शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल-5




युवराज की फटकार के बाद  जागी टीम मनमोहन

अन्ना की आंधी इतनी विकराल होगी, शायद इसका अनुमान तो टीम अन्ना समेत अन्ना को भी नहीं थी। दिल्ली पुलिस द्वारा तमाम नियम कानून को ठेंगे पर ऱखकर जो कुछ किया गया, उसके खिलाफ देशव्यापी जनसैलाब को देखकर भी पहले तो वकील साहब ने मनुजी को यकीन दिला दिया कि बस चार छह घंटे का ये तमाशा है शाम ढलते-ढलते सब कुछ सामान्य हो जाएगा। अपने बेस्ट माइंड पर भरोसा करके मनु साहब बेफ्रिक थे, मगर पूरे देश में आंधी देखकर टीम मनमोहन का दम उखड़ने लगा। अपने युवराज को भी मुगली घूंटी 555 की तरह हर बार समझा बूझा लेने वाले वकील साहब ने इस बार भी राहुल बाबा को कोरा बाबा मानकर दिलासा बंधाया। मगर बेकाबू हाल देखकर अपने सौम्य और सुकुमार बाबा का खून खौला और शाम की मीटिंग में सबको जमकर लताड़ा। लताड़ के बाद ही अपने चेहरे पर मुस्कान लपेटकर टीम मनु की त्रिमूर्ति सोनी पी.चिंद और वकील साहब प्रेस के सामने आकर डैमेज कंट्रोल में लगे कैमरों के सामने मुस्कुराते दिखे। खासकर वकील साहब का खिलखिलाता स्माईली फेस (चेहरा) देखना तो वाकई हैरतनाक लगा।

कहां से कहां तक

एक कहावत मशहूर है कि चौबे जी गए छौब्बे बनने और दुबे होकर लौटे। इसका सार ये है कि चालाकी के फेर में बेवकूफ बने। कमसे कम अन्ना के मामल में सरकार और इसकी पीछलग्गू दिल्ली पुलिस को एक बार फिर ( दो माह में दूसरी बार)  किरकिरी का सामना करना पड़ा। मगर मरता क्या नहीं करता। सरकारी नौकरी जो ठहरी। सरकार के आदेश का तो पालन करना ही था। सरकारी निर्देश पर ही रामदेव को चूहा बनाया गया  और अन्ना को भी चूहेदानी में बंद करने के लिए ही आमादा अहिंसा प्रिय मनमोहन साहब ने तो अन्ना को मयूर विहार से ही उठाकर मुबंई भेजने की योजना तय कर रखी थी। जिसमें पुलिस ही फेल हो गई. तिहाड में भी किसी बहाने गाड़ी में बैठाकर दिल्ली से बाहर करने की सरकारी षड़यंत्र का पर्दाफाश हो गया। अपने सबसे ईमानदार पीएम की ईमानदारी का दम पूरी तरह जगजाहिर हो गया। लोग तो यह कहने भी लगे है कि जब मैडम के फरमान के बगैर पीएम साहब सांस नहीं ले सकते तो आपके लिए आपके साथ दिल्ली पलिस की क्या मजाल कि वो अपने मन से अन्ना को छू ले। यानी अन्ना लहर में यूपीए और युवराज के डैमेज कंट्रोल की सारी नौटंकी पर से राज उठ गया है कि सबकुछ सरकार के संकेत पर ही हो रहा था।

जिद्दी नहीं संजीदा बने अन्ना

यूपीए सरकार का बाजा बजाने और तमाम नेताओ और नौकरशाहों को चूहा बना देने के बाद अब बारी आपकी है अन्ना। एक माह के अनशन से भी जनता में वो मैसेज नहीं जाता जो मात्र 48 घंटे में हो गया। अब जब सरकार घुटनों के बल आ गई है तो फिर क्यों जिद्द ? सरकार ने बिना शर्ते जब 15 दिन की मोहलत दी है तो इसमें भूखे रहने से ज्यादा जरूरी है जनलोकपाल बिल को बहस का एक मुद्दा बनाया जाए। सभी दलों को इसमें संशोधन और बेहतर बनानेकी पहल शुरू कराने की। अब अपनी टीम के साथ इसको सर्वमान्य बनाने पर जोर देने की ताकि सरकार को एक मजबूत लोकपाल लाना पड़े। अन्ना दा एक कहावत है काठ की हांड़ी बार बार नहीं। एक ही मुद्दे पर देश भर में बारम्बार खून नहीं खौलता। इस बार जब सारा देश आपके पीछे है तो अनशन, अन् जल त्याग से भी ज्यादा जरूरी है इस मौके को सार्थक बनाने की, जिसका मौका समय हर बार नहीं देता है ना देगा।


अपने ही फंदे में सरकार

रंग बदलने में गिरगिट को भी मात देने वाले तेज (स्मार्ट) कांग्रेसियो ने यह पूरे देश को जता दिया कि मनमोहन सरकार में कौशल पूर्ण रणनीति बनाने वालों का वाकई अकाल हो गया है। कमसे कम अन्ना हजारे के आंदोलन के मामले में तो पीएम से लेकर वकालती अंदाज में पोलटिक्स करने वाले नेताओ तक में समय की नब्ज भांपने की कितनी कमी है। रामदेव को कुचलने वाली यूपीए सरकार के हौसले नादिरशाहों जैसी हो गई थी। लगता था मानो एचएमवी की मुद्रा में बैठी दिल्ली पुलिस से वो कोई भी जुल्म को समय की मांग बताकर करवा लेंगे। अन्ना की आंधी को रोकने के लिए मनु सरकार ने योजना तो सुपर बनाई थी, मगर अपनी टीम में रामदेव एकल थे जिन्हें पुलिसिया शिकार बनना पड़ा, मगर अन्ना की टीम के लोगों को देखकर मनु जी अपने ही फंदे में फंस गए। सरकार की फजीहत देखकर तो वाकई सोनिया की सेहत खराब हो जाती। सचमुच विदेश में जाकर इलाज कराने का कारण अब पता चल गया कि मनु के भरोसे देश को तो छोड़ा जा सकता है, मगर किसी बीमार को नहीं।

यह कैसी चुनौती ?

अपने दिवगंत पिताजी के नाम और काम की वैशाखी पर सवार होकर जिस उम्र में सचिन पायलट मंत्री बन गए है, अगर उनके पीछे पापा की लाठी नहीं होती तो शायद दर्जनों जूतियां घीस जाने के बाद भी वे सांसद तो दूर विधायक बनना भी बस सपना ही रहता। योगगुरू रामदेव आज भले ही मात खा गए हो, मगर लोकप्रियता और असर के मामले में तो वो राजेश पायलट पर भी भारी ही पड़ते। बच्चा पायलट ने रामदेव को संसदीय चुनाव में खड़ा होने की चुनौती देकर अपने आपको जता दिया कि बाप के नाम का साथ होना एक बात है, मगर मंजा होना अलग बात है। रामदेव को तो छोड़ो ( वो तो देश के किसी भी क्षेत्र से किसी के लि्ए भी आज बड़ी चुनौती बन सकते है) मगर फारूक अब्दुल्ला के दामाद पायलट साहब गैर गूर्जर वोट वाले देश के किसी भी संसदीय इलाके से अपनी किस्मत ही आजमा कर तो दिखा दे कि क्या वहां से (पर) पायलट साहब की उड़ान मुमकिन हो पाएगी या......?

कांग्रेस के असली दुश्मन

कांग्रेस के असली दुशमन रामदेव अन्ना हजारे या विपक्षी दल के वो नेता तो कतई नहीं है, जिससे मनु सरकार की नींद हराम हो गई है। मनु सरकार को दरअसल सबसे ज्यादा नुकसान करने वालो में वकील कपिल सिब्बल, दिग्गी राजा(बिना किसी स्टेट के ), मनीष तिवारी है। बगैर कुछ सोचे समझे बेकाबू होकर बोलने वाले इन नेताओं से मनु जी के  साथ युवराज बाबा सोनिया गांधी से लेकर हर उस आदमी को निराशा हो रही , जिसने मनु सरकार से अपनी उम्मीदें बांध रखी थी। सच में मनु जी आप थोड़ा बोलने का रियाज करें, ताकि मौके पर लोग आपकी वाणी सुनकर आपके मुखार बिंद को पहचानने लगे। बोलने के नाम पर रोने वाले मनु जी कुछ करो । अपनी नहीं तो देश के बारे में विचार करे, जिसकी इज्जत का गुब्बारा खतरे में है।

जनता के बीच जाना है

अन्ना हजारे ने नेताओं को एकसूत्र में बांधकर एक कतार में अपने लिए खड़ा कर दिया। कल तक अन्ना के आंदोलन की खिल्ली उड़ा रहे लालू भाई भी सोनिया का दामन छोड़कर अपना सूर बदल दिया। मुलायम, मायावती और लेफ्ट तो पहले ही आ चुके थे। कमल छाप भी शुरू से अन्ना के साथ था। गैर यूपीए के तमाम घटक एक साथ हो गए। खासकर चारा मामले में अभी तक फंसे और जगन्नाथ मिश्र के साथ एक और मामले में नवाजे गए लालू के बदले रूख पर मैं चौंक गया। पाला बदल पर लालू ने कहा क्या करे चुनाव में तो जनता के बीच जाना होता है, और अन्ना की आंधी से बचना ही इस समय की पोलिटिकल मांग है.....।

कुछ करिए गुलाम जी

लोकसभा में केवल रोने और मगरमच्छ वाला आंसू बहाने से काम नहीं चलेगा। सरकार से कोई जीत सकता है क्या ? अगर डाक्टरी की पढ़ाई के बाद कोई एक साल के लिए भी गांवों में नहीं जाता है तो यह आपके और आपकी सरकार के लिए ज्यादा शर्मनाक है। एडमिशन के समय ही एक साल का एग्रीमेंट और पालन नहीं करने पर अयोग्य करार कर देने की चेतावनी का अनिवार्य कानून बना देने के बाद गुलाम साहब क्या मजाल कि कोई गांव में ना जाए ? मगर गावों को तो आप और आपकी सरकार ने केवल चुनाव के समय देखा और रोया। फिर भूल गए। गावों में संसाधन देने के नाम पर मनु साहब का बजट खराब होने लगता है, और प्रणव दा के टसूए चूने लगते है। अस्पतालों की बेहतर हालात और डाक्टरों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था रहे तो आज का युवा अपनी मिट्टी से तो जुड़ना चाहता है, मगर सरकार की नीतियों से जमीन क्रंकीट में बदलते जा रहे है। सारा विकास शहरी हो गया है, वहां पर जान जोखिम में डालकर कौन जाएगा गुलाम साहब ?  रोने की बजाय अपने गिरेबान में झांककर देखेंगे तो आजाद ख्याल के गुलाम साहब असलीयत का अंदाजा लगेगा।


फेसबुकिया दोस्ती से जरा बचके

निसंदेह फेसबुक लोगों को जोड़ने का एक बड़ा माध्यम बन चुका है। नए दोस्तों के साथ पुराने लोग भी एक जीवंत रिश्तों से जुड़ जाते हैं। मगर अपन 46 साल के कलम घिस्सू को बड़े बुरे अनुभव से गुजरना पड़ा। पंजाब के एक इंजीनियरिंग कालेज की एक 24 साल की लड़की (शायद वो लड़का हो) नीरू शर्मा ने दोस्ती मैसेज में रिलेशन बनाने का आफर दिया। वहीं, अभी चार पांच दिन पहले राकेश गर्ग नामक एक युवक ने फ्रेंडशिप करके रोजाना चैट करने लगा। और चौथे या पांचवे दिन गर्ग ने कहा कि क्या हमलोग सेक्स की बाते कर सकते है ? मेरे द्वारा लताड़ने और फिर बात ना करने की हिदायत पर कहीं पिंड छूटा। अपने से 20-22 साल कम उम्र के युवाओं से इस तरह की बातें सुनकर खुद पर शर्म आती है। प्लीज फेसबुक(पर) से जरा बच के भी रहना दोस्तों।

और क्रिकेट की आंधी थम गई

अन्ना की जोरदार आंधी में यह खबर दब गई कि बिहार की तरफ से रणजी खेलने वाले ताबड़तोड़ खब्बू बल्लेबाज रमेश सक्सेना की टाटा( जमशेदपुर) में गुमनाम सी मौत हो गई। हालांकि कई सीएम और खिलाड़ियों ने शोक जताया। आज से 42-44 साल पहले 1967 में इंग्लैंड़ के खिलाफ एकमात्र टेस्ट खेलने वाले(17 और 16 रन)  रमेश ने कोई धमाका तो नहीं किया, मगर दो तीन साल तक कई देशों में टीम के साथ ले जाए जाने के बाद भी फिर कभी मौका नहीं मिला। युसूफ पठान धोनी और याद करे कपिलदेव की हंटर बल्लेबाजी(175 रन)  से भी उम्दा खेलने वाले रमेश के पीछे कोई (गाड) फादर नहीं होना ही इसकी चमक को खा गया। मुझे जमशेदपुर मे आज से 30 साल पहले कालीचरण की वेस्टइंडीज टीम  के खिलाफ सक्सेना की खेली धुंआधार पारी आज भी याद है (तब मैं केवल 15 साल का था और जिद करके घर से 350 किलोमीटर दूर टाटा केवल मैच देखने गया था) कि सक्सेना की 86 रनों की पारी में हर छक्के( 8 छक्के) पर कप्तान कालीचरण सक्सेना के बल्ले को आकर बार बार देखते थे। और जब सक्सेना आऊट हुए तो कालीचरण ने उन्हें अपनी बांहों में जकड़ लिया। आज अगर सक्सेना खेल रहे होते तो इसमें कोई शक नहीं कि इन्हें अपनी टीम में ऱखने के लिए विजय माल्या और शाहरूख खान के बीच करोड़ों की जंग होती। गुमनामी के बाद भी केवल 149 मैचों में 17 शतक और 61 अर्द्धशतक की मदद से 8141 बनाने वाले सक्सेना के दमदार रिकार्ड आज भी चयनकर्ताओं को शर्मसार करने लिए काफी है। बिहार के इस चमकदार और मेरे हीरो रहे रमेश सक्सेना को श्रद्धासुमन के साथ नमन। 

नोट-- एक सप्ताह के लिए मैं दिल्ली से बाहर (असली भारत) में रहूंगा, जहां पर आज भी कम्प्यूटर और लाईट का होना एक स्वप्न है। लिहाजा प्रेसक्लब-6 समय पर प्रस्तुत नहीं कर सकता। इसका इलसा पोस्ट दो या तीन सितम्बर को करूंगा। इसके लिए क्षमायाचना सहित --सधन्यबाद
आपका 
अनामी शरण बबल
20.09.2011 सुबह 3.23 मिनट

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