शनिवार, 25 जुलाई 2020

फैरबुक की दुनियां में संवाद /अखिल अनूप


फेसबुक पर क्या डाला जाए और क्या नहीं , हमारी समझ से इसकी कोई वैधानिक आचार संहिता अभी तक बनी नहीं है ....
                   यहाँ कोई बौद्धिक व सर्जनात्मक है , तो कोई बिल्कुल अ-बौद्धिक व अ-सर्जनात्मक ; कोई बेहद सामाजिक है , तो कोई नितान्त वैयक्तिक ; कोई मौलिक है , तो कोई इतना अ-मौलिक कि हमेशा दूसरे को ही शेयर करता रहता है ; कोई जिये-मरे का स्टेटस अपडेट करता है , तो कोई भूकंप और बारिश की सूचनाओं पर लाइक और कमेंट लूट कर ले जाता है .... कोई अपने बुजुर्गों को फेसबुक के रंगमंच पर उतारता है , तो कोई अपने बच्चों की विविध झाँकियाँ पोस्ट करके आह्लादित होता है .... दिवंगत और अजन्मे भी यदि कहीं दिखाई देते हैं , तो वह फेसबुक का ही फ्रेम है ....
                    बधाई , शुभकामनाएं और आशीषों से फेसबुक भरा पड़ा है .... ये माँगी भी जाती हैं और बिना माँगे भी इफ़रात में दी जाती हैं । कुछ उदारमना तो बधाई , शुभकामनाओं और आशीषों के अक्षय भंडार के साथ जाने - अनजानों सबकी झोलियाँ भरने को सतत तत्पर रहते हैं .... यहाँ मित्रधर्म का जमकर निर्वाह होता है , तो शत्रुताएँ भी खूब निभाई जाती हैं .... बेवजह किसी की फटी में टाँग अड़ाने वालों की बहुतायत यहीं देखने को मिलेगी ....
                  अब यह सब कितना सही है और कितना गलत .... और क्या अच्छा है और क्या बुरा - यह फैसला तो हम सबको ही करना है और समय समय पर हम सब करते भी हैं .... लेकिन यह भी हम सबका स्वभाव है कि हम जिसकी आलोचना करते हैं , चाहे-अनचाहे अक्सर उसी रास्ते पर चल भी पड़ते हैं ....
                हमें तो कभी कभी महाभारत  के वेदव्यास की तरह यही लगता है कि फेसबुक दुनिया का सबसे सच्चा रूपक है ..... जो कुछ इस दुनिया में है , वह सब  फेसबुक में है और जो फेसबुक में नहीं है , वह इस दुनिया में भी नहीं है ....

                                    #अनूप_शुक्ल

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