जनसंदेश टाइम्स में शनिवार के स्तंभ में हास्य रचना ' किसना दुबे ने कुश्ती लड़ी ' (अगर पहले नहीं पढ़ी है तो पढ़ सकते हैं )
किसना दुबे ने कुश्ती लड़ी
-सुभाष चंदर
बात लगभग चालीस बरस पुरानी है। यानी उस जाने की, जब इश्क आज की तरह सर्वसुलभ किस्म का मामला नहीं था। मोबाइल आए नहीं थे, ई-मेल, फेसबुक, ट्विटर वगैरह का नामोनिशान नहीं था, टेलीफोन बड़े लोगों की चीज था और अकसर बड़े शहरो में ही पाया जाता था। ऐसे में आशिकी करना, वह भी गांव-कस्बे के माहौल में, सच्ची बड़ा मुश्किल और बहादुरी का काम था।
इसमें शक की कतई गुंजाइश नहीं थी कि कृष्ण कुमार द्विवेदी उर्फ किसना दुबे काफी बहादुर किस्म के आशिक थे। वह घोर प्रेम विरोधी माहौल में भी इश्क की पतंग उड़ाने में जुटे थे, पर अफसोस कि ज़्यादा सफल नहीं हो पाए थे। जबकि उनका जुगराफिया काफी शानदार था। पांच फुट चार इंच का कद, पैंतालीस किलो वजन, अट्ठाइस-तीस इंची चौड़ी छाती और आंखों पर मोटा चश्मा। पर्सनैलिटी सच्ची में आशिकी के लायक थी, पर फिर भी कुछ जम नहीं रहा था। उन्होंने आठवीं जमात के बाद से कुल दस-बारह जगह इश्क का जुगाड़ बैठाने की कोशिश की थी, पर कुछ चप्पलों और गालियों के प्रसाद के अलावा वह कुछ ज़्यादा प्राप्त नहीं कर पाए थे। हां... एक कन्या ने जरूर उनकी अधमिची अंखियों का निवेदन स्वीकार किया थ, अकेले में मिलने का वादा भी किया था। वह हफ्तेभर बाद अकेले में मिली भी थी, पर उसकी आंखों में आंसू और हाथों में अपनी शादी का कार्ड था। इंटरमीडिएट तक किसना दुबे की हालत कुछ ऐसी ही रही थी। बी.ए. में आते ही उन्होंने प्रण कर लिया था कि इस बार वह इश्क की गोटी बिठाकर रहेंगे। सो, उन्होंने कॉलेज और कॉलेज के बाहर इश्क की संभावनाओं पर गंभीरता से मनन किया। क्लास की लड़कियों में उन्हें कुछ रोशनी को किरणें नजर आईं। काफी दिन तक शोध करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि कुमारी चमेली देवी सुपुत्री राम बाबू मिश्रा उनके लिए अधिक उपयुक्त रहेंगी। इसके पीछे कुमारी चमेली देवी के लड़की होने के अलावा एक कारण ये भी था कि उनके पिता रामबाबू पी.डब्ल्यू.डी. में इंजीनियर थे। दहेज का मामला सही से सुलझ सकता था। दूसरे कुमारी चमेली देवी उनकी तरह इश्कियां फिल्मों की शौकीन थीं। तीसरे ये कि वह बात-बेबात मुस्कराती रहती थीं जो कि इस बात का प्रमाण था कि ये चिड़िया दाना चुगने को तैयार बैठी है... बशर्ते कि कोई दाना तमीज से डाले। किसना दुबे तो कमीज तक तमीज से पहनते थे, उनमें भला इसकी क्या कमी थी। सो, उन्होंने क्लास रूम में कन्या को कनखियों से निहारना शुरू किया। बदले में चमेली ने देखा-देखी का मामला आगे बढ़ाया। बात आगे बढ़ते-बढ़ते चिट्ठी-पत्री तक पहुंची। किसना ने कई घंटे के मनन के बाद एक चिट्ठी लिख मारी, जिसमें अस्सी परसेंट हिस्सा फिल्मी गानों और डायलोगों का था। काम की बात ये थी कि वह उससे अकेले में मिलना चाहते हैं, वो भी रामू के भैंसों के तबेले में। प्रेम प्रार्थना स्वीकार हो गई। क्लास बंक करके किसना रामू के तबेले की तरफ प्रस्थान कर गए।
दिन धड़धड़ बज रहा था, पांवों में लड़खड़ाहट थी, गला रुंधा जा रहा था। इसके बाद भी दिल ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ की धुन बजा रहा था। किसना ने सोच लिया था कि चाहे जो हो, वो आज ही अपनी मुहब्बत का इजहार कर देंगे, हो सके तो शादी का मामला भी आज ही फाइनल कर लेंगे। आपको शायद अजीब लगेगा, पर उन दिनों इश्क के बाद शाही करने का ही रियाज था, जो लोग शादी नहीं कर पाते थे। वे दाढ़ी बढ़ाकर घूमते थे। दारू-गांजा आदि मुक्तिदायक पदार्थों की शपथ में जाते थे और गाहे-बगाहे कुंदनलाल सहगल के गीत गाते पाए जाते थे।
खैर... किसना दुबे तबेले में पहुंचे। कुमारी चमेली वहां पहले से ही विराजमान थी। अब वहां किसना थे, चमेली थीं और कुछ अदद भैंसे थीं। किसना ने इधर-उधर देखा, फिर चमेली के सामने जाकर खड़े हो गए। संवाद शुरू हो गए-
‘‘क्यों जी, तुमने मुझे यहां क्यों बुलाया... कोई देखेा तो लोग बात बनाएंगे...।’’
‘‘वो... वो... क्या है... चमेली... मैं... मैं...।’’
‘‘ये क्या बकरी की तरह में-में कर रहे हो... चिट्ठी में तो खूब चटर-पटर बोलते हो... यहां क्या मुंह में घी भरके आए हो... कुछ बोलो न, वरना मैं चली जाऊंगी।’’
‘‘अरे... ना... ना... जाना मत... वो बात ऐसी है कि मैं... मैं... तुमसे प्यार करता हूंए क्या तुम भी मुझसे...।’’
‘‘हाय दैया रे... ये क्या कह दिया... कोई सुनेगा तो क्या कहेगा... ना ये प्यार-प्यार फिल्मों में ही अच्छा लगता है, हमारे बाबूजी सुनेंगे तो मार डालेंगे... ना बाबा ना... मैं तो चली...।’’
‘‘अरे, बैठो तो... सुनो... मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो... मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।’’
‘‘क्या-क्या कहा... शादी और तुमसे... सुनो जी... शादी तो मैं किसी खिलाड़ी से करूंगी... मेरे बाबू जी की इच्छा तो मेरी शादी किसी पहलवान से करने की है... बोलो बनोगे पहलवान... बोलोकृफूंक क्यों सरक गई...।’’
‘‘हां... हां... बनूंगा। मजनूं लैला के लिए पागल बन गया था... क्या मैं तुम्हारे लिए पहलवान नहीं बन सकता।’’
‘‘तो फिर ठीक है, तय रहा... तुम इस बार कॉलेज की कुश्ती चैंपियनशिप में हिस्सा लोगे... मेडल लाओगे... बोलो।’’
‘‘ऐं... कॉलेज की कुश्ती... मतलब तेजप्रताप सिंह से कुश्ती... बाप रे... वो काला सांड तो मुझे मार डालेगा... ना बाबा... नाऽऽ।’’
‘‘बस निकल गई आशिकी, फिर ठीक है, मैं पिताजी से कह दूंगी कि मेरी शादी तेजप्रताप से ही कर दें। पढ़ा-लिखा है, कुश्ती चैंपियन है...।’’
‘‘बस...बस.... मैं कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लूंगा... बस... तुम अपना बादा याद रखना... अगर मैंने मेडल जीता तो तुम मुझसे शादी करोगी...वादा पक्का?’’
‘‘हुम्म... पक्का, पर पहले मैडल जीतो तो... अच्छा अब चलती हूं... राम-राम।’’
च्मेली देवी तो प्रस्थान कर गई, पर किसना दुबे बहुत देर तक तबेले में बैठकर सोच की चिड़िया उड़ाते रहे। फिर वह हलवाई की दुकान पर पधारे, चाय और समोसे पेट में पहुंचने के बाद उनके दिमाग की खिड़की खुल गई।
इसके बाद उन्होंने पहला काम यह किया कि वह खेल टीचर के कमरे में गए और कुश्ती कंपीटीशन के लिए अपना नाम लिखा दिया। टीचर ने पहले उनके सींकिया बदन को देखा, उनके चश्मे से झांकती आंखों पर नजरें गढ़ाईं और बोले, ‘‘बालक... फिर सोच लो, कहां तेजप्रताप और कहां तुम। हाथी और चींटी वाली बात है।’’
इस पर किसना ने अपने अट्ठाइस इंची सीने को फुलाकर कहा, ‘‘गुरुजी, चींटी अगर हाथी की सूंड में घुस जाए तो उसकी नाक में दम कर सकती है। बस आप मेरा नाम लिख लीजिए... मैं तेजप्रताप के खिलाफ लडूंगा।’’
मास्टर जी ने नाम लिख लिया।
पूरे कॉलेज में यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई कि किसना दुबे कुश्ती चैंपियनशिप में भाग ले रहे हैं। उन्होंने तेजप्रताप सिंह पहलवान का चैलेंज स्वीकार कर लिया है। बात विश्वास करने की तो नहीं ही थी। तेजप्रताप से कुश्ती लड़ना कोई हंसी-खेल है, वह पिछले तीन बरस से कुश्ती चैंपियन थे। पहले दो बरस में उन्होंने चैदह पहलवानों को हराया था। इनमें पांच पहलवान अपने पैंरों की तो पांच पहलवान अपने हाथों की बाजी हार गए थे। चार पहलवानों को सिर्फ अपने जबड़ों से ही मुक्ति मिली थी। इसी कारण पिछले साल तेजप्रताप के खिलाफ कुश्ती में किसी भी लड़के ने अपना नाम नहीं दिया था, सो तेजप्रताप निर्विरोध चैंपियन बन गए थे। इसी ठसक में तेजप्रताप गनमनाए हुए छाती फुलाकर घूमते थे। खुलेआम सबको चैलेंज देते थे, पर उनका मुकाबला करने को कोई तैयार नहीं था। छह फुट से निकलता कद, आबनूसी रंग, पैंतालीस इंची चैड़ा सीना, ये बड़ी-बड़ी काली मूंछें और सबसे बढ़कर मोटी-मोटी लाल-लाल आंखें। उन्हें देखते ही लड़कों के पाजामे गीले हो जाते थे। फिर लड़ने का साहस कौन करता?
सो, तेजप्रताप को उम्मीद थी कि उनके खिलाफ कोई नहीं लड़ेगा। वह इस बार भी चैंपियन बनने को तैयार बैठे थे, पर किसना नाम के लड़के ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उनके जी में आया कि देखें तो ये किसना दुबे चीज़ क्या है? वह पूछते-पूछते उनकी क्लास में पहुंचे। पीरियड खाली था, किसना बाहर ही टहल रहे थे। तेजप्रताप को किसी ने बताया कि वो चारखाने की कमीज में किसना दुबे ही खड़े हैं।
तेजप्रताप ने किसना दुबे का काफी नजदीक से अध्ययन किया। पतला-दुबला जिस्म, चश्में से झांकती मिचमिची आंखें, सरकंडे को मात देती टांगें। बदन ऐसा कि आंधी आ जाए तो किसी भारी चीज से बांधकर रखने की नौबत आ जाए। उन्होंने मन में सोचा कि अखाड़े में पंडित जी पांच सैकिंड तक उनके सामने जरूर खड़े रह सकते हैं। उसके आगे उनका भगवान् ही मालिक होगा। हे भगवान्... क्या ब्राह्मण की हत्या उनके हाथ से ही होगी। यह सोचकर उन्होंने दुबे जी को प्रणाम किया। अपना परिचय देकर हाथ जोड़कर बोले, ‘‘पंडित जी, हमसे हाथ-पांव जुड़वा लो, पैर छुबा लो, क्यों हम पर ब्रह्म हत्या का पाप लगाते हो।’’
किसना दुबे यह सुनते ही बिगड़ गए। बोले, ‘‘ठाकुर... हमें कमजोर मत समझो। पहलवानों की असली ताकत अखाड़े में पहचानी जाती है। जाओ और परसों की कुश्ती की तैयारी करो।’’
किसना दुबे के ये वचन सुनकर तेजप्रताप भरे मन से लौट गए। सोच लिया, अब तो ब्रह्म हत्या का पाप लगना ही है।
इधर इस घटना की भनक किसना के यार-दोस्तों को लग गई। प्रमोद चौधरी किसना के पास आए। दो बीड़ियां सुलगाईं, एक किसना के हवाले की, दूसरी से धुआं उड़ाया और फिर उनके कान में फुसफुसाए, ‘‘भैया, आत्महत्या करने के और भी कई तरीके हैं। तेजप्रताप बेचारे को क्यों फंसाते हो।’’
पर किसना को न मानना था, न माने। आखिर इश्क की आन-बान-शान का सवाल था। कुमारी चमेली देवी को दिए वचन की लाज रखनी थी, वह मान कैसे जाते।
ऐसे ही कई मित्रों ने उन्हें समझाया, पर किसना इश्क के हाथों मजबूर थे। लोग तो इश्क में तख्तोताज लुटा देते हैं, उन्हें तो फकत एक कुश्ती लड़नी थी।
खैर... धीरे-धीरे कुश्ती चैंपियनशिप का दिन आ गया। भीड़ जुटनी शुरू हो गई।
कॉलेज के ग्राउंड में ठीक तीन बजे कुश्ती कंपटीशन होना था। अखाड़ा खुद चुका था। चूना-मिट्टी डाली जा चुकी थी। कॉलेज प्रबंधन ने सारे प्रबंध समझदारी से किए थे। एक एंबुलेंस मंगा ली थी। अखाड़े के बाहर भी एक स्ट्रेचर रख दिया था अहतियातन एक डॉक्टर का इंतजाम भी कर लिया था।
कुश्ती प्रेमियों की भीड़ हजारों की तादाद में पहुंच चुकी थी। कुश्ती में बस पांच मिनट बचे थे। किसना के दोस्तों ने एक बार फिर आत्महत्या से बचने की सलाह दी। उनके न मानने पर नजर भरकर एक बार उनके साबुत शरीर को देख लिया। आंखों में आंसू और मुंह से आह उगलकर बोले, ‘‘जा भाई, शहीदों में नाम लिखा ले। समझ लेंगे, हमारा और तेरा इतने ही दिनों का साथ था।’’
किसना ने खेल टीचर से विजयी होने का आशीर्वाद मांगा। खेल टीचर बुदबुदाए, ‘‘स्वस्थ रहो, जीवित रहो।’’ किसना के मूड का दीया बुझने को हुआ, इसलिए उन्होंने दर्शक दीर्घा पर नज़र दौड़ाई। कुमारी चमेली देवी उन्हीं को टुकुर-टुकुर देख रही थीं। उनकी नज़रों में प्यार था, प्यार के साथ सहानुभूति थी और सहानुभूति के साथ किसी के बलिदान पर न्यौछावर होने के लिए जो कुछ था, वह पूरी शिद्दत के साथ मौजूद था। किसना यह देखकर खुशी के मारे बगलोल हो गए और जोश में कूद पड़े अखाड़े में। दोस्त लोगों ने नारा लगया- चढ़ जा बेटा सूली पे, भली करेंगे राम।
तेजप्रताप भी अखाड़े में तशरीफ ले आए। उन्होंने कपड़े उतारे। लंगोट कसा और जांघों पर हाथ मारकर दंड बैठक लगानी शुरू कर दी। पैंतालीच इंची चैड़ी छाती, ये मोटे-मोटे कसरती बाजू। मलखंभ जैंसी जंघाएं और उमेठी हुई मूछें। उन्हें देखकर लोगों ने शर्त लगानी शुरू कर दी कि किसना कितने सैकिंड तक उनके सामने रहेंगे। उनके सिर्फ हाथ-पांव टूटने से काम चल जाएगा या उनकी आत्मा का परमात्मा से मिलन होगा। कयास लग रहे थे, शर्तों का बाजार गर्म था।
तेज प्रताप को देखकर किसना ने भी कपड़े उतारने की पहल की। कमीज उतारी, पाजामा उतारा। पाजामा के नीचे ढीला-ढाला पट्टीदार नेकर था। रेफरी ने कहा, ‘‘इसे भी उतारो, लंगोट में लड़ो।’’ पर लंगोट उन्होंने पहना कब था। अखाड़े की मर्यादा थी, सो किसी का गमछा लेकर उसे नेकर पर कसा गया। कुछ-कुछ लंगोट की शक्ल आ गई। रेफरी ने दोनों पहलवानों के हाथ मिलवाए।
पहला राउंड शुरू हुआ।
दर्शकों का उत्तेजना के मारे बुरा हाल था। उन्हें अब लगा, तब लगा कि गए किसना। अब टूटे, अब फूटे। तेजप्रताप की इच्छा भी यही थी, पर किसना उनके हाथ आएं तब न। वो आगे जाते, किसना पीछे। तेजप्रताप ने उन्हें धर-पकड़ने की लाख कोशिश की, पर वह किसना को छू भी नहीं पाए। हर बार वह किसना पर झपट्टा मारते, पर किसना दायें-बायें हो जाते। तेजप्रताप बेबसी से उन्हें देखते रह जाते। एक-दो बार किसना तो उनकी टांगों के बीच से भी निकल गए। इसी चक्कर में पहला राउंड खत्म हो गया।
भीड़ के साथ किसना ने भी ठंडी सांस ली। किसना ने पसीना पोंछा। एक नजर कुमारी चमेली को देखा। लोटा भर पानी पिया, फिर खड़े हो गए।
दूसरे राउंड की सीटी बजी। तेजप्रताप गुस्से में थे ही। पहली बार ऐसा हुआ कि कोई पहलवान उनसे एक राउंड तक बचा रह गया था। उन्होंने सोच लिया कि इस बार वे इस भुनगे को पीसकर रख देंगे। वह दांत कटकटाकर की तरफ झपटे ही थे कि तभी किसना ने हाथ उठा दिए। चिल्लाकर बोले, ‘‘भाइयो, मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं। तेजप्रताप जीते, मैं हारा।’’
उनकी घोषणा सुनकर दर्शकगण भौंचक्के रह गए। भला ये क्या हुआ? ये कैसी कुश्ती! वे तो सोच रहे थे कि आज कुछ खूनी खेल देखने को मिलेगा। उन्हें किसना की मौत पर मातम करने का मौका मिलेगा, पर यहां तो कहानी ही अलग थी।
तेजप्रताप तो घोषणा सुनकर बगलोल से खड़े रह गए। किसना के सारे यार-दोस्तों को भी सांप सूंघ गया था। पूरी भीड़ चकित थी।
इधर रेफरी ने कुश्ती खत्म करने की घोषणा कर दी। तेजप्रताप विजेता बने और किसना दुबे उप विजेता। कुश्ती का स्वर्णपदक तेज प्रताप के हिस्से में आया तो किसना दुबे के हिस्से में चांदी का पदक। अब वह निर्विवाद रूप से कॉलेज के दूसरे नंबर के पहलवान थे। जब वह पदक लेने मंच पर गए, तो उनके लिए सबसे ज़्यादा तालियां बजी थीं। ताली बजाने वालों में कुमारी चमेली सबसे आगे थीं। आखिर उनका प्रेमी कॉलेज का नंबर दो पहलवान जो बन गया था।
पहलवान किसना दुबे कुश्ती में हारकर भी इश्क के पेपर में सौ परसेंट नंबर लेकर पास हो गए थे।
मो.09311660057