रविवार, 19 जुलाई 2020

संस्मरण


अनन्त चतुर्दशी

अंकुरण, संवर्द्धन ,क्षरण और फिर अनन्त में विलयन। आज उसी अनन्त को स्मरण करते हुए जीवन यात्रा की इस परिक्रमा को सुमिरन करने का दिवस है।
यह प्रक्रिया तो स्वयं चलती है। भोर होती है, पक्षियों का कलरव,प्रभात के संग दिवस का आगमन, फिर गमन, रात्रि_____। और, फिर एक दिन उसी अनन्त में विलीन, जहां से यात्रा की शुरुआत हुई थी।
आज उसी अनन्त भगवान को प्रणाम करते हुए यात्रा पथ पर चलते जाना है।
हां, बचपन की कुछ अनमोल यादें भाव बन कर हृदय से निकलने को उद्वेलित कर रही हैं। उन दिनों हमारे गांव में रेडीमेड सेवई का आगमन नहीं हुआ था। पड़ोस में एक अपने बड़ोदा हुआ करते थे, जो सम्बन्ध में मामा लगते थे, पर प्यार से सब उन्हें बड़ोदा कहते। बड़ोदा यानि प्यारे बड़े भैया। उनके यहां सेवई बनाने की एक मशीन थी।अनंत चतुर्दशी के कुछ दिन पूर्व उसकी सफाई होती और पूरे मुहल्ले में ढिंढोरा फैल जाता_ आज बड़ोदा के घर में कच्ची सेवई मशीन से निकाली जाएगी।
मां चक्की से गेहूं पीस कर आटा निकालती,चलनी से चालती, घी में सानती और मैं घी मिश्रित गूंथे आटे को लेकर दौड़ पड़ता, बड़ोदा के घर।वहां एक तरफ से गूंथे आटे को डाला जाता, दूसरी ओर से सेवई की लच्ची निकलती।सेवई बनते देखने का वह आनन्द अद्भुत था। सेवई के लच्छों को ले मां के पास दौड़ा आता। अपने विजयश्री की गाथा सुना कर गर्व की अनुभूति करता।
मां साफ चादर खटिया में बिछाकर सेवई सूखने को देती, कहती बाबू तुम भी आंगन में बैठ कर, कौवों को भगाना, जूठा न करदें। मज़ा आता, स्कूल से बिन मांगी छुट्टी मिल जाती। कौओं के साथ उछलता। अनंत के दिन अनंत बंधवाता। पूड़ी सेवई बनती, शुद्ध घी वह भी घर में निर्मित क्या अद्भुत स्वाद होता।
और फिर बरस भर की प्रतीक्षा____।
आज वही अनंत चतुर्दशी है। मा अनंत में विलीन हो चुकी है। यहां बंगलौर में शायद अनंत चतुर्दशी को उस रूप में लोग नहीं जानते। अनन्त सूत्र भी नहीं मिलता। संगिनी अंटा से अनंत सूत्र की चौदह गांठे पिरोती हैं, पूजा की तैयारी करती है। मै पंडित बनकर अनंत पोथी बांचता हूं। चरणामृत में काल्पनिक अनंत देव को ढूंढता हूं, माथे लगाता हूं।
पत्नी पूड़ी सेवई, नमक रहित आलू दम बनाती है।
घ्रानेंद्रियों को अनुभूति होने लगती है।

अनंत भगवान की जय हो। जब तक जीव अनंत में विलीन नहीं हो जाता, कथाएं चलती रहेंगी, यात्रा अपने अंतहीन पथ में जारी रहेगी, स्मृतियां कभी हंसाती रहेंगी, कभी रुलाती रहेंगी। उस अनंत पथ की तलाश में, भंवर में डूबता उतराता,

विनोद।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें