अजब गजब परंपराएं
प्रस्तुति- सान्या सिन्हा
भारत जैसा देश दुनिया में कहीं नहीं है। अगर हम, यह कहें तो गलत नहीं होगा। दरअसल हमारा देश विविधता से भरा हुआ है। यहां की परंपराएं, रीति-रिवाज और आपसी सहिष्णुता दुनिया के अन्य देशों से अलग है। यही कारण हैं कि भारत आज भी विश्व का सिरमौर बना हुआ है।
लेकिन यहां कुछ ऐसी अजब परंपराएं हैं जो आज भी जारी है। कुछ लोग इन्हें आस्था कहते हैं, तो कुछ अंधविश्वास पर ये परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं। ऐसी ही कुछ परंपराएं कुछ इस तरह हैं।
जिंदा पति की विधवा पत्नी
हैरत में डालने वाली यह परंपरा गछवाह समुदाय से जुडी है। यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और इससे आसपास बिहार के कुछ इलाकों में रहता है। ये समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है। इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते है।
ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते है और एकदम सपाट होते है। इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही जोखिम का काम होता है। ताड़ी निकलने का काम चैत्र मास से सावन मास तक, चार महीने किया जाता है।
गछवाह महिलाये (जिन्हें कि तरकुलारिष्ट भी कहा जाता है) इन चार महीनो में ना तो मांग में सिन्दूर भरती है और ना ही कोई श्रृंगार करती है। वे अपने सुहाग की सभी निशानी तरकुलहा देवी के पास रेहन (गिरवी) कर अपने पति की सलामती की दुआ मांगती हैं।
स्वास्थ्य के लिए लौकी की लकड़ी
छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित है शाटन देवी मंदिर, जिसे बच्चों का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां एक अजीब परंपरा सदियों से चली आ रही है। अमूमन मंदिरों में आमतौर पर फूल, प्रसाद, नारियल आदि भगवान को अर्पित करने का विधान है, लेकिन शाटन देवी मंदिर में देवी को लौकी और तेंदू की लकड़ियां चढ़ाई जाती हैं।
श्रद्धालु यहां अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं । माता को लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाते हैं। मंदिर में यह परंपरा कैसे शुरू हुई? यह कोई नहीं जानता, लेकिन मान्यता है कि जो भी यहां लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है।
लड़कियों की श्वान से शादी
देश के झारखण्ड राज्य के कई इलाकों में परंपरा के नाम पर लड़कियों की श्वान से शादी करा दी जाती है। इस अंधविश्वास का मत है कि ऐसा करने पर लड़कियों के ऊपर से भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हट जाता है। हालाकि यह शादी सांकेतिक होती हैं, पर हिन्दू रिवाज़ से की जाती है। लोगों को शादी में आने का निमंत्रण दिया जाता है।
गुड़िया पीटने की अनोखी परम्परा
यह प्रथा उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में प्रचलन में है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की नाग पंचमी तिथि के दिन गुडि़या को पीटा जाता है। नागपंचमी के दिन महिलाएं घर के पुराने कपडों से गुड़िया बनाकर चौराहे पर डालती हैं और बच्चे उन्हें डंडों से पीटकर खुश होते हैं। इस परम्परा की शुरूआत के बारे में एक कथा प्रचलित कथा है।
पुराणों में वर्णित है कि तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या का राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में विवाह किया गया। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा, 'लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा।
लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई। तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पीट-पीट मृत्युंदड दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि उन महिलाओं ने सारे राज्य में इस रहस्य को प्रचारित किया था। कहते हैं तभी से गुड़िया को पीटने की परम्परा है।
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