प्रस्तुति-- सजीली सहाय मनीषा यादव
एपी के संवाददाता के लिए थेंगल मनोर में दुनिया की सबसे अच्छी चाय का उत्पादन करने वाले असम और दार्जिलिंग के बागानों के दो हफ्ते की सैर की शुरुआत थी. वहां ग्रुप के लोग चाय की झाड़ियों से तेजी से पत्ते चुनतीं युवा लड़कियों से मिले. औपनिवेशिक काल के पार्लर में आग के सामने बैठक गुलाबी जिन पी गईं और मेहमान चाय उत्पादकों के लाइफ स्टाइल में खो गए. इन दो हफ्तों में उन्होंने इलाके की ढेर सारी चाय भी पी. असम टी, कड़क, गर्म और मॉल्टी. दार्जिलिंग टी, चाय की शैंपेन, हिमालय के सूरज के रंग वाली चाय. चाय प्रेमियों को आनंद में डुबो देने वाली चाय.
भारत ने पूर्वोत्तर के इलाकों में पर्यटन के लिए विदेशियों को छूट दी है और वे इसका फायदा उठा रहे हैं. इलाके के चाय बागान पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वही नुस्खा आजमा रहे हैं जो फ्रांस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका का विनयार्ड अपना रहे हैं. पूर्वोत्तर भारत की प्राकृतिक खूबसूरती और उस पर से चाय बागान में रहने का आनंद. टी टूरिज्म इलाके का नया ट्रेंड है. भले ही यह उद्योग का बहुत संगठित शाखा न हो, लेकिन इस बीच टी गार्डनों के मालिक अपने बागानों को ऐसे मेहमानों के लिए खोल रहे हैं जिनकी दिलचस्पी उनकी चायों में तो है ही, चाय कैसे बनती है, इसमें भी है.
चाय उपजाने वालों और चाय का उत्पादन करने वालों की अनूठी दुनिया. बहुत से बागान अभी भी ब्रिटिश राज के जमाने की याद ताजा करते हैं. चाय बागानों की खोज में निकले पर्यटकों में विदेशियों के अलावा स्थानीय लोग भी हैं. विदेशियों में बड़े पैमाने पर अमेरिकी नागरिक आ रहे हैं जहां क्वालिटी चाय के लिए दिलचस्पी बढ़ रही है. वहां अब तक टीबैग से चाय पीने का रिवाज रहा है.
थेंगल मनोर का विला पांच एकड़ के लॉन पर बना है. ऊंचे कमरों वाली इमारत, पुराने जमाने वाली मच्छरदानी लगाने वाले बिस्तर, बरुआ परिवार के पूर्वजों की तस्वीरें और शैंडेलियर वाले डाइनिंग रूम. बिस्तुराम बरुआ के बेटे ने 1929 में असम में सबसे धनी चाय बागान मालिक बनने के बाद यह विला बनवाया था. परिवार ने सन 2000 से मेहमानों को किराये पर कमरा देना शुरू किया, हालांकि यह विला अभी भी पारिवारिक इस्तेमाल में है.
चावल के खेतों से घिरे चाय बागान में आने वाले पर्यटकों को गटूंगा की चाय
फैक्टरी में ब्लैक टी बनाने की पांच स्तर वाली प्रक्रिया दिखाई जाती है.
इसके अलावा वे संगसुआ चाय बागान में मिस्त्री साहिब और बरा साहिब के बंगले
भी देख सकते हैं. सौ साल पुराने मिस्त्री बंगला हरियाली में बसा है तो बरा
साहिब बंगले के साथ चाय बागान में 18 होल वाला गोल्फ कोर्स बना दिया गया
है. चाय बागानों की श्रृंखला में इसके अलावा तेजपुर के निकट अड्डाबारी टी
एस्टेट है, जहां मैनेजर के लक्जरी बंगले को एक टूरिस्ट कंपनी ने मेहमानों
के लिए लीज कर लिया है.
मैनेजर दूरेज अहमद कहते हैं, "टी प्लांटर्स का यही लाइफ स्टाइल है. प्यारे बंगले, आपकी हर जरूरत को पूरा करने के लिए नौकर. इसलिए जो इस तरह की लाइफ स्टाइल का मजा लेना चाहता है, यहां आता है." अहमद बताते हैं कि टी टूरिज्म की शुरुआत 1990 के दशक में हुई जब छोटे निजी बागानों ने मेहमानों को किराये पर रखना शुरू किया. यह चाय बाजार का दुनिया भर में फैली मंदी से बचने का रास्ता था. दूसरी मंदी 2000 की शुरुआत में आई जब भारत ने अपना बाजार सस्ती आयातित चाय के लिए खोल दिया. लोगों को अतिरिक्त आय की जरूरत थी. उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा है.
दार्जिलिंग में 90 चाय बागान हैं, जिनमें से एक मकाईबारी भी है जो भारत का पहला ऑर्गेनिक चाय उत्पादक है और टी टूरिज्म का पायनियर भी. 1859 में शुरू होने के बाद से यहां की फैक्टरी में बहुत कम बदलाव आया है. यहां पर्यटक चाय बागान के कामगारों के साथ रह सकते हैं. प्रोडक्शन मैनेजर संजय मुखर्जी अपनी चाय दिखाते हुए कहते हैं, "हमें इंसानी हाथ चाहिए और नाक, न कि रोबोट का हाथ और ऑटोमैटिक सेंसर." यहां सिल्वर टिप्स इम्पिरियल चाय बनती है जिसे चीन में एक नीलामी में यहां की एक किलो चाय के लिए 1000 डॉलर मिले.
दार्जिलिंग के अंतिम ब्रिटिश टी प्लांटर टेडी यंग की इसी साल मौत हो गई. लेकिन इलाके में चाय के इतिहास के अलावा ब्रिटिश प्लांटर्स द्वारा लाया गया स्टाइल अभी भी कायम है. वह अब पर्यटकों के लिए भी उपलब्ध है.
एमजे/ओएसजे (एपी)
"यह अब आपका घर है," थेंगल मनोर में मेजबान अतिथियों का स्वागत करते हुए
यही कहता है और मेहमान भी सोचने लगता है, काश वाकई में ऐसा होता. भारत के
मशहूर चाय घराने ने टी गार्डन में बना बंगला पर्यटकों के लिए खोल दिया है.
एपी के संवाददाता के लिए थेंगल मनोर में दुनिया की सबसे अच्छी चाय का उत्पादन करने वाले असम और दार्जिलिंग के बागानों के दो हफ्ते की सैर की शुरुआत थी. वहां ग्रुप के लोग चाय की झाड़ियों से तेजी से पत्ते चुनतीं युवा लड़कियों से मिले. औपनिवेशिक काल के पार्लर में आग के सामने बैठक गुलाबी जिन पी गईं और मेहमान चाय उत्पादकों के लाइफ स्टाइल में खो गए. इन दो हफ्तों में उन्होंने इलाके की ढेर सारी चाय भी पी. असम टी, कड़क, गर्म और मॉल्टी. दार्जिलिंग टी, चाय की शैंपेन, हिमालय के सूरज के रंग वाली चाय. चाय प्रेमियों को आनंद में डुबो देने वाली चाय.
भारत ने पूर्वोत्तर के इलाकों में पर्यटन के लिए विदेशियों को छूट दी है और वे इसका फायदा उठा रहे हैं. इलाके के चाय बागान पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वही नुस्खा आजमा रहे हैं जो फ्रांस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका का विनयार्ड अपना रहे हैं. पूर्वोत्तर भारत की प्राकृतिक खूबसूरती और उस पर से चाय बागान में रहने का आनंद. टी टूरिज्म इलाके का नया ट्रेंड है. भले ही यह उद्योग का बहुत संगठित शाखा न हो, लेकिन इस बीच टी गार्डनों के मालिक अपने बागानों को ऐसे मेहमानों के लिए खोल रहे हैं जिनकी दिलचस्पी उनकी चायों में तो है ही, चाय कैसे बनती है, इसमें भी है.
चाय उपजाने वालों और चाय का उत्पादन करने वालों की अनूठी दुनिया. बहुत से बागान अभी भी ब्रिटिश राज के जमाने की याद ताजा करते हैं. चाय बागानों की खोज में निकले पर्यटकों में विदेशियों के अलावा स्थानीय लोग भी हैं. विदेशियों में बड़े पैमाने पर अमेरिकी नागरिक आ रहे हैं जहां क्वालिटी चाय के लिए दिलचस्पी बढ़ रही है. वहां अब तक टीबैग से चाय पीने का रिवाज रहा है.
थेंगल मनोर का विला पांच एकड़ के लॉन पर बना है. ऊंचे कमरों वाली इमारत, पुराने जमाने वाली मच्छरदानी लगाने वाले बिस्तर, बरुआ परिवार के पूर्वजों की तस्वीरें और शैंडेलियर वाले डाइनिंग रूम. बिस्तुराम बरुआ के बेटे ने 1929 में असम में सबसे धनी चाय बागान मालिक बनने के बाद यह विला बनवाया था. परिवार ने सन 2000 से मेहमानों को किराये पर कमरा देना शुरू किया, हालांकि यह विला अभी भी पारिवारिक इस्तेमाल में है.
मैनेजर दूरेज अहमद कहते हैं, "टी प्लांटर्स का यही लाइफ स्टाइल है. प्यारे बंगले, आपकी हर जरूरत को पूरा करने के लिए नौकर. इसलिए जो इस तरह की लाइफ स्टाइल का मजा लेना चाहता है, यहां आता है." अहमद बताते हैं कि टी टूरिज्म की शुरुआत 1990 के दशक में हुई जब छोटे निजी बागानों ने मेहमानों को किराये पर रखना शुरू किया. यह चाय बाजार का दुनिया भर में फैली मंदी से बचने का रास्ता था. दूसरी मंदी 2000 की शुरुआत में आई जब भारत ने अपना बाजार सस्ती आयातित चाय के लिए खोल दिया. लोगों को अतिरिक्त आय की जरूरत थी. उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा है.
दार्जिलिंग में 90 चाय बागान हैं, जिनमें से एक मकाईबारी भी है जो भारत का पहला ऑर्गेनिक चाय उत्पादक है और टी टूरिज्म का पायनियर भी. 1859 में शुरू होने के बाद से यहां की फैक्टरी में बहुत कम बदलाव आया है. यहां पर्यटक चाय बागान के कामगारों के साथ रह सकते हैं. प्रोडक्शन मैनेजर संजय मुखर्जी अपनी चाय दिखाते हुए कहते हैं, "हमें इंसानी हाथ चाहिए और नाक, न कि रोबोट का हाथ और ऑटोमैटिक सेंसर." यहां सिल्वर टिप्स इम्पिरियल चाय बनती है जिसे चीन में एक नीलामी में यहां की एक किलो चाय के लिए 1000 डॉलर मिले.
दार्जिलिंग के अंतिम ब्रिटिश टी प्लांटर टेडी यंग की इसी साल मौत हो गई. लेकिन इलाके में चाय के इतिहास के अलावा ब्रिटिश प्लांटर्स द्वारा लाया गया स्टाइल अभी भी कायम है. वह अब पर्यटकों के लिए भी उपलब्ध है.
एमजे/ओएसजे (एपी)
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- तारीख 07.02.2013
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