रविवार, 19 जुलाई 2020

संबंध


सम्बन्ध
कामता बाबू ऑफिस से घर पहुँचते ही सबसे पहले अपने भतीजा और भतीजी के पास बैठते ।उन बच्चों की सरलता और मृदुल तोतली आवाज़ को सुने बिना उनका मन नहीं लगता ।बच्चों से मिलकर उनकी दिनभर की थकावट दूर हो जाती ।बच्चे भी तो नादान होते हैं  जो उन्हें पुचकारता है ,स्नेह भरी निगाहों से देखता है ,वे उनके हो जाते हैं ।अपने और पराये का भेद उनके मन में नहीं होता ।मदन  की पत्नी अपने बच्चों को ईशारे से बुलाती और कहती , जा चाचा जी को नाश्ता दे आ ।बिनु दौड़कर  अपनी माँ के हाथों से प्लेट लेकर चाचा जी  को कहती ,नाश्ता कर लीजिए  चाचा जी ।अच्छा बेटा ,कहते हुए वे नल पर जाकर हाथ-मुँह धोकर नाश्ता करने लग जाते ।कामता बाबू की पत्नी  को यह सब अच्छा नहीं लगता ।लेकिन वह करे तो क्या करे ।दोनों भाइयों में खूब पटरी बैठती थी । किसी भी बात पर कभी कहा-सुनी नहीं हुई थी ।कामता बाबू जो कहते ,मदन  उसे हर -हाल में पूरा करता था ।कभी भी सर उठाकर भाई के सामने बातें भी नहीं करता था ।और बातें भी क्यों करे ।कामता बाबू भी मदन का पूरा ख्याल रखते थे ।पिताजी के गुजर जाने के बाद जब घर की जिम्मेवारी  कामता बाबू के हाथों में आयी तो वे अपनी कमाई  का  अधिकांश हिस्सा मदन की पढ़ाई-लिखाई या उसकी देख-रेख पर खर्च करते थे ।उसे कभी भी पिताजी की आह नहीं आने दी ।उसकी शादी में तो उन्होंने  बेटी वाले के पैसे की चिन्ता किए बिना अपने पैसे भी खूब खर्च किये थे ,और  अब तो मदन के बच्चों पर जान लुटाते थे ।
                            कामता बाबू एक दफ्तर में कलर्क थे ।गाँव के सुखी सम्पन्न लोगों में उनकी गिनती होती थी । दो कित्ता मकान ,दालान, और दालान के आगे खुली जगह में ट्रैक्टर ,पावर टीलर, थ्रेसर आदि खेती करने के नये नये साधनों की कमी न थी ।मदन के अथक प्रयत्न के बाद भी नौकरी नहीं मिली थी । लेकिन खेती जमकर करवाता था । सावन महीना खत्म होते -होते खेतों में धान की रोपनी पूरी करवा लेता ।पचास बिग्हे खेत मे धान कितना होगा , रब्बी कितना होगा इसका पूरा-पूरा हिसाब लगाता था। मजदूरी देकर कितनी बचत हुई ,इसका पाई-पाई हिसाब अपने भईया को बता देता था । कामता बाबू कहते ,ठीक है भाई ,अपनी मेहनत की कमाई तू सम्हाल के रख ,भविष्य में बच्चों के काम आयेगा ।
                                          कामता बाबू की शादी के दस साल हो गये थे ।लेकिन अभी तक संतान सुख से वंचित थे ।डॉक्टर, वैद्य, ओझा, झार-फूक सब तरफ से हार गये थे ।उनकी पत्नी अब उदास और चिन्तित रहने लगी थी ।धीरे-धीरे अब वह चिड़चिड़ि सी होते जा रही थी ।बात-बात में मदन की पत्नी को ताने देती थी  - मेरा कौन खाने वाला रो रहा है ।एक मालिक हैं वो भी दिनभर बाहर की ही धूल फांकते हैं ।मैं क्यों मरुं घर के कामों में ? मदन की पत्नी प्यार से कहती  --दीदी,ये सब आपकी ही संतान हैं न ! आपके बिना हमारे बच्चे कैसे रहेंगे  ?मदन की पत्नी की बातें उसके दिल को छू गयी ।इधर मदन अब तीसरे बच्चे का बाप बनने वाला था ।एकदिन कामता बाबू के मन में एक विचार आया ।क्यों न मदन के होने वाले तीसरे बच्चे को अपने बच्चे की तरह पालने -पोसने के लिए अपनी पत्नी को कहें।ताकि उसे संतान पालने का शौक पूरा हो जाए और बच्चे भी उसे ही माँ समझने लगे ।इसके लिए अब कामता बाबू अपनी पत्नी के दिमाग में ऐसी बातें भरते रहते  जिससे उसका मन इस प्रस्ताव को आसानी से मान ले ।इसी महीने में बच्चे का जन्म का समय था। उचित समय और पत्नी की मानसिकता को समझते हुए उन्होंने यह प्रस्ताव पत्नी के सामने रखा ।पहले तो वह तिलमिला कर बोली  -यह कैसे होगा? कोयल के बच्चे को कौआ अपना बच्चा समझकर पालता है ,लेकिन पर-पंख होते ही वह उड़कर माता-पिता के समाज में चला जाता है ।जब एक पक्षी ऐसा कर सकता है तो मनुष्य तो बुद्धिमान होता ही है ।वह क्यों नहीं ऐसा कर सकता है ।कामता बाबू बार-बार यह प्रस्ताव पत्नी के सामने रखते रहते थे ।धीरे-धीरे उसे भी समझ में आने लगा कि मेरे मरने के बाद  मदन का वारिस ही इस सम्पत्ति का हकदार होगा  , तो क्यों न अभी से पाल-पोसकर माँ वाला प्यार उसे देकर अपना बना लूँ ।और उसने वही किया ।
                               कामता बाबू के साला का लड़का सोनू पढ़ने के लिए पाँच वर्ष की उम्र से ही अपनी बुआ के पास रहता था ।अब उसकी उम्र करीब बारह -तेरह साल की होगी ।जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा था उसकी बदमाशी बढ़ते जा रही थी ।मदन के बच्चों के साथ तो उसकी हमेशा लड़ाई हो जाती ।सबलोग उसकी बदमाशी से परेशान थे ।कामता  बाबू तो  कभी-कभी उसे  उसके घर वापस भेज देने के लिए तैयार हो जाते तो उनकी पत्नी उनसे लड़ने लग जाती।आप अपने भतीजे-भतीजी से प्यार करते हैं तो मैं  कुछ  नहीं  बोलती लेकिन मेरा भतीजा  तो आपको फूटी नजर नहीं सुहाता ।इधर अब कामता बाबू की पत्नी मदन की तीसरी संतान जो लड़का पैदा हुआ था , उसे अपने पास रखने लगी थी ।माँ होने का पूरा प्यार उस बच्चे पर न्योछावर करती थी ।सौर-गृह से निकलने के बाद से ही उसे अपने साथ  सुलाती, लोरियाँ गाती ,उसके लिए नये-नये कपड़े मंगवाती ।मदन की पत्नी भी काफी खुश रहती थी ।उसे लगता ,जेठानी जी का इतना स्नेह मेरे बच्चे से है , तो मुझे क्या देखना । लेकिन सोनू को वह बच्चा कतई पसंद नहीं था ।वह अपनी बुआ से कहता ,यह बच्चा बहुत बदमाशी करता है ।मेरी गोद में शु-शु कर देता है ।इसे अपने पास क्यों रखती हैं बुआ ?इसकी अम्मा तो है ही ।तुम्हारी गोद में शु-शु कर देता है तो तू इसे  गोद में मत लेना ।इसकी अम्मा मैं नहीं हूँ क्या ? अरे बुआ आप तो इसकी चाची हैं ।चुप रह ,तू ज्यादा बोलना बंद कर ।देख रही हूँ तुम्हारी जुबान अब कैंची की तरह चलती है ।इस तरह से डाँट-डपट वह बुआ से कभी नहीं सुना था ।सो अब उसके मन में मदन के नन्हे लड़के के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न होने लगा ।सोनू की कभी-कभी इच्छा होती  कि अब वह बुआ के घर से अपना गाँव वापस चला जाए ।लेकिन उसे अपनी माँ की बातें याद है ।उन्होंने कहा था ,सोनू तुम अपनी बुआ की खूब सेवा करना ।सेवा में ही मेवा है ।
                        .          मदन का नन्हा अब एक साल हो गया था ।आज उसका जन्मदिन था ।काफी धूमधाम से उसका जन्मदिन मनाया जा रहा था ।कामता बाबू की पत्नी  काफी खुश थी ।वह खुशी-खुशी  सारे सामानों का इंतजाम करवा रही थी ।केक के लिए उसने विशेष ऑर्डर दिया था ।शाम साढ़े सात बजे से कार्यक्रम प्रारंभ होने वाला था ।सब लोग क्रम-क्रम से आ रहे थै ।नन्हां सुंदर ड्रेस पहनकर तैयार था ।कामता बाबू की पत्नी उसे अपनी गोद से हटा नहीं रही थी ।केक वाला केक लाकर वहीं टेबल पर सजा दिया ।कामता बाबू और मदन मेहमानों के स्वागत करने में लगे हुए थे ।सोनू वहीं केक के  आसपास  घूम रहा था ।कामता बाबू की पत्नी ने कहा ,तुम वहाँ क्या कर रहे हो ।कुछ नहीं बुआ मैं तो केक को सजा रहा हूँ ।अब क्या सजा रहे हो ।सब सजा दिया गया है ।जाओ तू भी नये कपड़े पहनकर तैयार हो जा ।
   केक काटने का समय हो रहा था ।कामता बाबू की पत्नी नन्हा को गोद में लेकर केक के सामने खड़ी थी । फोटोग्राफर अपना ऐंगिल बनाकर तरह -तरह का फोटो खींच रहा था । वीडियो रेकार्डिंग भी हो रही थी ।खाने की खुशबू से लोग आकृष्ट होकर खाना भी खा रहे थे ।कुछ लोग केक के आसपास जमा होने लगे थे ।कामता बाबू को नन्हा और पत्नी के साथ फोटो खिंचवाने के लिए बुलाया गया ।लेकिन वे वहाँ उपस्थित नहीं हो सके ।फिर  कुछ इंतज़ार करने के बाद केक काटने की रस्म पूरी होने लगी । केक पर रखी मोमबत्तियां जलायी गयी । बैलून फूटने  लगे । नन्हा के हाथों को पकड़कर कामता बाबू की पत्नी चाकू से केक कटवाने के लिए हाथ लगाया ही था कि  केक से ऐसा विस्फोट हुआ कि  नन्हा और कामता बाबू की पत्नी वहीं पर हताहत हो  गयी ।भगदड़ मच गई ।हो हल्ला होने लगा ।क्यों ऐसा हुआ ।किसने ऐसा किया ।जितने मुँह उतनी बातें होने लगी ।इधर कामता बाबू और मदन दोनों को लेकर  हॉस्पिटल  चले गये ।   घर में कोहराम मच गया था ।मदन की पत्नी और बच्चे का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था ।साथ में सोनू भी रोये जा रहा था ।हफ्ते भर बाद कामता बाबू की पत्नी धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी थी ।   लेकिन नन्हा बुरी तरह से घायल था ।उसे ठीक होने में काफी वक्त लग गया ।  स्वस्थ होते ही कामता बाबू की पत्नी ने सबसे पहले नन्हा के बारे   में पूछा, कहाँ है मेरा नन्हा ।कामता बाबू ने पत्नी को ढाढ़स दिलाते हुए कहा कि  नन्हा बिल्कुल ठीक है ।     भाभी की बातें सुनकर मदन की आँखों से आँसू छलक पड़े ।कितना स्नेह रखती हैं भाभी  मेरे नन्हा से ।ओह!भगवान जल्दी इन्हें स्वस्थ कर दें । इधर सोनू को बुआ के बिना घर में मन नहीं लग रहा था । इसलिए दो-तीन बाद ही उसने अपने फूफा के सामने घर जाने का प्रस्ताव रखा । कामता बाबू तो पहले से ही चाहते थे कि वह चला जाए। सो उन्होंने हाँ कहने मेंं देर न की ।सोनू कुछ आवश्यक सामान लेकर घर चला गया ।जैसे-जैसे कामता बाबू की पत्नी ठीक हो रही थी ,उसके मन में उस दिन की घटना को लेकर तरह-तरह के सवाल पैदा हो रहे थे ।उसके सामने जन्मदिन का सारा दृश्य एक-एक कर आने लगा था ।उसे याद आया कि सोनू केक के पास खड़ा कुछ कर रहा था । पूछने पर उसने कहा था , "मैं तो केक सजा रहा हूँ ।"पर उसके हाथ म़ें  तो कुछ  और भी था । वह कुछ और नहीं विस्फोटक ही था । इसे यादकर उसके मन में सोनू के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न हो गया ।वह गुस्से में आपे से बाहर हो गयी ।लेकिन कुछ सोचकर वह तुरत शांत हो गयी ।अब वह सोनू को अपने घर में नहीं रखना चाहती थी ।उसे आशंका थी कि फिर कभी भी वह कुछ कर सकता है ।लेकिन इन बातों को वह अपने पति से भी  नहीं कहना चाहती थी ।एक तरफ नन्हा का मोह और दूसरी तरफ मायेके की बेइज्जती की बात थी ।वह कसमकस की स्थिति में हो गयी । घर आने पर उसे  पता चला कि सोनू  खुद घर जाने  के लिए प्रस्ताव रखा था और जिद्द करके चला गया । अब तो वह पूर्णरुप से विशवस्त हो गयी कि इस घटना में सोनू का ही हाथ था ।
                                 
                        इन्दु कुमारी

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