गुरुवार, 8 मई 2014

भूखे पेट सोने वाले बच्चों का देश है हमारा भारत महान

प्रस्तुति- निम्मी नर्गिस प्रतिमा यादव


दुनिया में भूख को लेकर चाहे
जितनी बहस होए लेकिन यह सच है कि भूख पर काबू पाना अभी दुनिया के बूते से बाहर है। दुनिया की सात अरब आबादी में से एक अरब लोग भूखे हैं। इनमें बच्चों की तादाद सबसे बड़ी है। भारत की आबादी का भी एक बड़ा हिस्सा भूखा सोता है। जिस देश की 34 करोड़ 47 लाख आबादी गरीबी रेखा के नीचे होए वहां भूख से लड़ना किसी महामारी से लड़ने जैसा हो जाता है। भारत के दूसरे राज्यों के मुकाबले बिहार और झारखंड की हालत सबसे खराब है। पिछले पांच वर्षों में बिहार में भूख से 113 लोगों की मौत हुईए जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। यह आंकड़ा बिहार में सुप्रीम कोर्ट के आयुक्त सलाहकार का है। सुप्रीम कोर्ट ने भूख से होने वाली मौतों की जांच के लिए हर राज्य में सलाहकार नियुक्त किए हैं। 
बिहार का लगभग हर गांव मर्दों से खाली हो रहा है। हर वर्ष बड़े पैमाने पर काम की तलाश में मजदूरों का पलायन होता है। सीतामढ़ी के बाजपट्टी प्रखंड में रायपुर और इस्लामपुर गांवों में किए गए एक सर्वे से देश की वह तस्वीर उभरती हैए जिससे गरीब भारत और अमीर भारत के बीच का फर्क पुख्ता होता है। यह सर्वे धर्म और जाति के आधार पर हो रहे सामाजिक विभेद को भी रेखांकित करता है। रायपुर गांव मूल रूप से दलितों का गांव है। निम्न.मध्यवर्गीय मुसलमानों का गांव इस्लामपुर यहां से कुछ ही दूरी पर है। यह कोई संयोग नहीं है कि इन दोनों गांवों के बच्चों की त्रासदी एक सी है। पांच वर्ष का अमरेश हो या दस वर्ष की रुखसानाए दोनों के पिता पंजाब चले गए। अमरेश की मां खेतों में काम कर लेती है और इस तरह जैसे.तैसे बच्चों के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है। लेकिन रुखसाना की मां मध्यवर्गीय दुविधा में है। उसके जैसी स्त्रियों के लिए खेतों में काम करना लोकलाज से जुड़ा है। नतीजा यह है कि उसके बच्चे आसपास के लोगों की दया पर निर्भर हैं। भूख और कुपोषण के शिकार बच्चों में से 90 प्रतिशत किसी न किसी बीमारी के शिकार हैं।बीमारी के कारण तीन चौथाई लोग महाजन के कर्ज में डूबे हैं। खुद सरकार के आंकड़े भी इसबात की पुष्टि करते हैं। एनएफएचएस .3 के अनुसार बिहार में 50 प्रतिशत बच्चों की मौत कीवजह कुपोषण है। 47 प्रतिशत बच्चेे ऐसे हैं ए जिनकी लंबाई नहीं बढ़ती। कम वजन वाले बच्चोंकी तादाद 47 प्रतिशत है। बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल पाता। एक अन्य अध्ययन के दौरानयह पाया गया कि इस ग्रामीण इलाके के तीन चौथाई लोग गरीब हैं। आधे से ज्यादा लोगों केपास अपनी जमीन नहीं है। खेतों में आठ से दस घंटे काम करने वाले मजदूरों को मात्र पांचकिलो अनाज या 40 रुपये मिलते हैं। अधिकांश लोगों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरीकी जानकारी ही नहीं है। लेकिन इन आंकड़ों से अलग केंद्र सरकार मानती है कि पिछले और वर्षोंमें लोगों की गरीबी और भुखमरी कम हुई है। कौन साबित करेगा कि दस वर्ष की बच्ची ने भूख से दम तोड़ा या भूख से उपजीबीमारी से। बच्चों के बेजान चेहरे और रक्तहीन शरीर की चिंता किसे है 
पुष्पेंद्र आल्बे

लेखक/रचनाकार: पुष्पेंद्र आल्बे

मोबाइल: 098269 10022 पढ़ाई में अव्वल, खूब कीर्तिमान बनाएं, तोड़े, रसायन शास्त्र से स्नातकोत्तर भी किया, लेकिन युवावस्था में कदम रखने के साथ ही लग गया कि ग्यारह से पांच की सरकारी नौकरी करना अपने बस की बात नहीं। श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के बचपन से ही प्रषंसक, सो क्रिकेट के ऊपर लिखना हमेषा ही दिल को भाया। क्रिकेट के साथ ही बॉलीवुड के क्लासिक दिग्गजों-संजीव कुमार, गुलजार साहब जैसो की फिल्में देख-देखकर इसकी भी समझ आ गई। दैनिक जागरण से प्रशिक्षु  रिपोर्टर के तौर पर काम शुरू किया, फिर गृहनगर छोड़कर मप्र की व्यावसायिक राजधानी इन्दौर में किस्मत आजमाने आ गए। प्रिंट मीडिया से अलग हटकर कुछ करने की चाह हुई, तो खबर इंडिया की नींव रखी। कुछ ही समय में खबर इंडिया इंटरनेट बिरादरी की कुछेक चुनिंदा पोर्टलों में शामिल हो गई है....लेकिन यह तो बस शुरूआत भर है....अभी आगे बहूत दूर जाना है....
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