बुधवार, 7 अप्रैल 2021

शहीद किसान कन्या खेमचंद प्रकाश और अन्य कथाएं

जब संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने इस फिल्म' महल 'के  गीत 'आएगा आने वाला' की धुन बनाई तो इसके बारे में दोनों निर्माताओं की राय विभक्त थी निर्माता सावक वाचा को यह धुन बिल्कुल पसंद नहीं आई जबकि अशोक कुमार को यह धुन 'आएगा आने वाला' अच्छी लगी अशोक कुमार और सवाक वाचा दोनों इस फिल्म के निर्माता थे ...

...खेमचंद्र प्रकाश के संगीत में बनी इस फिल्म के गाने बहुत लोकप्रिय हुए जब जब भी फिल्म महल में में घडी की पेंडलुम रुकती है तो ये गाना "आएगा आने वाला' आता" है जो दर्शको को भीतर तक सिहरन पैदा कर देता है ...


खेम चंद प्रकाश उन संगीत निर्देशकों में अग्रणी माने जाते है जिनकी संगीत निर्देशन में सुर कोकिला लता मंगेशकर ने अपने कॅरियर की शुरुआत की थी ...


आज संगीत निर्देशक खेम चंद प्रकाश की पुण्य तिथि पर विशेष ....


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Music Composer-  Khemchand Prakash


Died: 10 August 1950, Mumbai


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'पैगाम 'एक शानदार फिल्म है जो मनोरंजन के साथ साथ देश और समाज सबको साथ लेकर चलने का सन्देश देती है


जैमिनी फिल्म्स की 'पैगाम 'में मजदूरो और मिल मालिको के बीच के संघर्ष को एक प्रेम कहानी के साथ दिखाया गया था.....बाद में एस.एस. वासन और शिवाजी गणेशन ने Irumbu Thirai के रूप में तमिल में 'पैगाम' का रीमेक भी बनाया जो सफल रहा जिसमे दलीप कुमार का रोल शिवाजी गणेशन ने और वैजयंती माला का रोल सरोजा देवी ने निभाया फिल्म का कथानक हिंदी वाली पैगाम जैसा ही था शिवजी गणेशन की ये तमिल फिल्म दक्षिण भारत में आज भी बड़े चाव से देखी जाती इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इसके गीत सुने जाते है लेकिन इस तमिल वर्जन में वामपंथ की छाया दिखती है


फ़िल्मी दुनिया के इतिहास में इस फिल्म को लंबे समय तक राजकुमार और दलीप कुमार जैसे महानायको की अदाकारी के लिए याद रखा जायेगा दोनों अभिनय के दिग्गज़ों को एक साथ सुनहरी परदे पर देखना सुखद लगता है राजकुमार और दलीप कुमार जब जब भी परदे पर आते है छा जाते है दोनों की अलग अलग शैली की संवाद अदायगी प्रभावित करती है लेकिन दुखद पहलू ये है की दर्शको को ऐसा मौका फिर दुबारा नहीं मिला क्योंकि अरसे बाद फिल्म 'सौदागर 'में दलीप साहेब की भाषा शैली बदली हुई थी उर्दू में महारत हासिल दलीप साहेब के संवाद ठेठ देहाती बोली में थे ऐसा क्यों हुआ ? इसका 'सौदागर 'के निर्माता सुभाष घई को बेहतर पता होगा ?


पवन मेहरा ✒

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संगीतकार बसंत देसाई के मधुर संगीत से सजी फिल्म 'गूँज उठी शहनाई ' हिंदी सिनेमा के संगीत प्रेमियों के लिए किसी अनमोल तोहफे से कम नहीं है....... इस फिल्म की सफलता में संगीतकार बसंत देसाई के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा उन्होंने फिल्म की साधारण से कहानी को फिल्म के गीतों के साथ बड़ी खूबसूरती से पिरोया है 'गूँज उठी शहनाई ' के सभी गीत क्लासिक है और बसंत देसाई ने शास्त्रीय रागो को आधार बना सूंदर गीतों की रचना की गई है जिसे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई एक अलग मुकाम देती है हालाँकि इस शहनाई वादन के असली हक़दार संगीतकार 'रामलाल' थे जिनको फिल्म में निर्माता विजय भट्ट ने उचित सम्मान नहीं दिया गया कहते है इस उपेक्षा से राम लाल इतने आहत हुए की उन्होंने फिल्म 'गूँज उठी शहनाई ' जीवन भर नहीं देखी ....


आज महान संगीतकार बसंत देसाई की जयंती ( 9 जून 1912 ) पर हम उन्हें उनकी फिल्म 'गूँज उठी शहनाई ' के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि पेश करते है ....🌹🌹🌹


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पवन मेहरा ✒

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मुबारक बेगम ...पुण्यतिथि पर विशेष (18 जुलाई 2016 )


मुबारक बेगम पैसे में ज्यादा संगीत में अधिक रुचि रखती थी यही कारण है की उनके हिस्से में कम फिल्में आई और जो फिल्में उन्होंने की उसमे जयादातर फिल्में सी और बी ग्रेड की थी  ....गाने भी चले पर उनका कोई विशेष लाभ मुबारक बेगम को नहीं मिला संगीतकारों और गायको की स्पर्धा में इंडस्ट्रीज़ में बने रहने की गुर उन्होंने सीखे नहीं लिहाज़ा वो उनकी राजनीति का शिकार भी हुई ....बॉलीवुड के साथ इतने साल गुजारने वाली मुबारक को वहां से भी कोई आसरा नहीं मिला और वह गुमनामी के अंधेरों में खोती चली गईं बेकारी के साथ मुफलिसी ने उनका दामन थाम लिया...... सैकड़ों गीतों और ग़ज़लों को मुबारक बेगम ने अपनी आवाज दी थी जिसके लिए उन्हें याद किया जाता रहेग ....भले ही मुबारक बेगम की आवाज के दीवाने दुनियाभर में फैले हुए हैं। लेकिन उनके अपने पड़ोसी विश्वास नहीं कर पाते कि थे यह बूढ़ी, बीमार और बेबस औरत वह गायिका थी जिसके गीत कभी कारगिल से कन्याकुमारी तक गूंजते थे।.....


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पवन मेहरा


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सआदत हसन मंटो के एक उपन्यास पर आधारित 'किसान कन्या' (1937 ) भारत की पहली रंगीन फिल्म है जिसमें मास्टर निसार और पद्मादेवी ने अभिनय किया था ........1933 में व्ही शांताराम द्वारा भारत की पहली रंगीन फिल्म सैरंधी (मराठी )' के बनाने का सपना असफल होने के 6 साल बाद अर्देशिर ईरानी की  'किसान कन्या' परदे पर आई  ...1933 में फिल्म सरैंधी को रंगीन बनाया जरूर गया था लेकिन भारत में रंगीन फिल्म प्रदर्शित करने वाले सिनेमा घर और शक्तिशाली कार्बन युक्त प्रोजेक्टर नहीं थे नहीं थे फिल्म रिलीज़ हुई तो परदे पर धुंधली दिखती थी वही शांताराम का प्रयोग असफल रहा इस प्रकार कुछ फिल्म समीक्षक 1932 में रिलीज़ हुई मदन फिल्म्स की मूक फिल्म 'बिल्वमंगल 'को भी रंगीन फिल्म कह प्रचारित कर रहे है ये सही नहीं है प्रिंसेज़ कूपर ,मोहम्मद इशाक ,अब्दुल रहमान काबुली अभिनीत फिल्म 'बिल्वमंगल ' ब्लेक एंड वाइट थी ....इस प्रकार अर्देशिर ईरानी को भारत में 'आलम आरा '(1931 )और 'किसान कन्या (1937)'फिल्मो के माध्यम से हमारी फिल्मो में आवाज़ देने और रंग भरने का गौरव हासिल है ...मगर इतनी मेहनत के बाद भी फिल्म 'किसान कन्या 'को जैसी व्यावसायिक सफलता मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिली भारत की पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या ' मास्टर निसार के जीवन में अंधकार ले कर आई 'किसान कन्या 'के असफल होने के बाद वो गुमनामी के अँधेरे में खो गए आर्थिक परेशानियों के चलते उन्हें दलीप कुमार के साथ लीडर ,कोहिनूर आज़ाद जैसी फिल्मो में छोटे छोटे रोल कर गुज़ारा करना पड़ा ..


 भारत की पहली रंगीन फिल्म होने का गौरव 'किसान कन्या 'को प्राप्त है लेकिन रिलीज़ से पहले से बवाल हो गया इस रंगीन फिल्म में बंगाली नायिका पद्मादेवी का सौन्दर्य परदे पर कुछ इस तरह उभर कर सामने आया की ब्रिटिश हकूमत को 'किसान कन्या 'उत्तेजक और अश्लील लगी और उन्होंने इसे पास करने से ही मना कर दिया ...मगर फिर भी आज रंगीन सिनेमा के मामले में हम भले ही डिजिटल युग में प्रवेश कर गए हो लेकिन मास्टर निसार की भारत की पहली रंगीन फिल्म की यादे भुलाये नही भूलती ....


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पवन मेहरा


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...शहीद -1965


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एक बार स्कूल में एक नाटक जब  मनोज कुमार भगत सिंह बने तो स्टेज पर घबराहट से उनके मुंह से कोई संवाद ही नहीं निकला उनके पिता जी ने मजाक में कहा '' जा यार तू तो नकली भगत सिंह भी नहीं बन सका '' ........ये बात मनोज कुमार के जेहन में थी इसलिए उन्होंने जब शहीद फिल्म बनाने की सोची तो भगत सिंह खुद बने ......उस समय इंटरनेट का युग का नहीं था इसलिए मनोज कुमार ने 'शहीदे आज़म भगत सिंह ' पर जितना भी साहित्य उपलब्ध था उसे पढ़ा और गहन रिसर्च की भगत सिंह के परिवार वालो से भी मिले फिल्म के प्रीमियर पर भगत सिंह जी की माता विद्यावती जी और लाल बहादुर शास्त्री जी को भी आमंत्रित किया गया था ......बस एक कमी ये हैं की 'शहीद 'फिल्म का रंगीन न होना  जबकि उस समय भारत में रंगीन फिल्मो के बनने का सिलसिला शुरू हो चुका था ..  बावजूद इसके भगत सिंह पर अभी तक बनी फिल्मो में से मनोज कुमार की 'शहीद 'सबसे अच्छी मानी जाती है


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अभिनेता 'मनोज कुमार 'के जन्मदिवस ( 24 जुलाई 1937 ) पर विशेष


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पवन मेहरा ✒


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