शिव-लिंग" की धार्मिक सामाजिक व्याख्या
"
मेरे घनिष्ठतम् मित्र कुँवर प्रताप सिंह के सौजन्य से-शिवलिंग का असली अर्थ जानिए ...और#शेयरकीजियेलिंग के नाम पर अनेख भ्रांतियों को तोड़ता ये लेख ,लिंग के सही अर्थ को समझाता ये लेख जरुर पढ़े अपने मित्रो को भी बतलाए।।लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते है..छोटे छोटे बच्चो को बताते है कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजाकरते है..बेवकुफो को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और छोटे छोटे बच्चो को हिन्दुओ के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते है…इसका अर्थ इस प्रकार है..पहले भाषा का ज्ञान ले......लिंग>>>लिंग का संस्कृत भाषा में चिन्ह ,प्रतीक अर्थ होता है…जबकी जनर्नेद्रीय (मानव अंग ) को संस्कृत भाषा मे (शिशिन) कहा जाता है..शिवलिंग >>>शिवलिंग का अर्थ शिव का प्रतीक…." शिवलिंग " शब्द में ' लिंग ' शब्द दो शब्दों से बना है, " लीन + गा (गति) " अर्थात, शिव में लीन होकर ही मनुष्य को गति प्राप्त होता है;यानी, शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है।तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है, शिवलिंग!शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का 'प्रतीक' मात्र है, जो परमात्मा - आत्म-लिंग का द्योतक है।शिवलिंग शाश्वत-आत्मा का स्वरूप है, जो न जल से प्रभावित होता है,न अग्नि से, न पृथ्वी से, न किसी अस्त्र-शस्त्र से... जो अजित है, अजेय है!शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है, शिवलिंग।>>पुरुषलिंग का अर्थ पुरुष का प्रतीकइसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ स्त्री का प्रतीक औरनपुंसकलिंग का अर्थ है ..नपुंसक का प्रतीक —-
अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए…और खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे—-”शिवलिंग”’क्या है >>>>>शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है नाही शुरुवात |—-शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ..दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है|खैर…..जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं|उदाहरण के लिए………यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो…….सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है| जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि |उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी |ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ |हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान हैअब बात करते है योनि शब्द पर —-मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनि”’पत्थरयोनि”’ >>>>योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है..जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है..कुछ धर्म में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है ..इसीलिए योनि शब्द केसंस्कृत अर्थ को नहीं जानते हैजबकी हिंदू धर्म मे ८४ लाख योनी यानी ८४ लाख प्रकार के जन्म हैअब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया है कि धरती मे ८४ लाख प्रकार के जीव (पेड, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है….मनुष्य योनी >>>>पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है..अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता ह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें