अदब की रवायतों का नया संस्करण है बारादरी : डॉ. बाजपेई
मोहब्बत की लगा दी मैंने लत उसको,
न रास आएगी दुनिया की सल्तनत उसको
: शाहिद अंजुम
गाजियाबाद। हिंदी के सुप्रसिद्ध गीतकार, लेखक, कवि, समीक्षक व आकावाणी के पूर्व निदेशक डॉ. लक्ष्मी शंकर बाजपई ने 'बारादरी' को अदब की रवायतों का नया संस्करण बताया। 'महफिल ए बारादरी' में बतौर अध्यक्ष बोलते हुए उन्होंने कहा कि मंचों से दिनों दिन कविता जहां दूर होती जा रही है वहीं बारादरी के मंच पर कविता लगातार समृद्ध हो रही है। उन्होंने कहा कि कविता, गीत, ग़ज़ल की यह पाठशाला निसंदेह साहित्य की गरिमा के क्षरण को रोकने का काम करेगी। अपने गीत, छंद, माहिया, शेर और दोहों पर उन्होंने भरपूर दाद बटोरी।
आजादी के अमृत महोत्सव को लक्षित कर उन्होंने फरमाया ''पतिव्रता पत्नी भी साथ चली, पति ने तिरंगा फहराने को कदम जो निकाला था, फहराते ही तिरंगा ब्रिटिश सिपाहियों ने पति का शरीर गोलियों से भून डाला था, पति की लहुलुहान देह लड़खड़ाई जब, हाथ से तिरंगा बस गिरने ही वाला था। देशभक्ति कितनी महान थी पतिव्रता की, पति से भी पहले तिरंगे को संभाला था।"
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. रमा सिंह की सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. बाजपेई ने कहा कि नई पीढ़ी ग़ज़ल को जगजीत सिंह की वजह से और गीत को सिनेमा के कारण जानती है। काव्य की हमारी कई विधाएं खत्म होती जा रही हैं। जिनका संरक्षण निहायत जरूरी है। डॉ. बाजपेई ने अपने दोहों में मौजूदा वक्त की सच्चाई बयान करते हुए कहा "हर ग्रह पर इंसान को खोज रहा विज्ञान, मैं अपने ही शहर में खोज रहा इंसान।" उन्होंने कुछ माहिया "जो लोग शिखर पर हैं/ काश उन्हें देखें/ जो नींव के पत्थर हैं, बस ये ही तरीका है/ दिल में रंग भरो/ वरना सब भीगा है, पीड़ाओं का घर है/ जो भी है दुनिया/ रहना तो यहीं पर है" भी सुनाए।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शाहिद अंजुम ने भी अपने शेरों पर भरपूर दाद बटोरते हुए फरमाया "वक्त के साथ बदलना भी नहीं सीखे हैं, ठोकरें खा के संभलना भी नहीं सीखे हैं, मेरे मालिक मेरी सांसों की हिफाजत करना, मेरे बच्चे अभी चलना भी नहीं सीखे हैं।" उन्होंने कहा कि यह दुनिया बरसों से मोहब्बत पर ही चलती आई है, जो आगे भी यूं ही चलती रहेगी। शेरों में मोहब्बत की बात उन्होंने यूं कही "मोहब्बतों की लगा दी है मैंने लत उसको, ना रास आएगी दुनिया की सल्तनत उसको। मैं अपने आप को दीवार ओ दर बनाऊंगा, फिर उसके बाद बनाऊंगा अपनी छत उसको, वो तख़्त ओ ताज को ठोकर लगा कर आया है, मैं क्या बताऊं मोहब्बत की अहमियत उसको।"
संस्था की संरक्षिका डॉ. माला कपूर 'गौहर' ने आज़ादी पर पढ़ी रचना "पुरज़ोर आज गाओ कि पन्द्रह अगस्त है, जश्न-ए-ख़ुशी मनाओ कि पन्द्रह अगस्त है। आज़ादी-ए-वतन को पछत्तर बरस हुए, दुनिया को ये बताओ कि पन्द्रह अगस्त है। अमृत महोत्सव हम मना रहे हैं शान से। घर द्वार सब सजाओ कि पन्द्रह अगस्त है। दुनिया में इक पहचान तिरंगे ने दी हमें, घर घर इसे फ़हराओ कि पन्द्रह अगस्त है। 'गौहर’ बनाओ माला तिरंगे की सांस में, कर्तव्य ये निभाओ कि पन्द्रह अगस्त है" से पूरे सदन की सराहना बटोरी। उन्होंने अपने शेर "चेहरे पे नूर, धूप-सा चेहरा किए हुए, ये कौन आ रहा है उजाला किये हुए। जाओ उदासिओं कहीं जाओ यहां से दूर, बीमाऱ को हैं आज हम अच्छा किए हुए" पर भी दाद बटोरी। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा "बाद हर सुब़्ह के इक शाम ज़रूरी है बहुत, कोई आग़ाज़ हो अब अंजाम ज़रूरी है बहुत। इसलिए मौत के बिस्तर पे बिछाया है बदन, हो सफ़र कोई भी आराम ज़रूरी है बहुत।" ममता किरण के शेर ''वो एक झूठ की तहरीर से लिखा कागज, हुआ जो पेश तो शर्मिंदा ही हुआ कागज। सफर कहां से कहां तक का करता रहता है कभी लिफाफा कभी नाव बन गया कागज। जो कह सकी ना किसी और से कहा तुमसे, हर एक बात को बस तुमने ही सुना कागज" भी खूब सराहे गए। कार्यक्रम का संचालन कीर्ति 'रतन' ने किया।
इस अवसर पर सुरेंद्र सिंघल, डॉ. रमा सिंह, मासूम ग़ाज़ियाबादी, सुभाष चंदर, डॉ. सुधीर त्यागी, डॉ. तारा गुप्ता, नेहा वैद, आलोक यात्री, सीमा सिकंदर, मनु लक्ष्मी मिश्रा, अनिल शर्मा, दिनेश चंद्र श्रीवास्तव, सोनम यादव, मंजु मन, देवेंद्र शर्मा 'देव', जय प्रकाश रावत, कामिनी मिश्रा, उषा श्रीवास्तव, तुलिका सेठ, इंद्रजीत सुकुमार, सुरेन्द्र शर्मा, संजीव शर्मा, सीमा शर्मा आदि की रचनाएं भी सराही गईं।
इस अवसर पर राजेश श्रीवास्तव, वागीश शर्मा, शकील अहमद शैफ, सुभाष अखिल, अभिषेक सिंघल, विनीत गोयल, आशीष मित्तल, निशांत शर्मा, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, प्रेम श्रीवास्तव, प्रवेश चंद्र गुप्ता, आशीष ओसवाल, विनोद कुमार मिश्रा, शशिकांत भारद्वाज, मंजू मित्तल, अजय मित्तल और रवि शंकर पांडे सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।
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