प्रस्तुति-- गुड्डू यादव, कृष्णा यादव
हर शादीशुदा जोड़े की तरह कनाडा का रायमर दम्पति भी संतान चाहता था. उन्हें
एक नहीं, तीन तीन बेटे हुए. लेकिन या तो उनकी जन्म के दौरान ही मौत हो गयी
या पैदा होने के कुछ देर बाद. मदद की इंटरनेट ने.
स्टेफनी और ओवेन रायमर के बच्चों को कोई ऐसी आनुवांशिक बीमारी थी जिसके
कारण उनकी जान जाती रही. ऐसा कोई टेस्ट भी नहीं था जिससे पहले ही पता चल
सके कि गर्भावस्था के दौरान दिक्कत आने वाली है. खुशकिस्मती से उनकी चौथी
संतान बच गयी. आज उनका एक बेटा है और अब वे एक और बच्चा चाहते हैं. मदद कर
रही है एक वेबसाइट.
रायमर दम्पति वेबसाइट पर अपनी परेशानियों का ब्योरा देते हैं. साइट से जुड़े डॉक्टर और विशेषज्ञ उन पर ध्यान देते हैं और उन्हें बताते हैं कि वे इलाज के लिए कहां जा सकते हैं. दिन पर दिन इस साइट से जुड़ने वाले डॉक्टरों की संख्या बढ़ती जा रही है. ना केवल रायमर दम्पति जैसे लोगों को इसका फायदा मिल रहा है, बल्कि डॉक्टरों को भी रिसर्च के लिए नए नए मामले मिल रहे हैं.
फिनोम सेंट्रल नाम के इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई है ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और यूरोप के सहयोग से. दो ही महीने पहले इस वेबसाइट को शुरु किया गया. यहां उन लोगों का डाटा जमा किया जा रहा है जिन्हें दुर्लभ बीमारियां हैं. कई मामलों में ऐसा होता है कि अलग अलग लोगों के एक ही जैसे लक्षण होते हैं. ऐसे में डॉक्टर बीमारी का पैटर्न समझ सकते हैं और नई बीमारी के बारे में शोध कर सकते हैं.
दुनिया में 35 करोड़ लोग ऐसे हैं जो दुर्लभ बीमारियों का शिकार हैं. अब तक 7,000 ऐसी आनुवांशिक बीमारियों का पता किया जा चुका है जो इतने कम देखने को मिलते हैं कि डॉक्टरों के पास अपने पूरे जीवन काल में शायद एक या दो ही ऐसे मरीज आऐं. इन्हें समझने के लिए जीन के ढांचे को परखना जरूरी है. फिनोम सेंट्रल ने कंप्यूटर के जरिए एक ऐसा एल्गोरिदम तैयार किया है जिससे इन जीन्स की पहचान हो सके.
इसके बाद ही मरीज को कोई सुझाव दिया जा सकता है. यूनिवर्सिटी ऑफ टोरोन्टो के डॉक्टर माइकल ब्रुडनो कहते हैं, "मिसाल के तौर पर हम उन्हें बता सकते हैं कि अगर आप संतान चाहते हैं तो बहुत मुमकिन है कि उसे भी यह बीमारी होगी. हम आपको फलां फलां टेस्ट के बारे में बता सकते हैं. अगर आप चाहें तो गर्भ धारण करने से पहले इसे करवा लें और सुनिश्चित कर लें कि आपके बच्चों के साथ ऐसा कुछ है या नहीं."
स्टेफनी और ओवेन रायमर को इसका फायदा मिला है. अब तक वे नहीं जानते थे कि उनके बच्चों की जान क्यों गयी. पर अब डॉक्टर उनकी आनुवांशिक बीमारी को पहचान कर उसे एक नाम दे पाए हैं. हार्म्स नाम की इस बीमारी को ले कर अब वे सतर्क हैं और अगर वेबसाइट के जरिए इस तरह का कोई और मामला आता है, तो वे उससे निपटने की स्थिति में हैं.
रिपोर्ट: डेविड काटेनबुर्ग/ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा
रायमर दम्पति वेबसाइट पर अपनी परेशानियों का ब्योरा देते हैं. साइट से जुड़े डॉक्टर और विशेषज्ञ उन पर ध्यान देते हैं और उन्हें बताते हैं कि वे इलाज के लिए कहां जा सकते हैं. दिन पर दिन इस साइट से जुड़ने वाले डॉक्टरों की संख्या बढ़ती जा रही है. ना केवल रायमर दम्पति जैसे लोगों को इसका फायदा मिल रहा है, बल्कि डॉक्टरों को भी रिसर्च के लिए नए नए मामले मिल रहे हैं.
फिनोम सेंट्रल नाम के इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई है ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और यूरोप के सहयोग से. दो ही महीने पहले इस वेबसाइट को शुरु किया गया. यहां उन लोगों का डाटा जमा किया जा रहा है जिन्हें दुर्लभ बीमारियां हैं. कई मामलों में ऐसा होता है कि अलग अलग लोगों के एक ही जैसे लक्षण होते हैं. ऐसे में डॉक्टर बीमारी का पैटर्न समझ सकते हैं और नई बीमारी के बारे में शोध कर सकते हैं.
दुनिया में 35 करोड़ लोग ऐसे हैं जो दुर्लभ बीमारियों का शिकार हैं. अब तक 7,000 ऐसी आनुवांशिक बीमारियों का पता किया जा चुका है जो इतने कम देखने को मिलते हैं कि डॉक्टरों के पास अपने पूरे जीवन काल में शायद एक या दो ही ऐसे मरीज आऐं. इन्हें समझने के लिए जीन के ढांचे को परखना जरूरी है. फिनोम सेंट्रल ने कंप्यूटर के जरिए एक ऐसा एल्गोरिदम तैयार किया है जिससे इन जीन्स की पहचान हो सके.
इसके बाद ही मरीज को कोई सुझाव दिया जा सकता है. यूनिवर्सिटी ऑफ टोरोन्टो के डॉक्टर माइकल ब्रुडनो कहते हैं, "मिसाल के तौर पर हम उन्हें बता सकते हैं कि अगर आप संतान चाहते हैं तो बहुत मुमकिन है कि उसे भी यह बीमारी होगी. हम आपको फलां फलां टेस्ट के बारे में बता सकते हैं. अगर आप चाहें तो गर्भ धारण करने से पहले इसे करवा लें और सुनिश्चित कर लें कि आपके बच्चों के साथ ऐसा कुछ है या नहीं."
स्टेफनी और ओवेन रायमर को इसका फायदा मिला है. अब तक वे नहीं जानते थे कि उनके बच्चों की जान क्यों गयी. पर अब डॉक्टर उनकी आनुवांशिक बीमारी को पहचान कर उसे एक नाम दे पाए हैं. हार्म्स नाम की इस बीमारी को ले कर अब वे सतर्क हैं और अगर वेबसाइट के जरिए इस तरह का कोई और मामला आता है, तो वे उससे निपटने की स्थिति में हैं.
रिपोर्ट: डेविड काटेनबुर्ग/ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा
- तारीख 03.05.2014
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