बुधवार, 22 जुलाई 2020

बोधिसत्व की कविता



मैं सत्ता से कवि की मुक्ति की मांग को खारिज करता हूं!

(कैद कवि वरवर राव के लिए)

मेरे पास कोई कविता नहीं जिससे
एक कवि को कैद से छुड़ा लाऊं
मेरे पास ऐसे कोई शब्द नहीं जिनसे
मैं रोटी बना पाऊं
या कोटि कोटि जन के
दुःख मिटाने वाले मंत्र बना पाऊं
मेरे पास ऐसे कोई अक्षर नहीं जिससे मैं
एक विलाप को गायन में बदल पाऊं!

कवि को कैद में रहने दो?
भूख को बने रहने दो?
विलाप को गायन क्यों बनाना?
दुःख मिटाने के लिए उठाओ शब्द नहीं कुछ और
कुछ और कुछ और!

मैं कविता शब्द और
अक्षर के दुःख और सुख जानता हूं
मैं कवि की कैद को कविता की जय मानता हूं
वे हथकड़ियां पराजित हैं
जो कवि को बंधक बनाया करती हैं

सृष्टि में भूख और रुलाई
सत्ता के मृत होने के संकेत हैं
हर आंसू शासक की मृत्यु है
हर यातना हर क्रूरता!

एक उदास तिनका यदि इच्छा के विपरीत जलाया जाए तो यह अग्नि की क्रूरता है!
एक उदास अक्षर एक शब्द यदि एक अपनी इच्छा के विपरित प्रशस्ति पत्र में जोड़ा जाए तो यह
संसार के हर शब्द की पराजय है!

यह एकदम जरूरी नहीं कि सत्ता अपनी पराजय की घोषणा करे स्वयं
वह अपनी हार की मुनादी करे और बताए कि वह हार चुकी है लोगों!
यह एकदम जरूरी नहीं कि वह एक कवि से भी स्वीकार करे अपनी हार?

हारी हुई सत्ता
आंसू की बूंदों में अपने प्रतिबिंब देख कर डरती है
हर पराजित राज्य भूख को भूल जाने के मंत्र खोज लेने की मुनादी करता ही है बार बार!

लेकिन वह हर आंसू के साथ मरता ही है!

मैं कवि को रिहा करने की मांग नहीं करता
किसी तानाशाह से
किसी सत्ता से कुछ भी मांगना
मुझे स्वीकार नहीं!

वह जो दे सकता है वह दे चुका है कवि को
वह जो दे सकता है दे रहा है विदूषक!

उससे पाने कि उम्मीद भी क्यों?
उससे मुक्ति की बात करो
उससे क्यों छुड़ाना कवि को याचना करके?
उससे आंसू और यातना के नए अर्थ क्यों पूछना?

कवि कैद में है
यह याद रहे तो भी सत्ता की पराजय है
कवि से सत्ता परेशान है यह याद रखना भी
कविता की जीत है!

उस इमारत को देखो
उसमें कवि नहीं
एक पराजित सत्ता कैद है
उस कवि को याद रखो
उसकी कविता को मंत्र बनाओ
आओ लोगों सत्ता को याद दिलाओ
कि एक बीमार कवि की कैद में है
एक पूरी सत्ता!

मेरे पास कोई कविता नहीं
जिससे कवि की रिहाई संभव हो
मैं ऐसे शब्द और अक्षर हीन हूं
मैं सत्ता से कवि की मुक्ति की मांग को खारिज करता हूं!

बोधिसत्व, मुंबई

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