शुक्रवार, 9 मई 2014

विदर्भ: नहीं सूखते विधवाओं के आंसू

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ज़ुबैर अहमद
 मंगलवार, 4 मार्च, 2014 को 06:56 IST तक के समाचार


प्रस्तुति - निम्मी नर्गिस हिमानी सिंह
वर्धा
विदर्भ की विधवा इंदिरा
महाराष्ट्र के विदर्भ इलाक़े में क़र्ज़ में डूबे किसान पिछले 20 सालों से आत्महत्या कर रहे हैं, जिसके कारण वहां विधवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है.
दाहेगांव, नागपुर से क़रीब 135 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक पिछड़ा गांव है. मैं वहां साल 2006 में कुछ विधवाओं से मिलने गया था. उनमें से एक इंदिरा थीं.
इस बार जब मैं उनके एक कमरे वाले घर में गया तब वो ठीक उसी तरह बैठी थीं जैसे आठ साल पहले अपने पति के मरने के बाद.
ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके लिए वक़्त थम गया हो.
इंदिरा केलकर उस समय 32 वर्ष की थीं और अपने पति के मरने पर शोक मना रही थीं. उनके काले घने और लंबे बाल अब कम हो गए थे. चेहरा पहले से भी उदास हो गया था और आंखों से चमक ग़ायब थी.
वो इशारे से मुझे बैठने को कहती हैं. मैं उनसे पूछता हूँ कि ज़िंदगी कैसी गुज़र रही है तो उनका जवाब होता है, "दुःख भरी" और फिर आंसुओं में आगे के शब्द बह जाते हैं.
थोड़ा संभलने के बाद वो बताती हैं कि उन्होंने रोज़ाना मज़दूरी करके अपने चार बच्चों को बड़ा किया और दो बेटियों की शादी भी कर दी. दोनों बेटों में से एक ने स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली है लेकिन दूसरा अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका.
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ग़रीबी और अकेलापन

विदर्भ में किसानों की आत्महत्या
उनके पति पर 30 हज़ार रुपये का क़र्ज़ था, जिसके कारण उन्होंने आत्महत्या की थी.
वो कहती हैं कि लड़कियों की शादी के कारण क़र्ज़ अब और बढ़ गया है. सरकार की तरफ़ से विधवाओं को एक लाख रुपये दिए जाते हैं, लेकिन वो उन्हें नहीं मिले क्योंकि उनके पति अपने पिता के साथ खेतों में काम करते थे इसलिए वो किसानों की श्रेणी में नहीं आते थे.
वो मज़दूरी करके अपने परिवार के अलावा अपने पति के परिवार की देखभाल भी करती हैं. घर में ग़रीबी साफ़ दिखाई देती है. एक चारपाई, एक प्लास्टिक की कुर्सी और कुछ बर्तनों के अलावा उनके पास कुछ नहीं. इंदिरा ग़रीबी रेखा के सब से नीचे दर्जे में आती हैं.
किसानों के अधिकारों के लिए पिछले 20 सालों से लड़ने वाले किशोर तिवारी कहते हैं, “आप जब पिछली बार आए थे तब से अब तक इनकी ज़िंदगी वैसी ही है.”
मैं इंदिरा के अलावा कुछ और विधवाओं से भी मिला. लेकिन मुझे जो बात परेशान कर रही थी वो उनकी ग़रीबी नहीं बल्कि उनका अकेलापन था. उन्हें अंदर ही अंदर तन्हाई खाए जा रही थी.
शहरों में अकेलापन दूर करने के साधन हैं. मानसिक तनाव के लिए मनोवैज्ञानिकों की सलाह ली जा सकती है. लेकिन इन विधवाओं को पूछने उनके पड़ोसी और परिवार वाले भी नहीं आते. वो अपने बच्चों को अपने जीवन का केंद्र बिंदु बनाकर जी रही हैं.
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छलक पड़े आंसू

मैंने इंदिरा से पूछा, "आपने दोबारा शादी क्यों नहीं की." इस पर वो कुछ अपने बच्चों की परवरिश के बारे में कहने लगीं और फिर रो पड़ी.
मुझे समझ में आया कि मैंने ग़लत सवाल किया था क्योंकि इस क्षेत्र में और इंदिरा के समाज में दोबारा शादी करना पाप के समान है.
किशोर तिवारी यहां के समाज से ख़ूब वाक़िफ़ हैं. उनके अनुसार दोबारा शादी करना यहां की परंपरा के ख़िलाफ़ है. लेकिन साथ उन्होंने ये भी बताया कि कभी-कभी आत्महत्याओं के लिए इन विधवाओं को ही ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. उनके साथ भेदभाव भी किया जाता है. अगर कोई दोबारा शादी करना भी चाहे तो उनके अरमान उनके दिलों में ही दब कर रह जाते हैं.
विदर्भ की विधवा रेखा
रेखा से आठ साल पहले उनके पति की आत्महत्या के बाद जब मैं मिला था तो वो काफ़ी कम उम्र की थीं. वो आज भी अधिक उम्र की नहीं लगतीं. लेकिन उन्होंने अपनी जवानी अपने दो बच्चों को पालने में लगा दी.
मैंने उनसे पूछा कि क्या आपको अकेलेपन का एहसास होता है? उनकी निगाहें छत पर टिकी रहीं, आवाज़ तो नहीं निकली, आंसू ज़रूर छलकने लगे.
उनके बच्चे भी रो पड़े. बच्चों ने बताया कि उन्हें अपने पिता का चेहरा याद भी नहीं. बेटी ने कहा, ''मेरे लिए मां भी यही और बाप भी.''
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कब होगी सुबह?

किशोर तिवारी इन महिलाओं के लिए आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास के पैकेज की मांग काफ़ी समय से कर रहे हैं लेकिन अब तक इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली है.
आज विदर्भ में किसानों की विधवाओं की संख्या 10,500 से अधिक है जबकि पूरे राज्य में ये आंकड़ा 53,000 से अधिक है. इनकी संख्या बढ़ती जा रही है.
विदर्भ की विधवा
सरकार ने किसानों के लिए कई आर्थिक पैकेज दिए लेकिन साहूकारों के क़र्ज़ के चंगुल से वो अब भी आज़ाद नहीं हो सके हैं. आत्महत्याएं जारी हैं.
अब कुछ विशेषज्ञ कहने लगे हैं कि कपास उगाने वाले इन किसानों को ब्राज़ील की टेक्नॉलॉजी अपनानी चाहिए जो भारत की पुरानी टेक्नॉलॉजी से मिलती जुलती है और बीटी कॉटन को त्याग देना चाहिए.
डॉक्टर केशव राज क्रांति नागपुर में एक सरकारी संस्था केंद्रीय कपास शोध संस्थान के निदेशक और मुख्य वैज्ञानिक हैं. वो कपास उगाने के लिए ब्राज़ील की टेक्नॉलॉजी को लेकर प्रयोग भी कर रहे हैं.
वो कहते हैं कि इसमें उन्हें कामयाबी मिली है और कपास का उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है. अगर ऐसा हुआ तो किसानों के मुनाफ़े में बढ़ोतरी होगी और वो आत्महत्या करने से परहेज़ करेंगे.
अब मैं विदर्भ के गांवों से निकल कर चमक-दमक वाले हैदराबाद के हाई-टेक सिटी में आ गया हूं.
इंदिरा की मुफ़लिसी वाली दुनिया से इस हाई-टेक सिटी का फ़ासला क़रीब 200 मील होगा, लेकिन ये कितना अजीब है कि दोनों जगहें एक दूसरे से कितनी अलग हैं. एक दूसरे से बिलकुल कटी हुई.
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