सोमवार, 5 मई 2014

मोदी के लिए घर आए परदेसी





प्रस्तुति-- रणजीत, अनिलय और सुजीत पटेल
वर्धा

आखिर क्या बात हुई जो कई साल से भारत से बाहर रह रहे लोग भी अपना काम, नौकरी और परिवार को भी कुछ समय के लिए भूल कर देश वापस आ रहे हैं. इन आम चुनावों में प्रवासी भारतीयों की भूमिका बेहद दिलचस्प मोड़ ले चुकी है.
अमेरिका के वॉशिंगटन में रहने वाले, 60 साल के उद्यमी अडपा वी. प्रसाद भारत के राज्य छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में घर घर घूम कर चुनाव में खड़े हुए देश के प्रधानमंत्री पद के अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहे थे. करीब 25 साल पहले भारत छोड़कर गए प्रसाद वापस आए हैं तो सिर्फ एक सपना लेकर कि वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हिन्दु राष्ट्रवादी नेता नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनते देखें.
छत्तीसगढ़ में अपना बचपन बिताने वाले प्रसाद कहते हैं, "कांग्रेस के शासन में भारत गर्त में जा रहा है. मैं यह होते हुए और नहीं देख सकता." मोदी के राष्ट्रवादी और विकास को बढावा देने के दावों के चलते उन्हें कई लोगों का समर्थन मिल रहा है. प्रसाद मानते हैं कि 63 साल के मोदी प्रधानमंत्री के रूप में गरीबी और बदहाली से जूझ रहे देश में नया गौरव लाएंगे. प्रसाद बताते हैं, "यहां आने की मेरी प्रेरणा ही यही थी कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाया जाए. हम नहीं चाहते कि हमारे देश को एक कमजोर देश के तौर पर देखा जाए."
जबरदस्त नेटवर्किंग
प्रसाद अमेरिका में बीजेपी के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क 'ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी' के उपाध्यक्ष हैं. जनवरी से अब तक प्रसाद के जैसे 30 देशों में रहने वाले 4,000 से भी ज्यादा अप्रवासी भारतीय देश वापस आए हैं. इन अप्रवासियों के साथ काम कर रहे दिल्ली में बीजेपी के नेता विजय जॉली बताते हैं, "मुझे हर दिन बाहर रह रहे कई युवाओं के फोन आते हैं. ऐसा होते मैंने पहले कभी नहीं देखा." जॉली बताते हैं कि विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीय देश में फैले भ्रष्टाचार और पिछले दो बार से मनमोहन सिंह के रूप में एक कमजोर प्रधानमंत्री को देखकर परेशान हैं.
Screenshot Twitter Narendra Modi ट्विटर, फेसबुक हर जगह छाई बीजेपी
बीजेपी ने सोशल मीडिया पर ऐसे कई प्रवासियों के साथ संपर्क स्थापित किए और ऑनलाइन संवाद जारी रखा. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के नई दिल्ली मुख्यालय के लोग प्रवासी लोगों से मिल रही किसी भी तरह की मदद के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रहे हैं. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक एजेंसी ने कांग्रेस के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क 'इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस' की कई शाखाओं को अनेक ईमेल भेजीं जिनमें से केवल एक का जवाब मिला, जिसमें कहा गया, "दुर्भाग्य से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने जिसे ओवरसीज नेटवर्क की जिम्मेदारी सौपी थी वो इन बेहद महत्वपूर्ण चुनावों में अमेरिका से समर्थन जुटा पाने में पूरी तरह से असमर्थ रहा है." इस बेनाम ईमेल में यह भी कहा गया है, "हम सब निराश हैं! यह समस्या हमारे नेताओं की है और वे जमीनी हकीकत से दूर हो गए हैं."
'चाहिए गुजरात मॉडल'
2010 में पास हुए एक कानून में ऐसे प्रवासियों को भारत में मतदान करने की अनुमति मिल गई है जिनके पास भारतीय पासपोर्ट हों, बशर्ते उन्होंने पंजीकरण करवाया हो. इसमें कुछ लोगों को यह दिक्कत महसूस हो रही है कि वोट डालने के लिए उन्हें भारत में अपने घर लौटना पड़ेगा. इसी कारण देश के बाहर रह रहे करीब एक करोड़ लोगों में से केवल 13,000 ने ही भारत में अपने वोट डालने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है.
7 अप्रैल से जारी भारत के आम चुनाव के नतीजे 16 मई को आने हैं. आठ साल से नाइजीरिया में एक टेलीकॉम कंपनी में काम करने वाले 37 साल के संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि वे मोदी को बदलाव के सूचक के तौर पर देखते हैं. मूल रूप से झारखंड के रांची शहर के श्रीवास्तव को उम्मीद है कि मोदी गुजरात की ही तरह उनके राज्य में भी विकास करेंगे. वे कहते हैं, "झारखंड में कोई सुविधा नहीं है. सड़कें खराब हैं, बिजली भी नहीं रहती. गुजरात का सफल मॉडल यहां भी दोहराने की जरूरत है."
आरआर/एएम (एएफपी)

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