शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल-4





इसी साल मनु साहब भूत भी हो सकते हैं।

मनमोहन जी के दिन लगभग लद चुके हैं। सहन और बर्दाश्त करने की भी सारी लक्ष्मण रेखाएंपार हो गयी है। पंजा पार्टी में लोगों का सब्र टूट रहा है। लोगों की निगाह मैड़म की तरफ है कि कुछ करो। ज्यादातरों को राहुल बाबा के संत भाव से भी बड़ी शिकायत है। देश भर में (प्रायोजित) हंगामा करने वाले बाबा से भी इनके रसोईघर के बैठकियों ने कहना चालू कर दिया है कि अभी नहीं तो कभी नही। अभी ढाई साल बाकी है। युवा फेस और युवा तेवर से जनता सब भूल जाएगी। रही बात संगठन की तो मन साहब के रहते तो जब पार्टी ही ना रहेगी  तो फिर संगठन का क्या होगा। यंग सलाहकारों ने तो यहां तक कहने का (दुस्साहस) कर दिया कि अभी नहीं तो 2019 से पहले का चांस नहीं लगता। तब तक तो आपके यंग फेस का जादू भी उतर जाएगा। बेडरूम में भी बेधड़क प्रवेश करने वाली एक सूत्र की माने तो मैड़म भी सब जान और मान भी रही है। सारे हालात ठीक रहे तो इस साल दीपावली तक जोरदार हंगामा हो सकता है।  यानी देश भर मे भाई बहन की जोड़ी सत्ता में आकर देश को फिर से मोहित (ठगने) की कोशिश करेंगी, यानी अपने मनु साहब जल्द ही भूत (पूर्व) हो सकते हैं।।

किसके भरोसे बैतरणी

मनमोहन सरकार अब देश को मोहित करने वाली मनमोह(ना)  सरकार नहीं रही। यूपीए के तमाम घटकों में यह सुगबुगाहट जोर पकड़ने लगी है कि 2014 की वैतरणी किसके सहारे ?  मैडम के देश से बाहर होने की वजह से मनमोहन के बाद की संभावनाओं पर भी सुगबुगाहट जोर पकड़ रही है। (भीतर) घाघों को भी मात देने में माहिर पंजा छाप के चेलों समेत कमल सरीखे साफ सुथरे नेताओं वाली पार्टी में भी नये चेहरों की तलाश शुरू हो गयी है। एक तरफ मनमोहन के गिरते ग्राफ को दिखाकर  अपने ना- ना कहने वाले राहुल बाबा को फोकस किया जा रहा है, तो दूसरी तरफ पीएम प्रत्याशी के रूप में गुजरात के नरेन्द्र मोदी के नाम हवा में है। गोधरा में भले ही मोदी के नाम होने की वजह से ज्यादातर भाजपाईयों को ही मोदी नागवार लगे, मगर देश भर में मोदी के नाम पर एक माहौल तो बन ही सकता है। खासकर एक सख्त और दबंग प्रशासक (भले ही अपनों को यह पसंद ना हो) के रूप में जनता की पंसद हो सकते है। यानी भावी चेहरों की तलाश का क्या अर्थ निकाले ? मिडटर्म पोल या 2014 का पूर्वाभ्यास ?

किससे खतरा है मन साहब

यूपीए सरकार इस समय अधर में है। बहुत अधिक बोलने की नौकरी करने वाले कुछ नेताओं की वजह से (जरूरत से भी कम) बोलने वाले अपने (बे अ) सरदार मनमोहन सिंह सांसत में है। इन पर रोजाना आरोपों की माला पहनाने का सिलसिला चालू हो गया है। इनकी ईमानदारी का ग्लोबल फेम ढोलक भी फट कर पैच से भर चुका है। इनका भोलापन भी अब बमभोला सा दिखने लगा है। इनके शासन को आजादी के 65 साल का सबसे (बे) ईमान (दारो) शासन काल माना जाने लगा है।  एक तरफ अन्ना का लोकपाल आंदोलन सिरदर्द बना है तो दूसरी तरफ विपक्ष भी लंगोटी लेकर सरकार पर पिल पड़ी है। मनू भैय्या इतने घबराएं हुए है कि लोकतांत्रिक तमाम संस्थाओं को ही सत्ता विरोधी मान चले हैं। उस पर आग में घी डालने का काम वकील साहब करके मन साहब के रक्तचाप को आसमान पर बैठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है। मनू जी खुद फैसला करो कि कौन से वे लोग हैं जिनसे आपको सबसे ज्यादा खतरा है। आस्तीनों से या बाहर देश भर में हंगामा करने वालों से। विवेक के साथ इसका तो आप फैसला कर ही सकते है। क्यों ?



घिर गए कलमाडी

आमतौर पर दुश्मनो से घिर जाने पर बच कर निकलने की उम्मीद कम हो जाती है, मगर (आस्तीनों में छिपे) अपनों से घिर जाने पर तो बच निकलने की सारी उम्मीदें खत्म हो जाती है। इस बार अपनो से कलमाडी बाबू घिर गए है। कांग्रेस को हमेशा एक टोपी की जरूरत पड़ती है। कामनवेल्थ गेम में तो हजारों करोड़ रूपए का घोटाला हुआ है। सारा पैसा तो कलमाडी न खा सकते थे ना खाए है, मगर सरकारी धन को अपने बाप की जागीर समझकर कलमाडी ने खूब होली दीवाली खेली.। इस गोलमाल में तो पीएम से लेकर तमाम देशी विदेशी लोगों पर भी आंच आने लगी है। तब करप्शन में माहिर कांग्रेसियों ने सारा ठीकरा कलमाडी के मत्थे फोड़ने का गेम चालू कर दिया। और तो और दिल्ली की सीएम को भी पूरी बेशर्मी से बचाने में कई लोग आगे आ गए। पार्टी अब बेफ्रिक सी है क्योंकि सुरेश कलमाडी को भीतर करके इस करप्शन के तमाम असली खिलाड़ियों और बंदरबांट में सबसे ज्यादा हिस्सा  लेने वालों को पर्दे में ही छिपाकर रखने का पंजा खेल जो सेफ्टी के साथ कर लिया जाएगा।


कलमाडी को लेकर

संसद में आजकल हंगामा बरपा है। विपक्ष का आक्रमण जारी है और कामनवेल्थ (करप्शन) गेम के आयोजन समिति के मुखिया को किसने बनाया इस पर हमला और बचाव का खेल हो रहा है। कांग्रेसी एनडीए सरकार पर कलमाडी को बनाने का आरोप लगा रही है। अरे पंजा भाई गेम हुआ 2010 में और माना कि अप्वाईंटमेंट का प्रोसेस अटल बिहारी के टाईम में हुआ होगा, मगर सवाल ये ज्यादा प्रमुख है भैय्या कि इस खेल में नोटों की हेराफेरी करने में सुरेश कलमाडी के पीछे और कौन कौन थे। माना कि अटल बिहारी जी ने ही मुखिया बनाया मगर सारा गोलमाल तो अपन ईमानदारी के दालमोठ खाने वाले वाले मनु साहब के समय मे हुआ है क्यों ?  इस पर क्यों पर्दा डाला जा रहा है यारों ?



अन्ना के संग आंख मिचौली

जन लोकपाल बिल के नाम पर अन्ना एंड कंपनी और यूपीए सरकार के मुखिया( यदि कोई एक हैं तो) के बीच तू डाल डाल मैं पात पात का खेल चल रहा है। सरकार की उहापोह और दुविधा के चलते आज पूरा देश अन्ना को नायक (गांधी भी) मान कर सरकार की कार्रवाई पर नजर गड़ये है। अन्ना सरकार के लिए सिरदर्द बन गए है, और सरकार जाने ना जाने पर देश के लोग यह समझ रहे है कि सरकारी सख्ती से एक ही साथ मैडम की इमेज के अलावा सरदारजी, वकील साहब समेत तमाम लोगों पर जनता की सोच बदल सकती है। अन्ना और सरकार के बीच अपनी अपनी पसंद के लोकपाल को लेकर जिद लगी है। अनशन के लिए कई स्थान बदलने के बाद सरकार ने अब अन्ना को केवल तीन दिन के अनशन की अनुमति दी है। अन्ना हीरो बने हो या ना हो मगर धन्य हो सरदार जी कि आपके चंगू-मंगूओ ने अन्ना को वाकई देश का हीरो बना दिया। मनु साहब अपने सलाहकारों को सलाह देना चालू करे नहीं तो ये लोग आपकी भी एक दिन लुटिया डूबो कर ही मानेंगे।


विकिलिप्स का कमाल या धमाल

 जनता के बीच धमाल करके अपना कमाल (जौहर) कर दिखाने में माहिर भारतीय नेताओं पर तो फिलहाल विकिलिप्स वाले ज्यादा भारी पड़ते दिख रहे है। कंबल ओढ़कर घी पीने वाले इन नेताओं को राजनीति का खोटा धंधा बनाए रखने के लिए अपनी गरीब (फटेहाल) जनता के सामने अपनी भी गरीब और दरिदर छवि रखनी पड़ती है। एक वोट और एक नोट के नाम पर चुनाव के समय अपनी कंगाल जनता को भी चूसने वाले इन चमोकन जोंक छाप नेता पीछे नहीं रहते। विकिलिप्स ने विदेशी बैंकों में जमा करके छिपा रखने वाले नेताओ की पहली सूची जारी की है। इसमें कारपोरेट सेक्टर से लेकर नेताओं, बिचौलियों और नौकरशाहों की रखैल की तरह कुख्यात नीरा राडिया के नाम सबसे ज्यादा 289 लाख करोड काली कमाई का काला धन जमा है। देश के पीएम खानदान के पीएम रह चुके पायलट साहब भारतरत्न मि. क्लीन के खाते में 198 लाख करोड रूपए जमा है। जेट एयर के मालिक नरेश गोयल के नाम 145 लाख करोड है। चरवाहा स्कूल के जनक और बिहार के धरती पुत्र के नाम 29 हजार करोड़ की मामूली रकम जमा है। दागदार चेहरो वाले इन कालिया नेताओो और नौकरशाहों दलालों बिचौलियों से भरे इस देश में गरीब जनता तू धन्य है जो इन हरामखोरों को बारम्बार हजारों बार लगातार माफ 
देती है।


गांधी खानदान की संपति

 विकिलिप्स द्वारा काला धन रखने वाले तमाम बेशर्म काले चोरो के नाम का खुलासा क्या हुआ कि चारो तरफ गांधी परिवार की संपति को लेकर यह चर्चा गरम हो गया है कि अगर बेशुमार धन है तो इसका वे (बाबा दीदी अम्मां और मुरादाबादी गेस्ट) करते क्या है ? इस पर एक चम्मच छाप नेता( युवा) ने कहा यार एक दारोगा या एक करप्ट बाबू इतना कमा लेता है कि दो एक पुश्त जीवन बशर(हरामजादगी के साथ ) तो कर ही लेती है, फिर ये तो खानदानी पीएम है. नाना, दादा बाप से लेकर जो बनता है वो भी तो मत्था टेकू ही होता है। यानी पैसों की होली भी खेले तो देश के नंबर एक पैसे वाले नामी (खानदानी) अमीर रईस पर भी ये लोग (गांधी बाबाखानदान के) बीस ही साबित होंगे। यानी राम( पंजा- पंजा) जपना और पूरा देश अपना ही सबसे माकूल चुनावी पोएम भी रखा जाए तो कोई हर्ज नहीं ?




यशवंती आरोप या अनुभव

वित मंत्री रह चुके यशवंत सिंन्हा अपन झारखंड से है। लोकसभा में कभी झारखंड प्रभारी रहे अजय माकन और अरबों रूपए के घोटालों के दागदार पूर्व सीएम मधु कोड़ा पर थैली देने का आरोप लगाते लगाते खुद शिकार हो गए। मैकू पर चुटकी लेते हुए यशवंत ने यशवंत ने निशाना साधा कि वे जब भी रांची आते तो कोड़ा पर हटाने का कोड़ा चलाते हुए बेदखल करने का डेट बताकर जाते। इनके पीछे पीछे कोड़ा दिल्ली जाते और थैली में शहद-मधु का प्रसाद माकन के घर पर पहुंचा देते। थैली कभी बड़ी कभी छोटी होती रहती थी, जिससे मधु का सत्ता पर कोड़ा चलता रहा। इस आरोप पर एक ही साथ माकन और कोड़ा यशवंत पर पिल पड़े। थैली को लेकर यशवंती सफाई की बारी थी। मगर पूरे सदन में इसे यशवंती पीड़ा (अनुभव) करार दिया गया कि माकन के बहाने यशवंत को अपने काल की यशवंती थैली की याद आ रही है। यानी लालाजी आरोप लगाकर साफ निकल भी ना सके।

जे डी का रिर्हसल

इस बार एकदम सिर पर 15 अगस्त है और संसद में हंगामा (गदर) ऐसा कि स्वतंत्रता दिवस और लाल किला से देश को संबोधित करने का मन ही मन साहब का नहीं बचा है। उस पर अच्छी हिन्दी का रियाज कराके मन साहब के लिए सरलतम हिन्दी  के सस्ता सरल सुंदर सुगम और बोलचाल में आसान हिन्दी भाषा का उपयोग करने वाले हिन्दी के मास्टर साहब जेडी यानी जर्नादन द्विवेदी जी सांसत में है। देश को संबोधित करना जरूरी है, कि इसे इग्नोर भी नहीं किया जा सकता है। पीएम साहब का अभ्यास छूटा हुआ है, और जेडी का ब्लडप्रेशर हाई है कि रक्षा करो प्रभू इस बार सरदार जी तो लालकिला से देश को संबोधित करेंगे या श्रद्धाजंलि देंगे इसका खुलासा तो लाल किला पर ही होगा।


मीडिया से परहेज


मीडिया वालों को देखते ही अपन बतीसी( नकली) निकालकर हाल चाल लेने के बहाने अपनी खबर इडियट बाक्स पर चलवाने में एक्सपर्ट     शीला दीक्षित फिलहाल मीडिया से दूर भाग रही है। वो भी इस कदर कि प्रेस कांफ्रेस में भी खुद ना आकर अपने जूनियर मंत्री लवली को बतौर खड़ाऊं भोंपू बनाकर भेजा। बेसब्र भोपू ताव खाने के लिए कुख्यात है। शीला की तरफ से प्रेस को संबोदित कर रहे लवली लवली बात ना करके मीडिया पर ही भड़क उठे और बीच में ही फरार हो गए। 13 साल से सत्ता सुख ले रही शीला को अभी ये भी पहचान नहीं है कि कब कहां कैसे किस समय किसको भेजा जाए ?, जो बिगड़ी बात बनाकर आए, ना कि बस नाम के लवली पूरे माहौल को ही अगली (बदसूरत) बनाकर ही छोड़े। मामला चापलूसो के भरोसे नहीं छोड़ने का है आंटीजी पैसा खाने में जब कोई शर्म नहीं तो फिर चेहरा छिपाने में क्यों (बे) शर्म।


सत्ता का मुर्शरफी (करण) सेवा

पाकिस्तान के मुर्शरफ साहब पिछले 11 साल से भारत में हैं, और मौज मस्ती के साथ रह रहे है। इनकी सेवा में तीन शिफ्ट में 12 पुलिस वाले लगे है। इनकी देखरेख और सेवासुश्रुषा में सरकार हर माह 25 हजार खर्च करती है। अभी तक इन पर 33 लाख रूपए खर्च हो चुके है। मगर बुरा हो पाक सरकार की कि वो अपने मुर्शरफ साहब को वापस लेने पर राजी ही नहीं है। जी हां यहां पर मुर्शरफ साहब यानी पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुर्शरफ साहब की बात नहीं हो रही है। हम बात कर रहे है है पाकिस्तान के एक ऊंट की कर रहे है, जिसका नाम मुर्शरफ है और 11 साल से वो एक घुसपैठिया के रूप में बोर्डर पर पकड़ा गया। भारत सरकार मुर्शरफ की वापसी के लिए लगातार दम लगा रही है, मगर पाक सरकार की बेरूखी से भारत सरकार इस मेहमान की आवभगत में लगी है। और कमसे कम अगले पांच साल तक यानी 15 लाख रूपए की सेवा करनी ही होगी, क्योंकि ऊंटों की उम्र 22 साल होती है। और भारतीयों के हाथ लगा मुर्शरफ तब केवल छह साल का था। यानी अभी पांच छह साल की उम्र अभी अल्ला की दुआ से बाकी है। 



लंदन से लेकर मुरादाबाद तक


 मुझे यह जानकर बड़ी हैरानी हो रही थी कि इंगलैंड़ के कई शहरों में आगजनी. दंगा के नाम पर लूटपाट हो रहा है फिर भी अपना भारत और पाकिस्तान में खून नहीं खौल रहा है।  दंगाईयों की शराफत पर मैं बड़ा शर्मिंदा सा हो रहा था कि खाम ही खा में मैं दंगाईयों (भाईयों) पर पिल पड़ता हूं। तभी अलीगढ में धारा 144 लागू हो गया, और मुरादाबाद  में तो बाकायदा दंगे का खेल शुरू हो गया। यूपी के कई शहरों में टेंशन है। हालांकि माना जा रहा है कि कांवड़ियों की वजह से ज्यादातर इलाकों में टेंशन है। बनारस आजमगढ़ में भी दंगे की खुश्बू फैलने के इंतजार में है। पाकिस्तान के मुलतान से लेकर लाहौर और करांची में भी दंगे जैसे हालात बने हुए है. यानी हमारे अनुकरण करते करते जब यूरोप में आग फैली तो हम कैसे पीछे रहते। दंगों का चलन ही एशिया और भारत पाक की सरजमी से जो हुआ है.।

मौजमस्ती का पुलिसिया आफर

दिनभर गप शप करके मन थक सा जाता है फिर भी रोचक मनोरंजक उतेजक बातचीत और दोस्ती के लिए किसी नेहा 0041799772989 तो मोबाईल नंबर 009609711100 पर कोई प्रीति तो 006745599983 पर कोई सिमरन मुझसे बातें या रोमांस करने के लिए बेताब है। मौजभरी रसभरी रसीली चुटीली मनमोहक मनभावक और नुकीली उतेजक बातें और रोमांस के लिए ना जाने क्या क्या कहेगी। इस नंबर को देखकर मैने अपने एक  पुलिसिया मित्र को बताया कि जरा प्यार भरी नुकीली चुटीली बातें करके तो देख लो । नंबक को अपने पास रखने की बजाय एक टेलीफोन डायरी निकालकर मेरी तरफ बढ़ाया। लो शरीफजादे जितने चाहो नंबर लिख लो और फोन करके एक कोड बोल देना।  फिर तो तेरी मौज हो जाएगी। सेवा में सलमा सितारा से लेकर तमाम सिमरन नेहा पुतुल तेरे पास होटल में आ जाएगी। वो भी फ्री। मेरे कंधों पर धौल जमाते हुए पुलिसिया रौब में वो  बोल पड़ा कि  बेटा हम पुलिस वालों से दोस्ती करोगे तो हमारा भी कोई फर्ज बनता है कि नहीं। मैं तो चकित ही रह गया। बस फटाफट उठकर भागने में ही अपनी ज्यादा भलाई माना।. मैं सोच रहा था कि हजारों पुलिस वालों को अपना यार बनाकर ही तो कोई जूही नेहा सिमरन जैसी शरीफजादी रंड़िया खुलेआम धंधे का बेधड़क निमंत्रण देती फिर रही है, वो भी बेधडक।


मर्डर बाला का दुख


एक कहावत ह कि सौ चूहा खाकर बिल्ली चली हज को।  एक और बिहारी कहावत मशहूर है कि सूप तो सूप अब तो छलनी भी एक दूसरे को दूसने (चिढ़ाने लगे, जिनमें सैकड़ों छेद होते है)। हरियाणा की मर्डर बाला यानी महेश भट्ट के साथ कैरियर स्टार्ट करके अपनी अदाओं और (जो माने या समझे) से अब तक सैकड़ों को लुभा और (पट) पटा कर मर्डर कर चुकी मल्लिका शहरावत को अपने लिए  लायक (मनभावन) कोई दुल्हा ही नहीं मिल रहा है। बड़ा अफसोस है कि दिल को हाथ में लेकर घूमने वाले फिल्मी दुनिया में इस मल्लिका को अपने लिए अपने ही लायक ईमानदार पत्नीव्रता एकनिष्ठ कोई विश्वसनीय (?) जीवनसाथी  (कितने दिनों के लिए) खोज नहीं पा रही है। दरअसल जो जो मल्लिका के पास नहीं है वहीं अपने  दुल्हा में तलाश रही है। मैड़म देर ना हो जाए कहीं। थोड़ा लिबरल हो लो तो फिर इतने मिल जाएंगे कि फिर किसी को मर्डर करने की भी नौबत पड़ सकती है।

सुपर हिट आरक्षण

 आरक्षण का सुपर हिट होना तय है। इसके लिए अब प्रकाश झा से लेकर बिग बी भी मस्त हो गए है। यह तो प्रकाश की किस्मत है कि आरक्षण को लेकर पहले तमिलनाडू में और बाद में तो यूपी से लेकर पंजाब और ना जाने कौन कौन राज्य में कहीं सरकार तो कहीं किसी संगठन के चलते इस पर फिलहाल रोक लगा दी गई। प्रचार पर फिर प्रकाश क्यों खर्च करे। करोड़ो लूटाकर भी प्रकाश बाबू जितना प्रचार नहीं कर पाते उससे ज्यादा तो आरक्षम का प्रचार कोर्ट कचहरी से हो गया यानी सुपर हिट के लिए आरक्षण को आरक्षित कर लिया गया है। तू और तेरे बुलंद सितारे धन्य है झाजी। अब देखने वाली तो यह बात है कि आरक्षण की कमाई दबंग से ज्यादा होती है या कम।
 

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