चलते चलते...
तीन स्टार्स, एक बंगला
मिर्ज़ा ग़ालिब, बैजू बावरा, बरसात की रात, बसंत बहार, फागुन, रानी रूपमती आदि तमाम फिल्मों की सफलता ने मेरठ में जन्मे अभिनेता भारत भूषण को कुछ ही समय में स्टार बना दिया। तब हिंदी सिनेमा के त्रयी यानी दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर का जमाना था। कुछ अन्य अभिताओं की भी फिल्में आती थीं, लेकिन बड़ी फिल्मों में ये तीनों ही दिखते थे। उस समय भारत भूषण ही थे, जो इन तीनों के अलावा दर्शकों की पसंद थे।
जब भारत भूषण ने अभिनय करके खूब रुपया कमाया, तो उनकी इच्छा निर्माता बनने की हुई। उनकी दो फिल्मों बसंत बहार और बरसात की रात ने बड़ी कामयाबी हासिल की। उन पर पैसों की बरसात होने लगी। तब एक के बाद नया काम उन्होंने किया। मुम्बई में दो घर लेने के बाद एक घर पुणे में भी लिया। तीन बड़ी गाड़ियां, जिनमें से एक विदेशी थी, लेकिन भारत भूषण का मन उन घरों में नहीं लगा, तो उन्होंने एक घर देखा। घर तो अच्छा नहीं था, पर ज़मीन बड़ी थी। उन्होंने बात की और कार्टर रोड पर वर्षों तक खाली रहे उस घर को सत्ताईस हज़ार में खरीद लिया। तब भारत भूषण के पास पैसे की कमी थी नहीं, तो उन्होंने वहां शानदार बंगला बनवाया। नाम दिया बसंत बहार।
लेकिन यह क्या? अभी कुछ ही साल रहे, तो उनकी ज़िंदगी में सब गड़बड़ होने लगा। एक एक कर सभी फिल्में पिटने लगीं। घाटा होने लगा, तो एक एक चीज बिकने लगी। पहले पुणे का घर, फिर मुंबई का, उसके बाद एक गाड़ी बिक गयी। फ़िल्म निर्माण में घाटा होना जारी रहा तो वे बसंत बहार से निकल कर छोटे घर में रहने लगे। फिर एक गाड़ी बेची और उसके बाद बसंत बहार। बाद में उनकी सारी प्रोपर्टी खत्म हो गयी। वे किराए घर में आ गए और बेहद बुरे दौर से गुजरने लगे।
भारत भूषण ने 1960 में अपना बंगला साठ हजार में जिस अभिनेता के हाथ बेचा, वह थे राजेन्द्र कुमार। उन्होंने इस बंगले के नाम दिया बेटी के नाम पर डिम्पल। राजेन्द्र कुमार के लिए यह बंगला बहुत लकी साबित हुआ। उनकी फिल्मों ने खूब सफलता पाई। एक के बाद एक उनकी सात फिल्मों दिल एक मंदिर, मेरे महबूब, संगम, आरज़ू, प्यार का सागर, सूरज और तलाश ने सिल्वर जुबली मनाया। इसी वजह से उन्हें जुबली कुमार का खिताब मिला।
लेकिन कुछ साल बाद राजेन्द्र कुमार का भी वक़्त खराब होना शुरू हो गया, तो उनके हाथ से भी सम्पत्तियां एक एक कर जाने लगीं। उन्हें लगा कि यह घर सही नहीं है। वे इसे खाली कर पाली हिल वाले दूसरे बंगले डिम्पल में चले गए। अब यह डिम्पल खाली था, लेकिन उसे बेचने की उनकी इच्छा नहीं थी। उस समय राजेश खन्ना बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने में व्यस्त थे। उन्हें यह बंगला पसंद था। जब उन्हें पता चला कि राजेंद्र कुमार अब यहां नहीं रहते हैं, तो उन्होंने राजेंद्र कुमार से कहा कि वे यह बंगला मुझे दे दें।
पहले तो राजेंद्र कुमार तैयार नहीं हुए, लेकिन राजेश खन्ना ने जिद कर उन्हें मना लिया। तब राजेंद्र कुमार ने शर्त रख दी कि तुम्हें बंगले का नाम बदलना होगा, क्योंकि यह मेरी बेटी का नाम है और मेरे दूसरे बंगले का भी यही नाम है। राजेश खन्ना इसके लिए तैयार हो गए। सन 1970 में साढ़े तीन लाख में डील हुई और उसके बाद राजेश खन्ना ने पूरी तरह रेनोवेट कराकर बंगले का नाम आशीर्वाद रखा। इस बंगले को खरीदने में हाथी मेरे साथी का पूरा पैसा राजेश खन्ना के काम आया।
कहा जाता है कि तब राजेश खन्ना के अंदर यह बात आ गयी थी कि राजेंद्र कुमार की इस बंगले में रहने के बाद किस्मत बदल गई थी, हो सकता है कि उनकी भी किस्मत बदल जाए। हुआ भी ऐसा ही। इस बंगले में शिफ्ट होते ही सफलता उनके कदम चूमने लगी। हाथी मेरे साथी की सुपर सफलता के बाद तो दर्शक उनकी फिल्मों के दीवाने हो गए। तन लोग यह भी कहते थे कि ऊपर आका, नीचे काका यानी राजेश खन्ना।
काका के आशीर्वाद में शिफ्ट होने से पहले जब कुछ समय डिम्पल बंगला खाली रहा, तब दो स्टार अभिनेताओं भारत भूषण और राजेन्द्र कुमार की सफलता और अचानक हाथ आयी विफलता को लोगों ने कुछ इस तरह भी देखा। कुछ ने कहा कि यहां भूत का वास है। कोई उस पुराने घर से इस बात को जोड़ता, जो वर्षों तक यहां पड़ा रहा। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि जब राजेश खन्ना के कदम आशीर्वाद में पड़े। उनके दिन बदल गए। भूत बंगला राजेश खन्ना के लिए सच में आका का आशीर्वाद साबित हुआ। वे लगातार पंद्रह फिल्में सुपरहिट देकर हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार बने, फिर शादी हुई, बच्चे हुए। सबका गवाह बना आशीर्वाद। आशीर्वाद ने जहां राजेश खन्ना को सफलता के शिखर को छूते हुए देखा, वहीं असफलता की खाई में गिरते हुए भी देखा और उसने सुपरस्टार के आंसू भी पोंछे। एक वक्त ऐसा भी आया जब काका चाहने वाले लोगों से भरा रहने वाला आशीर्वाद एकदम सूना हो गया। एक व्यक्ति भी यहां फटकता नहीं था। पत्नी और बेटियां भी चली गईं, बावजूद इसके राजेश खन्ना को अपने बंगले से बेहद प्यार था। वे यहां बरसों अकेले रहे। यहीं से 18 जुलाई 2012 को उनकी अंतिम यात्रा निकली। उनकी ख्वाहिश थी कि इस बंगले को उनका म्युजियम बना दिया जाए, ताकि मरने के बाद भी लोग उन्हें जानें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनकी दोनों बेटियों ने इसे नब्बे करोड़ में मंगलोरियन शशि किरण शेट्टी के हाथों बेच दिया। वहां नया घर बन गया है। अब मुम्बई के कार्टर रोड पर न बसंत बहार, न डिम्पल और न आशीर्वाद बंगला दिखेगा। हां, यह संभव है कि वहां से आते जाते कोई उंगली से इशारा कर आपको बता दे, यहीं था तीन स्टार्स का बंगला...
-रतन
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