प्रस्तुति- दक्षम द्विवेदी, पंकज सोनी
नारंगी कैसे छीलना है, छुरी कांटा कैसे संभालना है और मशहूर ब्रांड का नाम
कैसे लेना है. दो हफ्ते के इस कोर्स की फीस है करीब 90,000 रुपये. पर
दाखिला लेने वालों की कमी नहीं.
कोर्स चीन की राजधानी बीजिंग में चल रहा है और दाखिला लेने वालों में 40 की
दहाई वाली हाई सोसाइटी औरतें ज्यादा हैं. कोर्स चलाने वाली सारा जेन हो का
कहना है कि हाल के दिनों में तेजी से रईस हुए चीनी लोगों के लिए सलीका
सीखना बड़ी बात है.
उनका कहना है कि वे दो बिलकुल अलग पीढ़ियों के बीच फंस गई हैं क्योंकि उनके मां बाप ने माओ जेतुंग के वक्त में गाढ़ी कमाई की और बाल बच्चे उन्मुक्त समाज में जी रहे हैं, जहां पश्चिमी देशों जैसी सुविधाएं हैं, "इस अचानक से बदली दुनिया में इन औरतों को पत्नी, मां, बेटी और बिजनेस करने वाली औरत का किरदार निभाना पड़ रहा है. उनके लिए कोई मिसाल नहीं है, कोई नियम नहीं है."
उनका कहना है कि वहां आने वाले चाहते हैं कि उनके लिए कोई गाइडबुक बने. फीस को लेकर कोई परेशानी नहीं. यहां आने वाले तो इससे तीन गुना पैसे भी देने की हैसियत रखते हैं.
हो ने बताया कि उनकी एक क्लाइंट ने हाल के टेस्ट में "भारी गड़बड़" कर दी, जब उसने टेबल पर छुरी रखी और इसकी धार अंदर रहने की जगह बाहर रह गई. वे सीख रही हैं कि पति को किस तरह मदद की जाए और उनके बिजनेस पार्टनरों से क्या बात की जाए. उन्हें बारीकी से सिखाया जा रहा है कि किसी से मिलते ही यह न पूछ बैठो कि "आप कितना कमाते हैं" या फिर यह कि "आपने अपनी पत्नी को तलाक क्यों दिया." उन्हें यह भी बताया जाता है कि मेहमानों से कितनी दूरी पर खड़ा रहना चाहिए.
हो इन लोगों को बताती हैं कि अपनी कुहनियों को शरीर से मिला कर रखिए. वह खुद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ी हुई हैं और पांच भाषाएं बोलती हैं. वह अपना कोर्स पांचसितारा होटल में चलाती हैं और यह दिखने में किसी पश्चिमी रंग ढंग का स्कूल दिखता है.
यहां के प्रमुख रसोईए ने बताया, "कई बार ये औरतें किसी बड़ी शादी में जाती हैं और खाना शुरू ही नहीं कर पाती हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं कि पश्चिमी हिसाब किताब से कैसे खाया जाता है." ये रसोईए पहले फ्रांसीसी दूतावास में काम करते थे.
24 साल की जोसलिन वांग मानती हैं कि खाने का तरीका इस कोर्स में सीखना उनके लिए बेहद अहम है, "मुझे लगता है कि कोई किस तरह खाना खाता है और किस तरह छुरी कांटे को पकड़ता है, यह उसकी शख्सियत बताने में बड़ा रोल अदा करता है." वह बताती हैं कि सुबह नौ बजे शुरू होकर शाम छह बजे तक चलने वाले इस कोर्स में वह स्केल से नाप कर छुरी कांटे रखती हैं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री मार्टिन व्हाइट का कहना है कि चीन के लोग नए नए रईस हुए हैं और ये सब सीखना उनकी प्राथमिकता बन गई है, "वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि वे सिर्फ पैसे बनाने की मशीन नहीं हैं, बल्कि सांस्कृतिक तौर पर भी तैयार हो चुके हैं."
एजेए/एएम (एएफपी)
उनका कहना है कि वे दो बिलकुल अलग पीढ़ियों के बीच फंस गई हैं क्योंकि उनके मां बाप ने माओ जेतुंग के वक्त में गाढ़ी कमाई की और बाल बच्चे उन्मुक्त समाज में जी रहे हैं, जहां पश्चिमी देशों जैसी सुविधाएं हैं, "इस अचानक से बदली दुनिया में इन औरतों को पत्नी, मां, बेटी और बिजनेस करने वाली औरत का किरदार निभाना पड़ रहा है. उनके लिए कोई मिसाल नहीं है, कोई नियम नहीं है."
उनका कहना है कि वहां आने वाले चाहते हैं कि उनके लिए कोई गाइडबुक बने. फीस को लेकर कोई परेशानी नहीं. यहां आने वाले तो इससे तीन गुना पैसे भी देने की हैसियत रखते हैं.
टेबल के नियम
वे शऊर से कपड़े पहनने के अलावा लोकप्रिय वाइनों के बारे में जानती हैं,
गोल्फ और राइडिंग जैसे खास खेलों की जानकारी लेती हैं और चाय परोसने का
तरीका सीखती हैं. वे सीख रही हैं कि टेबल को कैसे सजाया जाता है और किस
मौसम में कौन सा फूल फूलदान में सजता है.हो ने बताया कि उनकी एक क्लाइंट ने हाल के टेस्ट में "भारी गड़बड़" कर दी, जब उसने टेबल पर छुरी रखी और इसकी धार अंदर रहने की जगह बाहर रह गई. वे सीख रही हैं कि पति को किस तरह मदद की जाए और उनके बिजनेस पार्टनरों से क्या बात की जाए. उन्हें बारीकी से सिखाया जा रहा है कि किसी से मिलते ही यह न पूछ बैठो कि "आप कितना कमाते हैं" या फिर यह कि "आपने अपनी पत्नी को तलाक क्यों दिया." उन्हें यह भी बताया जाता है कि मेहमानों से कितनी दूरी पर खड़ा रहना चाहिए.
हो इन लोगों को बताती हैं कि अपनी कुहनियों को शरीर से मिला कर रखिए. वह खुद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ी हुई हैं और पांच भाषाएं बोलती हैं. वह अपना कोर्स पांचसितारा होटल में चलाती हैं और यह दिखने में किसी पश्चिमी रंग ढंग का स्कूल दिखता है.
यहां के प्रमुख रसोईए ने बताया, "कई बार ये औरतें किसी बड़ी शादी में जाती हैं और खाना शुरू ही नहीं कर पाती हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं कि पश्चिमी हिसाब किताब से कैसे खाया जाता है." ये रसोईए पहले फ्रांसीसी दूतावास में काम करते थे.
24 साल की जोसलिन वांग मानती हैं कि खाने का तरीका इस कोर्स में सीखना उनके लिए बेहद अहम है, "मुझे लगता है कि कोई किस तरह खाना खाता है और किस तरह छुरी कांटे को पकड़ता है, यह उसकी शख्सियत बताने में बड़ा रोल अदा करता है." वह बताती हैं कि सुबह नौ बजे शुरू होकर शाम छह बजे तक चलने वाले इस कोर्स में वह स्केल से नाप कर छुरी कांटे रखती हैं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री मार्टिन व्हाइट का कहना है कि चीन के लोग नए नए रईस हुए हैं और ये सब सीखना उनकी प्राथमिकता बन गई है, "वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि वे सिर्फ पैसे बनाने की मशीन नहीं हैं, बल्कि सांस्कृतिक तौर पर भी तैयार हो चुके हैं."
एजेए/एएम (एएफपी)
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चीन में होगी सबसे बड़ी घुड़दौड़
रईसों का मुल्क दुबई दुनिया की सबसे बड़ी घुड़दौड़ चीन में कराना चाहता है. सरकारी कंपनी ने इसके लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं और अगर सब कुछ ठीक चला तो इसी साल तेज तर्रार घोड़े चीनी शहर चेंगदू में दौड़ते नजर आएंगे. (29.03.2013)रईसों के भरोसे विकास की तलाश
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- कीवर्ड चीन, उच्च वर्ग, समृद्धि, रहन सहन, सलीका
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