बुधवार, 7 मई 2014

विदेशी यूनिवर्सिटियों में एशियाई छात्रों का दबदबा




प्रस्तुति निम्मी नर्गिस, अमित कुमार
वर्धा


विदेशी यूनिवर्सिटियों में पढ़ रहे एशियाई मूल के छात्र खुद उन देशों के छात्रों से कहीं ज्यादा बेहतर साबित हो रहे हैं. अमेरिकी रिसर्च के अनुसार एशिया से आए बच्चे ज्यादा मेहनत करते हैं.
यह शोध दो अलग अलग सर्वे द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों को मिलाकर किया गया है. इनमें हजारों एशियाई और अन्य छात्रों को शामिल किया गया. सर्वे में नर्सरी से लेकर हाईस्कूल तक के बच्चों के बारे में जानकारी इकट्ठा की गई. रिसर्चरों ने न्यूयॉर्क के क्वींस कालेज, मिशिगन यूनिवर्सिटी और बीजिंग की पेकिंग यूनिवर्सिटी में छात्रों के नंबरों को परखा. इसके अलावा उन्होंने परिवारों की आय और उनके आप्रवासी दर्जे जैसे पहलुओं पर भी गौर किया.
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस की पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है, "एशियाई अमेरिकी छात्र बिना किसी तरह की खास तरजीह पाए स्कूल में दाखिल होते हैं, लेकिन समय के साथ बेहतर होते जाते हैं." पांचवी कक्षा तक आते आते या दस से ग्यारह साल की आयु तक वे अमेरिकी छात्रों को कहीं पीछे छोड़ देते हैं. यह अंतर दसवीं तक आते आते बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. रिसर्चरों के मुताबिक, "नतीजे दिखाते हैं कि उपलब्धियों में होने वाला अंतर उम्र के साथ उनकी पढ़ाई को लेकर मेहनत में अंतर के साथ बढ़ता जाता है."
एशियाई अमेरिकी लोगों में उनके एशियाई मूल्य भी पाए जाते हैं जिनके तहत उन्हें सिखाया जाता है कि कामयाबी के लिए पैदाइशी खूबियों से ज्यादा मेहनत जरूरी है. उन पर अमेरिकी छात्रों के मुकाबले माता पिता की ओर से भी ज्यादा दबाव होता है. रिसर्चरों का मानना है कि एशियाई छात्रों के बारे में यह सोचना कि वे तो मेहनती हैं, इसलिए कामयाबी उनकी किस्मत में है, पुरानी तरह की सोच है. लेकिन असल में तो यह एशियाई अमेरिकी छात्रों के लिए अच्छा ही है.
हालांकि छात्रों की इन उपलब्धियों की कुछ कीमत भी होती है. अपने परिवारों से दूर रह रहे एशियाई छात्र अन्य छात्रों जितना अच्छा नहीं महसूस करते. चाहे वे फिलीपींस से हों, दक्षिण एशिया या पूर्वी एशिया से, उनका कहना है कि वे अपने करीबी दोस्तों के साथ दूसरे पश्चिमी बच्चों की तरह समय नहीं बिता पाते हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एशियाई बच्चों के माता पिता के साथ ज्यादा मतभेद होते हैं.
एसएफ/एमजे (एएफपी)

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