अनुजा के विवाह को हुए अभी तीन महीने ही हुए थे परंतु उसने पूरे घर को अपना ही बना लिया था । सब को समय पर चाय नाश्ता देना , खाना देना, सारा काम समय से करना और खुशी खुशी मेहमानों की सेवा करना , ये सब गुण मानो अनुजा में कूट कूट कर भरे थे ।अनुजा का पति अमित उससे बहुत खुश था ।
अमित ऑफिस जा चुका था। अनुजा अभी फोन सुनकर ही हटी थी और खुशी खुशी वह अपनी सास के पास आई और बोली -"मम्मी जी भैया इसी शहर में आए हुए हैं, एक मीटिंग है । मैंने उन्हें कहा है कि आज दोपहर का खाना वो हमारे साथ ही खाएं । तो फिर लंच में मैं क्या बनाऊँ?"
अनुजा की सास एकदम हैरानी से बोली-"कुछ स्पेशल बनाने की क्या जरूरत है । एक सब्जी तो सुबह ही बनाई थी, बस कुछ हल्का सा देख लो जो कुछ भी घर पर पड़ा हो"
यह सुनकर अनुजा पर मानो बिजली सी गिरी । वह आश्चर्य चकित रह गई । उसे बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी सास उसे ऐसा जवाब देगी । उसे याद आया कि पिछले ही हफ्ते उसकी बड़ी ननद और ननदोई आए थे । उनके लिए अनुजा ने दो दिन ऑफिस से छुट्टी ली थी और उनकी खूब आवभगत की थी । वे लोग बहुत खुश हुए थे और उसकी ननद तो फूली नहीं समा रही थी अनुजा जैसी भाभी मिलने पर । ये दो दिन मानों उत्सव की तरह बीते । अनुजा ने खूब पकवान बनाए । पर उसे बड़ा दुःख हो रहा था कि कैसे उसकी सास ने उसके भाई के आने की बात को बिल्कुल भी महत्व नहीं दिया ।
उसने अपने मन को शांत किया और चुपचाप अपनी सास के सामने बैठ गई और बड़े ही प्यार से बोली"- मम्मी जी आपसे एक बात कहूँ , अगर आपके यहां यही रिवाज है तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है, मैं आपके अनुसार ही चल लूंगी और हाँ अमित बता रहे थे कि अगले महीने की दस तारीख को बरेली वाले मामा जी भी आ रहे हैं तब भी मैं आपके इसी रिवाज का पालन कर लूंगी । लेकिन एक बात आप हमेशा ध्यान रखना कि अगर आप अपने जंवाई या अपने भाई का सम्मान चाहती हैं तो मेरे भाई का मान भी रखना होगा।" कह कर अनुजा उठ खड़ी हुई ।
उसकी सास कुछ बोलती उससे पहले ही दूसरे कमरे से उसके ससुर जी उठकर आ गए और बोले -"नहीं नहीं बहू ऐसा मत कहो । ये घर भी तुम्हारा ही है, तुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपने मेहमानों का स्वागत जैसे मर्जी करो । तुम्हें जो कुछ चाहिए मैं ले आता हूँ"- फिर वह अपनी पत्नी की तरफ मुंह करके बोले -"अरे कमला तुम्हारी किस्मत इतनी अच्छी है जो तुम्हें इतनी अच्छी बहू मिली है । तुम भी सास बनने की बजाय मां बनने की कोशिश करो । तुम्हारी इसी गलतियों के कारण ही तुम्हारा बड़ा बेटा और बहू तबादला कराकर यहां से चले गए । क्या अब तुम इन्हें भी अपने से दूर करना चाहती हो ।"
अनुजा की सास ने शर्मिंदा होते हुए कहा-" मुझे माफ कर दो बहू , मेरी सोच बहुत छोटी थी । जैसी सेवा और आवभगत तुमने अपनी ननद और ननदोई की की है, तुम अपने परिवार के लिए भी वैसा ही कर सकती हो । मुझे अपनी गलती महसूस हो गई है ।" अनुजा मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ चल दी । उसे खुशी थी कि उसने बिना झगड़ा किये और बिना स्वयं को तनाव में डाले इस समस्या का समाधान कर लिया था । वह सोच रही थी कि अगर हम किसी गलत बात के लिए पहले से ही आपत्ति जता देते हैं तो उसकी पुनर्वृति की सम्भावना ही नहीं रहती ।
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