बुधवार, 3 अगस्त 2011

कॉमनवेल्थः 73 रुपए का काम 280 में करवाया शीला सरकार फंदो में



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ने

Posted on Aug 03, 2011 at 09:45pm IST

नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स पर सीएजी की रिपोर्ट में दिल्ली सरकार के एक और कारनामे का खुलासा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में उस कंपनी को ठेका दिए जाने पर सवाल उठाए गए हैं जिसमें शीला की एक खास रिश्तेदार ऊंचे ओहदे पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कंपनी को नियम-कायदे तोड़कर ऊंची कीमत पर दो ठेके दिए गए। कंपनी का नाम है आईएल एंड एफएस। ये वही कंपनी है जिसे लेकर सरकार पर आरोप है कि उसने सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपए का ठेका दिया और फायदा पहुंचाया। ये मामला अभी भी लोकायुक्त और दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है।
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार ने आईएल एंड एफएस को कॉमनवेल्थ विलेज के पास हुए निर्माण कार्यों का मलबा हटाने का काम दिया था। ये ठेका इस कंपनी को बिना किसी टेंडर के 280 रुपए 30 पैसे प्रति मिट्रिक टन के हिसाब से मिला। यानि कंपनी एक मिट्रिक टन मलबा हटाती तो उसे 280 रुपए 30 पैसे मिलते। महत्वपूर्ण बात ये है कि आईएल एंड एफएस को ठेका देने से पहले दिल्ली सरकार ने इसी काम का ठेका सत्यप्रकाश एंड ब्रदर्स नाम की कंपनी को 73 रुपए 42 पैसे प्रति मिट्रिक टन पर देने का समझौता कर लिया था। लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि दिल्ली सरकार जो काम 73 रुपए 42 पैसे प्रति मिट्रिक टन में करवा सकती थी उसके लिए उसने 280 रुपए 30 पैसे चुकाए यानी चार गुना ज्यादा। सवाल ये है कि आखिर क्यों किया ऐसा तो शीला दीक्षित कहती हैं कि संसद में रिपोर्ट आने पर वे जवाब देंगी।
कॉमनवेल्थः 73 रुपए का काम 280 में करवाया शीला सरकार ने
बात सिर्फ यहीं नहीं रुकती। शीला सरकार ने आईएल एंड एफएस को अक्षरधाम के पास दिल्ली जल बोर्ड के दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा का भी ठेका दिया। वो भी बिना टेंडर। सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में 45 लाख रुपए में दिया गया ये ठेका बाद में 75 लाख रुपए का हो गया। हैरानी की बात ये है कि इस कंपनी को ठेका आनन-फानन में ये कह कर दिया गया कि दोनों ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा जल्द से जल्द जरूरी है जबकि ये फैसला पहले ही दो साल देर से लिया गया। सवाल ये है कि आखिर 2008 में ही जब दिल्ली जल बोर्ड ने इन दोनों ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा का फैसला लिया था तो उसी वक्त क्यों नहीं इसका टेंडर निकाला गया? बिना टेंडर निकाले आईएल एंड एफएस को ठेका क्यों दिया गया?
सवाल एक बार फिर वही है कि क्या एक कंपनी को बिना टेंडर के उंची कीमत पर सिर्फ इसलिए ठेका दे दिया गया क्योंकि उसमें शीला की खास रिश्तेदार ऊंचे पद पर है? बारापुला फ्लाईओवर के निर्माण में हुई गड़बड़ी को लेकर सीबीआई पहले ही मुकदमा दर्ज कर चुकी है। शुंगलू कमेटी भी निर्माण कार्यों को लेकर दिल्ली सरकार पर गंभीर आरोप लगा चुकी है। साफ है कि कलमाडी के बाद अब दिल्ली की शीला सरकार मुश्किलों में नजर आ रही है।
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नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स पर सीएजी की रिपोर्ट में दिल्ली सरकार के एक और कारनामे का खुलासा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में उस कंपनी को ठेका दिए जाने पर सवाल उठाए गए हैं जिसमें शीला की एक खास रिश्तेदार ऊंचे ओहदे पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कंपनी को नियम-कायदे तोड़कर ऊंची कीमत पर दो ठेके दिए गए। कंपनी का नाम है आईएल एंड एफएस। ये वही कंपनी है जिसे लेकर सरकार पर आरोप है कि उसने सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपए का ठेका दिया और फायदा पहुंचाया। ये मामला अभी भी लोकायुक्त और दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है।
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार ने आईएल एंड एफएस को कॉमनवेल्थ विलेज के पास हुए निर्माण कार्यों का मलबा हटाने का काम दिया था। ये ठेका इस कंपनी को बिना किसी टेंडर के 280 रुपए 30 पैसे प्रति मिट्रिक टन के हिसाब से मिला। यानि कंपनी एक मिट्रिक टन मलबा हटाती तो उसे 280 रुपए 30 पैसे मिलते। महत्वपूर्ण बात ये है कि आईएल एंड एफएस को ठेका देने से पहले दिल्ली सरकार ने इसी काम का ठेका सत्यप्रकाश एंड ब्रदर्स नाम की कंपनी को 73 रुपए 42 पैसे प्रति मिट्रिक टन पर देने का समझौता कर लिया था। लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि दिल्ली सरकार जो काम 73 रुपए 42 पैसे प्रति मिट्रिक टन में करवा सकती थी उसके लिए उसने 280 रुपए 30 पैसे चुकाए यानी चार गुना ज्यादा। सवाल ये है कि आखिर क्यों किया ऐसा तो शीला दीक्षित कहती हैं कि संसद में रिपोर्ट आने पर वे जवाब देंगी।
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बात सिर्फ यहीं नहीं रुकती। शीला सरकार ने आईएल एंड एफएस को अक्षरधाम के पास दिल्ली जल बोर्ड के दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा का भी ठेका दिया। वो भी बिना टेंडर। सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में 45 लाख रुपए में दिया गया ये ठेका बाद में 75 लाख रुपए का हो गया। हैरानी की बात ये है कि इस कंपनी को ठेका आनन-फानन में ये कह कर दिया गया कि दोनों ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा जल्द से जल्द जरूरी है जबकि ये फैसला पहले ही दो साल देर से लिया गया। सवाल ये है कि आखिर 2008 में ही जब दिल्ली जल बोर्ड ने इन दोनों ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा का फैसला लिया था तो उसी वक्त क्यों नहीं इसका टेंडर निकाला गया? बिना टेंडर निकाले आईएल एंड एफएस को ठेका क्यों दिया गया?
सवाल एक बार फिर वही है कि क्या एक कंपनी को बिना टेंडर के उंची कीमत पर सिर्फ इसलिए ठेका दे दिया गया क्योंकि उसमें शीला की खास रिश्तेदार ऊंचे पद पर है? बारापुला फ्लाईओवर के निर्माण में हुई गड़बड़ी को लेकर सीबीआई पहले ही मुकदमा दर्ज कर चुकी है। शुंगलू कमेटी भी निर्माण कार्यों को लेकर दिल्ली सरकार पर गंभीर आरोप लगा चुकी है। साफ है कि कलमाडी के बाद अब दिल्ली की शीला सरकार मुश्किलों में नजर आ रही है।


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नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स पर सीएजी की रिपोर्ट में दिल्ली सरकार के एक और कारनामे का खुलासा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में उस कंपनी को ठेका दिए जाने पर सवाल उठाए गए हैं जिसमें शीला की एक खास रिश्तेदार ऊंचे ओहदे पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कंपनी को नियम-कायदे तोड़कर ऊंची कीमत पर दो ठेके दिए गए। कंपनी का नाम है आईएल एंड एफएस। ये वही कंपनी है जिसे लेकर सरकार पर आरोप है कि उसने सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपए का ठेका दिया और फायदा पहुंचाया। ये मामला अभी भी लोकायुक्त और दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है।
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार ने आईएल एंड एफएस को कॉमनवेल्थ विलेज के पास हुए निर्माण कार्यों का मलबा हटाने का काम दिया था। ये ठेका इस कंपनी को बिना किसी टेंडर के 280 रुपए 30 पैसे प्रति मिट्रिक टन के हिसाब से मिला। यानि कंपनी एक मिट्रिक टन मलबा हटाती तो उसे 280 रुपए 30 पैसे मिलते। महत्वपूर्ण बात ये है कि आईएल एंड एफएस को ठेका देने से पहले दिल्ली सरकार ने इसी काम का ठेका सत्यप्रकाश एंड ब्रदर्स नाम की कंपनी को 73 रुपए 42 पैसे प्रति मिट्रिक टन पर देने का समझौता कर लिया था। लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि दिल्ली सरकार जो काम 73 रुपए 42 पैसे प्रति मिट्रिक टन में करवा सकती थी उसके लिए उसने 280 रुपए 30 पैसे चुकाए यानी चार गुना ज्यादा। सवाल ये है कि आखिर क्यों किया ऐसा तो शीला दीक्षित कहती हैं कि संसद में रिपोर्ट आने पर वे जवाब देंगी।
कॉमनवेल्थः 73 रुपए का काम 280 में करवाया शीला सरकार ने
बात सिर्फ यहीं नहीं रुकती। शीला सरकार ने आईएल एंड एफएस को अक्षरधाम के पास दिल्ली जल बोर्ड के दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा का भी ठेका दिया। वो भी बिना टेंडर। सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में 45 लाख रुपए में दिया गया ये ठेका बाद में 75 लाख रुपए का हो गया। हैरानी की बात ये है कि इस कंपनी को ठेका आनन-फानन में ये कह कर दिया गया कि दोनों ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा जल्द से जल्द जरूरी है जबकि ये फैसला पहले ही दो साल देर से लिया गया। सवाल ये है कि आखिर 2008 में ही जब दिल्ली जल बोर्ड ने इन दोनों ट्रीटमेंट प्लांट की सुरक्षा का फैसला लिया था तो उसी वक्त क्यों नहीं इसका टेंडर निकाला गया? बिना टेंडर निकाले आईएल एंड एफएस को ठेका क्यों दिया गया?
सवाल एक बार फिर वही है कि क्या एक कंपनी को बिना टेंडर के उंची कीमत पर सिर्फ इसलिए ठेका दे दिया गया क्योंकि उसमें शीला की खास रिश्तेदार ऊंचे पद पर है? बारापुला फ्लाईओवर के निर्माण में हुई गड़बड़ी को लेकर सीबीआई पहले ही मुकदमा दर्ज कर चुकी है। शुंगलू कमेटी भी निर्माण कार्यों को लेकर दिल्ली सरकार पर गंभीर आरोप लगा चुकी है। साफ है कि कलमाडी के बाद अब दिल्ली की शीला सरकार मुश्किलों में नजर आ रही है।

By khaskhabar.com IAug 03, 2011I Last Updated 21:39:42IST
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 cag names sheela dikshit in cwg scamराष्ट्रमंडल घोटाले की शीला पर भी आंच, गंभीर आरोप लगे

नई दिल्ली। राष्ट्रमंडल खेल घोटालों को लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी फंसती नजर आ रही है। संसद में पेश होने वाली नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में राष्ट्रमंडल खेलों के कुछ ठेकों में ग़डबç़डयों को लेकर शीला दीक्षित सरकार को कठघरे में ख़डा किया गया है। शीला दीक्षित का कहना है कि वह इस पर संसद में रिपोर्ट पेश होने के बाद जवाब देंगी। राष्ट्रमंडल खेलों पर कैग की रिपोर्ट के मुताबिक स्ट्रीट लाइट्स का ठेका देने के लिए पैमाने पर खरा न उतरने वाली कंपनी स्पेज एड्ज को गलत तरीके से ठेका दिया गया। इससे पहले इस कंपनी ने ठेके के लिए शीला दीक्षित से अपील की थी। लाइट्स के लिए ठेका कहीं ज्यादा कीमत पर दिया गया, जिससे सरकार को 31 करो़डा का चूना लगा। इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि स्ट्रीटस्केपिंग पर सरकारी एजेंसियों ने बेतहाशा पैसा बहाया, जिससे 100 करो़ड से ज्यादा नुकसान हुआ। कैग की यह रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी जानी है। दिल्ली सरकार की ओर से इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्य सचिव पीके त्रिपाठी ने कहा है कि कैग को उसके हर सवाल का जवाब भेज दिया गया है। दिल्ली सरकार को उम्मीद है कि उसके जवाब को कैग की रिपोर्ट में शामिल कर लिया जाएगा। संसद में आने के बाद इस रिपोर्ट को सरकार की लोक लेखा समिति के पास भेजेगी। दिल्ली सरकार का कहना है कि अगर लोक लेखा समिति इसमें जवाब मांगेगी तो उसे भी अपनी सच्चााई से अवगत कराया जाएगा।
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राष्ट्रमंडल खेल घोटालों में शीला दीक्षित का नाम भी उछला

प्रकाशित Wed, अगस्त 03, 2011 पर 13:35  |  स्रोत : Josh18.in.com
प्रिंट
03 अगस्त 2011
आईबीएन-7

नई दिल्ली।
राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में हर भ्रष्टाचार के लिए सुरेश कलमाडी को जिम्मेदार ठहराने वालीं शीला दीक्षित अब खुद कैग (सीएजी) के निशाने पर हैं। सीएजी ने राष्ट्रमंडल खेल घपलों पर तैयार अपनी रिपोर्ट में 80 पन्ने सिर्फ शीला सरकार की गड़बड़ियों पर लिखे हैं, जिनमें 46 बार मुख्यमंत्री का नाम आया है। चाहे मामला खेलों के दौरान दिल्ली की सड़कों को रोशन करने का हो या फिर हरियाली बढ़ाने का, हर बात में सीएजी को घोटाले की बू आ रही है।

सूत्रों की मानें, तो सीधे मुख्यमंत्री को करोड़ों रुपयों के नुकसान का जिम्मेदार ठहराया गया है।

दरअसल राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान आठ सौ किलोमीटर लंबी सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें लगनी थीं। सूत्रों के मुताबिक सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि सरकार ने विदेशी लाइटों को कई गुना महंगे दामों पर खरीदा। मुख्यमंत्री की हरी झंडी के बाद ही विदेशी स्ट्रीट लाइटों की खरीद को हरी झंडी मिली। हर विदेशी लाइट की खरीद पर 25 हजार 704 रुपए से लेकर 32 हजार तक का भारी अंतर पाया गया। सीएजी ने कहा कि पीडब्ल्यूडी, एमसीडी और एनडीएमसी ने विदेशी लाइटों की खरीद पर 31 करोड़ सात लाख रुपए से ज्यादा फूंके। देश में बनी जो स्ट्रीट लाइटें 15 हजार 160 रुपए की कीमत पर मिल रही थीं, विदेश में बनी उसी स्ट्रीट लाइट को 32 हजार रुपए तक में खरीदा गया।

दिल्ली: आवास योजना में धांधली, शीला दीक्षित फंसीं


सीएजी खुद भी दंग है। उसका कहना है कि राजधानी दिल्ली की सड़कों को रोशन करने के लिए कुल 45 करोड़ 80 लाख रुपए अधिक खर्च किए गए। सूत्रों के मुताबिक लाइटें लगाने से पहले दिल्ली की सड़कों को तीन श्रेणियों में बांटा गया था। लेकिन वास्तव में सरकार ने यह बताया ही नहीं कि कौन-सी सड़क किस श्रेणी में आती है। लिहाजा सभी सड़कों को ए श्रेणी की सड़क बताकर एजेंसियों ने विदेशी स्ट्रीट लाइटें लगवा दीं।

हरियाली हुई काली, जमकर हुई धांधली

सूत्रों की मानें, तो सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जरूरत से 20 फीसदी ज्यादा पेड़-पौधे खरीदने की इजाजत दी। सारे विभाग होने के बावजूद सरकार ने पौधे सरकारी नर्सरी में न पैदा कर बाहर से खरीदे।

सूत्रों के मुताबिक सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि राष्ट्रमंडल खेलों से करीब दो साल पहले अगस्त 2008 में ही दिल्ली के मुख्य सचिव ने मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजा था कि राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी जगहों को सुंदर बनाने के लिए 30 से 50 लाख पेड़-पौधे सरकारी नर्सरी में पैदा किए जाएं। मुख्यमंत्री इस पर सहमत हो गईं, लेकिन सरकारी नर्सरी में पौधे उगाने का फैसला होने के बावजूद पर्यावरण सचिव ने इसकी अनदेखी की।

एक बैठक कर यह तय कर दिया गया कि दूसरी एजेंसियों से 60 लाख पौधे खरीदे जाएंगे। बैठक के तुरंत बाद शीला सरकार ने इस काम के लिए 28 करोड़ रुपए खर्च करने की इजाजत भी दे दी।

साइन बोर्ड के टेंडर में बंदरबांट

फरवरी 2006 में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने सड़कों को बेहतर और खूबसूरत बनाने के लिए वर्ल्ड क्लास साइनेज सिस्टम लगाने की बात कही। इस बड़े काम के लिए 3एम इंडिया लिमिटेड नाम की कंपनी से प्रेजेंटेशन लिया गया। इस कंपनी को एवरी डेनिसन नाम की एक दूसरी कंपनी के साथ मिलकर दिल्ली के तिलक मार्ग और राजघाट के बीच और दिल्ली सचिवालय तक जाने वाली फीडर रोड पर एक पायलट प्रोजेक्ट चलाने को कहा गया, ताकि अंदाजा लग सके कि यह साइन बोर्ड दिल्ली का कायाकल्प कैसे करेंगे।

देश की एक तिहाई आबादी पर महिलाओं का राज!



1.77
करोड़ रुपए की लागत के इस पायलट प्रोजेक्ट को दिल्ली सरकार ने अप्रैल 2006 में ही हरी झंडी दे दी, लेकिन पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ मई 2008 में और खत्म हुआ दिसंबर 2008 में। इसके बाद टेंडर निकले, लेकिन पूरे काम को एक टेंडर से निपटाने के बजाय पीडब्ल्यूडी के तीन जोन के लिए अलग-अलग टेंडर निकले। सीएजी ने अपने ऑडिट के बाद सवाल किया है कि आखिर क्यों सारे काम के लिए एक टेंडर नहीं निकाला गया? ऐसा होने से काम बेहतर और सस्ता होता।

दिल्ली में यह वर्ल्ड क्लास साइनेज लगाने का काम छह महीने में खत्म होना था, और इसकी कुल लागत थी 53.13 करोड़ रुपए, लेकिन सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2010 तक काम चल ही रहा था। कुल लागत के 53 करोड़ में से 25.06 करोड़ रुपए दिसंबर 2010 तक दिए जा चुके थे, लेकिन इनमें से 2.83 करोड़ रुपए अतिरिक्त सामान (एक्सट्रा आइटम) की मद में दिए गए थे जिसकी पूरी जानकारी नहीं थी।

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