मंगलवार, 30 अगस्त 2022

गुलज़ार

 गुलज़ार साहब को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं


एक नर्म, मुलायम, संवेदनशील एहसासात के nरचयिता का नाम है गुलज़ार। सीधे शब्दों में कहा जाय तो वह यह कि "धड़कती हैं गुलज़ार साहब की नज़्में और कविताएं" ।

वैसे इनकी नज़्मों और कविताओं में जो दर्द झलकता है वह उनके अपने जीवन का भोगा हुआ यथार्थ है। एक तो देश के विभाजन की जिस त्रासदी को उन्होंने झेला वे ताउम्र उससे पीछा छुड़ा न सके और वही त्रासदी जब तब उनकी नज़्मों में दर्द बन कर छलक जाती। इनका जन्म हुआ था झेलम जीले का एक गाँव "दीना" में  जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में चला गया और वहां से इनके पिता नें सब कुछ छोड़ कर भारत ,अमृतसर आने का फैसला किया। 

उस घटना की याद इनके दिल से नहीं निकल सकी जो इनकी कलम से इस तरह फिल्म माचिस के गीत में बयां हुई


"यहाँ तेरे पैरों के कंवल गिरा करते थे

हंसें तो दो  गालों में भंवर पड़ा  करते थे

छोड़ आए हम वो गलियां "


दूसरा यह कि राखी जी से शादी तो की उन्होंने लेकिन साल भर के बाद ही वैचारिक असमानता के कारण वे दोनों एक दूसरे से एक बेटी के जन्म के बाद अलग हो गए। बेटी के लिए इन्होंने लिखा 


"बूँद गिरी है ओस की, जिसका नाम है बोस्की"


हालांकि उन्होंने आपस में तलाक नहीं लिया। और मन से एक दूसरे से जुड़े रहे जिसे इनके इस नज़्म से  समझा जा सकता है जो इन्होंने लिखा 


"हाँथ छूटे भी रिश्ते नही छोड़ा करते 

वक्त की शाख से लमहे नहीं तोड़ा करते"


लेकिन एक दूसरे से अलग होने की टीस इनकी नज़्मों और गीतों में हमेशा बरक़रार रही 


"शाम से आँख में नमीं सी है 

आज फिर आपकी कमी सी है"


मोटर गैराज से ऑस्कर अवार्ड तक के सफर में कवि, लेखक,  फिल्म निर्देशक, निर्माता के पायदानों पर आगे  बढ़ते हुए इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।


"फिर एक सफ़ा पलट कर उसने बीती बातों की दुहाई दी है 

फिर वहीं लौट कर जाना होगा यार ने ये कैसी  रिहाई दी है "


वैसे इन्होंने  कुछ हल्के फुल्के गीत भी लिखे जैसे फिल्म बंटी और बबली का 

"कजरारे कजरारे तेरे कारे कारे नैना"


या फिल्म ओमकारा की 


" बिड़ी जलाईले जिगर से पिया"


या बच्चों के लिए फिल्म मोगली का 


"जंगल जंगल बात चली है पता चला है

चड्डी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है"


इन सब के बावजूद  गुलज़ार साहब और राखी जी एक बाॅडिंग शेयर करते हैं जो इनके इस शेर से साफ पता चलता है।


"उम्रें लगी कहते हुऐ दो लब्ज़ थे एक बात थी

वो एक दिन सौ साल का, वो सौ साल की एक रात थी"


माला सिन्हा

Mala Sinha

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