प्रस्तुति-- दक्षम द्विवेदी, अमित कुमार
भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में दिन पर दिन बढ़ रहे प्रदूषण से करीब एक दर्जन नदियां खतरे में है. प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी लेने जा रहे नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में काशी और गंगा की सफाई के मुद्दे को भाषण में अहम जगह दी.
जल संपत्ति के अंधाधुंध दोहन और प्रदूषण की शिकार इन नदियों की दशा देखने
के बाद, 'जल ही जीवन है', 'पानी की बर्बादी रोकें' या 'पानी बचाएं' जैसे
नारे बेमानी लगते हैं. शहरों के विस्तार और औद्योगिकीकरण के अलावा बढ़ती
आबादी नदियों के प्रदूषण में कोढ़ में खाज का काम कर रही है. सांस्कृतिक
नगरी वाराणसी में गंगा का पानी प्रदूषण के चलते काला पड़ गया है. गर्मी के
मौसम में नदी का बहाव नाम मात्र ही रह गया है.
प्रदूषण के चलते लोग गंगा स्नान करने से कतराने लगे हैं. गंगाजल की दो बूंदों से मोक्ष की प्राप्ति की चाहत में दूरदराज राज्यों से यहां आए श्रद्धालुों में से कई को गंगा को दूर से ही प्रणाम करते देखा जा सकता है. अपने नामों के योग से वाराणसी का नामकरण करने वाली वरुणा और असि नदियां नाले में बदल चुकी हैं. इन दोनों नदियों में पानी कम कचरा अधिक नजर आता है. नदियों के करीब से गुजरने वाले लोग बदबू के चलते नाक पर कपड़ा रखने को मजबूर हो जाते हैं. सीवर और कारखानों का कचरा इन नदियों में बिना किसी रोकटोक गिर रहा है.
सैकडों गांवों की प्यास बुझाने वाली गाजीपुर की मताई नदी में गर्मी आते ही पानी सूख जाता है. मई जून में तो इसकी तलहटी में धूल उड़ती है जहां बच्चे क्रिकेट और फुटबाल खेलते हैं. पर्यावरणविदों का कहना है कि समय रहते हम नहीं चेते तो गंगा यमुना का यह क्षेत्र न केवल भयंकर जल संकट से जूझेगा बल्कि देश की सांस्कृतिक पहचान ये नदियां इतिहास के पन्नों में ही बचेंगी. इसके हरे भरे मैदान रेगिस्तान में बदल जाएंगे.
हिन्दू धर्म ग्रंथो में दुर्वासा, देवलब और दत्तात्रेय आदि ऋषियों की तपोस्थली आजमगढ़ से गुजरने वाली तमसा व घाघरा अपने जीवन्त रुप में हैं. मगर सरयू, मगई, गांगी, लोनी, बेनो, शालिनी, कुंवर एवं मंजूषा समेत कई छोटी नदियों का अस्तित्व लगभग मिट चुका है. इनमें से कुछ नालों में परिवर्तित हो चुकी हैं.
वाराणसी के पड़ोसी जिले जौनपुर में गोमती, सई, पील, बसुही और वरुणा नदी बहती है. बाढ़ में ये नदियां विकराल रुप धारण कर लेती हैं, वहीं मई व जून में इनमें धूल उड़ती है. इन नदियों को पाटकर कई जगह आलीशान मकान बन गए हैं वही कुछ में अतिक्रमण कर खेती हो रही है.
प्रदूषण के चलते लोग गंगा स्नान करने से कतराने लगे हैं. गंगाजल की दो बूंदों से मोक्ष की प्राप्ति की चाहत में दूरदराज राज्यों से यहां आए श्रद्धालुों में से कई को गंगा को दूर से ही प्रणाम करते देखा जा सकता है. अपने नामों के योग से वाराणसी का नामकरण करने वाली वरुणा और असि नदियां नाले में बदल चुकी हैं. इन दोनों नदियों में पानी कम कचरा अधिक नजर आता है. नदियों के करीब से गुजरने वाले लोग बदबू के चलते नाक पर कपड़ा रखने को मजबूर हो जाते हैं. सीवर और कारखानों का कचरा इन नदियों में बिना किसी रोकटोक गिर रहा है.
सैकडों गांवों की प्यास बुझाने वाली गाजीपुर की मताई नदी में गर्मी आते ही पानी सूख जाता है. मई जून में तो इसकी तलहटी में धूल उड़ती है जहां बच्चे क्रिकेट और फुटबाल खेलते हैं. पर्यावरणविदों का कहना है कि समय रहते हम नहीं चेते तो गंगा यमुना का यह क्षेत्र न केवल भयंकर जल संकट से जूझेगा बल्कि देश की सांस्कृतिक पहचान ये नदियां इतिहास के पन्नों में ही बचेंगी. इसके हरे भरे मैदान रेगिस्तान में बदल जाएंगे.
हिन्दू धर्म ग्रंथो में दुर्वासा, देवलब और दत्तात्रेय आदि ऋषियों की तपोस्थली आजमगढ़ से गुजरने वाली तमसा व घाघरा अपने जीवन्त रुप में हैं. मगर सरयू, मगई, गांगी, लोनी, बेनो, शालिनी, कुंवर एवं मंजूषा समेत कई छोटी नदियों का अस्तित्व लगभग मिट चुका है. इनमें से कुछ नालों में परिवर्तित हो चुकी हैं.
वाराणसी के पड़ोसी जिले जौनपुर में गोमती, सई, पील, बसुही और वरुणा नदी बहती है. बाढ़ में ये नदियां विकराल रुप धारण कर लेती हैं, वहीं मई व जून में इनमें धूल उड़ती है. इन नदियों को पाटकर कई जगह आलीशान मकान बन गए हैं वही कुछ में अतिक्रमण कर खेती हो रही है.
मऊ जिले में बहने वाली टोस नदी भी नाले में तब्दील हो चुकी है जबकि छोटी
सरयू और भैंसही नदी के सूखने और दायरे के सिमटने से किसानों की चिंता साल
दर साल बढ़ती जा रही है.
नदियों की ही तरह पौराणिक व धार्मिक महत्व के तालाबों व पोखरों का अस्तित्व भी खतरे में है. कुछ को पाटकर मकान बन गए हैं और कुछ पर खेती हो रही है. इसके बावजूद नदियों की भूमि पर भूमाफिया की ललचाई नजरें हैं. प्रशासन की कमजोर इच्छाशक्ति एवं अदूरदर्शिता के चलते जहां सरोवरों, कुंडों एवं तालाबों पर अवैध कब्जे जारी हैं वहीं आम नागरिक भी अपनी जुबान बंद किए हैं. आवाज उठाने वालों को धमकी के सिवा कुछ नही मिलता.
उच्च न्यायालय कुंड एवं तालाबों के पाटे जाने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त कर चुका है. कुछ साल पूर्व न्यायालय ने आदेश दिया था कि वर्ष 1952 के बाद पाटे गए तालाबों एवं पोखरों को खुदवा कर पुरानी स्थिति में लाया जाए. वाराणसी नगर निगम के रिकॉर्ड में 63 तालाबों का जिक्र है. इनमें से अधिकतर तालाबों का अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का उल्लेख सरकारी दस्तावेजों में है. प्रशासन की तरफ से समय समय पर तालाबों को उनकी पुरानी स्थिति में लाने की कागजी कार्यवाही होती है लेकिन कुछ भी व्यावहारिकता में नहीं आता.
एसएफ/एमजे (वार्ता)
नदियों की ही तरह पौराणिक व धार्मिक महत्व के तालाबों व पोखरों का अस्तित्व भी खतरे में है. कुछ को पाटकर मकान बन गए हैं और कुछ पर खेती हो रही है. इसके बावजूद नदियों की भूमि पर भूमाफिया की ललचाई नजरें हैं. प्रशासन की कमजोर इच्छाशक्ति एवं अदूरदर्शिता के चलते जहां सरोवरों, कुंडों एवं तालाबों पर अवैध कब्जे जारी हैं वहीं आम नागरिक भी अपनी जुबान बंद किए हैं. आवाज उठाने वालों को धमकी के सिवा कुछ नही मिलता.
उच्च न्यायालय कुंड एवं तालाबों के पाटे जाने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त कर चुका है. कुछ साल पूर्व न्यायालय ने आदेश दिया था कि वर्ष 1952 के बाद पाटे गए तालाबों एवं पोखरों को खुदवा कर पुरानी स्थिति में लाया जाए. वाराणसी नगर निगम के रिकॉर्ड में 63 तालाबों का जिक्र है. इनमें से अधिकतर तालाबों का अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का उल्लेख सरकारी दस्तावेजों में है. प्रशासन की तरफ से समय समय पर तालाबों को उनकी पुरानी स्थिति में लाने की कागजी कार्यवाही होती है लेकिन कुछ भी व्यावहारिकता में नहीं आता.
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- तारीख 23.05.2014
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