आज के समय में भगवान दादा की पहचान सिर्फ दो हिस्सों में बंध गई हैं एक ओर उन्हें अमिताभ बच्चन के आइकॉनिक डांस का जनक माना जाता है दूसरी तरफ उनकी कहानी फिल्मी सितारों के अर्श से फर्श तक पहुंचने के एक बड़े उदाहरण के रूप में सुनाई जाती है l
की ये दोनों पहचानें अपनी-अपनी जगह पर बिलकुल पुख्ता हैं मगर हिंदी सिनेमा में बहुत कुछ ऐसा है जिसकी नींव भगवान दादा की रखी हुई है उनका असली नाम 'भगवान आभाजी पालव ' था आज उन्हें हास्य अभिनेता के रूप में याद किया जाता है मगर भगवान दादा हिंदी सिनेमा में अपने एक्शन खुद करने वाले शुरुआती लोगों में से एक थे
1951 में ‘अलबेला’ के साथ दो फिल्मे और रिलीज हुईं, आवारा,और बाजी तीनों फिल्मों ने हिंदी सिनेमा को तीन आइकॉनिक सुपरस्टार दिए. राजकपूर, गुरुदत्त और भगवान दादा.... इन फिल्मों में तीनों का अंदाज एक दूसरे से बिलकुल जुदा था और तीनों की किस्मत भी एक दूसरे से बिलकुल जुदा थी.....फिल्म ‘अलबेला’ ने दादा को खूब शोहरत दिलवाई. ‘शोला जो भड़के’ और ‘भोली सूरत दिल के खोटे’ जैसे गानों में किए गए अलबेले डांस को अमिताभ बच्चन, गोविंदा, मिथुन जैसे अभिनेता अपनाते रहे है ...'अलबेला 'भगवान दादा के जीवन में पैसों की बरसात लेकर आई दादर की दो कमरों की चॉल से जुहू बीच पर 25 कमरों के बंग्ले का सफर दादा ने तय किया.....लेकिन ये कामयाबी ज्यादा समय तक नहीं रही और भगवान दादा को शोहरत चमत्कार की तरह मिली और उसी तरह से रूठी भी ......देखते ही देखते भगवान दादा दादर की उसी चॉल में वापस आ गए जहाँ से उन्होंने अपना सफर शुरू किया था .........मगर ग़ुरबत और मुसलिफी में भी उनकी लोकप्रियता का आलम ये था की हर साल दादर के गणपति विसर्जन के समय थोड़ी देर के लिए विसर्जन दादर की उस चॉल के सामने रुकता था. दादा बाहर निकलकर अपना सिग्नेचर डांस करते थे, फिर विसर्जन आगे बढ़ता था....
आज हिंदी सिनेमा की आइकॉन हस्ती 'भगवान दादा 'की जयंती (1-अगस्त 1913) है ..🌷🌷🌷
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पवन मेहरा ✒
#ब्लॉग_सुहानी_यादें_बीते_सुनहरे_दौर_की.
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