उत्तरप्रदेश
के ग़ाज़ीपुर ज़िले का गहमर गाँव न सिर्फ एशिया के सबसे बड़े गाँवों में
गिना जाता है, बल्कि इसकी ख्याति फौजियों के गाँव के रूप में भी है.
इस
गाँव के करीब दस हज़ार फौजी इस समय भारतीय सेना में जवान से लेकर कर्नल तक
विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि पाँच हज़ार से अधिक भूतपूर्व सैनिक
हैं.
यहाँ के हर परिवार का कोई न कोई सदस्य भारतीय सेना में कार्यरत है.
बिहार-उत्तरप्रदेश की सीमा पर बसा गहमर गाँव क़रीब आठ वर्गमील में फैला है.
लगभग 80 हज़ार आबादी वाला यह गाँव 22 पट्टी या टोले में बँटा हुआ है और प्रत्येक पट्टी किसी न किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के नाम पर है.
गाँव
में भूमिहार को छोड़ वैसे सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन सर्वाधिक
संख्या राजपूतों की है और लोगों की आय का मुख्य स्रोत नौकरी ही है.
प्रथम
और द्वितीय विश्वयुद्ध हों या 1965 और 1971 के युद्ध या फिर कारगिल की
लड़ाई, सब में यहाँ के फौजियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.
विश्वयुद्ध
के समय में अँग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक शामिल थे, जिनमें 21
मारे गए थे. इनकी याद में गहमर मध्य विधालय के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख
लगा हुआ है.
भूतपूर्व सैनिक
गहमर के भूतपूर्व सैनिकों ने पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था बनाई है.
संयोजक
शिवानंद सिंह कहते हैं, "दस साल पहले स्थापित इस संस्था के करीब तीन हज़ार
सदस्य हैं और प्रत्येक रविवार को समिति की बैठक कार्यालय में होती है
जिसमें गाँव और सैनिकों की विभिन्न समस्याओं सहित अन्य मामलों पर विचार
किया जाता है. गाँव के लड़कों को सेना में बहाली के लिए आवश्यक तैयारी में
भी मदद दी जाती है."
गाँव के युवक गाँव से कुछ दूरी पर गंगा तट पर स्थित मठिया चौक पर सुबह–शाम सेना में बहाली की तैयारी करते नजर आ जाएँगे.
शिवानंद
सिंह कहते हैं,"यहाँ के युवकों की फौज में जाने की परंपरा के कारण ही सेना
गहमर में ही भर्ती शिविर लगाया करती थी. लेकिन 1986 में इस परंपरा को बंद
कर दिया गया, और अब यहाँ के लड़कों को अब बहाली के लिए लखनऊ, रूड़की,
सिकंदराबाद आदि जगह जाना पड़ता है."
गहमर भले ही
गाँव हो, लेकिन यहाँ शहर की तमाम सुविधायें विद्यमान हैं. गाँव में ही
टेलीफ़ोन एक्सचेंज, दो डिग्री कॉलेज, दो इंटर कॉलेज, दो उच्च विधालय, दो
मध्य विधालय, पाँच प्राथमिक विधालय, स्वास्थ्य केन्द्र आदि हैं.
गहमर
की ग्राम प्रधान किरण सिंह कहती हैं, "यहाँ के लोग फौजियों की जिंदगी से
इस कदर जुड़े हैं कि चाहे युद्ध हो या कोई प्राकृतिक विपदा यहाँ की
महिलायें अपने घर के पुरूषों को उसमें जाने से नहीं रोकती, बल्कि उन्हें
प्रोत्साहित कर भेजती हैं."
गहमर रेलवे स्टेशन पर
कुल 11 गाड़ियाँ रूकती हैं और सबसे कुछ न कुछ फौजी उतरते ही रहते हैं
लेकिन पर्व-त्योहारों के मौक़े पर यहाँ उतरने वाले फौजियों की भारी संख्या
को देख ऐसा लगता है कि स्टेशन सैन्य छावनी में तब्दील हो गया हो.
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शनिवार, 3 मई 2014
फौजियों का गाँव गहमर
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