(अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा)
बहुत पहले भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक गांव था मिसमा। वहां एक अनाथ मछुआरा रहता था ताराओन । एक दिन वह मछली पकड़ने गया । उस दिन मछली के स्थान पर एक नाग उसके जाल में फंस गया । दरअसल, वह नाग, नागलोक का राजा था | अपने पिता को जाल में फंसा देखकर नागकन्या घबराई। उसने सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर लिया । वह ताराओन के पास पहुंचकर बोली-“यदि तुम मेरे पिताजी को छोड़ दोगे तो मैं तुमसे विवाह कर लूंगी ।”
युवक मान गया और उसने नाग को छोड़ दिया। नागकन्या ने उससे विवाह कर लिया।
ताराओन और नागकन्या का विवाह गांव वालों को नहीं भाया । उन्होंने विवाह की खबर राजा को दे दी। राजा ने ताराओन को बुलाकर कहा-“तुमने हमारी परम्पराओं को तोड़ा है, तुम्हें दंड मिलेगा । कल सुबह तुम्हारे और मेरे मुर्गे में लड़ाई होगी, जो हारेगा, उसे गांव छोड़कर जाना होगा।“
युवक डर गया। उसने घर आकर सारी बातें पत्नी को बताई । नागकन्या बोली-“इसमें इतना डरने की क्या बात है ? मैं अभी नागलोक से एक बलवान मुर्गा ले आती हूं।” यह कहकर वह नाग लोक चली गई। कुछ देर बाद वह मुर्गा लेकर आ गई ।
दूसरे दिन राजा और युवक के मुर्गे आपस में भिड़ गए । नागलोक का मुर्गा अधिक बलवान था इसलिए राजा का मुर्गा हार गया, परन्तु वह बोला, “ताराओन ! इससे फैसला नहीं हो पाया है। अतः कल सुबह जो टोकरी नदी को उलटी दिशा में बहा देगा, वही विजयी होगा।”
ताराओन के लिए लोहित नदी के बहाव को उलटी दिशा में मोड़ना असंभव था। उसने यह बात नागकन्या को बताई। उसने पति को ढांढस बंधाया-“डरो नहीं ! मेरे पिताजी तुम्हारी मदद करेंगे।” वह अपने पिताजी के पास गई । नागकन्या ने अपने पति की परेशानी बताई। पिता ने उसे सुंदर टोकरी दी। कहा-“टोकरी को नदी में डालते ही, धारा उलटी दिशा में बहने लगेगी।’ नागकन्या अपने घर पहुँची। उसने ताराओन को सारी बातें बता दीं ।
ताराओन ने टोकरी नदी में डुबो दी| इस पर तुरन्त नदी का बहाव उलटकर राजा के महल तक पहुंच गया । ताराओन खुशी से झूम उठा । वह राजा से बोला-“राजन ! मैं जीत गया हूँ । शर्त के अनुसार आपको यह गांव छोड़कर चले जाना चाहिए।’
राजा कहां हार मानने वाला था ? वह बोला, “इस निर्णय को भी अंतिम नहीं माना जाएगा । अब हमें युद्ध करना चाहिए। इसी युद्ध से निर्णय होगा ।”
ताराओन भागा-भागा अपनी पत्नी के पास पहुँचा और सारी बातें बताईं। राजा के पास बड़ी फौज थी परन्तु ताराओन तो अकेला था । नागकन्या उसकी परेशानी सुनकर फिर नागलोक में पहुंची। वहां से वह सोने का ढोल और उसे बजाने की छड़ी ले आई।
सुबह राजा अपनी फौज के साथ लड़ाई के लिए आया। ताराओन पहले से ही तैयार था । राजा और फौज को देखकर नागकन्या ढोल बजाने लगी ! ढोल की ढम-ढम सुनकर वृक्ष, जानवर, घास-पत्ते आदि नाचने लगे।
राजा और सैनिक भी हथियार फेंककर झूमने लगे।
अब ताराओन और उसकी पत्नी नागकन्या गांव के राजा-रानी बन गए । आज भी अरुणाचल के वंशज ताराओन जनजाति के नाम से जाने जाते हैं।
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