जोशीला सेक्स जीवन जीते हैं भारतीय
कामसूत्र’ की धरती भारत में प्रेमी युगल सर्वाधिक जोशीला सेक्स जीवन व्यतीत कर रहे हैं और वह बिस्तर पर एक-दूसरे की सेक्स इच्छाओं और जरूरतों पर बिना हिचक खुलकर बातें करने में यकीन रखते हैं।
‘ड्यूरेक्स सेक्सुअल वेल बीइंग’ द्वारा विश्व भर के कई देशों में कराए गए एक सेक्स सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। सर्वेक्षण के मुताबिक दस में से सात भारतीयों का दावा है कि वह अपने जीवन साथी के साथ जोशीला और सुखमय सेक्स जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
‘इन द बेडरूम’ नाम से किए गए इस सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार भारतीय पुरुषों की औसतन छह प्रेमिकाए हैं, जबकि भारतीय महिलाओं ने सिर्फ दो पुरुषों में दिलचस्पी दिखाई। वहीं ब्रिटेन में यह आँकड़ा क्रमश: 16 और 10 है, जबकि विश्व भर के औसत के मुताबिक पुरुषों के 13 स्त्रियों तथा महिलाओं के सात पुरुषों से संबंध थे। इन आँकड़ों के लिए ड्यूरेक्स ने 26 देशों में लगभग 26 हजार लोगों से उनके सेक्स जीवन के बारे में सवाल किए।
सर्वेक्षण के मुताबिक तीन चौथाई भारतीय अपने साथी के साथ खुश और संतुष्ट थे, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आँकड़ा 58 फीसदी है। हालाँकि 76 फीसदी यूनानी और 80 फीसदी मेक्सिकोवासी अपने साथियों से संतुष्ट थे, जबकि 49 फीसदी ब्रिटेनवासियों ने अपने साथियों के साथ बेहतर सेक्स जीवन की बात कही।
ड्यूरेक्स द्वारा कराए गए इस प्रकार के दूसरे सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि दो तिहाई भारतीयों का मानना है कि उनका सेक्स जीवन रोमांचक और जोशीला है, जो कि ब्रिटेन में 38 फीसदी और फ्रांस में 36 फीसदी है।
सर्वेक्षण के मुताबिक 71 फीसदी भारतीय सप्ताह में एक बार सेक्स जरूर करते हैं, जबकि 19 फीसदी सप्ताह में पाँच बार सेक्स क्रीड़ा का आनंद उठाते हैं, लेकिन इसके साथ सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि 26 फीसदी भारतीय अपने साथी से बात करने में शर्म महसूस करते हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया कि पूरे विश्व भर में एक समस्या जो सभी जगह सामने आई वह थी सेक्स क्रीड़ा के दौरान अपने साथी से बातचीत में कमी की।
इस सर्वेक्षण में ऑस्ट्रिया, चीन, ब्राजील, कनाडा, स्विट्जरलैंड, रूस, स्पेन, मेक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, इटली, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका में लोगों से सवाल किए गए।देह व्यापार – कानून में बदलाव जरूरी
केंद्र सरकार इमोरल ट्रैफिकिंग पर रोक लगाने के लिए 1956 में बने कानून में संशोधन करने जा रही है। सरकार जहां इस संशोधन को सेक्स वर्करों की समस्याओं को कम करने की दिशा में अहम बता रही है वहीं देश भर के सेक्स वर्कर सरकार के कदम का खुल कर विरोध कर रहे हैं। इस कानून में बदलाव के लिए एक संसदीय समिति ने संसद में 23 नवंबर, 2006 को संशोधन प्रस्ताव रखा। समिति ने कानून में संशोधन संबंधी सुझाव भी दिए। अब महिला और बाल कल्याण मंत्रालय ने भी इसमें कुछ संशोधन कर सरकार को अंतिम मुहर लगाने के लिए भेजा है। हालांकि जिनके लिए यह कानून बनाया जा रहा है उनको सरकार विश्वास में नहीं ले पाई है।
महिला बाल कल्याण मंत्रालय मौजूदा कानून की धारा 2 (एफ) के तहत परिभाषित वेश्यावृति की नई व्याख्या करना चाहता है। वह धारा 2 (जे)और 2 (के) में व्यावसायिक यौन शोषण और शोषण के शिकार की व्याख्या को शामिल करना चाहता है। देश भर के सेक्स वर्करों का विरोध इसी संशोधन को लेकर है। महिला और बाल कल्याण मंत्रालय ने वेश्यावृति की जो नई परिभाषा दी है, उसके मुताबिक पैसे या किसी अन्य कारण से सेक्स को अपराध माना जाएगा। सरकार अगर इन संशोधनों को मान लेती है तो ट्रैफिकिंग और वेश्यावृत्ति एक ही कानून के दायरे में आएंगे। वेश्यावृत्ति फिलहाल देश में अपराध नहीं है लेकिन कानून में संशोधन के बाद वह अपराध के दायरे में होगी। इससे देश की लाखों सेक्स वर्करों की मुश्किलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने देश में ऐसी सेक्स वर्करों की संख्या बहुत ज्यादा है जो गरीबी और भुखमरी से बचने के लिए जिस्म का सौदा करने पर मजबूर हैं। महिला और बाल कल्याण मंत्रालय ने इस संबंध में संसदीय समिति के सुझावों को भी नहीं माना है।
नवंबर, 2006 में जब संसदीय समिति ने कानून में संशोधन के प्रस्ताव दिए थे, तब भी सेक्स वर्करों ने संशोधन प्रस्तावों का विरोध किया था। उस प्रस्ताव में एक प्रस्ताव यह भी था कि जो कोई भी वेश्यालय या रेडलाइट इलाके में धरा जाता है उस पर आपराधिक कार्यों में संलिप्तता के तहत कार्रवाई की जाएगी। इस पर काफी हाय तौबा मचने के बाद महिला बाल कल्याण मंत्रालय ने इसे बदला है, मगर बदलाव कोई राहत देने वाला नहीं है। अब जो प्रस्ताव है उसके मुताबिक वेश्यालय या फिर रेड लाइट इलाके में आने वाले ग्राहकों पर आपराधिक मामले बनेंगे। जाहिर है जब ये कानून का रूप लेगा तो बदनामी और मुकदमे से बचने के लिए सेक्स वर्करों के पास ग्राहकों का जाना कम होगा। कोलकाता के सोनागाछी के सेक्स वर्करों की संस्था दरबार महिला समन्वय समिति की अध्यक्ष भारती डे का कहना है, ‘अगर हमारे ग्राहकों को पकड़ा जाएगा तो वो हमारे पास नहीं आएंगे। क्या ये हमारे पेट पर लात मारने जैसा नहीं है?।’दरअसल देश के विभिन्न राज्यों के सेक्स वर्करों की 14 संस्थाएं पिछले एक साल से लगातार महिला बाल कल्याण मंत्रालय से कानून में तर्कसंगत बदलाव की मांग कर रही है, लेकिन अब इन संगठनों को लगता है कि इनके साथ धोखा हुआ है। नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर के डॉ एस जेना सरकार से ट्रैफिकिंग पर रोक लगाने की बात करते हैं लेकिन कहते हैं कि सरकार को समझना चाहिए कि यह लाखों महिलाओं की आजीविका का साधन है। जेना के मुताबिक सेक्स वर्करों के लिए लेबर एक्ट संबंधित कानून बनाया जाना चाहिए ना कि क्रिमनल कानून। जेना बताते हैं कि सेक्स वर्कर खुद इमोरल ट्रिैफकिंग रोकने के लिए काम कर रही हैं। जरूरत है तो सिर्फ उनके भरोसे को मजबूत करने की। जेना कोलकाता के जाधवपुर विश्वविघालय के उस रिसर्च अध्ययन का हवाला देते हैं जिसमें ये उभरा है कि कोलकाता और उसके आसपास सेक्स वर्करों के संगठन दरबार महिला समन्वय समिति ने कई नबालिग बच्चे और बच्चियों को इस दलदल से बाहर निकाला है। कर्नाटक के मैसूर में सेक्स वर्करों के लिए काम कर रहे संगठन आशुद्ध समिति के सलाहकार सुशेना रजा पाल कहती हैं, ‘हाल के सालों में इमोरल ट्रैफिकिंग बहुत बढ़ी है और इसकी मार भी सेक्स वर्करों को झेलनी पड़ रही है, ऐसे में हम सरकार की मदद करने के लिए तैयार हैं। अगर सरकार हमारी मांगों पर ध्यान दे तो हम अपने अपने इलाके में नाबालिगों की इमोरल ट्रैफिंिकंग रोकने के हरसंभव उपाय करेंगे।’इसके अलावा संशोधन में एक प्रस्ताव ये भी है कि पुलिस इंस्पेक्टर के नीचे भी सब इंस्पेक्टर रैंक के पुलिसकर्मी को विशेष अधिकार दिए जाएं ताकि इमोरल ट्रैफिकिंग को कम किया जा सके। इस प्रस्ताव को लेकर भी सेक्स वर्करों में चिंता है। ज्यादातर सेक्स वर्करों का मानना है कि इमोरल ट्रैफिकिंग के ज्यादातर मामलों में स्थानीय पुलिस और माफिया तत्वों की मिलीभगत होती है, लेकिन पुलिस प्रताड़ित सेक्स वर्करों को करती है। सरकार के संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भाग लेने आंध्र प्रदेश से दिल्ली आई सेक्स वर्कर सत्यवती का कहना है कि कानून बनने के बाद पुलिस को ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे। उनकी वसूली बढ़ेगी तो लालच में वो हमें बार-बार तंग करने पहुंचेंगे। पता नहीं सरकार इस कानून के जरिए किस मदद की बात कर रही है।
इसके अलावा सेक्स बाजार और रेडलाइट इलाकों के समाजिक आर्थिक तानबाने पर नजर रखने वालों का मानना है कि कानून में संशोधन से एचआईवी एडस के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों को धक्का पहुंचेगा। बजाहिर है कि मौजूदा प्रस्तावों के कानून बनते ही सेक्स वर्कर चोरी छुपे धंधा करेंगी। ऐसे में उन तक एड्स रोकथाम संबंधी जानकारी और जागरूकता पहुंचाना संभव नहीं होगा। इस संकट को भांपते हुए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मौजूदा प्रस्तावों से अपनी असहमति जताई है। नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गनाइजेशन ने अपनी आपत्ति जताई है।हालांकि अब यह सरकार को तय करना है कि वह मौजूदा प्रस्ताव को कानून का रूप दे दे या फिर से संशोधन के लिए महिला बाल कल्याण मंत्रालय को लौटा दे। हालांकि यह जरूरी है कि सरकार सेक्स वर्करों की मांगों को भी सुने। नहीं तो मुंबई बार-बालाओं का उदाहरण सामने है। महाराष्ट्र सरकार ने बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के डांस बारों को बंद कर दिया। आए दिन बार-बालाओं की गिरफ्तारी से पता चलता है कि यह चोरी-छुपे अब भी जारी है वहीं आकलन यह भी बताता है कि इस रोक के बाद हजारों बार-बालाएं पेट पालने के लिए जिस्मफरोशी के धंधे में उतर पड़ीं। बेहतर तो यही होता कि सरकार किसी कड़े कानून लाने के बदले इन लोगों के लिए रोजगार के अन्य विकल्पों पर विचार करती, हालांकि हर किसी को रोजगार देना व्यावहारिक रूप से असंभव ही है। ऐसे में सरकार को चाहिए को वो सेक्स वर्करों के संगठनों के सुझावों पर भी ध्यान दे। सेक्स वर्करों की सबसे बड़ी मांग ये है कि ट्रैफिकिंग और वेश्यावृत्ति दोनों अलग-अलग हैं और इसके लिए एक समान कानून नहीं होना चाहिए । सेक्स वर्करों का कहना है कि ट्रैफिकिंग के पीछे प्राय: एक गिरोह काम कर रहा होता है जबकि वेश्यावृत्ति आजीविका के चलते महिलाओं के लिए मजबूरी भी है। पिछले सप्ताह दिल्ली में देश भर के सेक्स वर्करों के प्रतिनिधियों ने इक्ट्ठा हो कर इस प्रस्ताव का विरोध किया है। इन प्रतिनिधियों का मानना है कि उनकी रोजी रोटी का सवाल है वो हर संभव संघर्ष जारी रखेंगी।
कैसे चलता है देह व्यापार का धंधा?
कई समय से कालगर्ल के धंधे के बारे में जानने की जिज्ञासा थी कि क्यों हाई सोसाइटी में रहने वाली लड़कियां इसे कर रही हैं? आजकल तो इस धंधे के बढाने में इंटरनेट के योगदान को भी कम नहीं आंका जा सकता। यह माध्यम पूरी तरह से सुरक्षित है। इसमें सारी डीलिंग ई-मेल द्वारा की जाती है। इन्टरनेट पर दिल्ली की ही कई सारी साइटें उपलब्ध है, जिसमें कई माडल्स के फोटो के साथ उनके रेट लिखे होते हैं। एक परिचित के माध्यम से मेरी मुलाकात लवजीत से हुई जो दिल्ली के सबसे बड़े दलाल के लिए काम करता है। उसने एक पांच सितारा होटल में माया से मेरी मुलाकात का समय तय किया। उसका कहना था कि माया एक इज्जतदार घर की लड़की है और इंगलिश बोलती है। बातचीत के दौरान लवजीत का मोबाइल फोन बजता रहता है। एक के बाद एक इंक्वाइरी जारी रहती है। ‘इस धंधे में हमेशा बिजी रहना पड़ता है’, उसका कहना है। चलने से पहले वो मुझे ठीक वक्त पर पहुंचने की ताकीद करता है। अगर जगह या समय बदलना है तो उसे बताना होगा। पीले टॉप और नीली जीन्स में माया बिल्कुल सही वक्त पर पहुंच जाती है। अभिवादन खत्म और उसे यह जानकर हैरत होती है कि मैं सिर्फ उससे जानकारी चाहता हूं। थोड़ा वक्त जरूर लगता है लेकिन वह अपने धंधे के बारे में बात करने के लिए राजी हो जाती है। ‘हां, अब मुझे इस जिंदगी की आदत हो चली है। अच्छा पैसा और मौज मजा।’ उसके अधिकतर ग्राहक बिजनेसमैन हैं और उनमें से कुछ तो वफादार भी। क्या उसे अजनबियों से डील करना अजीब नहीं लगता? वह कहती है, ‘देखिए हम लोग एक स्थापित नेटवर्क के जरिये काम करते हैं जो बिना किसी रूकावट के धंधे में मददगार है। टेंशन की कोई बात ही नहीं’। माया का दावा है कि महज एक सप्ताह के काम के उसे साठ से अस्सी हजार मिल जाते हैं। जब उसने शुरूआत की थी तो अच्छे घरों की लड़कियां इस धंधे में बहुत नहीं थीं, लेकिन अब बहुत हैं, ‘अब तो यह लगभग आदरणीय हो गया है’, वह व्यंग्य करते हुए कहती है। दिल्ली के उच्च वर्ग, पार्टी सर्किल और सोशलाइटों के बीच ‘गुड सेक्स फॉर गुड मनी’ एक नया चलताऊ वाक्य बन गया है। यही वजह है कि दिल्ली पर भारत की सेक्स राजधानी होने का एक लेबल चस्पां हो गया है। आंकड़ों की बात करें तो मुंबई में दिल्ली से ज्यादा सेक्स वर्कर हैं। लेकिन जब प्रभावशाली और रसूखदार लोगों को सेक्स मुहैया करवाने की बात आती है तो दिल्ली ही नया हॉट स्पॉट है। ये प्रभावशाली और रसूखदार लोग हैं राजनेता, अफसरशाह, व्यापारी, फिक्सर, सत्ता के दलाल और बिचौलिए। यहां इसने पांच सितारा चमक अख्तियार कर ली है।पुलिस का अनुमान है कि राजधानी में देह व्यापार का सालाना टर्न आ॓वर 600 करोड़ के आसपास है। पांच सितारा कॉल गर्ल्स पारंपरिक चुसी हुई शोषित और पीड़ित वेश्या के स्टीरियोटाइप से बिल्कुल अलग हैं। न तो ये भड़कीले कपड़े पहनती हैं और न बहुत रंगी-पुती होती हैं और न ही उन्हें बिजली के धुंधले खंभों के नीचे ग्राहक तलाश करने होते हैं। पांच सितारा होटलों की सभ्यता और फार्महाउसों की रंगरेलियों में वे ठीक तरह से घुलमिल जाती हैं। वे कार चलाती हैं, उनके पास महंगे सेलफोन होते हैं। जैसा कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि हाल ही के एक छापे के दौरान पकड़ी गई लड़कियों को देखकर उन्हें धक्का लगा। वे सब इंगलिश बोलने वाली और अच्छे घरों से थीं। कुछ तो नौकरी करने वाली थीं, जो जल्दी से कुछ अतिरिक्त पैसा बनाने निकली थीं।34 साल की सीमा भी एक ऐसी ही कनवर्ट है। उसे इस धंधे में काफी फायदा हुआ है। किसी जमाने में वह फैशन की दुनिया का एक हिस्सा थी लेकिन उसके करियर ने गोता खाया और वह सम्पर्क के जरिये अपनी किस्मत बदलने में कामयाब हो गई। अब वह दिल्ली की एक पॉश कॉलोनी में रहती है और कार ड्राइव करती है। उसे सस्ती औरत कहलाने में कोई गुरेज नहीं है। उसके मां-बाप चंडीगढ मे रिटायर्ड जीवन जी रहे हैं। सीमा हर तीन महीने में उनसे मिलने जाती है, हालांकि उन्हें मालूम नहीं है कि वो क्या करती है। लेकिन कई औरतों के लिए इस तरह की दोहरी जिंदगी जीना इतना सरल नहीं है। सप्ताह के दिनों में पड़ोस की एक स्मार्ट लड़की की तरह रहना और वीकएंड पर अजनबियों के साथ रातें गुजारना- अनेक पर काफी भारी पड़ता है। ‘अगर आप अकेले हैं तो तो ठीक है, लेकिन अगर परिवार के साथ रहते हैं तो काफी मुश्किल हो जाती है। कुछ लड़कियां दकियानूसी परिवारों से आती हैं और रात को बाहर रहने के लिए उन्हें बहाने खोजने पड़ते हैं’, सीमा कहती है। मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियां इस धंधे में किक्स और त्वरित धन की खातिर उतरती हैं। हालांकि कुछ एक या दो बार ऐसा करने के बाद धंधे से किनारा कर लेती हैं पर कई इसमें लुत्फ लेने लगती हैं। जैसा कि माया कहती है, ‘चूंकि पैसा अच्छा है, इसलिए हम बेहतर वक्त बिता सकते हैं, गोआ में वीकएंड या फिर विदेश यात्रा।’कुछ लड़कियां बगैर दलाल के स्वतंत्र रूप से काम करती हैं लेकिन किसी गलत किस्म का ग्राहक फंस जाने का खतरा उनके साथ हमेशा रहता है। हालांकि पुलिस का कहना है कि औरतें दलाल के बगैर बेहतर धंधा करती हैं। गौर से देखें तो दिल्ली के रूझान के हिसाब से कॉल गर्ल्स आजाद हो चुकी हैं। दलालों की संख्या कम हो रही है। दिल्ली में धंधा इसलिए बढ़ा है कि बतौर राजधानी सारे बड़े-बड़े सौदे यहीं होते हैं। राजनेताओं और अफसरशाहों को इंटरटेन किए जाने की जरूरत होती है। इसके अलावा आसपास काफी पैसा बहता रहता है। कनॉट प्लेस के खेरची दूकानदार से लेकर रोहिणी के रेस्टोरेंट मालिक और गुडगांव के रियल एस्टेट डेवलपर तक सब खर्च करने को तैयार हैं। उनकी सुविधा के लिए ऐसे कई गेस्ट हाउस कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं जो चकलों का काम भी करते हैं। दक्षिण दिल्ली में तो धंधा आवासीय कॉलोनियों से भी चलता है और सामूहिक यौनाचार के लिए किराये पर लिए गए फार्महाउसों पर तो पुलिस के छापे पड़ते ही रहते हैं। हाल ही में दक्षिण पश्चिम दिल्ली के वसंतकुंज में पड़े एक छापे में तीन औरतें और पांच दलाल पकड़े गए थे। उनमें से एक महिला जो बंगलूर से अर्थशास्त्र में स्नातक थी, महीने में पंद्रह दिन दिल्ली में रहती थी और उस दौरान दो लाख रूपया बना लेती थी। बाकी औरतें भी एक रात के दस से पन्द्रह हजार रूपये वसूला करती थीं। उनके ग्राहक बिजनेसमैन और वकील थे। दिल्ली में इस धंधे में सबसे बड़ा नाम क्वीन बी का है जो ग्रेटर कैलाश से सारे सूत्र संभालती है। एक पंजाबी परिवार की यह 44 वर्षीय महिला जिसका उपनाम दिल्ली के एक पांच सितारा होटल से मिलता-जुलता है, लड़कियों की सबसे बड़ी सप्लायर है और इसका नेटवर्क काफी लंबा-चौड़ा है। वो न सिर्फ ‘अच्छी’ भारतीय लड़कियां मुहैया करवाती है बल्कि मोरक्कन, रूसी और तुर्की लड़कियां भी अपने घर में रखती है। नब्बे के दशक की शुरूआत में छापे के दौरान एक पांच सितारा होटल से पकड़ी गई क्वीन बी के नेटवर्क को प्रभावशाली नेताओं और रसूख वाले व्यापारियों का सहारा मिला हुआ है। ‘उसके संबंधों के मद्देनजर उसे तोड़ने में बहुत मेहनत लगेगी’, यह कथन है एक पुलिसकर्मी का, जिसका अनुमान है कि क्वीन बी सिर्फ सिफारिशों पर काम करती है और उसकी एक दिन की कमाई चार लाख रूपया है। फिर दिल्ली में बालीवुड की एक अभिनेत्री भी स‡िय है, जिसके पास अब कोई काम नहीं है। उसके नीचे सात से आठ जूनियर अभिनेत्रियां काम करती हैं। उनका अभिनय करियर खत्म हो जाने के बाद वे सब धंधे में उतर आई हैं। एक दलाल के अनुसार, अफसरशाहों और राजनेताओं में बड़े नाम वाली लड़कियों की काफी मांग है। हाल ही के एक छापे में पकड़ी गई एक युवती दिल्ली की एक फर्म में जूनियर एक्जीक्यूटिव के पद पर थी। गु़डगांव के एक लाउंज बार में एक दलाल की नजर उस पर पड़ गई। उसके चेहरे और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसने उसे धंधे में उतार दिया, लेकिन अपने ग्राहक वह खुद तय करती है। वीक एंड को बाहर जाने पर उसे 60 से 70,000 रूपये मिल जाते है। इसके अलावा ग्राहक उसे महंगे तोहफों से भी नवाजते हैं।राजधानी के एक जाने-माने दलाल का कहना है, ‘चुनाव करने के लिए दिल्ली में अनंत लड़कियां हैं। सही सम्पर्क और सही कीमत के बदले आप जो चाहें हासिल कर सकते हैं’। यहां एक पांच सितारा होटल में पकड़ी गई एक 29 वर्षीय युवती और एक दूसरी लड़की केवल अमीरों और रसूख वालों के काम आती थीं। युवती एक स्कोडा कार ड्राइव करती थी और उसका पता दक्षिण दिल्ली का था। उसकी साथी दिल्ली के जाने-माने स्कूल में पढ़ी थी। उनके पास ग्राहकों का एक अच्छा खासा डेटाबेस था। ये मोबाइल फोन के जरिए धंधा करती थीं और संभ्रांत परिवारों से थीं।
लेकिन यह धंधा चलता कैसे है? ‘दलालों और एक सपोर्ट सिस्टम के जरिए सब कुछ सुसंगठित है, जहां युवावर्ग उठता-बैठता है। ऐसी जगहों पर लोग भेजे जाते हैं। शहर के बाहरी छोर पर स्थित पब और लाउंज बार इस मामले में काफी मददगार साबित होते हैं। यहीं पर नई भर्ती की पहचान होती है। सही जगह पर सही भीड़ में आप पहुंच जाइए, आप पाएंगे कि ऐसी कई महिलाएं हैं जो पैसा बनाना और मौज-मजा करना चाहती हैं।’ यह कथन है एक ऐसे शख्स का जो धंधे के लिए लड़कियों की भर्ती करता है। एक बार दलाल की लिस्ट में लड़की आई नहीं कि धंधा मोबाइल फोन पर चलने लगता है। सामान्यतया मुलाकात की जगह होती है कोई पांच सितारा होटल, ग्राहक का गेस्ट हाउस या फिर उसका घर। पुलिस के अनुसार अधिकतर दलाल केवल उन लोगों के फोन को तरजीह देते हैं जिनका हवाला किसी ग्राहक द्वारा दिया जाता है। इससे सौदा न सिर्फ आपसी और निजी रहता है, बल्कि एक चुनिंदा दायरे तक ही सीमित होता है।पांच सितारा कॉल गर्ल्स के साथ ही बढ़ती हुई तादाद में मसाज पार्लर, एस्कॉर्ट और डेटिंग सेवाएं भी दैहिक आनंद के इस व्यवसाय को और बढ़ावा दे रही हैं। ये सब सेक्स की दूकानों के दूसरे नाम हैं। दिल्ली के अखबार इन सेवाओं के वर्गीकृत विज्ञापनों से भरे रहते हैं। कुछ समय पहले इन पार्लरों का सरगना पकड़ा गया था जिसके दस से अधिक पार्लर आज भी दिल्ली में चल रहे हैं। मजेदार बात यह है कि यह शख्स इंजीनियरिंग ग्रेजुएट है और आईएएस की परीक्षा में भी बैठा था। अपने तीन दोस्तों के साथ इसने देह व्यापार के धंधे में उतरना तय किया और साल भर में उसने शहर में आठ मसाज पार्लर खोल दिए। कुख्यात कंवलजीत का नाम आज भी पुलिस की निगरानी सूची में है। किसी जमाने में दिल्ली के वेश्यावृत्ति व्यवसाय का उसे बेताज बादशाह कहा जाता था। जब दिल्ली में उस पर पुलिस का कहर टूटा तो वह मुम्बई चला गया। पुलिस के अनुसार अभी भी अपनी दो पूर्व पत्नियों के जरिये उसका सिक्का चलता है। उसके दो खास गुर्गे- मेनन और विमल अपने बूते पर धंधा करने लगे हैं। पुलिस मानती है कि वेश्यावृत्ति के गिरोहों की धर पकड़ अक्सर एक असफल प्रयास साबित होता है क्योंकि थोड़े समय बाद ही यह फिर उभर आती है। चूंकि यह एक जमानती अपराध है और पकड़ी गई औरतें कोर्ट द्वारा छोड़ दी जाती हैं इसलिए वे फिर धंधा शुरू कर देती हैं। पुलिस का यह भी मानना है कि चूंकि यह सामाजिक बुराई है इसलिए छापे निष्प्रभावी हैं। इसे कानूनी बना देना शायद बेहतर साबित हो। लेकिन राजनेता दुनिया के सबसे पुराने पेशे पर कानूनी मोहर लगाना नहीं चाहते, लिहाजा यह धंधा फल-फूल रहा है।
शारीरिक सुख…पैसे की चकाचौंध या फिर आधुनिकता?
आधुनिकता की चकाचौंध ने सबको अपनी तरफ आकर्षिक किया है। समाज के हर तबके की मानसिकता बदल गई है। लोगों की मानसिकता का बदलाव समाज से तालमेल स्थापित नहीं कर पा रहा है। आज लोगों की महत्वाकांक्षा बढ़ गई है और वह उसे हर हाल में पूरा करना चाहते हैं। कुछ समय पहले तक किसी भी अपराध या दुराचार को व्यक्तिगत मामला कहकर टाला नहीं जा सकता था लेकिन आज हर किसी ने अपने को सामाजिक जिम्मेदारी से मुक्त कर लिया है। रही-सही कसर संयुक्त परिवारों के टूटने से पूरी हो गई। व्यक्ति आत्मकेंद्रित हो गया है।समाज और परिवार दो महत्वपूर्ण इकाई थे जो व्यक्ति के लिए सपोर्ट सिस्टम का काम करते थे। व्यक्ति सिर्फ अपने बीबी-बच्चों के प्रति ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के प्रति जिम्मेदार होता था। पास-पड़ोस से मतलब होता था, आज वह पूरी तरह खत्म हो गया है। आज हमारे पड़ोस में कौन रहता है, इसकी खबर न तो हमको रहती है और न करना चाहते हंै। आज यदि आप अपने पड़ोसी से संबंध बनाना भी चाहें तो शायद वह ही संबंध बनाने का इच्छुक न हो। पड़ोस का डर और सम्मान अब नहीं रहा। अपनी जड़ों, समाज और संस्कृति से हम कट गए हंै। पुराने मूल्यों का टूटना लगातार जारी है।आधुनिकतम जीवनशैली अभी तक कोई मूल्य स्थापित नहीं कर पाई है, जिसकी मान्यता और बाध्यता समाज पर हो। आज समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। कोई मूल्य न रहने से नैतिक बंधन समाप्त हो चुका है। यह स्वच्छंदता ही गलत राह पर ले जाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। आज हर आदमी उच्च वर्ग की नकल कर रहा है, इसके लिए चाहे जो रास्ता अपनाना पड़े। मेरे पास भी वह कार होनी चाहिए जो पड़ोसी के पास है। दफ्तर में सब के बराबर भले ही वेतन न हो, लेकिन हम किसी से कम नहीं।एक समय था जब समाज के निचले तबके अथवा छल कपट से कोठे पर पहुंचा दी गई महिलाएं ही इस पेशे में थीं, अब तो समाज के हर वर्ग के लोग इसमें शामिल हैं। खास कर पढ़ी-लिखी उच्च और मध्यम घराने की लड़कियां तो ज्यादा हैं। अभी दिल्ली के स्कूल की अध्यापिका ने जो किया वह तो मानवता के लिए कलंक के समान है। संकुचित मानसिकता, परिवारों का विघटन और अल्प लाभ के लिए यह पेशा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। मनोविज्ञान की भाषा में इसे विकृति कहा जाता है। पहले हम वही सामान खरीदते थे जिसकी जरूरत होती थी। कुछ लोगों में मालसिंड्रोम होता है। वे दुकानों में घुसने पर सब कुछ खरीद लेना चाहते हंै। घर-परिवार से तो हर आदमी को एक निश्चित राशि ही मिलती है। इसके लिए उन्हें गलत रास्ता अख्तियार करना पड़ता है। छात्रवासों में रहने वाली लड़कियां हमारे पास आती हंै। उनको अपने इस काम से कोई अपराधबोध नहीं होता है। कुछ तो पैसे के लिए फार्म हाउस में जाती हंै। फार्म हाउस और कोठियां सबसे सुरक्षित स्थान बन गए हैं। ऐसे स्थानों पर जाने वाली लड़कियां एक रात में ही हजारों कमा लेती हैं। इसका कारण पूछने पर पता चलता है कि अपनी असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए आज बड़े घरों की लड़कियां भी इस पेशे में उतर आई हैं। विदेशों में तो डॉक्टर और इंजीनियर की सम्मानित नौकरी पर लात मार कर ढेर सारी महिलाएं इसमें आई हैं। कम समय में ज्यादा पैसा कमाना ही इसका मुख्य कारण है।
सेक्स की कुंठा से भी कुछ महिलाएं इस पेशे में आती हंै। इस बीमारी को निम्फोमेनिया कहते हैं। ऐसी महिलाएं पैसा तो नहीं लेती हैं, लेकिन यह भी अनैतिक ही है। सेक्स कारोबार में इनका प्रतिशत सिर्फ आठ है। आज का सारा सेक्स रैकेट पढ़े-लिखे सफेदपोश लोग संचालित कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण धैर्य की कमी, तात्कालिक लाभ, मानसिक असंतुलन और अमीर बनने की चाहत है।सेक्स रैकेट आज प्रोन्नति, ठेके, पैसे और बड़े-बड़े कामों में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुका है। शारीरिक सुख और पैसा सबसे ऊपर हो गए हैं। आज जिसके पास पैसा नहीं है उसके पास लोगों की निगाह में कुछ भी नहीं है। पैसे में ही मान-सम्मान, इज्जत और सारा सुख निहित मान लिया गया है। एक दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि शहरों की आबादी जिस तरह से बढ़ रही है उसमें देश के एक छोर से दूसरे छोर के लोग आसपास रहते हुए भी एक दूसरे से घुल मिल नहीं पाते हैं। यही कारण है कि गांवों की अपेक्षा शहरों में सेक्स रैकेट ज्यादा है।
बढ रहा देह व्यापार
अब सेक्स की मंडी में ग्राहकों की भीड़ केवल मौज मस्ती या शारीरिक सुख के लिए ही नहीं लगती। इस मंडी से खरीदा गया माल आफिस में तरक्की का मार्ग खोल देता है, चुनाव का टिकट दिला देता है, बड़े से बड़े टेंडर दिला देता है। यही कारण है कि अब सेक्स के बाजार में सिक्कों की चमक पहले से कहीं ज्यादा है और बड़ी तादाद में लड़कियां इस कारोबार की आ॓र आकर्षित हो रही हैं।एक जमाना था जब रेड लाइट एरिया से पकड़ी जाने वाली औरतें अपनी मजबूरियां बताती थीं, लेकिन अब पकड़ी जाने वाली अधिकतर लड़कियों के सामने मजबूरी नहीं बल्कि फाइव स्टार होटलों का ग्लैमर, सिक्कों की चमक और बढ़ती महत्वाकांक्षा है। कभी रेडलाइट एरिया और गली मोहल्लों में सिमटा यह धंधा अब बड़ी कोठियों, फार्म हाउस और बड़े होटलों तक पहुंच गया है। अब मसाज सेंटर या ब्यूटी पार्लर का भी इस्तेमाल इस धंधे में कम होता है ताकि इसमें शामिल लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा बरकरार रहे। रेड लाइट एरिया तक जाने में बदनामी का डर रहता है लेकिन आज के हाई प्रोफाइल सेक्स बाजार में कोई बदनामी नहीं, क्योंकि ग्राहक को मनचाही जगह पर मनचाहा माल उपलब्ध हो जाता है और किसी को कानों कान खबर तक नहीं होती। बस मोबाइल पर एक कॉल और इंटरनेट पर एक क्लिक से मनचाही कॉलगर्ल आसानी से उपलब्ध हो जाती है। हालांकि मजदूर वर्ग और लो प्रोफाइल लोगों के लिए अब भी रेडलाइट एरिया की गलियां खुली हैं लेकिन एचआईवी संक्रमण के खतरों ने वहां भीड़ कम जरूर कर दी है।अब इस कारोबार में न केवल विदेशी लड़कियां शामिल हैं बल्कि मॉडल्स, कॉलेज गर्ल्स और बहुत जल्दी ऊंची छलांग लगाने की मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़कियों की संख्या भी बढ़ रही है। पुलिस के बड़े अधिकारी भी मानते हैं कि अब कॉलगर्ल और दलालों की पहचान मुश्किल हो गई है क्योंकि इनकी वेशभूषा, पहनावा व भाषा हाई प्रोफाइल है और उनका काम करने का ढंग पूरी तरह सुरक्षित है। यह न केवल विदेशों से कॉलगर्ल्स मंगाते हैं बल्कि बड़ी कंपनियों के मेहमानों के साथ कॉलगर्ल्स को विदेश की सैर भी कराते हैं। कॉलगर्ल्स और दलालों का नेटवर्क दो स्तरों पर है। एक अत्यंत हाईप्रोफाइल है जिसमें फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली और आधुनिक वेशभूषा वाली हाई फाई कॉलगर्ल हैं तो दूसरा नेटवर्क महाराष्ट्र, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, नेपाल और भूटान से लाई गई बेबस लड़कियों का है। ग्राहक की मांग के अनुसार ही कॉलगर्ल उपलब्ध कराई जाती है।सेक्स के इस कारोबार में नये ग्राहक को प्रवेश बहुत मुश्किल से मिलता है। पकडे़ जाने के डर से केवल पुराने व नियमित ग्राहकों को ही प्राथमिकता दी जाती है। जगह की व्यवस्था करने का रिस्क भी इस धंधे में लगे लोग नहीं लेते। यह व्यवस्था ग्राहक को स्वयं करनी होती है। ग्राहक को एक निश्चित स्थान पर कॉलगर्ल की डिलीवरी किसी मंहगी कार के माध्यम से कर दी जाती है। वहां से ग्राहक अपने वाहन से उसको मनचाहे स्थान पर ले जाता है। अमूमन यह स्थान बड़े होटल, बड़ी कोठियां या फिर फार्म हाउस होते हैं। दलाल पोर्न वेबसाइटों के जरिए एक-दूसरे से सम्पर्क साध कर अपना नेटवर्क मजबूत बनाते हैं। इंटरनेट पर हजारों ऐसी साइटें हैं जहां कॉलगर्ल्स की फोटो व उनका प्रोफाइल उपलब्ध रहता है जिन्हें देखकर ग्राहक अपना ऑर्डर बुक कर सकते हैं। दिल्ली पुलिस के उपायुक्त देवेश चंद श्रीवास्तव के अनुसार, ‘विश्वसनीयता इस धंधे का प्रमुख हिस्सा है। कॉलगर्ल सीधी डील नहीं करती और किसी भी कीमत पर किसी नये ग्राहक से डील नहीं की जाती। पुराने सम्पर्क के आधार पर ही डील की जाती है। यही कारण है कि पुलिस जल्दी से इनकी पहचान नहीं कर पाती। इस धंधे में लगे लोगों के अपने कोडवर्ड हैं जिनका इस्तेमाल कर वह ग्राहकों से बातचीत करते हैं।’वो जमाना गया जब किसी भी कॉलगर्ल या सेक्स वर्कर तक पहुंचने के लिए टैक्सी ड्राइवर, ऑटो चालक या किसी नुक्कड़ के पान विक्रेता को टटोलना पड़ता था, क्योंकि वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं के दलाल अक्सर इसी वर्ग के होते थे। यह दलाल ग्राहक को ठिकाने तक पहुंचाने के बाद बाकायदा वसूली करते थे। ऐसे कुछ दलाल ग्राहक और वेश्या दोनों से दलाली लेते थे जबकि कुछ केवल वेश्या से ही अपना हिस्सा मांगते थे लेकिन अब इस तरह के दलालों का जमाना गये वक्त की बात हो गई है।
सेक्स के कारोबार में अब दलालों की पहचान बदल गई है। वे हाई प्रोफाइल हो गये हैं, सेक्स कारोबारी बन गये हैं। ये सुसज्जित कार्यालयों में बैठते हैं और इनकी रिशेप्सनिस्ट ईमेल और मोबाइल पर आने वाली सूचनाओं के आधार पर कॉलगर्ल्स की बुकिंग करती है। ईमेल या मोबाइल पर ही ग्राहक को डिलीवरी का स्थान बता दिया जाता है और फिर निश्चित स्थान पर पूरी रकम एडवांस लेने के बाद कॉलगर्ल की डिलीवरी कर दी जाती है। जिस तरह व्यापारी अपने व्यापार में माल की क्वालिटी, ग्राहकों की पसंद, दुकान की ख्याति, स्टेंडर्ड आदि का ध्यान रखता है, उसी तरह सेक्स के ये कारोबारी भी अपने व्यापार को लेकर बहुत सजग हैं। वह अपने पास हर तरह का माल रखना पसंद करते हैं ताकि कोई ग्राहक खाली न लौटे। ग्राहक की पुलिस से सुरक्षा व पूर्ण संतुष्टि का भी दलाल ख्याल रखते हैं ताकि वह उनका स्थायी ग्राहक बना रहे। अब कॉलगर्ल या ग्राहक से इन्हें दलाली नहीं मिलती बल्कि यह खुद सौदा करते हैं और कॉलगर्ल्स को अपने यहां ठेके पर या फिर वेतन पर रखते हैं। उस अवधि में ठेकेदार इनकी सप्लाई कर कितना कमाता है इससे इन्हें कोई मतलब नहीं होता। जिस प्रकार किसी कर्मचारी के लिए काम के घंटे व छुट्टी के दिन निर्धारित होते हैं, उसी पर ठेके या वेतन पर काम करने वाली कॉलगर्ल्स के भी काम और आराम के दिन निर्र्धारित होते हैं। काम की एक रात के बाद उनकी अगली रात अमूनन आराम की होती है लेकिन अगली रात की भी मांग हो तो इन्हें अतिरिक्त भुगतान मिलता है।
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