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वर्ष 2011 भारत के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष है ।
ठीक सौ वर्ष पूर्व 1911 में किंग जार्ज पंचम और क्वीन मेरी भारत आए तथा 12 दिसम्बर को दिल्ली में लगे दरबार में घोषणा की कि बंगाल का विभाजन समाप्त होता है और ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित की जाती है।
यह वर्ष गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन्म की 150 वीं जयन्ती के रुप में भी मनाया जा रहा है।
इसी सप्ताह में राष्ट्र ने गणतंत्र दिवस समारोह भी मनाया। परन्तु यह सर्वाधिक शर्मनाक था कि विश्व के सर्वाधिक बड़े गणतांत्रिक देश में, देश के दो सर्वोच्च नेताओं श्रीमती सुषमा स्वराज और श्री अरुण जेटली क्रमश: नेता प्रतिपक्ष लोकसभा एवं राज्यसभा - को गणतंत्र दिवस जम्मू एवं कश्मीर राज्य सरकार की हिरासत में मनाना पड़ा। उनका अपराध? वे श्रीनगर के उस क्षेत्र में जहां अलगाववादियों की चलती है, में राष्ट्रीय तिरंगे को फहरते हुए देखने के इच्छुक थे।
इन दोनों नेताओं को भाजपा के युवा मोर्चे द्वारा श्रीनगर के लाल चौक पर जंहा अलगाववादियों ने चुनौती दे कर पाकिस्तानी झण्डा, और वह भी पिछली ईद के दिन फहराया था, पर राष्ट्रीय तिरंगा फहराने के संकल्प के समर्थन में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जम्मू में आयोजित सार्वजनिक सभा को संबोधित करना था। जब चार्टर्ड विमान जम्मू पहुंचा तो तीन पुलिस अधिकारी विमान में घुसे और दिल्ली से गए भाजपा नेताओं को राज्य सरकार का आदेश सुनाया कि वे राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते और उन्हें इसी विमान से दिल्ली वापस लौटना होगा!
दिल्ली से गए इन नेताओं ने पुलिस अधिकारियों को दो टूक शब्दों में जवाब दिया कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो उन्हें राज्य में प्रवेश करने से रोके या जिसके चलते उन्हें दिल्ली वापस भेजा जा सके!
सुषमाजी, जेटलीजी और अनंत कुमारजी जब विमान से उतरे तो उन्होंने पाया कि टर्मिनल में उनके प्रवेश पर रोक है। तत्पश्चात् 6 घंटे तक उन्होंने हवाई पट्टी पर एक प्रकार से धरना दिया।
जम्मू हवाई अड्डे पर धरने का एक नतीजा निकला। देर रात्रि को पुलिस ने इन तीनों को हिरासत में लेकर कहा कि उन्हें जेल ले जाया जाएगा, लेकिन यह भी एकदम झूठ निकला। उन्हें तीन अलग-अलग कारों में बिठा कर तीन या उससे ज्यादा घंटे के सफर के बाद अतंत: जम्मू कश्मीर से बाहर -पंजाब सीमा पर ले जाकर छोड़ दिया। लेकिन यदि राज्य सरकार को यह लगता था कि आखिरकार वह इनको राज्य से बाहर भेजने में सफल हो गई, तो यह गलत सिध्द हुआ।
युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और उनके साथ पांच सौ से ज्यादा युवक-युवतियों के साथ इन तीनों वरिष्ठ नेताओं ने उस ऐतिहासिक माधोपुर-लखनपुर पुल को पार कर शांतिपूर्ण गिरफ्तारी दी जिसे 58 वर्ष पूर्व पार करने पर डा0 मुकर्जी को बगैर परमिट के राज्य में प्रवेश करने पर गिरफ्तार किया गया था। इन सभी को जम्मू के निकट कठुआ ले जाया गया और 26 जनवरी को दोपहर तक बंदी बनाकर रखा गया। जिन्होंने टीवी पर तिरंगा हाथ में लिए पुल पर सैंकड़ों सत्याग्रहियों के इस प्रेरणादायी दृश्य को देखा होगा उन्हें अवश्य ही ब्रिटिश शासन के विरुध्द स्वतंत्रता संग्राम वाली फिल्मों में ऐसे दृश्य अवश्य ही स्मरण हो आए होंगे।
जबकि एक तरफ अलगाववादियों के निर्लज्ज प्रवक्ता यासीन मलिक दिन-रात चिल्ला रहा था कि ”देखें लाल चौक पर कौन तिरंगा लगाने की हिम्मत करता है”, तो दूसरी ओर यह देखकर निराशा हुई कि राज्य सरकार ने सचमुच में तिरंगा ले जाने मात्र को अपराध बना दिया और लाल चौक के आस- पास तिरंगा ले जाने वालों को पुलिस ने न केवल गिरफ्तार किया अपितु गिरफ्तार करके उन्हें बुरी तरह से पीटा। उन अनेक कार्यकर्ताओं जो सख्त पुलिस घेराबंदी के बावजूद लाल चौक तक पहुंचने में सफल हुए, में से कुछ की हड्डियां पुलिस ने तोड़ दीं! दिल्ली प्रदेश भाजपा के महासचिव सरदार आर.पी. सिंह उनमें से एक थे। उन्हाेंने व्यक्तिगत रुप से मुझे अपने उन भयावह अनुभवों को सुनाया कि कैसे पुलिस थाने में लगभग पांच घंटे तक उन्हे 15-15 मिनट के अंतराल पर बुरी तरह पीटा गया। लाठियों और चप्पलों से पिटाई के साथ उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां भी लगातार सुनने को मिलीं।
सन् 1953 में जब डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना आंदोलन शुरु किया था तब तिरंगा फहराने पर औपचारिक प्रतिबंध था। यहां उल्लेख करना उचित होगा कि इस आदेश का उल्लंघन करने और भारतीय तिरंगे को फहराने के लिए राज्य पुलिस ने पार्टी के 15 कार्यकर्ताओं को मार गिराया था।
पाकिस्तानी नेतृत्व ने पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से को सही ढंग से नहीं संभाला। नतीजा हुआ स्वतंत्र देश के रूप में उदय।
जम्मू एवं कश्मीर राज्य के मुद्दे को पण्डित नेहरू ने जिस ढंग से हैंडल किया - प्रदेश में पाकिस्तानी आक्रमण के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ को बीच में लाना और प्रदेश के लिए एक पृथक संविधान और पृथक निशान (झण्डा) स्वीकार करना - उससे इसी तरह के विनाशकारी परिणाम हो सकते थे।
जम्मू एवं कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के लिए डा0 श्यामा प्रसाद मुकर्जी के आंदोलन का लक्ष्य सरदार पटेल ने अन्य 554 देशी रियासतों के सम्बन्ध में हासिल किया; और इन सबसे ऊपर कारावास में डा0 मुकर्जी के बलिदान ने उन दिनों में देश को इस आपदा से बचा लिया।
लेकिन भाजपा की तिरंगा यात्रा को लेकर सरकार के कुप्रबन्धन ने यह रहस्योद्धटित किया है कि कांग्रेस पार्टी अभी भी जम्मू एवं कश्मीर राज्य के सवाल पर अपनी उन विकृत गलतियों को बदलने को तैयार नहीं है जो उन दिनों उसने की। अब यह प्रयास करके भाजपा ने देश की एकता और अखण्डता के लिए उत्कृष्ट सेवा की है जिसके लिए पार्टी के संस्थापक ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
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