गुरुवार, 27 जुलाई 2023

अहमदिया समाज ही क्यों ?

 

भारत में अहमदि इकया समुदाय को 'ग़ैर मुस्लिम' घोषित करने से जुड़ा पूरा विवाद क्या है?

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  • Author,शकील अख़्तर
  • पदनाम,बीबीसी उर्दू संवाददाता, दिल्ली

केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश वक़्फ़ बोर्ड की ओर से देश के अहमदिया समुदाय को 'काफ़िर' और 'ग़ैर मुस्लिम' घोषित करने के प्रस्ताव की घोर निंदा करते हुए कहा है कि यह उस समुदाय के विरुद्ध नफ़रत की मुहिम चलाने जैसा है जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ सकता है.

मंत्रालय का कहना है कि वक़्फ़ बोर्ड को किसी की धार्मिक पहचान तय करने का कोई अधिकार नहीं, इसका काम केवल वक़्फ़ की संपत्ति की व्यवस्था देखना और इसकी सुरक्षा है.

इस बारे में देश के अहमदिया समुदाय ने पिछले हफ़्ते केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा था जिसमें बताया गया था कि आंध्र प्रदेश समेत देश के कुछ और राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड अहमदिया बिरादरी का विरोध कर रहे हैं और उन्हें इस्लाम से ख़ारिज (बहिष्कृत) करने के प्रस्ताव पास कर रहे हैं.

केंद्र सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए आंध्र प्रदेश की सरकार को निर्देश दिया है कि वह राज्य वक़्फ़ बोर्ड के असंवैधानिक और ग़ैर कानूनी प्रस्ताव की समीक्षा करे जो उसके अनुसार अहमदिया बिरादरी के विरुद्ध नफ़रत के अभियान जैसा है.

यह भी कहा गया है कि वक़्फ़ बोर्ड को अहमदिया समुदाय समेत किसी की भी धार्मिक पहचान तय करने की न तो ज़िम्मेदारी दी गई है और न ही यह उसके अधिकार क्षेत्र में है.

अहमदिया मुसलमान

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अहमदिया समुदाय के अनुसार, मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने 20वीं सदी की शुरुआत में इस्लाम के पुनरुद्धार आंदोलन का नेतृत्व किया और उनके अनुयायी खुद को 'अहमदिया मुस्लिम' कहते हैं

'ग़ैर मुस्लिम' और 'काफ़िर'

आंध्र प्रदेश के वक़्फ़ बोर्ड ने फ़रवरी 2012 के एक पुराने 'फ़तवे' के आधार पर एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें राज्य के क़ाज़ियों से कहा गया था कि वह अहमदिया समुदाय के लोगों के निकाह न पढ़ाएं क्योंकि वे मुसलमान नहीं हैं.

इस फ़तवे को अहमदिया समुदाय ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और अदालत ने इस प्रस्ताव को स्थगित कर दिया था.

केंद्र सरकार के पत्र में कहा गया है कि अदालतों के आदेशों के बावजूद आंध्र प्रदेश वक़्फ़ बोर्ड ने इस साल फ़रवरी में दोबारा इस तरह का प्रस्ताव पारित किया जिसमें अहमदिया समुदाय को ग़ैर मुस्लिम क़रार दिया गया.

इस प्रस्ताव के आधार पर वक़्फ़ बोर्ड ने हाल में अहमदिया समुदाय को 'ग़ैर मुस्लिम' और 'काफ़िर' क़रार देते हुए वक़्फ़ की संपत्ति से अहमदिया समुदाय की संपत्ति को अलग कर दिया और राज्य सरकार से कहा कि वह अहमदिया समुदाय की संपत्ति को सीधे अपने प्रबंधन में ले ले.

बीबीसी को भेजे गए एक पत्र में अहमदिया मुस्लिम जमात ने कहा है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां विभिन्न आस्था और धर्मों से संबंध रखने वाले लोग परस्पर सम्मान और भाईचारे के साथ रहते चले आए हैं.

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"भारतीय संविधान के अनुसार हर व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह जिस धर्म से ख़ुद को जोड़ना चाहे, जोड़ सकता है. इसके बावजूद कुछ मुस्लिम संगठनों और वक़्फ़ बोर्ड की ओर से अहमदिया मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों का हनन किया जाता है. यह केवल देश के शांतिपूर्ण वातावरण को भंग करने और अहमदिया मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध लोगों को नफ़रत दिलाने और भड़काने की कोशिश है."

इस पत्र में यह भी कहा गया है कि हर व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है कि वह जिस धर्म को चाहे उसे अपनाए और कोई संगठन या संस्था उसे इस मौलिक अधिकार से वंचित नहीं कर सकती.

इस दौरान भारत के सुन्नी मुसलमानों के एक बड़े संगठन जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने अहमदिया समुदाय को ग़ैर मुस्लिम घोषित करने के आंध्र प्रदेश वक़्फ़ बोर्ड के प्रस्ताव का समर्थन किया है.

एक बयान में इस संगठन ने कहा है कि क़ादियानी (अहमदिया) इस्लाम की उस मूल आस्था में विश्वास नहीं रखते कि इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद आख़िरी नबी (ईशदूत) थे.

इस बयान में इस्लामी संगठन 'वर्ल्ड मुस्लिम लीग' की 1974 की एक मीटिंग का उल्लेख भी किया गया है जिसमें उसके अनुसार लीग के 110 देशों के मुस्लिम प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था और जिसमें अहमदिया समुदाय को इस्लाम के दायरे से ख़ारिज कर दिया गया था.

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अहमदिया मुसलमान

अहमदिया समुदाय इस आरोप को ग़लत बताता रहा है.

अहमदिया समुदाय ने अपने बयान में इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि यह झूठा प्रोपेगैंडा किया जाता है कि अहमदी पैग़ंबर-ए-इस्लाम को नहीं मानते और यह कि उनका कलिमा (नीति वाक्य) अलग है.

"ये मनगढ़ंत और झूठी बातें हैं. अहमदिया मुस्लिम समुदाय दिलोजान से इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद को अंतिम नबी मानता है और उनके सम्मान के लिए कोई भी क़ुर्बानी पेश करने से पीछे नहीं रहता. हर अहमदी हार्दिक तौर पर इस्लाम के कर्तव्यों का पालन करता और ईमान के स्तंभों पर सच्चे दिल से विश्वास रखता है."

अहमदी समुदाय के बयान में यह भी कहा गया है कि अहमदिया मुसलमानों को ग़ैर मुस्लिम घोषित करने का किसी को भी अधिकार प्राप्त नहीं.

"यह एक ग़ैरक़ानूनी और अधार्मिक काम है और अहमदिया बिरादरी के लोगों का सामाजिक तौर पर बायकॉट करने की कोशिश देश के लोगों की एकता को तोड़ने और शांतिपूर्ण माहौल को ख़राब करने जैसा है."

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भारत में अहमदिया समुदाय

भारत में अहमदिया समुदाय को 2011 की जनगणना में मुसलमानों के एक फ़िरक़े (वर्ग) के तौर पर स्वीकार किया गया. जनगणना के अनुसार उस समय इस समुदाय की संख्या लगभग एक लाख थी.

भारत में ज़्यादातर अहमदिया मुसलमान पंजाब के क़ादियान क़स्बे में रहते हैं. इस क़स्बे में अहमदिया समुदाय के संस्थापक मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद की पैदाइश हुई थी.

अहमदिया समुदाय के अनुसार मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने बीसवीं सदी की शुरुआत में इस्लाम के पुनरुत्थान का एक आंदोलन चलाया था और उनके अनुयायी खुद को अहमदिया मुस्लिम कहते हैं.

क़ादियान में इस जमात का एक बहुत बड़ा केंद्र है. इसके अलावा अहमदिया दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, बंगाल और बिहार में भी आबाद हैं. दिल्ली में भी उनकी कई मस्जिदें और केंद्र हैं.

पहले भी भारत के सुन्नी धार्मिक संगठन अहमदिया समुदाय की धार्मिक आस्थाओं और विश्वासों का विरोध करते रहे हैं और उनके ख़िलाफ़ संगठित प्रोपेगैंडा भी किया जाता रहा है लेकिन उन्हें यहां उस तरह की मुसीबतों, धार्मिक भेदभाव और अत्याचार का सामना नहीं करना पड़ा जिस तरह के हालात का सामना उन्हें पाकिस्तान में करना पड़ता है.

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पाकिस्तान में हालात

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोग आम तौर पर अपनी पहचान गोपनीय रखते हैं और किसी धार्मिक विवाद में पड़ने से बचते हैं.

बीबीसी से बात करते हुए पाकिस्तान में जमात-ए-अहमदिया के प्रवक्ता ने बताया कि पाकिस्तान अकेला देश है जहां सरकारी स्तर पर क़नून बनाकर अहमदिया जमात को ग़ैर मुस्लिम घोषित किया गया है.

उन्होंने कहा कि दूसरे देशों में सरकारी स्तर पर ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया गया हालांकि कुछ देशों में सामाजिक सतह पर कई इस्लामी काउंसिल और मंचों पर फ़तवे जारी किए जाते हैं और अहमदियों को वहां विरोध के वातावरण का सामना रहता है.

ध्यान रहे कि पाकिस्तान में पिछले कुछ महीनों में अहमदिया समुदाय की इबादतगाहों से मीनार हटाने की मुहिम जारी है.

अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता के अनुसार इस सिलसिले की ताज़ा कड़ी में एक धार्मिक दल ने ज़िला झेलम में प्रशासन को अहमदिया इबादतगाहों से मीनार गिराने के लिए 10 मुहर्रम (इस्लामी कैलंडर का एक महीना) की डेडलाइन दे रखी है और यह भी कहा गया है कि अगर ऐसा न हुआ तो अहमदिया इबादतगाहों की ओर मार्च किया जाएगा.

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झेलम ही में इस माह के दौरान अहमदिया समुदाय की क़ब्रों की पट्टिकाओं पर स्याही फेंकने और उन्हें तोड़ने की घटना भी हुई थी.

इससे पहले बक़रीद के अवसर पर विभिन्न शहरों में पुलिस ने बहुत से अहमदिया नागरिकों के घरों से क़ुर्बानी के जानवर ज़ब्त किए थे जबकि 'क़ुर्बानी का इस्लामी रिवाज' अपनाने पर मुक़दमे भी दर्ज किए गए थे.

इसी तरह 4 मई 2023 को सिंध के मीरपुर ख़ास में एक उत्तेजित समूह ने अहमदिया समुदाय की इबादतगाह के मीनार तोड़ने के बाद इबादतगाह में आग लगा दी थी.

मई के महीने में ही क़ुरान की शिक्षा देने के आरोपों के बाद उत्तेजित लोगों ने एक अहमदिया इबादतगाह पर हमला कर दिया था.

पिछले साल के दौरान इस तरह की कई घटनाएं सरगोधा, गुजरात, गुजररांवला, मीरपुर ख़ास, उमरकोट कराची, टोबा टेक सिंह और दूसरे शहरों में हो चुकी हैं.

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