अश्वत्थामा
“ कहते हैं कि पांडव यहीं से स्वर्ग गए थे। जाते-जाते उन्होंने जो पाँच चूल्हे जलाए थे, वही इन पाँच पहाड़ों में बदल गए। यहाँ इतनी ठंड है, उन्होंने सोचा होगा इस से अच्छा तो स्वर्ग ही चले जाओ।“
मैंने पलट कर देखा तो आवाज एक खूबसूरत होंठों की जोड़ी से आ रही थी, जो उतने ही एक खूबसूरत चेहरे पर जड़े हुए थे। मुहतरमा मुझी से मुखातिब थी। मैं मुंशियारी के नंदा देवी मंदिर के कम्पाउन्ड में एक बेंच पर बैठ कर सामने पहाड़ निहार रहा था और वह बेंच के पीछे खड़ी हो कर मुझ से ऐसे बोल रही थी जैसे उसे पता ही ना हो कि वह कितनी सुंदर है। सुंदर लड़कियां ऐसे अजनबियों से बात नहीं करती।
मैं मुस्कराया और फिर पहाड़ों को देख कर बोला, “अगर वह ना जाते तो क्या पता अश्वत्थामा उन्हें भी मार देता। उसने अकेले बहुत से पांडव वंशजों को मार डाला था। और सुना है, वह आज भी जिंदा है। भटक रहा है इधर से उधर।“
“कितना अजीब होगा ना, ऐसे हजारों सालों तक अकेले भटकना, ऐसी ज़िंदगी से तो मौत बेहतर है”
“अगर गौर से देखें तो बहुत सी ज़िंदगियों से मौत बेहतर है।“
“IT से हो?”
मैंने हँसते हुए हाँ में गर्दन हिलाई तो वह भी हंस पड़ी। ठंड में उसके मुंह से निकलती भाप उठते हुए कोहरे में मिल कर इन वादियों में लीन हो रही थी। हम जहां भी जाते हैं, अपना एक हिस्सा वहीं छोड़ आते हैं। शायद कुछ जगह इसलिए भी खूबसूरत होती होंगी क्योंकि वहाँ ज्यादा खूबसूरत लोग जाते होंगे।
“आप क्या करती हैं?”
“मैं भी अश्वत्थामा हूँ, इधर से उधर भटकती रहती हूँ।“
“आप क्या ढूंढ रही हैं?”
“अश्वत्थामा क्या ढूंढ रहा है?”
“उम्म..शायद कुछ नहीं।”
“बस मैं भी, शायद कुछ नहीं।“
“ऐसा लगता है, मैं पेड़ हूँ, हिल नहीं सकता, तुम पानी हो, रुक नहीं सकती।“
“फिलोस्फी? नोट बैड फॉर ऍन आईटी इंजीनियर!”
“ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा में वह सीन है ना- गलती तो हम सब से हो जाती हैं। “
वह फिर हंसी। जैसे संगमरमर के फर्श पर किसी ने कंचे बिखेर दिए हों। सूरज अब धीरे-धीरे डूबने लगा था। पंचचूली पर सोना बिखर रहा था। और 2 मिनट के लिए हम दोनों चुप होकर सम्मोहित से उस जादू को देखने लगे। थोड़ी देर के बाद बात फिर से शुरू करने के लिए काफी देर हो चुकी थी। बातों का क्रम टूट चुका था। क्या बात करूँ? मैं इसी असमंजस में था कि वह आकर बेंच पर बैठ गई। बेंच काफी बड़ी थी। उसके और मेरे बीच में इतनी जगह थी कि उसमे एक तेंदुआ बैठ सकता था। माफ कीजिए, अपनी इस 2 हफ्ते की यात्रा में मैं तेंदुए से काफी डरा हुआ था।
“सोलो ट्रिप?”
“हाँ।“
“क्यों? अकेले हो?”
“फिलहाल तो नहीं।“
हा-हा। मिस्टर मुंगेरीलाल। तुम्हारी फैव्रट बुक कौन सी है?
“आपको कैसे लगा कि मैं किताबें पढ़ता होऊँगा?”
“फुटबालर तो नहीं लगते तुम”
“दिस वास अफेन्सिव, मैडम!
हा-हा सॉरी। बुक?
फाउन्टन्हेड बाइ आयन रैन्ड।
अरे वह तो कहती थी कि सेल्फिश्नेस हमारा सबसे बड़ा गुण है। तुम स्वार्थी हो?
“पूरी तरह नहीं। कई बार औरों के बारे में भी सोच लेता हूँ।“ मैंने उसकी आँखों की तरफ देख कर यह बोला तो वह शर्मा गई।
पर लड़की दमदार थी। आंखें फिर उठी। होंठ फिर खुले और बोले, “तो जब उसकी बात से सहमत नहीं तो फिर वह सब से पसंद क्यों?”
“किसी को चाहने के लिए उसकी हर बात से सहमत होना जरूरी है?”
“तो तुम्हारी पसंदीदा किताब केवल रीज़न, लॉजिक और मतलब की बात करती है और तुम उसे बेमतलब चाहते हो?”
“वर्ल्ड इज फुल ऑफ आइयरोनीज़!”
“इन्टरिस्टिंग।“
वह फिर से पहाड़ों को देखने लगी। मैंने देखा वह घास के कुछ तिनकों को अपनी उंगलियों में घुमा रही थी। पीछे नंदा देवी मंदिर पर कोई घंटा बजा कर प्रसाद चढ़ा रहा था। घास में कुछ पहाड़ी कुत्ते एक दूसरे के पीछे दौड़ कर खेल रहे थे। उन पाँच चूल्हों की आग अब मंद होने लगी थी। शाम ढलने लगी थी और हवा में ठंडक बढ़ रही थी। शायद अब वापिस जाने का समय था। पर जन्नत से लौट कर तो पांडव नहीं आए कभी, मैं कैसे लौट जाऊँ।
वह उठ कर थोड़ा आगे चली और उसने झुक कर जमीन से थोड़ी मिट्टी उठा ली। पहाड़ों में उसकी नजरें जाने किस बिन्दु पर ठहरी हुई थी। वह अपनी हथेलियों से मिट्टी को मसल रही थी। उसने फिर धीरे-धीरे बाएं से दायें देखा, जैसे इन पहाड़ों को अपनी आँखों में भर रही हो। ताकि वापिस जाकर फिर उन्हें देख सके। मैं अपनी ठुड्डी पर हाथ टिकाए बस उसे देखता रहा। थोड़ी देर टहलने के बाद वह फिर बेंच पर आकर बैठ गई।
“तुम्हें पता है यहाँ से थोड़ी दूर गंधक के चश्मे हैं?”
“हाँ”
“और वहाँ उस पहाड़ के पास नीलम घाटी है, यहाँ से लगभग 6-7 दिन का ट्रैक है।”
“आप जा रही हैं ट्रैक पर?”
“हाँ, कल सुबह।“
“वॉव, मैं कल सुबह वापिस जा रहा हूँ। यहाँ 5 दिन से था।“
“अच्छा। कैसा लगा यहाँ आकर?”
“मैंने यह सीखा कि प्रकृति की सुंदरता जरूरी है पर काफी नहीं। यह सब बैकग्राउंड है। आप ज्यादा समय तक कुछ किए बिना नहीं रह सकते।“
“हाँ। किसी ने कहा है कि स्वर्ग की सुंदरता भी आधी रह जाएगी अगर तुम्हारे साथ उसे साझा करने के लिए कोई ना हो।“
“तो आपके साथ कौन है?”
“कोई नहीं?”
“बॉयफ्रेंड?”
“था। अब नहीं।“
“ब्रेकअप?”
“नहीं। कार एक्सीडेंट।“
“ओह नो। सॉरी।“
“उस दिन वेलेंटाइन डे था। हमारा शाम में रेस्टोरेंट जाने का प्लान था। वह मुझे लेने आ रहा था। जब वह ड्राइव कर रहा था तो मैंने उसे फोन किया। फोन को जेब से निकलते हुए उसका ध्यान भटका और सामने से आते हुए ट्रक से बचने के चक्कर में उसकी कार पहाड़ से नीचे गिर गई।“
“दिस इज रियली सैड।“
“2 साल हो गए इस बात को। आज भी उसकी लाश मेरे कंधे पर है। अगर उस समय मैं उसे फोन ना करती तो..”
“यार जो होना है उसे नहीं टाल सकते हम।“
“हाँ, शायद। इसलिए मैं इन पहाड़ों पर चढ़ती उतरती रहती हूँ, ताकि मेरे साथ सौरभ भी घूम ले। ताकि मैं इतना थक जाऊँ कि ज्यादा सोच ना पाऊँ। सौरभ को पहाड़ बहुत पसंद थे। कहता था, यहीं कहीं एक मकान बना कर रहेंगे। जो चीज हमें सबसे ज्यादा पसंद होती है, वही हमें मार डालती है।“ उसने अपने पर्स से एक लड़के कि फोटो मुझे दिखाई और फीकी सी मुस्कान के साथ फिर वापिस रख ली।
मेरे पास कहने को कुछ था नहीं। वह उठी, बाय बोला और चली गई।
मैं थोड़ी देर वहीं बैठा रहा। अब हल्का अंधेरा छाने लगा था। मुझे अभी 2 किलोमीटर पैदल जाना था। पर जाने क्यों मुझे अब तेंदुए का डर नहीं लग रहा था। मैंने पंचचूली कि तरफ देखा, उनका सोना पिघल चुका था और अब बस वें धूसर मिट्टी के ढेर थे। मैं फिर से अश्वत्थामा के बारे में सोचने लगा। कितना अकेला होगा ना वह…
-गौरी शंकर
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