मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

रवि बुले का आखेट

 खानदानी मूंछ और पुश्तैनी बंदूक के साथ रवि बुले

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एक हैं नेपाल सिंह। खानदानी आदमी हैं। उन्हें  मूंछें बहुत प्रिय हैं। झुक जाए तो ब्लड प्रेशर लो जैसा महसूस होता है। तन जाए तो दीवार पर टंगी पुश्तैनी बंदूक हाथ में आ जाती है। हवेली नुमा घर है। पोस्टऑफिस की लगभग बड़ी सी नौकरी है। जैसा कि खानदानी आदमी के साथ होता है, उनके बचपन में ही  उनके खानदानी पिता ने किसी और 'पिता' को  एक वचन दिया था ।  नेपाल सिंह की जिंदगी में शादी का मौसम आया तो  खानदानी पिता समेत पूरे घर को उस वचन की याद आई।  वचन देने वाला पिता और वचन लेने वाला पिता 'बैंड बाजे और बरात' के बीच समधी बन गए। शहर में पढ़े-लिखे और खानदान के नाम को रोशन करने के लिए बेकरार नेपाल सिर धुनते और पैर पटकते रह गए-"इतना पढ़ाया लिखाया , कम से कम ग्रेजुएट लड़की से तो शादी कराते।" लेकिन उस दिन उन्हें समझ में आ गया कि मूंछ ग्रेजुएशन से बड़ी चीज तो है ही,  परिवार में उससे भी एक बड़ी चीज है-"प्राण जाए पर वचन ना जाए!"

पिता के वचन निभाने के 'आन-बान और शान'  में अपने दाम्पत्य जीवन से करीब-करीब उखड़ चुके नेपाल सिंह के पास सुनाने के लिए खानदान के और भी कई किस्से हैं, जो पोस्टऑफिस में बैठे-बैठे अक्सर अपने साथियों को सुनाया करते हैं। उनके खानदानी शौर्यखाने में एक किस्सा बाघ के शिकार का भी है-"हमारे खानदान में किसने नहीं मारा बाघ....परदादा...दादा....बाप...सबने...एक हम ही रह गए।"


एक हम ही रह गए...इसी  मलाल पर दोस्त रवि बुले की नई फिल्म 'आखेट' खड़ी है। निर्देशन के साथ-साथ संवाद भी बुले जी ने ही लिखा है। कलाकारों में आशुतोष पाठक, रजनीकांत सिंह ,तनिमा भट्टाचार्य नरोत्तम बैन, प्रिंस निरंजन मुख्य हैं।


...और एक दिन अपनी जिंदगी के सबसे बड़े मलाल को पीछे छोड़ने के लिए नेपाल सिंह अपनी बंदूक के साथ बाघ के शिकार पर निकल पड़ते हैं। वह  बेतला के जंगलों में पहुंच जाते हैं। जंगल जाने के लिए उन्हें मुर्शिद का साथ मिलता है। इस प्रसंग में मुर्शिद की जिंदगी के कई अधढके प्रसंग सामने आते हैं। उसकी अघोषित पत्नी जुल्फिया के कई राज सामने आते हैं, लेकिन बार-बार जंगल में जाने के बावजूद बाघ सामने नहीं आता। 

अपने बिना चले बंदूक के साथ लौटते हुए नेपाल सिंह को मुर्शिद का एक वाक्य याद आता रहता है-"वहां जाकर किसी को बताइयेगा नहीं कि जंगल में बाघ नहीं बचे ।" 

नेपाल सिंह अपनी बंदूक फेंक देता है।

 इस कहानी को रवि बुले ने  'सहज साधन' के बल पर निर्देशित कर देखने और सोचने योग्य बनाया। उनके निर्देशीय कौशल को निश्चित रूप से एक बड़े बजट की फिल्म का इंतजार करना चाहिए। आशुतोष पाठक नेपाल सिंह के किरदार में जमे हैं। 


बाघ को बचाना क्यों जरूरी है और मुर्शिद ने ऐसा क्यों कहा-"वहां जाकर किसी को बताइयेगा नहीं कि जंगल में बाघ नहीं बचे? इसे रवि बुले आपने बहुत कलात्मक ढंग से समझाया है....बधाई!

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