भगवान शिव का प्रचंड क्रोध जो निगल गया था दैत्य गुरु शुक्राचार्य को ?
ऋषि शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु कहलाते है तथा इनके बारे में काशी खण्ड महाभारत जैसे ग्रंथो में अनेक कथाएं लिखी गई है। शुक्राचार्य के पिता मह्रिषी भृगु थे तथा देवताओ के गुरु बृहस्पति के पिता ऋषि अंगिरस थे। शुक्राचार्य व बृहस्पति दोनों ने अपने बाल्य अवस्था में अंगिरस से शिक्षा ली थी. परन्तु ऋषि अंगिरस पुत्र मोह के कारण शुक्राचार्य की अपेक्षा बृहस्पति को शिक्षा देने में अधिक रूचि दिखाते थे।
अपने साथ हो रहे भेदभाव से परेशान होकर शुक्राचार्य ऋषि अंगिरस का आश्रम छोड़ दिया और गौत्तम ऋषि के आश्रम में गए तथा उनसे विद्यादान करने के प्राथना करी. गौत्तम ऋषि शुक्राचार्य को समझाते हु बोले पुत्र ! इस समस्त संसार के गुरु भगवान शिव है, अतः तुम्हे उनके शरण में जाना चाहिए और उनकी आरधना करनी चाहिए। इस तरह तुम समस्त प्रकार की विद्या एवं गुण स्वतः ही प्राप्त कर लोगे।
गौतम मुनि के सुझाएँ मार्ग को उत्तम मानकर शुक्राचार्य गौतमी नदी के तट पर पहुंचे तथा वहां उन्होंने भगवान शिव की तपस्या आरम्भ करी। उन्होंने कई वर्षो तक कठोर तपस्या करी जिस पर प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने दर्शन दिए. भगवान शिव के द्वारा गुरु शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या का उपदेश प्राप्त हुआ।
गुरु शुक्राचार्य ने भगवान शिव द्वारा प्राप्त विद्या का प्रयोग दैत्यों पर करना शुरू कर दिया। शुक्र ने मृत संजीवनी विद्या के बल पर सभी मृत राक्षसों को जीवित कर दिया। इसके फलस्वरूप दानवो में में अहंकार उतपन्न हो गया तथा वे देवताओ पर अत्याचार करने लगे क्योकि देवताओ और दानवो में सहज ही जाती वैर था।
तथा बाद में निरंतर दानवो और देवताओ में युद्ध होने लगा। मृत संजीवनी के कारण दानवो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी तथा देवता असहाय होने लगे।
जब देवताओ को कोई उपाय नहीं सुझा तो भगवान शिव के पास गए क्योकि उन्होंने ही शुक्राचार्य को मृत संजीवनी की विद्या दी थी। भगवान शिव से शिकायत करते हुए देवता बोले भगवन ! आप तो अन्तर्यामी है आप से कुछ नहीं छुपा। आप के द्वारा दी गई विद्या का दैत्य गुरु शुक्राचार्य दुरूपयोग कर रहे है। वह मृत असुरो को पुनः जिंदा कर हमारे खिलाफ भड़का रह है। अगर कुछ नहीं किया गया तो शीघ्र ही दैत्य सम्पूर्ण स्वर्गलोक पर अपना अधिकार स्थापित कर लेंगे।
भगवान शिव को शुक्राचार्य द्वारा मृत संजीवनी विद्या का दुरूपयोग करना अनुचित लगा। महादेव शिव क्रोध में आकर दैत्य गुरु शुक्राचार्य को ढूढ़ने लगे। दैत्य गुरु शुक्राचार्य भगवान शिव के भयंकर क्रोध से भली-भाति परिचित थे।
अतः उन्होंने अपने आपको भगवान शिव के नजरो से बचाने का प्रयास किया. परतु भगवान शिव से कोई भी चीज़ नहीं छुपी है उन्होंने शुक्राचार्य को पकड़कर अपने विशाल मुंह को खोला, तथा उन्हें निगल लिया।
महादेव शिव के देह में शुक्राचार्य का दम घुटने लगा उन्होंने भगवान शिव के देह में ही उनकी प्राथना करनी शुरू कर दी. परन्तु इस पर भी भगवान शिव का क्रोध शांत नहीं हुआ।
भगवान शिव ने अपने शरीर के सभी छिद्र बंद कर दिए. अंत में शुक्राचार्य महादेव शिव की देह से शुक्ल कांती के रूप में निकल गए।
इस प्रकार वे महादेव शिव के तथा माता पर्वती के पुत्र समान हो गए. परन्तु भगवान शिव का क्रोध अब भी शांत नहीं हुआ जैसे ही उनकी दृष्टि शुक्राचार्य पर पड़ी तो वे उनका वध करने के लिए आगे बढ़े परन्तु उसी समय माता पार्वती ने उन्हें रोका व समझाया की यह अब हमारे पुत्र समान है। अतः हम अपने स्वयं के पुत्र का ही वध नहीं कर सकते।
पार्वती की अभ्यर्थना पर शिव जी ने शुक्राचार्य को अधिक तेजस्वी बनाया। अब शुक्राचार्य भय से निरापद हो गए थे। उन्होंने प्रियव्रत की पुत्री ऊर्जस्वती के साथ विवाह किया। उनके चार पुत्र हुए-चंड, अमर्क, त्वाष्ट्र और धरात्र।
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