गोंडल रियासत में स्त्री शिक्षा!
गोंडल रियासत में स्त्री शिक्षा!
प्रस्तुति सतेंद्र गुप्त
भारत में एक स्थान है सौराष्ट्र। और ब्रिटिश इंडिया में जो 565 रियासतें थीं, उनमें से 224 अकेले इस सौराष्ट्र में थीं। जो आज गुजरात राज्य का एक छोटा हिस्सा है। पहले जूनागढ़ को ये रियासतें कर देती थीं, फिर जब मराठे ताक़तवर हुए तो बड़ौदा स्टेट को। 1844 में अंग्रेजों ने इन्हें बड़ौदा और जूनागढ़ से मुक्त कर दिया। यहाँ एक छोटी-सी रियासत थी गोंडल की। इसी गोंडल में स्वामी नारायण संप्रदाय को आश्रय मिला। सुदूर पूर्व के अवध क्षेत्र के छपिया (ज़िला गोंडा) से एक ब्राह्मण बालक कुछ और जानने के ध्येय से घर से चला गया। हिमालय की वादियों और घने जंगलों में भटकते हुए वह सौराष्ट्र पहुँचा तब तक वह एक संन्यासी हो चुका था। उसका संन्यास थोड़ा भिन्न था। इसमें समाज सुधार था, और यह संप्रदाय नई योरोपीय मान्यताओं के अनुरूप भी इस संप्रदाय का ज़ोर स्त्री-शिक्षा पर था। और नाम मिला स्वामी नारायण संप्रदाय। गोंडल की राजमाता ने स्वामी नारायण संप्रदाय को प्रश्रय दिया और कन्या शिक्षण हेतु 1870 में विद्यालय स्थापित हुआ।
राजमाता विधवा थीं। उनके पति की 1869 में मृत्यु हो गई थी। तब उनके चार वर्षीय पुत्र भागवत सिंह को स्टेट का राजा बनाया गया। अंग्रेज इस राजा की देख-रेख कर रहे थे। स्टेट का दीवान एक पारसी था। बालक भागवत सिंह को राजकोट के राजकुमार कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजा गया। पढ़ाई पूरी होने पर ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उन्हें 1888 में महाराजा घोषित किया। तथा इस युवा महाराजा को योरोप घूमने को कहा। वहाँ पर महाराजा भागवत सिंह योरोप के आधुनिक अस्पतालों, चिकित्सा से बहुत प्रभावित हुए। रियासत वापस आने पर उन्होंने अपनी माँ और दीवान से कहा कि वे अभी राज काज तीन चार साल और देखें। महाराजा साहब फिर योरोप गए और यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबरा से एमडी किया। लौटने पर उन्होंने कई अस्पताल खुलवाए और तब चूँकि लोग अपनी औरतों का इलाज़ पुरुष डॉक्टरों से करवाने में हिचकिचाते थे इसलिए महाराजा ने कई ज़नाना अस्पताल खुलवाए, जहां डॉक्टर से लेकर पैरा मेडिकल स्टाफ़ तक सब महिलाएँ थीं। बीसवीं सदी के शुरू के वर्षों में यह सब कितना मुश्किल रहा होगा! और उस काठियावाड़ में जहाँ पहुँचना मुश्किल था। जहाँ की ज़मीन बुंदेलखंड से भी अधिक बंजर और पानी का घोर अभाव। इसके साथ ही हर दस कोस पर दूसरी रियासत में घुसना। बम्बई से गोंडल जाने में ही सौ के क़रीब रियासतों को पार करना होता था। लेकिन महाराजा धुन के पक्के थे। “औषधि शास्त्र” महाराजा भागवत सिंह की अद्भुत पुस्तक है। यह राजवंश जाड़ेज़ा राजपूतों का था।
गोंडल ब्रिटिश राज के उन आठ नगीनों में से है, जहाँ सबसे पहले जाति-भेद ख़त्म हुआ। धर्म-भेद नहीं रहा और जहाँ स्त्री-शिक्षा अनिवार्य थी। यानी आप भले अपने बेटों को न पढ़ाएँ लेकिन बेटी पढ़ाना अनिवार्य की। महाराजा भागवत सिंह ने लंबी उम्र पाई और 1944 में उनकी मृत्यु हुई।
सौजन्य
शम्भू नाथ शुक्ला
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