मंगलवार, 16 अगस्त 2011

प्‍लेसमेंट एजेंसियां: जिस्म से कमाई के नए सौदागर नरेंद्र सैनी |



पश्चिम बंगाल के 24 परगना के एक सुदूर गांव की सकीना (बदला हुआ नाम) अपने परिवार को पस्त आर्थिक हालातों से उबारना चाहती थी. वह अपने एक पहचान वाले के नौकरी के वादे पर दो साल पहले दिल्ली आ गई. लेकिन यहां कदम रखते ही उसके पांव तले की जमीन खिसक गई.
उसे काम दिलाने की बजाए देह व्यापार के गर्त में धकेल दिया गया. वह कुछ समझ पाती, उसने खुद को हरियाणा के रोहतक में अनजान लोगों के रहमोकरम पर पाया. अब वह इस चंगुल से बाहर आ चुकी है. लेकिन उसके साथ हुई ज्‍यादतियों का खौफ उसके चेहरे पर अब भी साफ नजर आता है.
वह टूटी-फूटी हिंदी में सिर्फ इतना ही बता पाती है, ''वह खुद को प्लेसमेंट एजेंसी का एजेंट बताता था. यहां लाया, हम नहीं जानते थे हम कहां हैं. उन्होंने हमारा जिस्म लूटा. सब बुरे थे.'' अब सकीना वापस अपने घर लौट चुकी है.
सकीना जैसी गरीब परिवारों की हजारों लड़कियां रोजगार की तलाश में दिल्ली सरीखे महानगरों का रुख कर रही हैं और इसी बात का फायदा उठा रही हैं फर्जी प्लेसमेंट एजेंसियां. पुलिस उपायुक्त (अपराध) अशोक चांद बताते हैं, ''पिछले कुछ समय में फर्जी प्लेसमेंट एजेंसियों के मामले बढ़े हैं और हमने कई लोगों को धरा भी है.''
इस बात की पुष्टि काफी हद तक 18 जून, 2011 को दिल्ली के राजौरी गार्डन की राजधानी प्लेसमेंट एजेंसी पर दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की मानव तस्करी निरोधक इकाई की कार्रवाई से हो गई. पुलिस की इस कार्रवाई में 9 नाबालिग लड़कियां को छुड़ाया गया और प्लेसमेंट एजेंसी के मालिक मुन्ना चौधरी (41) को धरा गया.
चांद बताते हैं, ''असम का रहने वाला मुन्ना पिछले छह साल से प्लेसमेंट एजेंसी चला रहा था. यह एजेंटों के जरिए असम के गरीब परिवारों की लड़कियों को यहां लाता था. एजेंटों को प्रति लड़की 12,000 रु. मिलते थे जबकि एजेंसी जिन घरों में लड़कियां घरेलू काम के लिए जाती थीं उनसे 20,000-25,000 रु. वसूलती थी. इन लड़कियों को कुछ नहीं मिलता था.''
बताया जाता है कि मुन्ना चौधरी लगभग 320 बच्चियों को अभी तक रोजगार के बहाने ला चुका है और उस पर लड़कियों के यौन शोषण के भी आरोप हैं.
इस अभियान में अहम भूमिका निभाने और मानव तस्करी के खिलाफ काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन शक्तिवाहिनी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर निशिकांत कहते हैं, ''जब से प्लेसमेंट एजेंसियों पर निगरानी बढ़ी है तबसे एजेंसियां खुद को फर्जी एनजीओ के नाम से पंजीकृत करा रही हैं. ये एजेंसियां लड़कियों का यौन उत्पीड़न तो करती ही हैं साथ ही इनके काम का पैसा भी इन्हें नहीं देतीं.''

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