कीटो की इंसानियत / virendra Sengar
कीटो की इंसानियत / virendra Sengar
आज मैं यहां किसी दोपाया इंसान की बात नहीं कर कर रहा।इस नये भक्ति युग में इंसानियत लगातार छीजती जा रही है।तमाम संवेदनहीन किस्से ,अब हमको बहुत चौंकाते नहीं है।लालच और खुदगर्ज़ी ने लोगों से इंसानियत काफी हद तक छीन ली है।देश विकास कर रहा है।लोग स्मार्ट होते जा रहे हैं।धर्म की पैठ बढ़ी है।
करीबी रिश्तों में भी मोह ममता सूखती जा रही है।अंध तकनीकी विकास में शायद हमारे दिल का भी डिजिटलीकरण हो रहा है।जिससे करुणा और स्नेह जैसी भावनाओं का रस काफी सूखा है। निस्वार्थ स्नेह का संसार तेजी से रूखा हुआ है।भक्त काल में ये बीमारी तेज हुई है।
इस दौर में इंसान जरूर लोभी, कुटिल व धर्मांता की तरफ बढा़ है।लेकिन आदमी के करीब रहने वाले पालतू जानवर और पक्षी इंसान से संक्रमति नहीं हुए।
हमारे प्यारे बिल्ले कीटो को ही देख लेजिए।वो कल दोपहर से बहुत उदास है।भूख हड़ताल पर है।क्योंकि उसके साथ के बिल्ले टाको को हमने कल नोएड़ा के फ्लैट के लिए रवाना कर दिया है।क्योंकि वो ज्यादा केयर मांगता है।मैं पहाड़ के अपने हरे भरे गांव में कीटो जी के साथ रह गया हूं।
कोई आए जाए या बिछुड़े।अब करीबियों को भी कहां ज्यादा अंतर पड़ता है+बशर्तें आप के उससे ज्यादा स्वार्थ न जुड़े हों।देखा जाए, तो कीटो के सीधे स्वार्थ टाको से नहीं है।वह विदेशी नस्ल का है।देखने में सफेद है।बहुत सुंदर है।उसे सबका ज्यादा दुलार मिलता है।
कीटो धूसर देशी नस्ल का है।बहुत निडर और घर के बाहर खेतों और जंगल में विचरण करने वाला है।क ई बार रात में भी नहीं लौटता।लेकिन आते ही टाको को छोटे भाई की तरह जमकर चूमा चाटी करता है।इसमें सेवा भाव ज्यादा रहता है।जंगली बिल्लों से उसकी रक्षा, जान की बाजी लगाकर भी करता है।इस चक्कर में क ई बार लहू लुहान भी चुका है।
कीटो रफटफ है, लेकिन दुबला है।टाको की तरह से गोल मटोल नहीं है।टाको बेहद डरपोक है ,लेकिन सबका चहेता है।कल से कीटो को टाको नहीं दिखा।मानकर चल रहे थे,जानवर है घंटे दो घंटे में सब कुछ भूल जाएगा ।
लेकिन ये क्या, कीटो दर्दीली आवाज निकाल कर मुझसे जैसे पूछ रहा है, उसके छोटू को कंहा भेज दियाः उसे बहलाने के लिए उसके मन पंसद फूड पैकेट दिए, लेकिन उसने घंटों सूंघा तक नहीं।मुझे गुस्से से घूरता रहा ,जैसे कि उसका मैं ही अपराधी हूं।उसने गुस्सा जताने के लिए नुकीला पंजा भी मारा।बगैर कुछ खाए, भाई के गम में आज अल सुबह ही जंगल चला गया है।सात घंटे हो गये लौटा नहीं।सोचता हूं, अब आमतौर पर अपने करीबियों से बिछुड़ने पर हम इंसान भी इतने गमगीन अब कहां होते हैंः लेकिन मूक जानवरों में अभी ज्यादा इंसानियत बाकी है।मैं गलत तो नहीं ,बताइये।
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