डॉक्टर दीपक चोपड़ा / विवेक शुक्ल
-दीपक चोपड़ा (डिफेंस कॉलोनी में )
डॉ. दीपक चोपड़ा को एम्स जाना या उसके आसपास से गुजरना बहुत सुकून देता है। वे बीते मंगलवार को फिर से एम्स गए थे। वहां के डायरेक्टर से मिले। एम्स से ही उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी। वे एम्स में बिताए लगभग साढ़े पांच सालों को अपनी जिंदगी के बेहद खास मानते हैं। एम्स ने उन्हें कुछ नया, कुछ हटकर करने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद वे हायर स्टडीज के लिए अमेरिका के शहर न्यू जर्सी चले गए थे। यह 1970 की बात है। वहां पर उन्होंने आंतरिक चिकित्सा और एंडोक्रिनोलॉजी पर गहन अध्ययन किया।
अमेरिका में रहते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ध्यान और स्वच्छ जीवन से कोई भी रोग ठीक हो सकता है और बुढ़ापे पर लगाम लगाई जा सकती है। उन्हें देखकर कतई नहीं लगता कि वे 75 की उम्र को पार कर गए हैं। दीपक चोपड़ा डाक्टर के साथ-साथ लेखक हैं। वे अध्यात्म पर लगातार लिख रहे हैं। कई किताबें लिख चुके हैं। वे जे. कृष्णमूर्ति से काफी प्रभावित हैं। उन्हें वेदान्त और भगवद्गीता से भी प्रेरणा मिलती है।
डॉ. दीपक चोपड़ा को अपना शहर दिल्ली छोड़े आधी सदी गुजर गई है, पर उन्हें जब यहां आने का कोई मौका मिलता है तो वे उसे लपक लेते हैं। उनका बचपन डिफेंस कॉलोनी में बीता और स्कूली पढ़ाई सेंट कोलंबस स्कूल में हुई। उनके पिता डॉ. कृष्ण लाल चोपड़ा राजधानी के मशहूर ह्दय रोग विशेषज्ञ थे और मूलचंद हास्पिटल के डायरेक्टर रहे। कह सकते हैं कि उनकी ही सरपरस्ती में मूलचंद हास्पिटल खड़ा हुआ। वे सेना में भी रहे थे।
जाहिर है,जब पिता इतने मशहूर डॉक्टर हों तो पुत्र का भी पिता के नक्शे कदम पर चलना तो बनता है। डॉ. दीपक चोपड़ा ने स्कूल के दिनों में तमाम तरह के काम किए। वे सिर्फ पढ़ते ही नहीं थे। वे स्कूल की क्रिकेट टीम में रहे और स्कूल की पत्रिका ‘कोलंबन’ के संपादक भी बन गए। सेंट कोलंबस के ड्रामा क्लब से तो जुड़े हुए ही थे। इसी ड्रामा क्लब में आगे चलकर शाहरुख खान और डॉ. पलाश सेन भी रहे।
डॉ.दीपक चोपड़ा एक बार अपने स्कूल के दिनों का एक रोचक किस्सा सुना रहे थे। हुआ यह कि एक दिन स्कूल की छुट्टी के बाद वे स्कूल के बाहर खड़े थे घर जाने के लिए। तब ही तेज बरिश शुरू हो गई। संयोग देखिए कि उन्हें करीब के सीजेएम स्कूल की एक स्टुडेंट ने अपनी कार में लिफ्ट दे दी। वे घर पहुंच गए। यह बात अलग है कि बदले में उन्होंने उस कन्या को अपना दिल ही दे दिया। वो कन्या उनकी पत्नी बनी। उसका नाम है रीता चोपड़ा है।
डॉ. दीपक चोपड़ा एम्स में रहते हुए आकाशवाणी में रात 11 बजे के इंग्लिश न्यूज बुलेटिन भी पढ़ने लगे ताकि जेब खर्च निकल जाए। अब उनके पास एक लम्ब्रेटा स्कूटर भी था। इसी पर वे रीता को बिठाकर दिल्ली को नापा करते थे। पचास साल पहले की दिल्ली आज की तरह विशाल तो नहीं थी। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और एनसीआर को बनने में अभी बहुत समय था। तब रिंग रोड के आगे दिल्ली में गिनती की कॉलोनियां बनी और बसी थीं।
डॉ. दीपक चोपड़ा के स्कूल के दिनों में जूनियर और खुद प्रख्यात हद्य रोग विशेषज्ञ डॉ. आलोक चोपड़ा कहते हैं कि वे (दीपक चोपड़ा) हमारे स्कूल का सबसे ब्रिलिएंट स्टुडेंट था। वह हरेक फील्ड में सबसे आगे रहता था। जाहिर है, हम सब उससे ईष्या भी करते थे और उसके जैसा बनने का ख्वाब भी देखते थे।
विवेक शुक्ला,
12 जुलाई, नवभारत टाइम्स
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