गुरुवार, 4 अगस्त 2022

डॉन,दरियागंज,जिन्ना / विवेक शुक्ला

 डॉन,दरियागंज,जिन्ना


आप डिलाइट की तरफ से जायें या फिर गोलचा की ओर से, दरियागंज टेलीफोन एक्सचेंज के पीछे छत्ता लाल मियां में पहुंचने में पांच-सात मिनट से ज्यादा नहीं लगेंगे। यहां से छपता था मोहम्मद अली जिन्ना का अखबार दि डॉन। 75 साल पहले अगस्त,1947 का महीना शुरू हो चुका था।  पाकिस्तान 14 अगस्त को दुनिया के नक्शे पर आ रहा था। अभी तक दि डॉन का कुछ स्टाफ पाकिस्तान जाने को लेकर मन नहीं बना सका था। आखिर अपना शहर, घर,दोस्तों, संबंधियों को छोड़ना कोई आसान तो नहीं होता।

 पर जिन्ना की नये बनने वाले मुल्क में जाने की तारीख  तय थी। वे अब किसी भी दिन सफदरजंग एयरपोर्ट से कराची के लिए रवाना होने वाले थे। जिन्ना अपना 10 औरंगजेब रोड का बंगला अपने मित्र रामकृष्ण डालमिया को बेच चुके थे।  जिन्ना ने सन 1941 में राजधानी से अपनी मुस्लिम लीग का मुखपत्र 'दि डॉन' का प्रकाशन चालू किया था। इसके पहले संपादक बने पोथेन जोसेफ।  जिन्ना पोथेन जोसेफ के काम से नाखुश ही रहे। दोनों में मतभेद भी रहने लगे थे। इसलिए जोसेफ ने दि डॉन को छोड़ दिया।  उनकी जगह पर आए कोलकत्ता के युवा पत्रकार अल्ताफ हुसैन।


 अल्ताफ हुसैन ने जिन्ना के मन-मुताबिक अखबार निकाला। इसमें जिन्ना के भाषण,बयान,कार्यक्रम, फोटो ही मुख्य रूप से छपते थे। यह आठ पेज का निकलता था। सेंट्रल न्यूज एजेंसी (सीएनए) के मालिक आर.पी. पुरी साहब ने दि डॉन को बतौर हॉकर के बेचा भी था। वे बताते थे कि दि डॉन को आमतौर पर अंग्रेजी जानने वाले मुस्लिम लीग की विचारधारा से प्रभावित परिवारों में जाता था। इसका का कंटेंट जहरीला ही रहता था। इसमें विज्ञापन भी ज्यादा नहीं होते थे।


 इस बीच, जिन्ना 7 अगस्त,1947 को अपनी छोटी बहन फातिमा जिन्ना, एडीसी सैयद एहसान और बाकी करीबी स्टाफ के साथ कराची के लिए रवाना हो रहे थे । उस दिन दिल्ली में उमसभरा मौसम था। इसके बावजूद जिन्ना ने शेरवानी पहनी हुई थी।  वे पिछले आठ वर्षो से दिल्ली में अपने शहर बंबई ( मुंबई) से ज्यादा रहे थे। उन्हें औरंगजेब रोड से एयरपोर्ट तक पहुंचने में दसेक मिनट भी नहीं लगे होंगे। तब सड़कों पर ट्रैफिक होता ही कहां था। उन्हें एयरपोर्ट पर छोड़ने के लिए गिनती के ही उनके समर्थक पहुंचे हुए थे। तब तक सफदरजंग एयरपोर्ट के पास के एरिया जैसे जोर बाग,आईएनए कॉलोनी, एम्स वगैरह नहीं बने थे। ये सब 1950 के दशक में बने। रिंग रोड भी नहीं थी। कह सकते हैं कि उनकी दिल्ली से विदाई फीकी रही थी।


 बहरहाल, दिल्ली में दि डॉन का प्रकाशन 11 अगस्त,1947 तक जारी रहा। उस दिन दिल्ली से दूर कराची में जिन्ना ने एक रेडियो प्रसारण  में कहा था कि पाकिस्तान में सबको अपने मंदिरों- मस्जिदों में जाने का हक होगा। जिस शख्स के कारण धर्म के नाम पर देश बंट रहा था वह अब धर्मनिरपेक्षता पर ज्ञान दे रहा था। 


जिन्ना जब दिल्ली से जा रहे थे तब ही यहां और आसपास के शहरों में सांप्रदायिक दंगे भड़के हुए थे। पर उन्होंने कभी कहीं जाकर दंगा रूकवाने की चेष्टा नहीं की। पहाड़गंज और करोलबाग जैसे इलाकों में दंगों ने भयानक रूप ले लिया था। जिन्ना ने पाकिस्तान में जाकर भी यह नेक काम नहीं किया था। और अब  छता लाल मियां में दि डॉन की इमारत के अवशेष भी नहीं मिलते। वहां पर नए-नए फ्लैट बन चुके हैं। अब मीर मुश्ताक अहमद जैसे पुराने दिल्ली वाले भी नहीं मिलते जो दिल्ली-6 के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे। वे दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद (मुख्यमंत्री के समकक्ष) भी रहे थे।

Vivek Shukla, Navbharattimes, August 4, 2022.

Pictures- P. JOSEPH AND RP Puri

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