मंगलवार, 9 अगस्त 2011

स्वास्थ्य घोटाले की और परतें खुलीं



ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम में केंद्र ने उत्तर प्रदेश को अबतक 8200 करोड़ रूपए दिए हैं
केंद्र सरकार द्वारा छह साल पहले जोर-शोर से लागू की गई राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना में उत्तर प्रदेश में खुले भ्रष्टाचार और अपराध की परत-दर-परत ख़ुलती जा रही हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एक टीम ने उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िलों का दौरा करने के बाद लगभग 400 पन्नों की एक रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी है.
इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम के तहत मोबाइल मेडिकल गाड़ियों, अस्पतालों के निर्माण, स्वच्छ पेयजल, कचरे की सफाई और दूसरे कामों का ठेका देने में गंभीर गड़बड़ियाँ हुईं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्माण एजेंसियों के साथ कोई औपचारिक करार किए बिना ही सैकड़ों करोड़ रुपयों का अग्रिम भुगतान कर दिया गया.
दिल्ली से आ रही ख़बरों के मुताबिक़ ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल आदि के निर्माण के लिए वर्ष 2009 से 2011 के बीच 610 करोड़ रुपयों के ठेके बिना टेंडर भराए दे दिए गए.
विभिन्न प्रकार की सामग्री की सप्लाई के लिए 1000 करोड रुपयों का एडवांस पेमेंट ठेकेदारों को कर दिया गया.
और ये केवल दो साल की बानगी है.

योजना

योजना के ख़र्च का 85 फ़ीसदी केंद्र और 15 फ़ीसदी राज्य सरकार को देना होता है.
ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम में केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश को अब तक 8200 करोड़ आबंटित किए हैं.
मक़सद यह था कि इस धन से राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों की इमारतें सुधरेंगी, डॉक्टर तैनात होंगे, ग़रीबों विशेषकर माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार आएगा और टी बी मलेरिया, डेंगू, घेघा रोग जैसी बीमारियों पर नियंत्रण होगा.
इस योजना में महिलाओं को प्रसव के दौरान चिकित्सा और आर्थिक सहायता, बच्चों के टीकाकरण, जनसंख्या नियंत्रण जैसे अनेक कार्यक्रम शामिल थे.
इसमें गरीब रोगियों को दवाओं की आपूर्ति भी शामिल थी. योजना में काफ़ी धन लोगों को जागरूक बनाने के लिए प्रचार प्रसार में भी ख़र्च किया जाता है.
लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों की हालत और स्वास्थ्य सुविधाओं को बहुत सुधार दिखाई नही देता, क्योंकि अधिकारियों और माफ़िया ठेकेदारों ने फर्ज़ी बिल बनाकर धन की बंदरबांट कर ली.

हत्याकांड

मायावती सरकार ने माना है कि इस घोटाले में बहुत बड़ी धनराशि शामिल है
यह बंदरबांट तीन महीने पहले लखनऊ में सीएमओ परिवार कल्याण डॉक्टर बी पी सिंह हत्याकांड के बाद ही उजागर हो सकी.
तभी यह भी उजागर हुआ कि इससे पहले डॉक्टर विनोद आर्य की हत्या में भी विभागीय धन की बंदरबांट मुख्य वजह थी.
फिर डिप्टी सीएमओ डॉक्टर सचान की जेल में हत्या के बाद घपले की परत-दर-परत खुलती जा रही हैं.
डॉक्टर बी पी सिंह हत्याकांड के बाद पहली बार मुख्यमंत्री मायावती ने बयान जारी कर माना कि ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना में गंभीर गड़बड़ियाँ हुईं.
उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने कहा,”राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के विभिन्न कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार तथा सत्यापन में वाहनों का वास्तविक प्रयोग न करके फ़र्ज़ी उपयोग दर्शाकर और फ़र्ज़ी बिल तैयार करके शासकीय धन का आहरण करना, टेंडर प्रक्रिया के तहत स्वीकृत मैनपावर से अधिक संख्या में मैनपावर दर्शाकर स्वीकृत धनराशि से अधिक धन का आहरण करना, दवाओं तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों का फ़र्ज़ी भुगतान करना, दवाओं/उपकरणों की वास्तविक आपूर्ति न होना, चिकित्सालयों में जेनरेटर के डीज़ल का भुगतान चेक से फ़ार्म को न करके नकद भुगतान किया जाना तथा वास्तविक उपयोग से अधिक डीज़ल का ख़र्च दिखाया जाना, जननी सुरक्षा के अंतर्गत लाभार्थी को चेक से भुगतान न करना आदि अनियमितताएँ प्रकाश में आई हैं.’’
कैबिनेट सचिव ने माना कि इस घपले में बहुत बड़ी धनराशि शामिल है.
इसके बाद मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को इस कार्यक्रम की क्रियान्वयन करने वाली समिति का अध्यक्ष बना दिया.
साथ ही धन की निगरानी के लिए वित्तीय समितियाँ गठित की गईं.
मुख्यमंत्री ने अपने सबसे करीबी समझे जाने वाले परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र का त्यागपत्र ले लिया. लंबे समय तक विभाग के प्रमुख सचिव और कर्ता-धर्ता रहे प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ला का तबादला कर दिया गया.

सरकार

प्रेक्षकों के अनुसार मुख्यमंत्री मायावती ने यह सब कदम उठाकर यह जताने की कोशिश की कि इन घपलों घोटालों से उनका कोई संबंध नहीं है.
ग़ौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम में अरबों रूपए का ठेका लेने वाले किसी भी ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्यवाही नही की है.
चर्चा है कि ये ठेकेदार सत्तारूढ़ दल बहुजन समाज पार्टी के महत्वपूर्ण नेता हैं और उनकी पहुँच सीधे मुख्यमंत्री तक है.
मामला इतना नाज़ुक है कि कोई भी अधिकारी बात करने को तैयार नहीं है.
हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि परिवार कल्याण विभाग में तीन डाक्टरों की हत्याएं सीधे तौर पर विभाग में भ्रष्टाचार और माफिया गठजोड का परिणाम है.
मगर लोगों को आश्चर्य इस बात का है कि हज़ारों करोड़ रुपयों के केंद्रीय धन की खुली लूट के बावजूद भारत सरकार ने अभी तक कोई कारगर कदम क्यों नही उठाए हैं.

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