।। जिसके बारिश की बूंदों में भी संगीत है...।।
जिसके बारिश के बूंदों में भी
संगीत है
हवा जिसकी
हवा में लटकी हुई
बांसुरी है
बादल
जिसके
नृत्य-समारोह के
कल्पनातीत आकारों में सजे
लोकनर्तक हैं
और
आकाश
एक विशाल
रंगमंच
ऐसे अप्रतिम सर्जक की
जन्मना
प्रिय नाट्य शिष्या
(जोकि खुद इस जगन-नाटक की
सूत्रधार है)
अपने ही
धुन में मगन
संगीत-बिखेरते
(पर उससे जानबूझकर
निस्पृह-अनजान)
विशिष्टता के
शास्त्रीय
लय ताल में
चली जा रही है
बेपरवाह-सुतरतीब
बाखबर-बेखबर
पर एक अनोखी-सी
ठसन भरी
खनक
और
गमक
छन-छन-छन
की
अनूठी
पदाघात
ध्वनि-सर्जना
मोबाइल रिंगटोनों
चैनलों के उत्तेजन-ध्वनियों से
कितना अलग
एक
शास्त्रीय अनुभूति
एक
शास्त्रीय सुख
दुनिया के दुख को
पांच रत्ती
कम करता हुआ
एक
धवल
बतख
झील से निकल
दुनिया के इस शुष्क जमीन पर
संगीत-ध्वनि का लहराता झील
अपनी अदा से
साधिकार
बनाते हुए
शास्त्रीय-सा कुछ
---लहराते
---इतराते
चली जा रही है
सर्जना के उस झील में
हमें
तैरा रही है!
---शीलकांत पाठक
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