सोमवार, 20 जुलाई 2020

आधी रात के बाद / ऋतु सैनी


रोज़
आधी रात के बाद
उसके कमरे से आती है
रोने की आवाज़ें
घण्टों तक नहीं रुकती
हाँ वो रोती है रात के अंधेरे में
भर भर कर
भर जाता है उसका गला
रोते रोते जब
तब ख़ुद ही रखती है
ख़ुद के कंधे पर हाथ
थपथपाती है ख़ुद ही ख़ुद की पीठ
सहलाती है ढांढस बंधाती है
उस घूप अंधेरे में भी
उसकी आँखों से झरते आंसू
गोद में गिरकर
मुस्कुराते हैं
लो हो गयी हल्की
तुम और तुम्हारी आंखे
चलो अब सो जाओ
बहुत हुआ
तुम्हारा तो रोज़ रोज़ का है
यह मोती बहुत पसंद थे न तुम्हें
लो अब बनाओ माला
फहन लो बनाकर हार
होने दो दर्द का मिलन
दिल के दर्द का आंखों से
आंखों के दर्द का गले से.......
हाँ उसके गले मे रहता है दर्द
जो आंखों से निकलता है
समा जाता है गले में कहीं नहीं जाता
फिर अगले पहर उठती है
पीती है गर्म पानी
सहलाती है गले को
तैयार करती है अगले दिन के लिए
खिलखिलाकर बोलने के लिए
चिड़ियों की तरह चहचहाने के लिए
दिन भर गले में भरा दर्द
उठा कर रख देती है एक तरफ
चलती है फिरती है
निबटाती है रोज़ मर्रा के काम
कोई लगाए आवाज़ तो जवाब भी देती है
रखकर हाथ गले पर
बात चीत भी करती है सबसे
वो नहीं होने देती किसी को अहसास
अपने दर्द का,न गले के,न दिल के
नहीं आती शिकन उसके चेहरे पर
दिन भर वो भूल जाती है
रात जो हुआ सो हुआ
बस आज था यह आखरी बार
मगर हर रात भूल जाती है
दिन में किये वादे शादे
रोज़ होता है यही बस रोते रोते
उत्तर दिशा की ओर
ख़ुद ब ख़ुद जुड़ जाते हैं उसके हाथ
हे शिव शंभु
और कब तक लोगे परीक्षा
और कितना तपाओगे
तुम्हारे पास है तो मानसरोवर
तो क्यों रोज़ इन आंखों में
भरते हो समंदर
तुम्हारे पास है तो रुद्राक्ष का कंठाहर
फिर क्यों रोज़ चाहिए तुम्हें
आंसुओ के मोती.....
तुम्हें चाहिए जो तोहफे
अजीब हैं बहुत
और अजीब हो तुम भी
ठीक है ठीक है समझ गयी
तुम्हें चाहिए
मोतियों की माला भी
और मोती भी
खारे पानी के मीठे के नहीं
तो ले लो ले लो
वैसे भी रोज़ आधी रात के बाद
उसके रोने की आवाज़
नहीं आती किसी को
आती है
तो केवल उसे

ऋतु सैनी

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