मंगलवार, 4 जुलाई 2023

आर्थिक तंगी से त्रस्त है ओबरा का कालीन उद्योग*

 विभागीय उदासीनता के चलते आर्थिक तंगी का सामना कर रहा ओबरा का कालीन उद्योग


 _रॉकी दूबे, ओबरा_  

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अपने स्वर्णिम इतिहास को संजोए ओबरा का कालीन उद्योग अपने अस्तित्व की रक्षा करने में भी सक्षम नहीं है।  जानकारो के अनुसार ओबरा में निर्मित कालीन एक समय जर्मन, अमेरिका, फ्रांस जैसे विकसित देशों के राजा महाराजाओं के दरबारों की शोभा में चार चाँद लगाते थे। यहाँ तक की इंग्लैंड की महारानी ने अपने दूत को भेजकर अपनी राजमहल की शोभा बढ़ाने हेतु यहाँ से कालीन मंगाया था जिससे प्रतीत होता है कि यहाँ का कालीन उद्योग कितना समृद्ध था परंतु आज हकीकत यह है कि यहाँ की सारी बाते मानो एक कहानी बनकर इतिहास की पन्नों में सिमट सी गई है। राजद के प्रदेश सचिव एहसानुल हक अंसारी ने बताया की सन 1972 में बुनकर अहमद अली साहब को उनकी बेहतर कार्य कुशलता को देखकर राष्ट्रपति बी०बी० गिरी के द्वारा राष्ट्रपति सम्मान से नवाजा गया था जिसके बाद भारत सरकार का ध्यान इस छोटे से कस्बे की ओर गया और सन 1974 ई० में उद्योग मंत्रालय ने यहां प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना करवाई। वर्ष 1986 में जिला पदाधिकारी के निदेर्शानुसार असंगठित कालीन बुनकरों को संगठित करके 05 मार्च 1986 को महफिल- ए-कालीन बुनकर सहयोग समिति के रूप में निबंधित किया। वर्ष 1986 में जिला विकास एजेंसी (डीआरडीए) की आधारभूत संरचना कोष से प्राप्त 7 लाख रुपये से जिला परिषद के भूखंड पर संस्था का भवन खड़ा किया गया। 


*भदोही के बाद ओबरा महफिल-ए-कालीन है देश का दूसरा सबसे बड़ा कालीन उद्योग*



भारत में हस्तनिर्मित कालीन निर्माण के क्षेत्र में भदोही के बाद ओबरा का महफिल-ए-कालीन उद्योग देश का दूसरा सबसे बड़ा कालीन उद्योग है जिसका नाम आज भी किताब के पन्नों में दर्ज है जो सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में पढ़ने को मिल जाएगा। स्थापना के समय उद्योग में 33 लूम लगे थे जहाँ सौ से भी अधिक बुनकर एक साथ कार्य करते थे धीरे-धीरे विकास हुआ तो करीब 200 लूम संचालित होने लगे पर विभागीय उदासीनता के कारण यह दम तोड़ने की स्थिति में पहुंच गई।


*मुख्यमंत्री के निरीक्षण के बाद भी आश लगाए बैठा महफिल-ए-कालीन*


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 29 नवंबर 2012 को ओबरा महफील-ए- कालीन केंद्र पहुंचे थे। उन्होंने कालीन केंद्र के प्रबंधक राजनंदन प्रसाद से जानकारी प्राप्त की और मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि इस संस्था को फाउंडेरेशन बनाकर जो गरीब बुनकर हैं उन्हें बैंक द्वारा जीविकोपार्जन हेतु उनसे कार्य करवाया जाए जिससे बुनकरों को रोजी रोटी मिल सके। वहीं 10 जुलाई 2020 को गोपनीय प्रभारी अमित कुमार एवं कुशल कार्यक्रम जिला पदाधिकारी पहुंचे थे उनके द्वारा भी प्रबंधक को आश्वासन दिया गया था। उसके बाद राज्य सभा सांसद विवेक ठाकुर एवं केंद्रीय टीम ने भी कालीन नगरी का निरीक्षण किया था। उनके साथ वस्त्र मंत्रालय के असिस्टेंट डायरेक्टर बी के झा ने कहा कि ओबरा के बुनकर को उन्नत प्रशिक्षण की जरूरत है और उन्नत किस्म के मशीनरी लगाने की आवश्यकता है। सांसद विवेक ठाकुर ने कहा कि यहाँ के कालीन को विदेश के बाजारों से जोड़ा जाएगा और बेरोजगार बैठे युवाओं को बुनाई के क्षेत्र में रोजगार मुहैया कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि कालीन में बुनकरों की स्थिती काफी चिंतनीय हो गया है। पुनः ओबरा को व्यापक बाजार मुहैया कराकर कालीन उद्योग को प्रारंभ किया जाएगा। इसके लिए हर एक तरह के सरकारी योजनाओं से सीधे महफिल ए कालीन ओबरा को मुहैया कराकर कुछ ही दिनों बाद बुनकरों का प्रशिक्षण प्रारंभ कराया जाए। उसके बावजूद ओबरा का महफिल ए कालीन उद्योग विकास की बांट जोह रहा है। 


*क्या कहते हैं स्थानीय लोग*


स्थानीय निवासी एवं राजद के प्रदेश सचिव एहसानुल हक अंसारी बताया कि ओबरा के अकलियतों द्वारा बेहतर तरीके से कालीन का निर्माण होता था जो सस्ता होने के साथ ही काफी मजबूत और आकर्षक होता था जिससे विदेश में भी यहाँ के कालीन का मांग होता था। स्थानीय निवासी रामनरेश पांडेय, मदन मोहन पांडेय, मिथलेश कुमार पांडेय,  सुदर्शन चंद्रवंशी, संजय पासवान, महेन्द्र यादव, सुरेश कुमार, रामजी सिंह, संजय कुमार सहित अन्य लोगों ने बताया कि महफिल-ए-कालीन राजनीतिक दलों के द्वारा भेद-भाव का शिकार रहा है। सरकार की तरफ से अगर इस उद्योग को बढ़ाने के लिए सहायता मिलती है तो लगभग प्रतिदिन 400 लोगों को रोजगार मिल सकता है और यहां के लोगों को पलायन करने की नौबत नहीं आएगी।


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