गुरुवार, 4 अगस्त 2011

ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का संगम है दिल्ली



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नई दिल्ली। दिल्‍ली देश की राजधानी है। यह यमुना किनारे स्थित है। आज से पहले भी सभी सभ्य व्यक्तियों ने इसे राजधानी मानकर सुशोभित किया। यह नगर राज वैभव, कला-कौशल तथा विद्या-बुद्धि आदि बातों में अग्रसर रहा है। यहां की ऊंची-ऊंची तथा ऐतिहासिक इमारतों से पता चलता है कि यह शहर कई बार बना, कई बार उजड़ा है।
इतिहासदिल्ली का उल्लेख सर्वप्रथम महाभारत काल में मिलता है क्योंकि पाण्डवों ने जिस इन्द्रप्रस्थ नगर की स्थापना की थी, उसकी पहचान वर्तमान दिल्ली के रूप में ही की जाती है। इसके पश्चात् दिल्ली पर मौर्य, गुप्त, पाल आदि वंशों के शासकों ने शासन किया।  दिल्ली नगर की स्थापना 11वीं  शताब्दी में तोमरवंश के शासक `अनंगपाल तोमर´ के द्वारा माना जाता है और बाद में पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पर शासन किया। 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई में मुहम्मद गोरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान के पराजित हो जाने पर दिल्ली मुस्लिम शासकों के आधिपत्य में आ गई तथा आगामी 600 वर्षों तक उनके अधीन रही।
1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय अंग्रेजों ने दिल्ली के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को सत्ताच्युत करके इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया। 1911 में ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लायी गई तथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसे ही भारत संघ की राजधानी का गौरव प्राप्त हुआ। जिन्होंने भी यहां शासन किया, उन्होंने अपने शासक काल में कई स्मारकों, मन्दिरों और मस्जिदों का निर्माण करवाया, जो स्थापत्य कला के उत्कृष्‍ट नूमने हैं। यही वजह है कि न केवल भारतीय पर्यटकों को बल्कि विश्व के अन्य देशों के पर्यटकों को भी दिल्ली सदा से लुभाती रही है। इस शहर में अतीत की समृद्ध विरासत का दीदार कराने के लिए अनेक ऐतिहासिक स्थल मौजूद है। दिल्ली का नाम जेहन में आते ही लाल किला, कुतुब मीनार, हुमांयू और सफदरजंग का मकबरा, निजामुद्दीन और ख्वाजा बिख्तयार काकी दरगाह जैसे आधुनिक काल के स्थलों की तस्वीर उभरती है।
अक्षरधाम मन्दिरयमुना के पावन तट पर बना दिल्ली का स्वामिनारायण अक्षरधाम मन्दिर आज किसी परिचय या प्रसिद्धी का मोहताज नहीं है। यह अपनी स्थापत्य कला एवं सौन्दर्य के लिए न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मन्दिर की भव्यता व कारीगिरी को देखते हुए गिनीज वल्र्ड रिकार्ड ने इसे विश्व में हिन्दुओं का सबसे बड़ा मन्दिर होने का दर्जा भी दिया है, वास्तव में यह मन्दिर इंसान की कला व कल्पना का बेजोड़ नमूना है।
100 एकड़ की विशाल भूखण्ड पर बना इस मन्दिर का िशलान्यास 8 नवम्बर 2000 को भव्य सांस्कृतिक समारोह के साथ हुआ था और 5 वर्ष की अल्प अवधि में निमार्ण कार्य पूर्ण होने के साथ 6 नवम्बर 2006 को प्रमुख स्वामी महाराज, तत्कालीन भारत के राश्ट्रपति ए.पी.जे कलाम और प्रधानमन्त्री  डॉ. मनमोहन सिंह की संयुक्त उपस्थिति में इस कल्पनातीत अक्षरधाम संकुल का भव्य उद्घाटन समारोह सम्पन्न किया गया। मुख्य संकुल लाल-गुलाबी सेन्ड स्टोन तथा सफेद संगमरमर से निर्मित हुआ है, जो 141 फीट ऊंचा, 316 फीट चौड़ा तथा 356 फीट लम्बा है। अक्षरधाम में नक्काशीदार 234 स्तम्भ, 9 विशाल गुम्बद, 20 शिखर तथा 20000 से भी अधिक तराशी हुई अत्यन्त मनोहर कलाकृतियां हैं।
लक्ष्मीनारायण बिरला मन्दिरदिल्ली के दिल क्नॉट प्लेस से मात्र 1.5 किलोमीटर पर स्थित बिरला मन्दिर का निर्माण 1938 में प्रसिद्ध उद्योगपति बिरला जी के द्वारा किया गया था और महात्मा गान्धी के द्वारा इस मन्दिर का उद्घाटन किया गया था। यहां भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्मी की मूर्तियां हैं जिनकी पूजा की जाती है। जन्माष्‍टमी के अवसर यहां भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है।
इस्कॉन टेम्पल
यह मन्दिर पूरी तरह से भगवान श्रीकृश्ण को समर्पित है और मन्दिर का निमार्ण `हरे रामा, हरे कृश्णा´ के भक्तों द्वारा 1998 में किया गया। इस मन्दिर का निर्माण `ईस्ट ऑफ कैलाश´ के समाने पहाड़ी पर किया गया है। जो प्राकृतिक सौन्दर्यता के लिए भी जाना जाता है। मन्दिर खुलने का समय सुबह 4.30 से दोपहर 12 बजे तक और फिर शाम में 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक है।
लोटस टेम्पल
लोटस टेम्पल का निर्माण कालकाजी हिल्स पर दिसम्बर 1986 को किया गया, जिसे `बहाई मन्दिर´ के नाम से भी जाना जाता है। जो आज दिल्ली के प्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है प्रत्येक दिन यहां आने वाले यात्रियों की लम्बी भीड़ लगी रहती है। मन्दिर का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया जो साम्प्रदायिक सौहार्द्र का भी प्रतीक है यहां सभी धर्म के लोग आते हैं। मन्दिर श्रद्धालुओं के लिए मंगलवार से रविवार तक खुला रहता है। मन्दिर खुलने का समय ऋतु के अनुसार बदलते रहते हैं। गर्मी में मन्दिर खुलने का समय सुबह 9.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक और जाड़े में सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है।
जामा मस्जिद जामा मिस्जद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद  है। यह मस्जिद लाल किला के बिलकुल समाने है। इस मस्जिद का निर्माण मुगलवंश के शासक शाहजंहा काल में 1644 से 1658 ई माना जाता है। मन्दिर का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है जिसे बनाने में 5000 से अधिक शिल्‍पकारों की मदद ली गई थी। देखरेख का जिम्मा शाहजंहा के प्रधानमन्त्री सादुल्लाह खान के पास थी। इसे बनाने में उस समय कुल 10 लाख रुपए खर्च किए गए थे।
शीशगंज साहिब गुरुद्वारा
शीशगंज गुरुद्वारा लालकिला चान्दनी चौक के पास स्थित है।  इस गुरुद्वारा के पीछे की जो मान्यता है वह यह है कि यह वही जगह है जहां सिख धर्म के 9वें गुरु तेग बहादुर को मुगल शासक औरञ्जेब ने `बनयान´ पेड़ के नीचे सरकलम करवा दिया था।   उन्हीं के याद में  इस जगह पर यह गुरुद्वार बनाया गया है।
रखबगंज साहिब गुरुद्वारारखबगञ्ज गुरुद्वारा का निर्माण सन् 1732 में शहीद सिख गुरु तेग बहादुर के अनुयायी लखी बञ्जरा के द्वारा  किया गया  था । इस गुरुद्वारा के स्थापना के पीछे की जो कहानी है वह यह है कि जब गुरु तेग बहादुर के सिर कटे शरीर को  लखी जी ने अपने घर पर लाकर कर  उनका अन्तिम संस्कार करके इसी जगह पर उनके भस्म कलश को स्थापित किये गए थे। जहां आज यह गुरुद्वारा  है। इससे बनाने में  12 वर्ष लगे और  कुल लागत 25 लाख रुपये लगे थे। यह गुरुद्वारा पन्त रोड, पार्लियामेण्ट हाउस और केन्द्रीय सचिवालय के उत्तरी ब्लॉक के सामने स्थित है।
बंगला साहिब गुरुद्वारा बंगला साहिब गुरुद्वारा दिल्ली के दिल क्नॉट प्लेस के पास स्थित है। आज जहां यह गुरुद्वारा बना हुआ है, वहां पहले  आमेर के राजा जय सिंह का भव्य महल था। सिख के 8वें गुरु हरकिशन सिंह, राजा जय सिंह के इस महल में उनके अतिथि के तौर पर रहा करते थे।  इस गुरुद्वारा के मुख्य कक्ष आधे सोने से और आधे कांस्य से निर्मित है।  सिख धर्म के छठें गुरु हरगोविन्द सिंह भी इस गुरुद्वारे का  भ्रमण कर चुके थे।
जन्तर-मन्तर
जन्तर-मन्तर का निर्माण 1724 ई में राजा जय सिंह द्वितीय के द्वारा किया गया था। यह क्नॉट प्लेस के पास ही स्थित है। आज यह स्थल दिल्ली के प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। संसद के समीप होने के कारण अधिकतर सामाजिक, राजनीतिक और धरना-प्रदर्शन जैसे कार्यक्रम इसी स्थल पर आयोजित होते हैं। हाल ही में, भ्रश्टाचार के खिलाफ पूरे देश में जन आन्दोलन की शुरुआत अन्ना हजारे ने इसी स्थल से की थी।
इण्डिया गेट
दिल्ली के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में से एक है इण्डिया गेट। राजपथ के सामने स्थित होने के कारण इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। प्रत्येक वर्षों गणतन्त्र दिवस यानी 26 जनवरी को देश के प्रथम नागरिक द्वारा यही झण्डोत्तोलन किया जाता है। इण्डिया गेट का निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध और 1919    में अफगान विजय में शहीद हुए 90,000 भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया है। बलुआ पत्थर से निर्मित इस गेट की ऊंचाई 160 फीट है। इस गेट के दीवारों पर शहीद हुए सैनिकों के नाम भी उकेरे गए हैं। 
गेट के अन्दर एक ज्योति हमेशा जलते रहती है जिसे `अमर जवान ज्योति´  के नाम से भी जाना जाता है। इस गेट का नींव 1921 में `ड्यूक ऑफ क्नॉट´ के द्वारा रखा गया और  10 वर्षों बाद लार्ड इर्विन के द्वारा इसे देश को समर्पित किया गया । इसके अन्दर `अमर जवान ज्योति´ का निर्माण भारत-पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुए शहीद जवानों की याद में किया गया। आज इण्डिया गेट भारत के प्रसिद्ध पर्यटक स्मारकों में से एक है।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद 1192 में तराइन के युद्ध में पृथ्वी राज चौहान के हारने पर उसके किले रायपिथौरा पर अधिकार कर वहां पर `कुव्वत-उल-इस्लाम´ मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया। वस्तुत: कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली विजय के उपलक्ष्य में तथा इस्लाम  धर्म को प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से 1192 ई में कुत्ब अथवा कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण कराया। 1230 ई में इल्तुतमिश ने मिस्जद के प्रांगण को दुगुना कराया।  अलादद्दीन ने भी इस मिस्जद का निर्माण सत्ताइस निर्माणाधीन जैन मन्दिरों को ध्वस्त कर बनवाया था।  इस मिस्जद की सर्वोत्कृष्‍ट विशेषता उसका मकसुरा एवं इसके साथ जुड़ा किब्ला लिवान है। यह मिस्जद 212 फुट लम्बे तथा 150 फुट चौड़े समकोणनुमा चबूतरे पर स्थित है।
कुतुबमीनार
यह मीनार दिल्ली से 12 मील की दूरी पर मेहरौली गांव में स्थित है। प्रारम्भ में इस मिस्जद का प्रयोग अञ्जान  के लिए होता था पर कालान्तर में इसे कीर्ति स्तम्भ के रूप में माना जाने लगा।  1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निमार्ण कार्य प्रारम्भ करवाया। ऐबक इस इमारत की चार मञ्जिल का निर्माण कराना चाहता था परन्तु एक मंजिल के निर्माण के बाद ही उसकी मृत्यु हो गई । बाद में इसकी शेश मञ्जिलों को निर्माण  इल्तुतमिश ने 1231 में करवाया। इल्तुतमिश  द्वारा निर्माण करवाने के बाद यह इमारत सात मञ्जिलों की 71.4 मीटर  ऊंची थी। इस समय इसकी 4  मंजिलें ही सुरक्षित हैं शेश तीन मंजिलें क्षतिग्रस्त अवस्था में है। कुतुबमीनार का निर्माण ख्वाजा कुतुबुद्दीन बिख्तयार काकी की स्मृति में कराया गया  था। कुतुबमीनार का निचला भाग लगभग 15 मीटर है जो ऊपर की ओर जाकर मात्र 3 मीटर रह जाता है। मीनार में कुल 375 सीढ़ियां हैं।

राजघाट यह राष्‍ट्रपिता महात्मा गान्धी का स्माधि स्थल है। 31 जनवरी 1948 को महात्मा गान्धी का अन्तिम संस्कार यहीं पर किया गया था। यह 12 गुण 12 वर्ग फीट क्षेत्रफल में बना हुआ है। महात्मा गांधी का आखिरी शब्द `हे राम´ उनके समाधि पर भी उकेरे गए हैं। देश-विदेश से आने पर्यटक इस स्थल का दर्शन  करने अवश्य आते हैं।

संसद भवन1919 में चेम्सफोर्ड द्वारा चलाए गए सुधार कार्यक्रमों के कारण ही पार्लियामेण्ट हाउस की उत्पत्ति हुई थी। पूर्व में इसे सरकुलर हाउस के नाम से जाना जाता था। इसके ऊपर 27.4 मीटर की एक गुम्बद बना हुआ है। गुम्बद की व्यास 173 मीटर है और  यह 2.02 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला  हुआ है। देश भर से चुनकर आने वाले जनता के प्रतिनिधि इसी भवन में बैठकर देश की रणनीति और राजनीति तय करते है। इसी भवन में राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही चलती है।
लोदी गार्डनलोदी गार्डन रोड पर स्थित है जिसे पूर्व में विलिनगटन पार्क के नाम से जाना जाता था। दिल्ली के प्रसिद्ध गार्डनों में से एक है। पॉश इलाकों में होने के कारण इस गार्डन में वीवीआई लोग स्वास्थ्य लाभ लेने आते हैं। इस गार्डन का निर्माण 1936 बिट्रिश लोगों के द्वारा ग्रीन गार्डन के तौर पर किया गया था। फिर 1968 में इस गार्डन को जे.ए. स्टाइन और इकबो के द्वारा पुन: बसाया गया। इसे नेशनल बोनसाई पार्क के तौर पर भी जाना जाता है। गार्डन के बीच में बड़े गुम्बद के मिस्जद का निर्माण 1494 किया था।
लौह स्तम्भलौह स्तम्भ कुव्वल इस्लाम मिस्जद के बीच स्थित है। इसका निर्माण 4वीं सदी में हुआ था। इस लौह स्तम्भ में संस्कृत भाशा में कुछ लिखे हुए हैं जो गुप्तकालीन है इसे भगवान विश्णु के झण्डे के तौरपर विश्णुपद पर्वत पर स्थापित किया गया था। यह चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन का गवाह है। इसी स्तम्भ की ऊंचाई 7.20 मीटर है। इस लौह स्तम्भ के बारे में कहा जाता है कि यह 16 सौ साल से खड़े इस स्तम्भ पर आज तक जंग नहीं लगे हैं। जो वैज्ञानिकों के लिए भी एक शोध का विशय है।
फतेहपुरी मस्जिद
अगर दिल्ली देश का दिल है तो चान्दनी चौक पर स्थित फतेहपुरी मिस्जद दिल की धड़कन है। इस मिस्जद का निर्माण मुगलशासक शाहजंहा की पत्नी बेगम फतेहपुरी के द्वारा 1650 में किया गया था।  1876 ई में पूर्णरूपेण इसे मुस्लिमों के हवाले कर दिया गया।
हुमायूं का मकबरा
हुमायूं मकबरा का निर्माण हुमायूं के बेगम हमीदा बानू बेगम के द्वारा 1565 ई में किया गया था। इस मकबरे का निर्माण सफेद संगमरमर के पत्थरों से किया गया है। इसके गुम्बद विशेश रूप से दर्शनीय है। इसमें काले, “वेत तथा लाल पत्थरों का विशेष तौर पर प्रयोग किया गया है। जो भारतीय तथा फारसी स्थापत्य कला का उत्कृष्‍ट नमूना है।
सफदरगंज का मकबरा
सफदरगंज मकबरे का निर्माण नाम सजाउदौल्ला के द्वारा 1753-54 ई में अपने पिता मिर्जा मुकिन अबुल मंसूर खान सफदरगञ्ज के लिए करवाया। वह सम्राट अहमद शाह का वजीर था। इस मकबरे का नक्काशी इथोपियन बिलाल महमूद खान ने किया था।
पुराना किला
ऐसा माना जाता है कि पुराना किला महाभारतकालीन इन्द्रप्रस्थ के स्थान पर बना हुआ है। यह किला बहुत सारे शासकों का साक्षात् गवाह है। इस किले का निर्माण शेरशाह सूरी ने हुमायूं पर दिल्ली जीत के बाद उसके `दीन पनाह´ को ध्वस्त कर बनाई थी। इसी के पास शेरशाह सूरी का मकबरा भी है। वर्तमान में यहीं पर नौका विहार भी बनाया गया है जो पर्यटकों को अनायास ही अपनी ओर लुभाती है।
कैथेड्रल ऑफ सेक्रेड हर्ट
कैथेड्रल ऑफ सेक्रेड हर्ट नई दिल्ली गोल डाक खाना के पास अशोक रोड पर स्थित है। यह दिल्ली के पवित्र और प्रसिद्ध कैथोलिक चर्चों में से एक है। इस चर्च का निर्माण 1920 में जजों के एक पैनल के द्वारा किया गया था जिसमें सर इडविन लुटियन्स शामिल थे और इस चर्च के शिल्‍पकार थे फादर लयूक। यह चर्च कुल 14 एकड़ में फैला हुआ है।
छतरपुर मन्दिर
मेहरौली स्थित छतरपुर मन्दिर दिल्ली में स्थित हिन्दुओं की सबसे प्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है। यह मन्दिर गुड़गांव-मेहरौली मार्ग पर स्थित है और कुतुबुमीनार से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर ही है। पूरे मन्दिर को सफेद संगमरमर से बनाया गया है और दक्षिणी शैली में बनाया गया है। मन्दिर में भगवान शिव, विष्‍णु, माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान राम की मूर्तियां है जो हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र है।
कालीबाड़ी मन्दिर
कालीबाड़ी मन्दिर माता काली को समर्पित मन्दिर है। मन्दिर छोटे होने के बावजूद लाखों श्रद्धालुओं के लिए  श्रद्धा का केन्द्र है। खासकर बंगाली समुदाय के लिए इस मन्दिर की महत्ता ज्यादा है। दुर्गा पूजा के समय मन्दिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लक्ष्मी नारायण मन्दिर के पास ही स्थित है  कालीबाड़ी मन्दिर।
हनुमान मन्दिर
यह मन्दिर बाबा खड़क सिंह मार्ग नई दिल्ली में स्थित है। यहां चौबीसों घण्टे `श्रीराम, जयराम, जय जयराम´ के अमृत भरे स्वर 1 अगस्त 1964 से    गुञ्जायमान होत आ रहे हैं। इस मन्दिर का निर्माण राजा जय सिंह के द्वारा किया गया था। यह दिल्ली के सबसे पुराने मन्दिरों में से एक है और  हिन्दुओं के लिए श्रद्धा केन्द्रों में से एक है।
दिगम्बर लाल जैन मन्दिर
लाला किला के ठीक पीछे नेता जी सुभाश मार्ग पर स्थित है दिगम्बर लाल जैन मन्दिर जो जैनियों के लिए श्रद्धा का केन्द्र है। दिगम्बर लाल जैन मन्दिर दिल्ली में स्थित सभी जैन मन्दिरों में पुराना है। इसकी स्थापना 1526 ई में हुई। आज यह मन्दिर लाल मन्दिर के नाम से पूरी दिल्ली में प्रसिद्ध है।  
यह मन्दिर जैन धर्म  के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित मन्दिर है लेकिन यहां  जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की भी मूर्तियां स्थापित है। साथ में भगवान पाश्र्वनाथ की मूर्तियों के दर्शन हो सकते हैं।
नानक पियाओ गुरुद्वारा
नानक पियाओ गुरुद्वारा सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी को समर्पित है। यह उद्यान में स्थित गुरुद्वारा है यहां भगवान गुरुनानक 1505 में अपने दिल्ली प्रवास के दौरान यहां रुका करते थे। उस समय यह क्षेत्र सुल्तान सिंकदर शाह लोदी शासक के अन्दर था। यह गुरुद्वारा सिख समुदाय के अलावा अन्य समुदाय के लिए भी श्रद्धा का केन्द्र है।
चांदनी चौक
आज चांदनी चौक अपने 350 वशZ पूरे कर चुका है। आज इसका स्वरूप बदल चुका है। लेकिन चान्दनी चौक आज भी दिल्ली के नामी जगहों में से एक है। अगर कहा जाय कि चान्दनी चौक आज दिल्ली का लेडमार्क बन चुकी है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। शाहजहां के समय में यहां सड़क के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगे होते थे। वृक्षों के साथ-साथ यहां ट्राम लाइन भी बनाई  गई थी। आज यहां न वृक्ष हैं, न ही ट्राम लाइन। पहले यहां सैकड़ों कारोबार होते थे, जैसे रंगरेजी, हाथी दान्त का कम, रपफूगीरी, कामदानी साजी, जरदोजी साजी, तारकशी साजी आदि। अब इनका स्थान बड़ी-बड़ी दुकानों ने ले लिया है।
चान्दनी चौक ने वह दौर भी देखा है जब यहां ठेले और फेरी वाले गीत गा-गाकर अपनी चीजें बेचा करते थे, जैसे-`हरी डाल का नर्म भुट्टा´, `मुलायम ककड़ियां जैसे लैला की उंगलियां, मजनू की पसलियां´, `कुतुब वालों की फीरनियां लो´, `झरने वाली फीरनियां लो´ आदि। एक समय यहां पर बल्जियम के झाड़फानूस, बुखारा के मेवे, कन्धर के अनार, बगदाद की खजूर, अमेरिका के पारकर पेन और मानचेस्टर की पाटन कमीजें भी मिला करती थीं।
आज चान्दनी चौक में विश्‍व की बड़ी-बड़ी मंड़ियां तो बन गई हैं, मगर पहले जैसा इतिहास नहीं रहा।  वह भी समय था कि चान्दनी चौक के बीचोम्बीच फैज नहर बहा करती थी और ठीक चान्दनी चौक पर एक घण्टा भी लगा हुआ था, जिसके कारण उस स्थान का घण्टाघर का नाम भी दिया गया। अंग्रेजों ने न केवल नहर को पाटा, बल्कि घण्टे का भी तिया-पांचा कर दिया। आज चान्दनी चौक का पुराना स्वरूप तो बाकी नहीं है मगर फिर भी इसकी बात बनी हुई है।
कैसे जाएं: दिल्‍ली का करीब-करीब सभी पर्यटन स्‍थल मेट्रो रेल से जुड़ चुका है। घूमने के लिए ऑटो, टैक्‍सी या बस से जाने की जगह दिल्‍ली मेट्रो एक बेहतर विकल्‍प है।
साभार: शशि रंजन वर्मा
(लेखक एक प्रतिष्ठित पत्रिका में पत्रकार हैं )

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