेकर बनी रही

हम दोस्त खंडवा से कई बार इस किले में घूमने आए थे, अब मैं कॉलेज में आ गया था जब मैं आठवीं क्लास में था तब से यहां पर आ रहा था | हम दोस्त हम उम्र थे और अब बड़े हो गए थे इस बार की छुट्टियों में थोड़ी बोरियत थी रात को बातचीत कर रहे थे तो एक दोस्त ने बोला कि क्यों ना इस बार असीरगढ़ फिर चले और रात भर वहां पर रुके |

सभी तैयार हो गए और कुछ दिन बाद हम 6 दोस्त तैयारी के साथ असीरगढ़ पहुंचे | हम असीरगढ़ की चढ़ाई कर रहे थे यहां रास्ते में कुछ कबरे भी बनी हुई थी | हम उस जगह पहुंचे जहां पर बड़ी-बड़ी गुफाएं बनी हुई थी | यह गुफाएं हमेशा मुझे आकर्षित करती थी मैं सोचता था कि कैसे उस समय में इतनी बड़ी गुफाओं का निर्माण किया गया जो आज भी  यह इतनी बड़ी गुफाएं थी कि इसमें पूरी घुड़सवार सेना एक जगह से दूसरी जगह जा सकती थी

 सुना था कि यह गुफाएं बहुत दूर बुरहानपुर से लेकर कई किलोमीटर कई 100 किलोमीटर तक फैली हुई है , इन गुफाओं के नजदीक में ही एक तालाब है जो गर्मी के दिनों में भी पूरा लबालब भरा रहता है पास में ही शिव मंदिर है | हम 6 लोग दोपहर में अपना भोजन कर किले में घूम रहे थे यह वह भाग था जहां राजा अपना दरबार लगाते थे प्रजा और  मंत्रियों के बैठने की अलग-अलग जगह थी राजा के सिहासन  का भी एक अलग स्थान बना हुआ था |

शाम होने लगी हमारे एक मित्र ने बताया कि सुबह के समय यहां पर अश्वत्थामा मंदिर में पूजा करने आते हैं पर जो कोई उन्हें देख लेता है वहां कुछ दिन में पागल हो जाता है और कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है और यह भी कहा जाता है कि इस किले में जो भी रात को रुका है वह जिंदा नहीं बच सका है इन बातों को सुनकर हमारे कुछ मित्र घबरा गए और घबराकर  चार दोस्त ने निश्चित किया कि वह रात को नहीं रुकेंगे और अभी चले जाएंगे

मैं और मेरे दोस्त रवि जो की बहुत निडर था रवि को किसी बात का डर नहीं लगता था उसने और मैंने अंततः विचार किया कि हम तो रुकेंगे और सुबह ही आएंगे इस तरह रात को वहां पर रुके राज 10:00  बजे बाद कुछ दूर रुस्तमपुर फाटा से जो लाइट आ रही थी वह भी बंद हो गई चारों ओर घोर अंधेरा था |

  हम दोनों के पास टॉर्च थी रवि ने डिसाइड किया कि वह मंदिर के सामने चबूतरे पर रात गुजारेगा पर मेरी हिम्मत ना हुई और मैं किले की मीनार पर ऊपर चढ़ गया और मीनार का दरवाजा भी बंद कर दिया राम राम करते हुए सुबह हुई तकरीबन 5:00 बज रहे थे और कुछ उजाला हो गया था मैं मीनार से नीचे उतरा और मीनार का दरवाजा खोल कर रवि के पास गया पर वहां पर कोई भी नहीं था रवि की पानी की बोतल वही पड़ी थी मैंने रवि को खूब ढूंढा पर वह नहीं मिला तभी मेरी मेरा ध्यान मंदिर के कपाट पर गया जो खुला हुआ था अंदर झांकने पर देखा शिवलिंग जहांपर कल रात कुछ भी नहीं था वहां कुछ फूल है और एक दिया जल रहा था

ऐसा प्रतीत हो रहा था की कुछ देर पहले ही यहां कोई आरती कर कर गया है | मैंने रवि को खूब खोजा जब वह नहीं मिला, तो डर के मारे मैं वहां से निकल गया और किले से नीचे उतर आया मैं अपनी घबराहट को कुछ कम करते हुए सोच रहा था कि क्या किया जाए और एक होटल में मैं चला गया वहां होटल में बैठा ही था|

 तभी पीछे से जोर से किसी ने हाथ मारा मैं घबरा कर पलट कर देखा तो रवि था अरे भाई तू कहां गायब हो गया था मैं तो बड़ा डर गया मैंने रवि से बोला रवि बोला पता है रात को क्या हुआ पता है ? करीब 3:00 बज रहे थे और मुझे नींद आ गई थी अचानक मुझे ऐसा लगा कि किसी ने मुझे किसी ने धक्का दिया है और मैं ओटले से नीचे गिर गया उसके बाद अंधेरे में मुझे कुछ महसूस हो रहा था और सूखे पत्तों की तो मैं किसी के चलने की आहट भी थी मैंने टॉर्च जलाकर देखा तो चारों तरफ कुछ भी नहीं था तुझे भी बहुत आवाज लगाई पर इसके बाद में डर गया और नीचे उतर आया |

 पता नहीं रवि नींद में गिर गया या सही में किसी ने उसे धक्का दिया | वहां पर पत्तों पर चलने की आवाज किसी इंसान की थी या कोई जानवर था वह फूल वह मंदिर में फूल कहां से आए | कौन वहां आता है यह हमारे सामने सवाल बना ही रह गया | होटल वाला बोल रहा था कि अच्छा वह तुमने किसी को देखा नहीं पर हम दोनों ने निश्चित किया की हम अभी फिर से ऊपर जाएंगे ऊपर जाने के बाद बहुत कुछ रहस्यमई घटनाएं हमारे साथ होने लगी ......To be continuब e

सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में देशभक्ति के तरानों से बढ़ी तिरंगे की आन, बान, शान

अदब की रवायतों का नया संस्करण है बारादरी : डॉ. बाजपेई 


मोहब्बत की लगा दी मैंने लत उसको,

न रास आएगी दुनिया की सल्तनत उसको

: शाहिद अंजुम 

                     

  गाजियाबाद। हिंदी के सुप्रसिद्ध गीतकार, लेखक, कवि, समीक्षक व आकावाणी के पूर्व निदेशक डॉ. लक्ष्मी शंकर बाजपई ने 'बारादरी' को अदब की रवायतों का नया संस्करण बताया। 'महफिल ए बारादरी' में बतौर अध्यक्ष बोलते हुए उन्होंने कहा कि मंचों से दिनों दिन कविता जहां दूर होती जा रही है वहीं बारादरी के मंच पर कविता लगातार समृद्ध हो रही है। उन्होंने कहा कि कविता, गीत, ग़ज़ल की यह पाठशाला निसंदेह साहित्य की गरिमा के क्षरण को रोकने का काम करेगी। अपने गीत, छंद, माहिया, शेर और दोहों पर उन्होंने भरपूर दाद बटोरी।

आजादी के अमृत महोत्सव को लक्षित कर उन्होंने फरमाया ''पतिव्रता पत्नी भी साथ चली, पति ने तिरंगा फहराने को कदम जो निकाला था, फहराते ही तिरंगा ब्रिटिश सिपाहियों ने पति का शरीर गोलियों से भून डाला था, पति की लहुलुहान देह लड़खड़ाई जब, हाथ से तिरंगा बस गिरने ही वाला था। देशभक्ति कितनी महान थी पतिव्रता की, पति से भी पहले तिरंगे को संभाला था।"


  सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. रमा सिंह की सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. बाजपेई ने कहा कि नई पीढ़ी ग़ज़ल को जगजीत सिंह की वजह से और गीत को सिनेमा के कारण जानती है। काव्य की हमारी कई विधाएं खत्म होती जा रही हैं। जिनका संरक्षण निहायत जरूरी है। डॉ. बाजपेई ने अपने दोहों में मौजूदा वक्त की सच्चाई बयान करते हुए कहा "हर ग्रह पर इंसान को खोज रहा विज्ञान, मैं अपने ही शहर में खोज रहा इंसान।" उन्होंने कुछ माहिया "जो लोग शिखर पर हैं/ काश उन्हें देखें/ जो नींव के पत्थर हैं, बस ये ही तरीका है/ दिल में रंग भरो/ वरना सब भीगा है, पीड़ाओं का घर है/ जो भी है दुनिया/ रहना तो यहीं पर है" भी सुनाए।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शाहिद अंजुम ने भी अपने शेरों पर भरपूर दाद बटोरते हुए फरमाया "वक्त के साथ बदलना भी नहीं सीखे हैं, ठोकरें खा के संभलना भी नहीं सीखे हैं, मेरे मालिक मेरी सांसों की हिफाजत करना, मेरे बच्चे अभी चलना भी नहीं सीखे हैं।" उन्होंने कहा कि यह दुनिया बरसों से मोहब्बत पर‌ ही चलती आई है, जो आगे भी यूं ही चलती रहेगी। शेरों में मोहब्बत की बात उन्होंने यूं कही "मोहब्बतों की लगा दी है मैंने लत उसको, ना रास आएगी दुनिया की सल्तनत उसको। मैं अपने आप को दीवार ओ दर बनाऊंगा, फिर उसके बाद बनाऊंगा अपनी छत उसको, वो तख़्त ओ ताज को ठोकर लगा कर आया है, मैं क्या बताऊं मोहब्बत की अहमियत उसको।"


  संस्था की संरक्षिका डॉ. माला कपूर 'गौहर' ने आज़ादी पर पढ़ी रचना "पुरज़ोर आज गाओ कि पन्द्रह अगस्त है, जश्न-ए-ख़ुशी मनाओ कि पन्द्रह अगस्त है। आज़ादी-ए-वतन को पछत्तर बरस हुए, दुनिया को ये बताओ कि पन्द्रह अगस्त है। अमृत महोत्सव हम मना रहे हैं शान से। घर द्वार सब सजाओ कि पन्द्रह अगस्त है। दुनिया में इक पहचान तिरंगे ने दी हमें, घर घर इसे फ़हराओ कि पन्द्रह अगस्त है। 'गौहर’ बनाओ माला तिरंगे की सांस में, कर्तव्य ये निभाओ कि पन्द्रह अगस्त है" से पूरे सदन की सराहना बटोरी। उन्होंने अपने शेर "चेहरे पे नूर, धूप-सा चेहरा किए हुए, ये कौन आ रहा है उजाला किये हुए। जाओ उदासिओं कहीं जाओ यहां से दूर, बीमाऱ को हैं आज हम अच्छा किए हुए" पर भी दाद बटोरी। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा "बाद हर सुब़्ह के इक शाम ज़रूरी है बहुत, कोई आग़ाज़ हो अब अंजाम ज़रूरी है बहुत। इसलिए मौत के बिस्तर पे बिछाया है बदन, हो सफ़र कोई भी आराम ज़रूरी है बहुत।" ममता किरण के शेर ''वो एक झूठ की तहरीर से लिखा कागज, हुआ जो पेश तो शर्मिंदा ही हुआ कागज। सफर कहां से कहां तक का करता रहता है कभी लिफाफा कभी नाव बन गया कागज। जो कह सकी ना किसी और से कहा तुमसे, हर एक बात को बस तुमने ही सुना कागज" भी खूब सराहे गए। कार्यक्रम का संचालन कीर्ति 'रतन' ने किया।

  इस अवसर पर सुरेंद्र सिंघल, डॉ. रमा सिंह, मासूम ग़ाज़ियाबादी, सुभाष चंदर, डॉ. सुधीर त्यागी, डॉ. तारा गुप्ता, नेहा वैद, आलोक यात्री, सीमा सिकंदर, मनु लक्ष्मी मिश्रा, अनिल शर्मा, दिनेश चंद्र श्रीवास्तव, सोनम यादव, मंजु मन, देवेंद्र शर्मा 'देव', जय प्रकाश रावत, कामिनी मिश्रा, उषा श्रीवास्तव, तुलिका सेठ, इंद्रजीत सुकुमार, सुरेन्द्र शर्मा, संजीव शर्मा, सीमा शर्मा आदि की रचनाएं भी सराही गईं।

इस अवसर पर राजेश श्रीवास्तव, वागीश शर्मा, शकील अहमद शैफ, सुभाष अखिल, अभिषेक सिंघल, विनीत गोयल, आशीष मित्तल, निशांत शर्मा, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, प्रेम श्रीवास्तव, प्रवेश चंद्र गुप्ता, आशीष ओसवाल, विनोद कुमार मिश्रा, शशिकांत भारद्वाज, मंजू मित्तल, अजय मित्तल और रवि शंकर पांडे सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।


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रविवार, 7 अगस्त 2022

भोजन ना करने की सलाह


प्रस्तुति - रेणु दत्ता /आशा सिन्हा 

#भोजन के #प्रकार .....


#भीष्म_पितामह ने #अर्जुन को ४ प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था ...!


 १ ;- #पहला भोजन ....

जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है ...!


२ :-#दूसरा भोजन ....

जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ....!


३ :- #तीसरे प्रकार का भोजन ....


जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ....!


४ :-#चौथे नंबर का भोजन ....

अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है .....

और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ...


चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है ....!

पवित्र और चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजीमहराज की सम्पूर्ण कथा।*

 

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राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की  सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे "श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर" के नाम से जाना जाता है ।


 भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहांँ आने वालों का ताँंता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहांँ पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं । सम्पूर्ण भारत से आने वाले  लगभग एक हजार रोगी और उनके  स्वजन यहाँं नित्य ही डेरा डाले रहते हैं ।


बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें "घाटे वाले बाबा जी" भी कहा जाता है । इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है । यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है । 


इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है । इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है जिससे पवित्र जल की धारा निरंतर बह रही है।


 यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है जिसे भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं । यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन है किन्तु   मन्दिर का निर्माण इसी सदी में कराया गया है । मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की, लेकिन वे असफ़ल रहे । 


वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई । थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा । ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910  में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष  पुराना चोला स्वतः  ही त्याग दिया । भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंँचे, जहांँ से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था ।


ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका वजन करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता । असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया ।


 इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया । यज्ञ हवन और ब्राह्मण भोज एवं धर्म ग्रन्थों का पाठ किया गया । एक बार फ़िर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई । यह ज्योति सारे विश्व का अंधकार दूर करने में सक्षम है । बालाजी महाराज के अलावा यहांँ श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान ( भैरव ) की मूर्तियांँ भी हैं । 


प्रेतराज सरकार जहां द्ण्डाधिकारी के पद पर आसीन हैं वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर । यहां आने पर ही सामान्यजन को ज्ञात होता है कि भूत प्रेतादि किस प्रकार मनुष्य  को कष्ट पहुंँचाते हैं और किस तरह सहज ही उन्हें कष्ट बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है । दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुँचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है । 


बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढाया जाता है । इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं और शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं । प्रसाद हमेशा थाली या दोने में रखकर दिया जाता है।


 लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है और भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर बड़बड़ाने लगते है । स्वतः ही वह हथकडी और बेड़ियों में जकड़ जाता है । कभी वह अपना सिर धुनता है कभी जमीन पर लोट पोट कर हाहाकार करता है । कभी बालाजी के इशारे पर पेड़  पर उल्टा लटक जाता है । कभी आग जलाकर उसमें कूद जाता है ।


 कभी फाँसी या सूली पर लटक जाता है । मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वतः ही बालाजी के चरणों में  आत्मसमर्पण कर देते हैं अन्यथा समाप्त कर दिये जाते हैं । बालाजी उन्हें अपना दूत बना लेते हैं। संकट टल जाने पर बालाजी की ओर से एक दूत मिलता है जोकि रोग मुक्त व्यक्ति को भावी घटनाओं के प्रति सचेत करता रहता है।


 बालाजी महाराज के मन्दिर में प्रातः और सायं लगभग चार चार घंटे पूजा होती है । पूजा में भजन आरतियों और चालीसों का गायन होता है। इस समय भक्तगण जहांँ पंक्तिबद्ध हो देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं वहीं भूत प्रेत से ग्रस्त रोगी चीखते चिल्लाते उलट पलट होते अपना दण्ड भुगतते हैं ।


 बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है ।  


भक्ति-भाव से उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन आदि किए जाते हैं । बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। 

पृथक रूप से उनकी आराधना - उपासना कहीं नहीं की जाती, न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं। 


कुछ लोग बालाजी का नाम सुनते ही चाैंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहाँ जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी - जो बालाजी के प्रति भक्ति-भाव रखने वाला है, इन तीनों देवों की आराधना कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।

किसी ने सच ही कहा है—"नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं, मेंहदीपुर दरबार में ।"


प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है, किन्तु भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं और प्रेम-श्रद्धा से चढ़ा हुआ प्रसाद बाबा सहर्ष स्वीकार भी करते हैं।


कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव भगवान शिव के अवतार हैं और उनकी ही तरह भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं । भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रह्मा का पाँचवाँ कटा शीश रहता है । वे कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं । उनकी मूर्तियों पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है । 


शास्त्र और लोककथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन है, जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं।  श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं । भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं। 


इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन, कीर्तन, आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं । प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के बड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ा दिया करते हैं ।


सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूत-प्रेतादि उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं। वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं, जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है।


कलियुग में बालाजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं , जो अपने भक्त को सहज ही अष्टसिद्धि, नवनिधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं

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शनिवार, 6 अगस्त 2022

नवाब तफ़ज़्ज़ुल हसन ख़ान कि गुमनाम शहादत


1857 के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतकारीयों की मदद करने के जुर्म में फ़ारुख़ाबाद रियासत के नवाब तफ़ज़्ज़ुल हसन ख़ान को मुल्क बदर कर दिया गया था.


1846 से 1858 तक फ़ारुख़ाबाद रियासत के नवाब रहे नवाब तफ़ज़्ज़ुल हसन ख़ान को अंग्रेज़ो ने जंग ए आज़ादी की पहली लड़ाई में क्रांतकारीयों की मदद करने के जुर्म में सज़ाए मौत दी थी, पर बाद में ये सज़ा घटा दी गई और उन्हे मुल्क बदर कर अदन भेज दिया गया जहां से वो मक्का गए और वहीं 19 फ़रवरी 1882 इंतक़ाल कर गए.. 

बहरहाल ऐसे गुमनाम लोगो को श्रधंजलि देने वाले आज बहुत कम है. मगर जिन्होने देश के लिए अपने जान की आहुति दे दी उनको अपना मक़सद प्यारा था ना की नाम और शोहरत.

प्राइम टाइम / रविश कुमार

 अमरीका में महंगाई चालीस साल में सबसे अधिक है और आस्ट्रेलिया में बेरोज़गारी पचास साल में सबसे कम है. अमरीका में खाने पीने की चीज़ों के दाम 10 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं और ईंधन के 40 प्रतिशत से भी अधिक हो गई. इसके बाद भी अमरीका में बेरोज़गारी घटी है लेकिन वहां पर लोग छंटनी से बचने के लिए कम सैलरी पर काम करने के लिए मजबूर हो रहे हैं, उनकी वास्तविक कमाई भी घट गई है, इसके बाद भी आशंका है कि मंदी में जल्दी ही छंटनी का दौर शुरू होने वाला है. उधर आस्ट्रेलिया में काम करने वालों की इतनी कमी हो गई है कि नए प्रोजेक्ट रुक गए हैं और हर तरफ काम अटकने लगे हैं. जितनी नौकरी है उतने ही बेरोज़गार है, मतलब जो चाहेगा उसे काम मिलेगा. वहां मांग हो रही है कि बाहर से इंजीनियर, टेक्निशियन और लेबर को लंबे समय का वीज़ा देकर बुलाया जाए ताकि काम न रूके. इंटरनेशनल न्यूज़ से कुछ हो न हो, कई बार नेशनल दुख कम हो जाता है. इसलिए बताया ताकि सारी ऊर्जा वायरल कराने में न खप जाए कि भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हो गया.


मगर लोग ललित मोदी और सुष्मिता सेन की तस्वीरों को वायरल कराने में लग गए. जब कि सुष्मिता सेन ने इन तस्वीरों की पुष्टि भी नहीं की थी।अब उनका बयान आया है कि शादी नहीं हुई है. ललित मोदी ने अपने ट्विट में रिश्तों को लेकर कई बार नाम बदले और बाद में लिख दिया कि शादी नहीं हुई है. सुष्मिता ने भी यही सफाई दी है कि शादी नहीं हुई है . अब आप समझ गए होंगे कि भगोड़ा मोदी इतना ललित क्यों है? वह पहले भी कई बार तस्वीरों को डाल कर वायरल के लिए मारी फिर रही जनता को आज़मा चुका है .श्रीलंका की बात करते करते लोग सुष्मिता सुष्मिता पुकारने लगे .ललित मोदी की इन तस्वीरों से इतना ज़रूर पता चलता है कि बंदा टेंशन में नहीं हैं. फ्राड कर भारत से भागने वाले का दि एंड नहीं हुआ है बल्कि बिगनिंग हो रही है और पिकनिक चल रही है.


वह अब भी चर्चाओं के ज़रिए भारत में वापसी कर लेता है .इसे चर्चा वापसी कह सकते हैं. विजय माल्या को ही देखिए, भारत से भाग गए हैं मगर भारतीयता नहीं छूटी है, नहीं तो कुर्ता पाजामा विदेश में कौन पहनता है, इंडिया में तो हाफ पैंट में घूमा करते थे,क्रिकेट खिलाड़ी क्रिस गेल से मत जलिए कि हवाई जहाज़ का इनका टिकटबच गया और विजय माल्या भी मिलने आ गए. इस घटना में समझने वाली बात ये है कि अपराध कर पकड़ा जाना और ज़मानत के इंतज़ार में भारत की जेलों में सड़ जाना जाना छोटा काम है, बड़ा काम है लोटा लेकर  देश से ही भाग जाना. ललित और विजय ने साबित कर दिया है कि अगर आपका जीवन लालित्य से भरा हो तब भगोड़ा होकर भी विजयी भाव से जीया जा सकता है. डॉलर और पेट्रोल के दाम से दोनों को कोई फर्क नहीं पड़ता है. ये लोग कूल गाई हैं. 


हम और आप नहीं जानते हैं कि कब किस वक्त, किस आइटम का हमला हो जाएगा और आप वायरल कराने लग जाते हैं. पता है कि वीडियो में कुछ नहीं है, लेकिन देखे जा रहे हैं. टाइम पास के चक्कर में समाज का अच्छा खासा हिस्सा किसी और लोक में पास होता जा रहा है. अमरीकी में मंदी की खबर पढ़ ही रहे होते हैं कि संसद में धरना मना के नोटिस को लेकर पुराने पुराने नोटिस निकाले जाने लगते हैं. हम उसमें बिजी हो जाते हैं, हो कुछ नहीं रहा है, 2022 का नोटिस दिखाइये तो 2009 का दिखा दिया जाता है, पता ही नहीं चलता है कि इससे गलत साबित हो रहा है या सही साबित किया जा रहा है. इसी बीच एक और वीडियो आ जाता है और लोग वहां बिजी हो जाते हैं ये देखने कि महिला ने अपने दोस्त को थप्पड़ मार दिया है. इस माहौल में रुपया गिर गया है टाइप का नीरस टापिक वायरल नहीं हो पा रहा है. 


रुपया कब कितना गिरा, गूगल सर्च से इसके गिरने का ग्राफ निकाल निकालकर ट्विट करने वाले ज़ोर तो लगा रहे हैं मगर रुपये के गिरने पर रोने वाली जनता ने अपने आंसू पोंछ लिए हैं, उसने तो महंगाई पर भी रोना छोड़ दिया है. ठीक है कि कभी वह गुस्से में आ गई थी कि एक डालर का भाव 56 रुपये क्यों हो गया था, 64 रुपये कैसे हो सकता है, लेकिन अब वह 80 के भाव पर एडजस्ट हो चुकी है. जैसे वह बेरोज़गारी की दर से एडजस्ट हो चुकी है. अगर मेरी बात गलत नहीं है तो क्या आपने हाउसिंस सोसायटी और रिटायर्ट अंकिलों के व्हाट्स एप ग्रुप में इसे लेकर हाय तौबा देखी है? आप इस वीडियो को कितनी बार देखना चाहेंगे, किसे याद दिला रहे हैं कि तब तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने रुपये के गिरने को लेकर क्या कहा था, अब क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? कुछ कहते भी नहीं .


लगता है माल बाहर भेजने वाले और बाहर से माल लाने वाले हमारे व्यापारी डॉलर के 80 रुपये पर पहुंचने पर हवा में तैर रहे हैं, उन्हें अब बोझ नहीं लगता है. रुपया का भाव गिरता है तो ज़रूर विदेशों में पढ़ रहे लाखों भारतीय छात्रों को तकलीफ होती होगी. फीस के लिए अधिक डॉलर देने होते होंगे, दिक्कत आयातकों को भी होती होगी लेकिन वे सक्षम है तो अपनी तकलीफ खुद से बता सकते हैं. जब तक वे नहीं बोलते हैं मान कर चलना चाहिए कि उन्हें कोई तकलीफ नहीं है. वैसे आयात का बिल काफी बढ़ गया है. निर्यात से कहीं ज्यादा आयात हो रहा है. अगर आप वाकई जानना चाहते हैं कि रुपया कमज़ोर होता है तो क्या होता है तो मेरी राय में आप एक सितंबर 2013 का पांचजन्य पढ़ लें. इसके कवर पर ही है कि और कितना गिरोगे रुपया. इसमें जो तब समझाया गया होगा, उसी से अब भी समझ सकते हैं, दुनिया तो वही है बहुत कहां बदली है.


पांचजन्य की वेबसाइट पर 24 अगस्त 2013 का एक लेख है. स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अश्विनी महाजन ने हिन्दी में विस्तार से समझाया है कि उस समय जो रुपया गिर रहा था वो कितना खतरनाक था. उनके लेख का शीर्षक है, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने देश की अर्थव्यवस्था को पाताल में पहुंचाने का किया पुख्ता इंतजाम. सारा लेख तो पढ़ना मुश्किल है, इसलिए हम कुछ ही अंश का पाठ करेंगे. 


पिछले मात्र तीन महीनों में 10 रुपए की गिरावट के साथ रुपए और डालर की विनिमय दर 64 रुपए पर पहुंच चुकी है. कहा जा रहा है कि थोड़े समय में रुपया 70 रुपए प्रति डालर तक भी गिर सकता है. यह सही है कि कुछ अन्य मुद्राएं भी कमजोर हो रही हैं, लेकिन अन्य देशों की तुलना में रुपया कहीं ज्यादा गिरा है. हर देश की समस्याएं स्वयं की होती हैं और उनका समाधान भी उसे खुद खोजना होता है. भारतीय रुपए के अवमूल्यन की समस्या भारत की ही है.  बढ़ता भुगतान शेष हमारे तेजी से बढ़ते आयातों और उसके मुकाबले पिछड़ते निर्यातों के कारण है. पिछले कई वर्षों से सरकार बढ़ते आयातों के मद्देनजर लगभग मूकदर्शक बनी हुई है. इसी दौरान चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा 40 अरब डालर तक पहुंच गया। शेष दुनिया के साथ भी हमारा व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है. उधर रुपए की कमजोरी के सामने सरकार असहाय महसूस कर रही है. 


तब अश्विनी महाजन साफ साफ कह रहे हैं कि भारत रुपये की गिरावट की समस्या भारत की ही है. बता रहे हैं कि भुगतान शेष यानी आयात का बिल बहुत ज्यादा है और चीन से व्यापार घाटा 40 अरब का है. इन तीनों मामले में आप जानते ही होंगे कि आज क्या स्थिति है,क्या चीनसे व्यापार घाटा कम हो गया है?

इसका उदाहरण दिया कि सब आलोचना में आलसी हो गए हैं. वीडियो वायरल कराने की जगह देखना चाहिए कि पांचजन्य ने डालर के अस्सी रुपया तक हो जाने पर कितने लेख लिखे हैं, क्या  लिखा है. अब यह मुद्दा उसके लिए अहम है कि नहीं है. जून में उम्मीद थी कि करीब 26 अरब डालर से नीचे रहेगा लेकिन पार कर गया. निर्यात में करीब 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई तो आयात में 55 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई. अब अगर प्रधानमंत्री चाहते हैं कि बर्लिन में रहने वाले भारतीय केवल निर्यात के आंकड़ों पर ताली बजाएं तो बिल्कुल ताली बजाएं. 


इसका बड़ा प्रभाव भारत से होने वाले एक्सपोर्ट पर भी दिख रहा है . अभी कुछ दिन पहले हमने 400 बिलियन डॉलर एक्सपोर्ट का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. अगर हम गुड्स एंड सर्विसेज को देखें तो पिछले साल भारत से 670 बिलियन डॉलर यानी करीब करीब 50 लाख करोड़ रुपए का एक्सपोर्ट हुआ है. आंकड़ा देख कर के तालियों के लिए हाथ जम गए क्या?

भारत का चालू बजट खाता सुधरा है. इसे एक अच्छे संकेत के रुप में देखा जा रहा है. एक तर्क यह भी है कि रुपया डालर के मुकाबले गिरा है तो यूरो और अन्य मुद्राओं के मुकाबले सुधरा भी है. अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने अपने ट्विट में एक सवाल उठाया है कि सबसे बड़ी चिन्ता की बात है कि भारत में आधिकारिक तौर पर मुद्रास्फीति के जो आंकड़े हैं, वो अमरीका से काफी कम हैं, इस हिसाब से रुपया मज़बूत होना चाहिए, कमज़ोर नहीं होना चाहिए?शायद कौशिक बसु इशारा कर रहे हैं कि कहीं कुछ छिपाया तो नहीं जा रहा है. 


नई दिल्ली के एडिशनल सेशन जज देवेंद्र कुमार जंगाला की कोर्ट ने मोहम्मद ज़ुबैर को ज़मानत दे दी है. उनके आदेश की कापी पढ़ने लायक है. जज देवेंद्र कुमार लिखते हैं कि उन्होंने पुलिस की फाइल देखी है, जिस व्यक्ति ने ट्विट किया है, उसकी पहचान पुलिस साबित नहीं कर सकती. न उसकी गवाही हुई है. न ही ऐसे किसी की गवाही हुई है जिसकी भावना को ठेस पहुंचा हो. 2018 का ट्विट है तब से लेकर अब तक कोई सामने नहीं आया जिसकी भावना को ठेस पहुंची हो.आदेश की कापी से पता चलता है कि हनुमान भक्त ट्विटर हैंडल की शिकायत पर सब इंस्पेक्टर अरुण कुमार ने मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी. पुलिस को लगा कि जानबूझ कर किया गया है. इसलिए ज़ुबैर को नोटिस दिया गया लेकिन जांच में सहयोग नहीं करने के कारण 27 जून को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस कस्टडी के दौरान ज़ुबैर के खिलाफ FCRA का सेक्शन 35 लगाई गई और फिर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया लेकिन वृंदा ग्रोवर ने सवाल किया कि FCRA की कौन सी धारा का उल्लंघन हुआ है यह नहीं बताया जा रहा है क्योंकि ALT न्यूज़ की वेबसाइट पर ही साफ साफ लिखा है कि इसके लिए केवल भारतीय नागरिक ही चंदा दे सकता है वो भी जिनका भारतीय बैंकों में खाता हो. जो भी चंदा देता है उसे यह घोषणा करनी पड़ती है कि वह भारतीय नागरिक है और उससे पैन नंबर मांगा जाता है. लेकिन पुलिस की तरफ से दलील पेश की गई कि विदेशी चंदा आया है.


जज देवेंद्र कुमार जंगाला ने लिखा है कि लोकतंत्र में सरकार जनता की होती है। अगर लोग अपनी बात नहीं रखेंगे तो लोकतंत्र का विकास नहीं होगा. यह आज़ादी होनी चाहि कि लोग बिना भय के खुल कर अपनी बातों का आदान-प्रदान कर सकें। यूपी में ज़ुबैर के खिलाफ छह छह FIR हैं. हाथरस और लखीमपुर खीरी की अदालत के आदेश के अनुसार ज़ुबैर के लिए अभी जेल से बाहर आना संभव नहीं है। ज़ुबैर ने सुप्रीम कोर्ट में इन सभी FIR को रद्द करने या एक जगह करने की याचिका लगाई है. 


एडिशनल सेशन जज देवेंद्र कुमार जंगाला के आदेश की कापी पढ़कर यह समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं कि ज़ुबैर के साथ क्या हुआ है।किस तरह से केस बनाए जा रहे हैं और पूछताछ और जांच के नाम पर इस जेल से उस जेल में घुमाया जा रहा है. जिसकी भावना आहत हुई वह सामने तक नहीं आया. क्या यह रहस्य जैसा नहीं लगता कि जिस हनुमानभक्त के नाम के ट्विटर हैंडल ने दिल्ली पुलिस को टैग कर दिया,  वह कौन है, दिल्ली पुलिस उसका पता पहले नहीं लगाती है बल्कि आज तक नहीं लगा पाती है और ज़ुबैर को गिरफ्तार कर दूसरे मामलों की जांच होने लग जाती है. यह कोई सामान्य घटना नहीं है. इस तरह से पत्रकारिता करने वालों झूठ पकड़ने वालों को टारगेट किया जाने लगा है. इसी तरह से श्रीलंका में भी पत्रकारों का दमन हो रहा था, वहां की जनता या उस देश को इससे क्या मिल गया. रोएल रेमंड roar Sri lanka नाम के मीडिया संस्थान की एडिटर इन चीफ है, भारत श्रीलंका के जैसा नहीं होगा लेकिन वहां जो मीडिया का हाल है और यहां का जो हाल है बहुत अंतर नहीं है. उम्मीद है आप रोएल रेमेंड के इस ट्विट को याद रखेंगे. 


रोएल रेमेंड ने आज ट्विट किया है कि गोटा बाया और दूसरे राजापक्षाओं से मुक्ति पाने के लिए हमने जो कीमत चुकाई है, वह बहुत ज़्यादा है. बहुत सारे पत्रकारों की हत्या कर दी गई, बहुत सारे पत्रकार लापता कर दिए गए हैं. बहुत सारे पत्रकारों को देश छोड़ कर भागना पड़ा.बहुत सारे मीडिया संस्थानों ने खुद पर ही सेंशरशिप ओढ़ लिया. बहुत सारे NGO को बदनाम किया गया, उन पर हमले हुए. अभियान चलाकर बहुत लोगों को डराया गया. बहुत सारे लोगों से ज़मीन का अधिकार छीन लिया गया. बहुत सारे लोगों की आज़ादी छीन ली गई. बहुत सारे लोग अपने परिवार का पेट नहीं भर पा रहे हैं. बहुत सारे लोग कतारों में ही मर गए। पिछले सौ दिनों के दौरान इस राजवंश को घुटनों पर लाने के लिए बहुत सारे लोगों ने संघर्ष किया. मैं यही प्रार्थना करती हूं, मैं प्रार्थना करती हूं कि ऐसा फिर कभी न हो.


भारत का मीडिया कम शानदार नहीं था लेकिन इसके गोदी मीडिया में बदलने को आप तमाशा की तरह देखते रहे. लगा कि खेल चल रहा है. पत्रकारों को किस तरह से जेल जेल घुमाया जा रहा है, अब इसे भी तमाशा की तरह देख रही है. श्रीलंका की पत्रकार रोएल रेमंड की इस बात को याद रखिएगा. वहां पत्रकारों को मार दिया गया, गायब कर दिया गया. जनता सनक गई थी गोटाबया के पीछे और अंत में गोटाबाया ही भाग गया. श्रीलंका में कुछ पत्रकार तब भी बचे रह गए वही हैं जो इस वक्त जनता के साथ हैं. हवाई जहाज़ उड़ते हैं तो उसे ट्रैक किया जा सकता है. गोटाबाया जिस जहाज़ से सिंगापुर भागा उसे लोग खूब ट्रैक कर रहे हैं. बस इसे तमाशे और मनोरंजन के लिए नहीं किया जाना चाहिए याद किया जाना चाहिए कि तानाशाही की कीमत पत्रकारों ने वहां किस तरह चुकाई है. 


द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना तय है. उन्हें अग्रिम बधाई. लेकिन एक सवाल भी है. क्या दिल्ली या अन्य राज्यों से छपने वाले अखबारों या चैनलों में उनका कोई विस्तृत इंटरव्यू हुआ है,जिससे पता चलता हो कि वे अपनी भूमिका को किस तरह देखती हैं. वैसे आपको बता दें कि 21 जून को जब उम्मीदवारी की घोषणा हुई थी तब ओडिशा के ओटीवी पर उनका फोन के द्वारा इंटरव्यू चला था. ठीक-ठाक लंबा इंटरव्यू था। वो पहला दिन था लेकिन नामांकन करने और प्रचार के लिए निकलने के दौरान का इंटरव्यू हमें नहीं मिल रहा है. हो सकता है कि हमारे सर्च करने में कोई कमी हो. वैसे हमने आपको ओटीवी का बता दिया, आप भी पता कीजिये या पूछिए कि और कहां कहां इंटरव्यू हुआ है, केवल यशवंत सिन्हा का ही इंटरव्यू देखने- पढ़ने को मिल रहा है. शुक्रवार को द्रौपदी मुर्मू छत्तीसगढ़ के दौरे के बाद भोपाल पहुंची. वे अलग-अलग राज्यों में जाकर विधायकों सांसदों और राजनीतिक दलों से मुलकात कर रही हैं। अनुराग द्वारी की रिपोर्ट. उनके दौरे के बहाने अनुसूचित जनजाति के मुद्दों को लेकर जून 2012 में प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया गया था. उम्मीदवारी का नामांकन करने के बाद मनोरंजन भारती ने प्रणब मुखर्जी का इंटरव्यू किया था. उस समय प्रणब मुखर्जी ने तमाम चैनलों और अखबारों को इंटरव्यू दिया था.  मनोरंजन भारती बताते हैं कि उस दिन प्रणब मुखर्जी दिन भर इंटरव्यू ही देते रह गए।2002 में एपीजे अब्दुल कलाम ने भी खूब इंटरव्यू दिया था. बल्कि बकायदा प्रेस कांफ्रेंस किया करते थे। याद रखिएगा जुमलाजीवी असंसदीय है. 


अगले हफ्ते मुलाकात होगी ही, एन डी टीवी इंडिया के यू ट्यूब चैनल पर प्राइम टाइम के सारे एपिसोड होते हैं. सब्सक्राइब भी कीजिए और मेहनत से बनाए गए सभी एपिसोड को फुर्सत के दौरान दोबारा भी देखा कीजिए. बताइयेगा कि जेल डेबिट कार्ड का एनिमेशन कैसा लगा और हर बात में जेल भेज दिए जाने के इस दौर को आप कैसे देखते हैं, तमाशे के रुप में या तबाही के रुप में…ब्रेक ले लीजिए.