दोस्तों
एस बार में एक ऐसा सूत्र सुरु कर रहा हूं जिसमें दुनियां की
अजीबोगरीब,रहस्यमय
� �� रोमांचक जानकारीयां जो मेने नेट से ही ली हैं आप के सामने रख रहा हूं इससे आप सब का मनोरंजन तो होगा साथ मे सामान्य ज्ञान भी बढ़ेगा आपके पास भी ऐसी कोई भी जानकारी जो हमसे शेयर करना चाहते है तो आपका स्वागत है हम आपके आभारी।
� �� रोमांचक जानकारीयां जो मेने नेट से ही ली हैं आप के सामने रख रहा हूं इससे आप सब का मनोरंजन तो होगा साथ मे सामान्य ज्ञान भी बढ़ेगा आपके पास भी ऐसी कोई भी जानकारी जो हमसे शेयर करना चाहते है तो आपका स्वागत है हम आपके आभारी।
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अब हिममानवों के रहस्यों से पर्दा उठाएगा चीन
चीन में अबतक महामानव के मौजूदगी की 400 रिपोर्ट मिल चुकी है। अब चीन के एक रिसर्च संस्था ने येती के रहस्यों से पर्दा उठाने की ठान ली है। चीनी मीडिया में एक विशालकाय मानव के विडियो ने सनसनी मचा दी है। जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक येति या हिममानव बुलाते हैं। इस वीडियो में हिममानव को साफ देखा जा सकता है। एक बार फिर इस वीडियो ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों में खलबली मचा दी है कि क्या हिममानव का अस्तित्व है। क्या हिममानव बर्फीले पहाड़ों में रहते हैं।
चीन के एक रिसर्च संस्था ने फैसला किया है कि येति यानी महामानव के रहस्यों से पर्दा उठाने का समय आ गया है। इसके लिए ये संस्था वैज्ञानिकों की एक टीम बनाने जा रही है जो येति का पूरा सच दुनिया के सामने लाएंगे। हाल ही में चीन के हुबेई प्रांत में हेती के पैरों के निशान देखे जाने की खबर आई
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येती
चीन में अबतक महामानव के मौजूदगी की 400 रिपोर्ट मिल चुकी है। अब चीन के एक रिसर्च संस्था ने येती के रहस्यों से पर्दा उठाने की ठान ली है। चीनी मीडिया में एक विशालकाय मानव के विडियो ने सनसनी मचा दी है। जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक येति या हिममानव बुलाते हैं। इस वीडियो में हिममानव को साफ देखा जा सकता है। एक बार फिर इस वीडियो ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों में खलबली मचा दी है कि क्या हिममानव का अस्तित्व है। क्या हिममानव बर्फीले पहाड़ों में रहते हैं।
चीन के एक रिसर्च संस्था ने फैसला किया है कि येति यानी महामानव के रहस्यों से पर्दा उठाने का समय आ गया है। इसके लिए ये संस्था वैज्ञानिकों की एक टीम बनाने जा रही है जो येति का पूरा सच दुनिया के सामने लाएंगे। हाल ही में चीन के हुबेई प्रांत में हेती के पैरों के निशान देखे जाने की खबर आई
2
येती
निशान
देखे जाने की खबर आई थी। उसी के बाद हुबेई वाइल्ड मैन रिसर्च एसोशिएशन ने
ये फैसला किया कि वो इस बार पूरी तैयारी के साथ येति की खोज करेंगे। पहले
भी चीन और तिब्ब्त से सटे हिमालय के पहाड़ियों में येती के देखे जाने की
खबरें आईं थी। जिसके बाद ही वैज्ञानिकों की टीम उनकी तलाश में एक सर्च
ऑपरेशन में जुट गई थीं। लेकिन उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा था। लेकिन उसके बाद
भी हिम मानव को देखे जाने की खबरें आईं। अब वाइल्ड मैन रिसर्च संस्था इस
बार नई तकनीक के साथ हिममानव के खोज में लग गई है। इसके लिए 5 टीमों का गठन
किया जाएगा और पूरे इलाके में कैमरों का जाल बिछाया जाएगा। वैसे जानकारों
की मानें तो महामानव का अस्तित्व संभव है।
इस
खोज में तकरीबन एक मिलियन डॉलर की लागत लगेगी और इस संस्था ने ये पैसे भी
जुगाड़ लिए हैं। संस्था की मानें तो 70 और 80 के दशक में महामानव के खोज
अभियान में कई खामियां थीं। लेकिन इस बार इस टीम में दुनिया भर के बेहतरीन
वैज्ञानिक होंगे। जो चीन के साथ साथ नार्थ अमेरिका के बिग फुट के रहस्यों
का पता लगाएंगे। पहले की खोज में मिले सबूतों जैसे कि महामानव के पैरों के
निशान, उनके बालों के नमूने के आधार पर ये खोजी अभियान शुरू होगा।
ये महामानव अभी तक हमारे लिए एक रहस्य बना हुआ है। पहली बार पूरी तैयारी के साथ वैज्ञानिक इस खोज में जुटेंगे। हो सकता है कि इनका वजूद ही न हो और ये सिर्फ किस्से कहानियों का एक हिस्सा बनकर रह जाए। लेकिन अगर महामानव के वजूद की पुष्टि हो जाती है तो ये तो ये 1930 के बाद से जीव विज्ञान की सबसे बड़ी खोज होगी।
ये महामानव अभी तक हमारे लिए एक रहस्य बना हुआ है। पहली बार पूरी तैयारी के साथ वैज्ञानिक इस खोज में जुटेंगे। हो सकता है कि इनका वजूद ही न हो और ये सिर्फ किस्से कहानियों का एक हिस्सा बनकर रह जाए। लेकिन अगर महामानव के वजूद की पुष्टि हो जाती है तो ये तो ये 1930 के बाद से जीव विज्ञान की सबसे बड़ी खोज होगी।
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पल भर दिखने के बाद कहां गायब हो जाता है हिममानव
इस रहस्मयी जीव को हिममानव भी कहा जाता है। हिममानव इसलिए क्योंकि ये ज्यादातर बर्फिले इलाके में ही लोगों को दिखता है। तिब्बत और नेपाल के लोग दो तरह के येति के बारे में बाताते हैं। जिसमें एक इंसान और बंदर के हाईब्रिड की तरह दिखता है। ये रहस्यमयी हिममानव दो मीटर लंबा और भूरे वालों वाला होता है और इसका वजन 200 किलो तक होताहै । जबकि दूसरे किस्म का येति समान्य इंसान से छोटे कद का दिखता है। इसके बाल लाल और भूरे रंग के होते हैं।
इस रहस्मयी जीव को हिममानव भी कहा जाता है। हिममानव इसलिए क्योंकि ये ज्यादातर बर्फिले इलाके में ही लोगों को दिखता है। तिब्बत और नेपाल के लोग दो तरह के येति के बारे में बाताते हैं। जिसमें एक इंसान और बंदर के हाईब्रिड की तरह दिखता है। ये रहस्यमयी हिममानव दो मीटर लंबा और भूरे वालों वाला होता है और इसका वजन 200 किलो तक होताहै । जबकि दूसरे किस्म का येति समान्य इंसान से छोटे कद का दिखता है। इसके बाल लाल और भूरे रंग के होते हैं।
The ROYAL "JAAT''
14-04-2011, 10:31 AM
दोनों
ही हिममानवों में एक बात सामान्य है कि ये दोनों ही इंसानों की तरह खड़े
होकर चलते है और इंसानों को चकमा देने में माहिर होते है। ये रात में शिकार
करते है और दिन में सोते है
दुनियाभर में अलग नामों से जाना जाता है हिममानव
ऐसा नहीं है कि हिमामानव का अस्तित्व सिर्फ एशिया में है। दुनिया भर में हिममानव को सैकड़ों साल से लोग देखने का दावा करते आ रहे हैं। इस रहस्यमयी प्राणी को दुनिया भर के कई इलाके में अलग अलग नामों से जाना जाता है। दक्षिण पश्चिमी अमेरिका में हिममानव को बड़े पैरों वाला प्राणी यानि बिगफुट कहा जाता है जबकि कनाडा में सास्कयूआच अमेजन में मपिंगुअरी और एशिया में येति के नाम से जाना जाता है।
अगर येति का सिर्फ बर्फ में ठिकाना है तो हो सकता है कि येति पहाड़ के किसी गुफा में रहता हो या फिर येति बर्फ में छिपने में माहिर हो तभी तो थोड़ी देर दिखने के बाद वो गायब हो जाता है। येति के अस्तित्व को लेकर तमाम तरह की बातें कही जाती है। ऐसे में पूरी दुनिया में दिखाई देने वाले इस जादुई प्राणी के अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता।
हो सकता है कि येति इंसान के ही किसी विकास की कड़ी हो लेकिन तमाम तरह के अत्याधुनिक साधन होने के बाद भी ये प्राणी आज भी इंसान की पहुंच से दूर है। दुनिया भर के वैज्ञानिक रिसर्च में जुटे हैं लेकिन हिममानव के अस्तित्व के बारे में कोई भी पुख्ता सबूत मौजूद नहीं हैं।
दोस्तों में आपके जवाब का इंतजार कर रहा हूँ ये सूत्र आपको केसा लगा आप अपने विचार जरुर बताइए ताकि में इस सूत्र को उत्साह से आगे बढ़ा सकूँ..धन्यवाद
दुनियाभर में अलग नामों से जाना जाता है हिममानव
ऐसा नहीं है कि हिमामानव का अस्तित्व सिर्फ एशिया में है। दुनिया भर में हिममानव को सैकड़ों साल से लोग देखने का दावा करते आ रहे हैं। इस रहस्यमयी प्राणी को दुनिया भर के कई इलाके में अलग अलग नामों से जाना जाता है। दक्षिण पश्चिमी अमेरिका में हिममानव को बड़े पैरों वाला प्राणी यानि बिगफुट कहा जाता है जबकि कनाडा में सास्कयूआच अमेजन में मपिंगुअरी और एशिया में येति के नाम से जाना जाता है।
अगर येति का सिर्फ बर्फ में ठिकाना है तो हो सकता है कि येति पहाड़ के किसी गुफा में रहता हो या फिर येति बर्फ में छिपने में माहिर हो तभी तो थोड़ी देर दिखने के बाद वो गायब हो जाता है। येति के अस्तित्व को लेकर तमाम तरह की बातें कही जाती है। ऐसे में पूरी दुनिया में दिखाई देने वाले इस जादुई प्राणी के अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता।
हो सकता है कि येति इंसान के ही किसी विकास की कड़ी हो लेकिन तमाम तरह के अत्याधुनिक साधन होने के बाद भी ये प्राणी आज भी इंसान की पहुंच से दूर है। दुनिया भर के वैज्ञानिक रिसर्च में जुटे हैं लेकिन हिममानव के अस्तित्व के बारे में कोई भी पुख्ता सबूत मौजूद नहीं हैं।
दोस्तों में आपके जवाब का इंतजार कर रहा हूँ ये सूत्र आपको केसा लगा आप अपने विचार जरुर बताइए ताकि में इस सूत्र को उत्साह से आगे बढ़ा सकूँ..धन्यवाद
The ROYAL "JAAT''
14-04-2011, 01:18 PM
अब तक कहां कहां दिखा है महामानव
हिममानव को येति के नाम से भी जाना जाता है। कई बार वैज्ञानिकों ने उसे देखने का दावा किया है। लेकिन बर्फिले इलाके में वो कहां रहता है और कहां गायब हो जाता है इसका पता अबतक नहीं चल पाया है। हिममानव के बारे में 1832 में पहली बार बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के एक पर्वतारोही ने कुछ जानकारी दी। पर्वतारोही ने दावा किया कि उत्तरी नेपाल में ट्रैकिंग के दौरान उसके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे प्राणी को देखा जो इंसान की तरह दो पैरों पर चल रहा था। उसके शरीर पर घने बाल थे। इसके बाद 1889 में पर्वतारोहियों ने एक समूह से बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फुटप्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़ा था।
1925 में एक फोटोग्राफर ने जेमू ग्लेशियर के पास एक विचित्र प्राणी को देखने का दावा किया था। उसकी आकृति इंसान जैसी थी। वो सीधा खड़े होकर चल रहा था और झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था। वो बर्फ में काला दिख रहा था।
येति के बारे में पहली बार ठोस सबूत 1951 में मिला, जब एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीरों के फोटो लिए। इन फुटप्रिन्टस पर आज भी रिसर्च किया जा रहा है। कई लोग इसे येति की वास्तविकता का बेहतरीन सबूत मानते हैं लेकिन कुछ इसे किसी दूसरे सांसारिक जीव के तौर पर देखते है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही।
फुट प्रिन्ट्स मिलने के बाद 1960 में सर एडमंड हिलरी अपने एक दल के साथ येति से जुड़े सबूतों की खोज में निकल पड़े। इस बार उन्होंने इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद भी ली, लेकिन 10 महीने तक हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में रहने के बावजूद उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा।
1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और उसकी आवाज भी सुनी। 1998 में एक अमेरिकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया। उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे। 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानी येति को देखने का दावा किया गया। इसके कोई ठोस सबूत आज तक नहीं मिला । हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रों में अस्तित्व हो जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता। ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता ये प्राणी रहस्यमयी दुनिया के लिए एक बड़ा रहस्य बना रहेगा ।
हिममानव को येति के नाम से भी जाना जाता है। कई बार वैज्ञानिकों ने उसे देखने का दावा किया है। लेकिन बर्फिले इलाके में वो कहां रहता है और कहां गायब हो जाता है इसका पता अबतक नहीं चल पाया है। हिममानव के बारे में 1832 में पहली बार बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के एक पर्वतारोही ने कुछ जानकारी दी। पर्वतारोही ने दावा किया कि उत्तरी नेपाल में ट्रैकिंग के दौरान उसके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे प्राणी को देखा जो इंसान की तरह दो पैरों पर चल रहा था। उसके शरीर पर घने बाल थे। इसके बाद 1889 में पर्वतारोहियों ने एक समूह से बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फुटप्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़ा था।
1925 में एक फोटोग्राफर ने जेमू ग्लेशियर के पास एक विचित्र प्राणी को देखने का दावा किया था। उसकी आकृति इंसान जैसी थी। वो सीधा खड़े होकर चल रहा था और झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था। वो बर्फ में काला दिख रहा था।
येति के बारे में पहली बार ठोस सबूत 1951 में मिला, जब एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीरों के फोटो लिए। इन फुटप्रिन्टस पर आज भी रिसर्च किया जा रहा है। कई लोग इसे येति की वास्तविकता का बेहतरीन सबूत मानते हैं लेकिन कुछ इसे किसी दूसरे सांसारिक जीव के तौर पर देखते है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही।
फुट प्रिन्ट्स मिलने के बाद 1960 में सर एडमंड हिलरी अपने एक दल के साथ येति से जुड़े सबूतों की खोज में निकल पड़े। इस बार उन्होंने इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद भी ली, लेकिन 10 महीने तक हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में रहने के बावजूद उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा।
1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और उसकी आवाज भी सुनी। 1998 में एक अमेरिकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया। उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे। 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानी येति को देखने का दावा किया गया। इसके कोई ठोस सबूत आज तक नहीं मिला । हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रों में अस्तित्व हो जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता। ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता ये प्राणी रहस्यमयी दुनिया के लिए एक बड़ा रहस्य बना रहेगा ।
The ROYAL "JAAT''
14-04-2011, 01:56 PM
नियामक
जी और मेरे सब दोस्तों में आपसे माफ़ी चाहता हूं जेसा
भेड़ ने कुत्ते को दिया जन्म!
शांगजी। चीन के इसी प्रांत के किसान लियू नेइंग खुद को आजकल बेहद सौभाग्यशाली मानने लगे हैं और इसका कारण है वह भेड़ जिसने कथित तौर पर एक कुत्ते को जन्म दिया है।
नेइंग के मुताबिक इस माह के आरंभ में जब वह भेड़ें चरा रहे थे, तभी उनका ध्यान एक भेड़ की ओर गया जो अपने नवजात शिशु को दुलार रही थी। उन्होंने पास जाकर देखा तो दंग रह गए क्योंकि भेड़ का बच्चा बिल्कुल कुत्ते जैसा था। उसके शरीर पर ऊन तो थी, लेकिन मुंह, नाक, आंखें, पंजे और पूंछ बिल्कुल कुत्तों जैसे थे। नेइंग इसे चमत्कार मान रहे हैं और खुद को इस कुत्ते को जन्म देने वाली चमत्कारी भेड़ का मालिक होने के कारण भाग्यशाली।
शांगजी। चीन के इसी प्रांत के किसान लियू नेइंग खुद को आजकल बेहद सौभाग्यशाली मानने लगे हैं और इसका कारण है वह भेड़ जिसने कथित तौर पर एक कुत्ते को जन्म दिया है।
नेइंग के मुताबिक इस माह के आरंभ में जब वह भेड़ें चरा रहे थे, तभी उनका ध्यान एक भेड़ की ओर गया जो अपने नवजात शिशु को दुलार रही थी। उन्होंने पास जाकर देखा तो दंग रह गए क्योंकि भेड़ का बच्चा बिल्कुल कुत्ते जैसा था। उसके शरीर पर ऊन तो थी, लेकिन मुंह, नाक, आंखें, पंजे और पूंछ बिल्कुल कुत्तों जैसे थे। नेइंग इसे चमत्कार मान रहे हैं और खुद को इस कुत्ते को जन्म देने वाली चमत्कारी भेड़ का मालिक होने के कारण भाग्यशाली।
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अजब प्रथा: यहां दामादों को बैठाते हैं गधे पर
बीड़। भारत में दामादों को वैसे काफी सम्मान दिया जाता है, लेकिन होली के मौके पर महाराष्ट्र के बीड़ जिले के वीड़ा गांव में होली का त्यौहार दामादों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। लड़की के परिवार वालों के लिए दामाद से बदला लेने का यह एक शानदार मौका होता है।
होली के दिन यहां दामाद को रिवाज के अनुसार अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता और चूंकि परंपरा ऎसी है इसलिए दामाद भी इसे बुरा नहीं मानते। दामाद को गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है। गांव के बुजुगोंü ने बताया कि यह पंरपरा कोई 75 साल पहले शुरू हुई।
प्रत्येक साल इस सम्मान ( गधे की सवारी ) के लिए गांव के नए दामाद का चयन किया जाता है। लोगों का कहना है कि यह परंपरा निजाम काल से जुड़ी है।
बीड़। भारत में दामादों को वैसे काफी सम्मान दिया जाता है, लेकिन होली के मौके पर महाराष्ट्र के बीड़ जिले के वीड़ा गांव में होली का त्यौहार दामादों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। लड़की के परिवार वालों के लिए दामाद से बदला लेने का यह एक शानदार मौका होता है।
होली के दिन यहां दामाद को रिवाज के अनुसार अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता और चूंकि परंपरा ऎसी है इसलिए दामाद भी इसे बुरा नहीं मानते। दामाद को गधे पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है। गांव के बुजुगोंü ने बताया कि यह पंरपरा कोई 75 साल पहले शुरू हुई।
प्रत्येक साल इस सम्मान ( गधे की सवारी ) के लिए गांव के नए दामाद का चयन किया जाता है। लोगों का कहना है कि यह परंपरा निजाम काल से जुड़ी है।
अब तक कहां कहां दिखा है महामानव
हिममानव को येति के नाम से भी जाना जाता है। कई बार वैज्ञानिकों ने उसे देखने का दावा किया है। लेकिन बर्फिले इलाके में वो कहां रहता है और कहां गायब हो जाता है इसका पता अबतक नहीं चल पाया है। हिममानव के बारे में 1832 में पहली बार बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के एक पर्वतारोही ने कुछ जानकारी दी। पर्वतारोही ने दावा किया कि उत्तरी नेपाल में ट्रैकिंग के दौरान उसके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे प्राणी को देखा जो इंसान की तरह दो पैरों पर चल रहा था। उसके शरीर पर घने बाल थे। इसके बाद 1889 में पर्वतारोहियों ने एक समूह से बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फुटप्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़ा था।
1925 में एक फोटोग्राफर ने जेमू ग्लेशियर के पास एक विचित्र प्राणी को देखने का दावा किया था। उसकी आकृति इंसान जैसी थी। वो सीधा खड़े होकर चल रहा था और झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था। वो बर्फ में काला दिख रहा था।
येति के बारे में पहली बार ठोस सबूत 1951 में मिला, जब एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीरों के फोटो लिए। इन फुटप्रिन्टस पर आज भी रिसर्च किया जा रहा है। कई लोग इसे येति की वास्तविकता का बेहतरीन सबूत मानते हैं लेकिन कुछ इसे किसी दूसरे सांसारिक जीव के तौर पर देखते है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही।
फुट प्रिन्ट्स मिलने के बाद 1960 में सर एडमंड हिलरी अपने एक दल के साथ येति से जुड़े सबूतों की खोज में निकल पड़े। इस बार उन्होंने इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद भी ली, लेकिन 10 महीने तक हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में रहने के बावजूद उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा।
1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और उसकी आवाज भी सुनी। 1998 में एक अमेरिकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया। उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे। 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानी येति को देखने का दावा किया गया। इसके कोई ठोस सबूत आज तक नहीं मिला । हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रों में अस्तित्व हो जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता। ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता ये प्राणी रहस्यमयी दुनिया के लिए एक बड़ा रहस्य बना रहेगा ।
अच्छे सूत्र का निर्माण किया ही आपने. मेरी तरफ से ++ स्वीकार करें. आशा है इसी तरह और भी रहस्यमय घटनाओं और बातों से आप हमारा परिचय करते रहेंगे.
हिममानव को येति के नाम से भी जाना जाता है। कई बार वैज्ञानिकों ने उसे देखने का दावा किया है। लेकिन बर्फिले इलाके में वो कहां रहता है और कहां गायब हो जाता है इसका पता अबतक नहीं चल पाया है। हिममानव के बारे में 1832 में पहली बार बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के एक पर्वतारोही ने कुछ जानकारी दी। पर्वतारोही ने दावा किया कि उत्तरी नेपाल में ट्रैकिंग के दौरान उसके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे प्राणी को देखा जो इंसान की तरह दो पैरों पर चल रहा था। उसके शरीर पर घने बाल थे। इसके बाद 1889 में पर्वतारोहियों ने एक समूह से बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फुटप्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़ा था।
1925 में एक फोटोग्राफर ने जेमू ग्लेशियर के पास एक विचित्र प्राणी को देखने का दावा किया था। उसकी आकृति इंसान जैसी थी। वो सीधा खड़े होकर चल रहा था और झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था। वो बर्फ में काला दिख रहा था।
येति के बारे में पहली बार ठोस सबूत 1951 में मिला, जब एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीरों के फोटो लिए। इन फुटप्रिन्टस पर आज भी रिसर्च किया जा रहा है। कई लोग इसे येति की वास्तविकता का बेहतरीन सबूत मानते हैं लेकिन कुछ इसे किसी दूसरे सांसारिक जीव के तौर पर देखते है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही।
फुट प्रिन्ट्स मिलने के बाद 1960 में सर एडमंड हिलरी अपने एक दल के साथ येति से जुड़े सबूतों की खोज में निकल पड़े। इस बार उन्होंने इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद भी ली, लेकिन 10 महीने तक हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में रहने के बावजूद उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा।
1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और उसकी आवाज भी सुनी। 1998 में एक अमेरिकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया। उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे। 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानी येति को देखने का दावा किया गया। इसके कोई ठोस सबूत आज तक नहीं मिला । हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रों में अस्तित्व हो जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता। ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता ये प्राणी रहस्यमयी दुनिया के लिए एक बड़ा रहस्य बना रहेगा ।
अच्छे सूत्र का निर्माण किया ही आपने. मेरी तरफ से ++ स्वीकार करें. आशा है इसी तरह और भी रहस्यमय घटनाओं और बातों से आप हमारा परिचय करते रहेंगे.
The ROYAL "JAAT''
15-04-2011, 04:39 PM
अच्छे
सूत्र का निर्माण किया ही आपने. मेरी तरफ से ++ स्वीकार करें. आशा है इसी
तरह और भी रहस्यमय घटनाओं और बातों से आप हमारा परिचय करते रहेंगे.
धन्यवाद काम्या जी
धन्यवाद काम्या जी
The ROYAL "JAAT''
15-04-2011, 06:31 PM
आकाश में एक साथ दो सूरज देख दंग रह गए लोग
ताईवान। यहां घटी एक घटना ने लोगों को दंग कर दिया। पेंगू आइलैंड में लोगों ने एकसाथ दो सूरज देखा। इंटरनेट पर इस घटना की तस्वीर आते ही चारों ओर इसकी चर्चा शुरु हो गई है।
यहां के मूल निवासियों का कहना है कि ये ग्लोबल वार्मिंग का संकेत है जो इस बात की ओर साफ इशारा है कि धरती का अंत जल्द ही होने वाला है। जबकि वहां के मौसम विभाग का कहना है कि ये सनडॉग फिनॉमिना की देन है।
दरअसल इस स्थिति में बर्फ से रिफलेक्शन के कारण ऐसा आभास होता है कि एक साथ दो सूरज उग आए हैं। हालांकि इस तरह की घटना अपने आप में बेहद दुर्लभ है
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ताईवान। यहां घटी एक घटना ने लोगों को दंग कर दिया। पेंगू आइलैंड में लोगों ने एकसाथ दो सूरज देखा। इंटरनेट पर इस घटना की तस्वीर आते ही चारों ओर इसकी चर्चा शुरु हो गई है।
यहां के मूल निवासियों का कहना है कि ये ग्लोबल वार्मिंग का संकेत है जो इस बात की ओर साफ इशारा है कि धरती का अंत जल्द ही होने वाला है। जबकि वहां के मौसम विभाग का कहना है कि ये सनडॉग फिनॉमिना की देन है।
दरअसल इस स्थिति में बर्फ से रिफलेक्शन के कारण ऐसा आभास होता है कि एक साथ दो सूरज उग आए हैं। हालांकि इस तरह की घटना अपने आप में बेहद दुर्लभ है
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अनुमान से पहले अस्तित्व में आए थे डायनासोर
लंदन. डायनासोरों के बारे में जितना सोचा जाता है, वे उससे भी कई साल पहले अस्तित्व में आए थे। एक नए शोध में यह पता चला है। जीवाश्म विज्ञानियों ने अपने शोध में प्रागैतिहासिक जीवों के चार टांगों वाले पूर्वज के जीवाश्म पाए हैं। ये जानवर 25 करोड़ साल पहले पाए जाते थे। यह डायनासोर के अस्तित्व से एक करोड़ साल पहले का समय है।
ऐसा माना जाता है कि मीट खाने वाले इन जानवरों का डायनासोर से वही रिश्ता है, जैसा बंदरों का मानवों से है। पूर्वी अफ्रीका के शहर तंजानिया में मिले इन जीवाश्मों का आकलन करने वाले वैज्ञानिकों ने इन जीवों को ‘प्रोटोसोर’ नाम दिया है। शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि डायनासोर और उनके करीबी रिश्तेदार जैसे कि पटेरोसोर्स और पटेरोडैकटाइल्स भी अनुमानित से काफी समय पहले अस्तित्व में आए होंगे।
इस नई प्रजाति एसिलसोर्स नोग्वे का वर्णन टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. स्टर्लिग नेसबिट ने नेचर पत्रिका में किया है। एसिलसोर्स डायनासोरों का ही एक समूह है जिसे सिलेसोर्स कहा जाता है। सिलेसोर्स को डायनासोर्स जैसा माना जाता है क्योंकि इनकी काफी विशेषताएं उनके जैसी होती हैं, हालांकि इनमें वे प्रमुख विशेषताएं नहीं होती, जो सभी डायनासोरों में पाई जाती हैं।
लंदन. डायनासोरों के बारे में जितना सोचा जाता है, वे उससे भी कई साल पहले अस्तित्व में आए थे। एक नए शोध में यह पता चला है। जीवाश्म विज्ञानियों ने अपने शोध में प्रागैतिहासिक जीवों के चार टांगों वाले पूर्वज के जीवाश्म पाए हैं। ये जानवर 25 करोड़ साल पहले पाए जाते थे। यह डायनासोर के अस्तित्व से एक करोड़ साल पहले का समय है।
ऐसा माना जाता है कि मीट खाने वाले इन जानवरों का डायनासोर से वही रिश्ता है, जैसा बंदरों का मानवों से है। पूर्वी अफ्रीका के शहर तंजानिया में मिले इन जीवाश्मों का आकलन करने वाले वैज्ञानिकों ने इन जीवों को ‘प्रोटोसोर’ नाम दिया है। शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि डायनासोर और उनके करीबी रिश्तेदार जैसे कि पटेरोसोर्स और पटेरोडैकटाइल्स भी अनुमानित से काफी समय पहले अस्तित्व में आए होंगे।
इस नई प्रजाति एसिलसोर्स नोग्वे का वर्णन टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. स्टर्लिग नेसबिट ने नेचर पत्रिका में किया है। एसिलसोर्स डायनासोरों का ही एक समूह है जिसे सिलेसोर्स कहा जाता है। सिलेसोर्स को डायनासोर्स जैसा माना जाता है क्योंकि इनकी काफी विशेषताएं उनके जैसी होती हैं, हालांकि इनमें वे प्रमुख विशेषताएं नहीं होती, जो सभी डायनासोरों में पाई जाती हैं।
6
दो बार दफ़नाया गया था मुमताज़ को
विश्व के सात अजूबों में से एक, प्रेम का प्रतीक ताजमहल और आगरा आज एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. अब ताज भारत का गौरव ही नहीं अपितु दुनिया का गौरव बन चुका है. ताजमहल दुनिया की उन 165 ऐतिहासिक इमारतों में से एक है, जिसे राष्ट्र संघ ने विश्व धरोहर की संज्ञा से विभूषित किया है. इस तरह हम कह सकते हैं कि ताज हमारे देश की एक बेशकीमती धरोहर है, जो सैलानियों और विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. प्रेम के प्रतीक इस खूबसूरत ताज के गर्भ में मुग़ल सम्राट शाहजहां की सुंदर प्रेयसी मुमताज महल की यादें सोयी हुई हैं, जिसका निर्माण शाहजहां ने उसकी याद में करवाया था. कहते हैं कि इसके बनाने में कुल बाईस वर्ष लगे थे, लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि सम्राट शाहजहां की पत्नी मुमताज की न तो आगरा में मौत हुई थी और न ही उसे आगरा में दफनाया गया था. मुमताज महल तो मध्य प्रदेश के एक छोटे जिले बुरहानपुर (पहले खंडवा जिले का एक तहसील था) के जैनाबाद तहसील में मरी थी, जो सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है. इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी पत्नी (जिसे वह अथाह प्रेम करता था) मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर चला गया. उन दिनों मुमताज गर्भवती थी. पूरे 24 घंटे तक प्रसव पीड़ा से तड़पते हुए जीवन-मृत्यु से संघर्ष करती रही. सात जून, दिन बुधवार सन 1631 की वह भयानक रात थी, शाहजहां अपने कई ईरानी हकीमों एवं वैद्यों के साथ बैठा दीपक की टिमटिमाती लौ में अपनी पत्नी के चेहरे को देखता रहा. उसी रात मुमताज महल ने एक सुन्दर बच्चे को जन्म दिया, जो अधिक देर तक जिन्दा नहीं रह सका. थोड़ी देर बाद मुमताज ने भी दम तोड़ दिया.
विश्व के सात अजूबों में से एक, प्रेम का प्रतीक ताजमहल और आगरा आज एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. अब ताज भारत का गौरव ही नहीं अपितु दुनिया का गौरव बन चुका है. ताजमहल दुनिया की उन 165 ऐतिहासिक इमारतों में से एक है, जिसे राष्ट्र संघ ने विश्व धरोहर की संज्ञा से विभूषित किया है. इस तरह हम कह सकते हैं कि ताज हमारे देश की एक बेशकीमती धरोहर है, जो सैलानियों और विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. प्रेम के प्रतीक इस खूबसूरत ताज के गर्भ में मुग़ल सम्राट शाहजहां की सुंदर प्रेयसी मुमताज महल की यादें सोयी हुई हैं, जिसका निर्माण शाहजहां ने उसकी याद में करवाया था. कहते हैं कि इसके बनाने में कुल बाईस वर्ष लगे थे, लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि सम्राट शाहजहां की पत्नी मुमताज की न तो आगरा में मौत हुई थी और न ही उसे आगरा में दफनाया गया था. मुमताज महल तो मध्य प्रदेश के एक छोटे जिले बुरहानपुर (पहले खंडवा जिले का एक तहसील था) के जैनाबाद तहसील में मरी थी, जो सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है. इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी पत्नी (जिसे वह अथाह प्रेम करता था) मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर चला गया. उन दिनों मुमताज गर्भवती थी. पूरे 24 घंटे तक प्रसव पीड़ा से तड़पते हुए जीवन-मृत्यु से संघर्ष करती रही. सात जून, दिन बुधवार सन 1631 की वह भयानक रात थी, शाहजहां अपने कई ईरानी हकीमों एवं वैद्यों के साथ बैठा दीपक की टिमटिमाती लौ में अपनी पत्नी के चेहरे को देखता रहा. उसी रात मुमताज महल ने एक सुन्दर बच्चे को जन्म दिया, जो अधिक देर तक जिन्दा नहीं रह सका. थोड़ी देर बाद मुमताज ने भी दम तोड़ दिया.
दूसरे
दिन गुरुवार की शाम उसे वहीँ आहुखाना के बाग में सुपुर्द-ए- खाक कर दिया
गया. वह इमारत आज भी उसी जगह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खड़ी मुमताज के दर्द
को बयां करती है. इतिहासकारों के मुताबिक मुमताज की मौत के बाद शाहजहां का
मन हरम में नहीं रम सका. कुछ दिनों के भीतर ही उसके बाल रुई जैसे सफ़ेद हो
गए. वह अर्धविक्षिप्त-सा हो गया. वह सफ़ेद कपड़े पहनने लगा. एक दिन उसने
मुमताज की कब्र पर हाथ रखकर कसम खाई कि मुमताज तेरी याद में एक ऐसी इमारत
बनवाऊंगा, जिसके बराबर की दुनिया में दूसरी नहीं होगी. बताते हैं कि
शाहजहां की इच्छा थी कि ताप्ती नदी के तट पर ही मुमताज कि स्मृति में एक
भव्य इमारत बने, जिसकी सानी की दुनिया में दूसरी इमारत न हो. इसके लिए
शाहजहां ने ईरान से शिल्पकारों को जैनाबाद बुलवाया. ईरानी शिल्पकारों ने
ताप्ती नदी के का निरीक्षण किया तो पाया कि नदी के किनारे की काली मिट्टी
में पकड़ नहीं है और आस-पास की ज़मीन भी दलदली है. दूसरी सबसे बड़ी बाधा ये
थी कि तप्ति नदी का प्रवाह तेज होने के कारण जबरदस्त भूमि कटाव था. इसलिए
वहां पर इमारत को खड़ा कर पाना संभव नहीं हो सका. उन दिनों भारत की राजधानी
आगरा थी. इसलिए शाहजहां ने आगरा में ही पत्नी की याद में इमारत बनवाने का
मन बनाया. उन दिनों यमुना के तट पर बड़े -बड़े रईसों कि हवेलियां थीं.
7
हिटलर ने रचा था खुदकुशी का स्वांग!
वाशिंगटन। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो 29 अप्रेल 1945 का दिन इसलिए याद किया जाता है क्योंकि उस दिन जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने अपनी प्रेमिका के साथ खुदकुशी कर ली थी। लेकिन अमरीकी खुफिया एजेंसी एफबीआई की मानें तो हिटलर ने अपनी खुदकुशी का स्वांग रचा था। एफबीआई के अनुसार खुदकुशी की खबरों के 30 साल बाद हिटलर ने जर्मनी में फिर से गद्दी हथियाने की कोशिश भी की थी।
एफबीआई ने हिटलर की मौत से संबंधित दस्तावेजों की गहन जांच के बाद पाया के हिटलर 1945 के बाद करीब 30 साल और जिंदा रहा। एफबीआई की फाइलों के मुताबिक उनके अंडरकवर एजेंट ने हिटलर का पीछा किया था और उसे अर्जेन्टिना में देखा था।
एफबीआई एजेंट के मुताबिक हिटलर और उसके 50 करीबी 21 सितंबर 1945 को दो पनडुब्बियों में सवार होकर दक्षिणी अर्जेन्टिना आए और वहां के पशु फार्म में छिप गए। हिटलर ने दाढ़ी बढ़ा रखी थी। एफबीआई की रिपोर्ट में दो और खुलासे किए गए हैं। पहले खुलासे के अनुसार 1954 में सेंट लुइस में एक डॉक्टर ने हिटलर इलाज करने का दावा किया है। हिटलर को इंटेस्टाइनल डिसऑर्डर से ग्रसित बताया गया है। जबकि दूसरे खुलासे के अनुसार हिटलर को 1946 में वाशिंगटन के होटल मे डिनर करते देखा गया था।
जब हवेलियों के मालिकों को शाहजहां कि इच्छा का पता चला तो वे सभी अपनी-अपनी हवेलियां बादशाह को देने की होड़ लगा दी. इतिहास में इस बात का पता चलता है कि सम्राट शाहजहां को राजा जय सिंह की अजमेर वाली हवेली पसंद आ गई. सम्राट ने हवेली चुनने के बाद ईरान, तुर्की, फ़्रांस और इटली से शिल्पकारों को बुलवाया. कहते हैं कि उस समय वेनिस से प्रसिद्ध सुनार व जेरोनियो को बुलवाया गया था. शिराज से उस्ताद ईसा आफंदी भी आए, जिन्होंने ताजमहल कि रूपरेखा तैयार की थी. उसी के अनुरूप कब्र की जगह को तय किया गया. 22 सालों के बाद जब प्रेम का प्रतीक ताजमहल बनकर तैयार हो गया तो उसमें मुमताज महल के शव को पुनः दफनाने की प्रक्रिया शुरू हुई. बुरहानपुर के जैनाबाद से मुमताज महल के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ आगरा ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना दिया गया. इस विशाल जुलूस पर इतिहासकारों कि टिप्पणी है कि उस विशाल जुलूस पर इतना खर्च हुआ था कि जो किल्योपेट्रा के उस ऐतिहासिक जुलूस की याद दिलाता है जब किल्योपेट्रा अपने देश से एक विशाल समूह के साथ सीज़र के पास गई थी. जिसके बारे में इतिहासकारों का कहना है कि उस जुलूस पर उस समय आठ करोड़ रुपये खर्च हुए थे. ताज के निर्माण के दौरान ही शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने उन्हें कैद कर के पास के लालकिले में रख दिया, जहां से शाहजहां एक खिड़की से निर्माणाधीन ताजमहल को चोबीस घंटे देखते रहते थे. कहते हैं कि जब तक ताजमहल बनकर तैयार होता. इसी बीच शाहजहां की मौत हो गई. मौत से पहले शाहजहां ने इच्छा जाहिर की थी कि "उसकी मौत के बाद उसे यमुना नदी के दूसरे छोर पर काले पत्थर से बनी एक भव्य इमारत में दफ़न किया जाए और दोनों इमारतों को एक पुल से जोड़ दिया जाए", लेकिन उसके पुत्र औरंगजेब ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने की बजाय, सफ़ेद संगमरमर की उसी भव्य इमारत में उसी जगह दफना दिया, जहां पर उसकी मां यानि मुमताज महल चिर निद्रा में सोईं हुई थी. उसने दोनों प्रेमियों को आस-पास सुलाकर एक इतिहास रच दिया. बुहरानपुर पहले मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की एक तहसील हुआ करती थी, जिसे हाल ही में जिला बना दिया गया है. यह जिला दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर इटारसी-भुसावल के बीच स्थित है. :tiranga:
हिटलर ने रचा था खुदकुशी का स्वांग!
वाशिंगटन। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो 29 अप्रेल 1945 का दिन इसलिए याद किया जाता है क्योंकि उस दिन जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने अपनी प्रेमिका के साथ खुदकुशी कर ली थी। लेकिन अमरीकी खुफिया एजेंसी एफबीआई की मानें तो हिटलर ने अपनी खुदकुशी का स्वांग रचा था। एफबीआई के अनुसार खुदकुशी की खबरों के 30 साल बाद हिटलर ने जर्मनी में फिर से गद्दी हथियाने की कोशिश भी की थी।
एफबीआई ने हिटलर की मौत से संबंधित दस्तावेजों की गहन जांच के बाद पाया के हिटलर 1945 के बाद करीब 30 साल और जिंदा रहा। एफबीआई की फाइलों के मुताबिक उनके अंडरकवर एजेंट ने हिटलर का पीछा किया था और उसे अर्जेन्टिना में देखा था।
एफबीआई एजेंट के मुताबिक हिटलर और उसके 50 करीबी 21 सितंबर 1945 को दो पनडुब्बियों में सवार होकर दक्षिणी अर्जेन्टिना आए और वहां के पशु फार्म में छिप गए। हिटलर ने दाढ़ी बढ़ा रखी थी। एफबीआई की रिपोर्ट में दो और खुलासे किए गए हैं। पहले खुलासे के अनुसार 1954 में सेंट लुइस में एक डॉक्टर ने हिटलर इलाज करने का दावा किया है। हिटलर को इंटेस्टाइनल डिसऑर्डर से ग्रसित बताया गया है। जबकि दूसरे खुलासे के अनुसार हिटलर को 1946 में वाशिंगटन के होटल मे डिनर करते देखा गया था।
जब हवेलियों के मालिकों को शाहजहां कि इच्छा का पता चला तो वे सभी अपनी-अपनी हवेलियां बादशाह को देने की होड़ लगा दी. इतिहास में इस बात का पता चलता है कि सम्राट शाहजहां को राजा जय सिंह की अजमेर वाली हवेली पसंद आ गई. सम्राट ने हवेली चुनने के बाद ईरान, तुर्की, फ़्रांस और इटली से शिल्पकारों को बुलवाया. कहते हैं कि उस समय वेनिस से प्रसिद्ध सुनार व जेरोनियो को बुलवाया गया था. शिराज से उस्ताद ईसा आफंदी भी आए, जिन्होंने ताजमहल कि रूपरेखा तैयार की थी. उसी के अनुरूप कब्र की जगह को तय किया गया. 22 सालों के बाद जब प्रेम का प्रतीक ताजमहल बनकर तैयार हो गया तो उसमें मुमताज महल के शव को पुनः दफनाने की प्रक्रिया शुरू हुई. बुरहानपुर के जैनाबाद से मुमताज महल के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ आगरा ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना दिया गया. इस विशाल जुलूस पर इतिहासकारों कि टिप्पणी है कि उस विशाल जुलूस पर इतना खर्च हुआ था कि जो किल्योपेट्रा के उस ऐतिहासिक जुलूस की याद दिलाता है जब किल्योपेट्रा अपने देश से एक विशाल समूह के साथ सीज़र के पास गई थी. जिसके बारे में इतिहासकारों का कहना है कि उस जुलूस पर उस समय आठ करोड़ रुपये खर्च हुए थे. ताज के निर्माण के दौरान ही शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने उन्हें कैद कर के पास के लालकिले में रख दिया, जहां से शाहजहां एक खिड़की से निर्माणाधीन ताजमहल को चोबीस घंटे देखते रहते थे. कहते हैं कि जब तक ताजमहल बनकर तैयार होता. इसी बीच शाहजहां की मौत हो गई. मौत से पहले शाहजहां ने इच्छा जाहिर की थी कि "उसकी मौत के बाद उसे यमुना नदी के दूसरे छोर पर काले पत्थर से बनी एक भव्य इमारत में दफ़न किया जाए और दोनों इमारतों को एक पुल से जोड़ दिया जाए", लेकिन उसके पुत्र औरंगजेब ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने की बजाय, सफ़ेद संगमरमर की उसी भव्य इमारत में उसी जगह दफना दिया, जहां पर उसकी मां यानि मुमताज महल चिर निद्रा में सोईं हुई थी. उसने दोनों प्रेमियों को आस-पास सुलाकर एक इतिहास रच दिया. बुहरानपुर पहले मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की एक तहसील हुआ करती थी, जिसे हाल ही में जिला बना दिया गया है. यह जिला दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर इटारसी-भुसावल के बीच स्थित है. :tiranga:
The ROYAL "JAAT''
17-04-2011, 04:18 PM
बुहरानपुर
रेलवे स्टेशन भी है, जहां पर लगभग सभी प्रमुख रेलगाड़ियां रुकती हैं.
बुहरानपुर स्टेशन से लगभग दस किलोमीटर दूर शहर के बीच बहने वाली ताप्ती नदी
के उस पर जैनाबाद (फारुकी काल), जो कभी बादशाहों की शिकारगाह (आहुखाना)
हुआ करती थी, जिसे दक्षिण का सूबेदार बनाने के बाद शहजादा दानियाल ( जो
शिकार का काफी शौक़ीन था) ने इस जगह को अपने पसंद के अनुरूप महल, हौज,
बाग-बगीचे के बीच नहरों का निर्माण करवाया था, लेकिन 8 अप्रेल 1605 को
मात्र तेईस साल की उम्र मे सूबेदार की मौत हो गई. स्थानीय लोग बताते हैं कि
इसी के बाद आहुखाना उजड़ने लगा. स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार मनोज यादव कहते
हैं कि जहांगीर के शासन काल में सम्राट अकबर के नौ रतनों में से एक अब्दुल
रहीम खानखाना ने ईरान से खिरनी एवं अन्य प्रजातियों के पौधे मंगवाकर
आहुखाना को पुनः ईरानी बाग के रूप में विकसित करवाया. इस बाग का नाम
शाहजहां की पुत्री आलमआरा के नाम पर पड़ा. बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हामिद
लाहौरी साहब के मुताबिक शाहजहां की प्रेयसी मुमताज महल की जब प्रसव के
दौरान मौत हो गई तो उसे यहीं पर स्थाई रूप से दफ़न कर दिया गया था, जिसके
लिए आहुखाने के एक बड़े हौज़ को बंद करके तल घर बनाया गया और वहीँ पर
मुमताज के जनाजे को छह माह रखने के बाद शाहजहां का बेटा शहजादा शुजा,
सुन्नी बेगम और शाह हाकिम वजीर खान, मुमताज के शव को लेकर बुहरानपुर के
इतवारागेट-दिल्ली दरवाज़े से होते हुए आगरा ले गए. जहां पर यमुना के तट पर
स्थित राजा मान सिंह के पोते राजा जय सिंह के बाग में में बने ताजमहल में
सम्राट शाहजहां की प्रेयसी एवं पत्नी मुमताज महल के जनाजे को दोबारा दफना
दिया गया. यह वही जगह है, जहां आज प्रेम का शाश्वत प्रतीक, शाहजहां-मुमताज
के अमर प्रेम को बयां करता हुआ विश्व प्रसिद्ध "ताजमहल" खड़ा है.
वाह भाई मज़ा आ गया. ताजमहल के बारे मे मैं जानता था. मगर फिर भी मजा आ गया.
18-04-2011, 11:06 PM
शिवलिंग पर प्रकट हुए नागदेवता के दर्शनों को उमड़े श्रद्धालु
जाखल, संवाद सूत्र :मंडी के श्री शिव शक्ति मंदिर में श्रद्धालुओं का उस समय जनसैलाब उमड़ पड़ा जब उन्हे शिवलिंग पर नागदेवता के प्रकट होने का समाचार मिला। नागदेवता के करीब डेढ़ दो घटा तक मंदिर में विराज मान रहने से सैंकड़ों की संख्या में लोगों ने दर्शन किए। शिव शक्ति मंदिर के पुजारी भूषण शर्मा ने बताया कि वह शाम को करीब चार बजे मंदिर के अंदर सफाई का काम कर रहा था कि इसी समय उन्हे शिवलिंग पर नागदेवता बैठे हुए दिखाई दिए। नागदेवता के दर्शन कर वह आश्चर्य चकित रह गया। उसने तुरत इसकी जानकारी मंदिर कमेटी के प्रधान प्रेम चंद सिंगला को दी। सूचना मिलते ही कमेटी प्रधान सहित सदस्य संजीव कुमार, सुनील कुमार इत्यादि भी मंदिर में पहुंच गए व उन्होने भी नागदेवता के दर्शन कर मंदिर में हुए इस चमत्कार की जानकारी अन्य लोगों को दी। नागदेवता के प्रकट होने की जानकारी मिलते ही मंडी के अनेक लोग मंदिर में पहुंचना शुरु हो गए। जबकि महिलाओं ने भारी संख्या में मंदिर में पहुंच गई। देखते ही देखते मंदिर परिसर भारी संख्या में महिलाओं, पुरुषों व बच्चों का जमावड़ा लग गया। कोई नागदेवता को देखकर उसे कैमरे में कैद कर रहा था तो कोई उसे देखकर मन्नत माग रहा था। महिला राजरानी, कृष्णा, उषा, ममता, कमलेश सहित अन्य कईयों ने कहा कि उन्होंने यह पहली बार देखा है। यह साक्षात भगवान शिव की
जाखल, संवाद सूत्र :मंडी के श्री शिव शक्ति मंदिर में श्रद्धालुओं का उस समय जनसैलाब उमड़ पड़ा जब उन्हे शिवलिंग पर नागदेवता के प्रकट होने का समाचार मिला। नागदेवता के करीब डेढ़ दो घटा तक मंदिर में विराज मान रहने से सैंकड़ों की संख्या में लोगों ने दर्शन किए। शिव शक्ति मंदिर के पुजारी भूषण शर्मा ने बताया कि वह शाम को करीब चार बजे मंदिर के अंदर सफाई का काम कर रहा था कि इसी समय उन्हे शिवलिंग पर नागदेवता बैठे हुए दिखाई दिए। नागदेवता के दर्शन कर वह आश्चर्य चकित रह गया। उसने तुरत इसकी जानकारी मंदिर कमेटी के प्रधान प्रेम चंद सिंगला को दी। सूचना मिलते ही कमेटी प्रधान सहित सदस्य संजीव कुमार, सुनील कुमार इत्यादि भी मंदिर में पहुंच गए व उन्होने भी नागदेवता के दर्शन कर मंदिर में हुए इस चमत्कार की जानकारी अन्य लोगों को दी। नागदेवता के प्रकट होने की जानकारी मिलते ही मंडी के अनेक लोग मंदिर में पहुंचना शुरु हो गए। जबकि महिलाओं ने भारी संख्या में मंदिर में पहुंच गई। देखते ही देखते मंदिर परिसर भारी संख्या में महिलाओं, पुरुषों व बच्चों का जमावड़ा लग गया। कोई नागदेवता को देखकर उसे कैमरे में कैद कर रहा था तो कोई उसे देखकर मन्नत माग रहा था। महिला राजरानी, कृष्णा, उषा, ममता, कमलेश सहित अन्य कईयों ने कहा कि उन्होंने यह पहली बार देखा है। यह साक्षात भगवान शिव की
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आकाश में एक साथ दो सूरज देख दंग रह गए लोग
ताईवान। यहां घटी एक घटना ने लोगों को दंग कर दिया। पेंगू आइलैंड में लोगों ने एकसाथ दो सूरज देखा। इंटरनेट पर इस घटना की तस्वीर आते ही चारों ओर इसकी चर्चा शुरु हो गई है।
यहां के मूल निवासियों का कहना है कि ये ग्लोबल वार्मिंग का संकेत है जो इस बात की ओर साफ इशारा है कि धरती का अंत जल्द ही होने वाला है। जबकि वहां के मौसम विभाग का कहना है कि ये सनडॉग फिनॉमिना की देन है।
दरअसल इस स्थिति में बर्फ से रिफलेक्शन के कारण ऐसा आभास होता है कि एक साथ दो सूरज उग आए हैं। हालांकि इस तरह की घटना अपने आप में बेहद दुर्लभ है
ताईवान। यहां घटी एक घटना ने लोगों को दंग कर दिया। पेंगू आइलैंड में लोगों ने एकसाथ दो सूरज देखा। इंटरनेट पर इस घटना की तस्वीर आते ही चारों ओर इसकी चर्चा शुरु हो गई है।
यहां के मूल निवासियों का कहना है कि ये ग्लोबल वार्मिंग का संकेत है जो इस बात की ओर साफ इशारा है कि धरती का अंत जल्द ही होने वाला है। जबकि वहां के मौसम विभाग का कहना है कि ये सनडॉग फिनॉमिना की देन है।
दरअसल इस स्थिति में बर्फ से रिफलेक्शन के कारण ऐसा आभास होता है कि एक साथ दो सूरज उग आए हैं। हालांकि इस तरह की घटना अपने आप में बेहद दुर्लभ है
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शिव की अद्भुत महिमा देखने उमड़ी भीड़
पकरीबरावां (नवादा) निज प्रतिनिधि : प्रखंड के एरूरी पंचायत की रेवार गांव के शिव मंदिर में अद्भुत चमत्कार देखने के लिये लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। शुक्रवार की दोपहर 12 बजे मंदिर के निकट अवस्थित विद्यालय की छात्रा कन्या कुमारी, रोशनी कुमारी को अ*र्द्धनिर्मित मंदिर में स्थापित शिवलिंग में शंकर भगवान की आकृति दिखने लगी। छात्रा ने इसकी सूचना गांव के लोगों को दी। गांव में आग की तरह इस अद्भुत चमत्कार की बात फैल गयी। बस क्या था इर्द-गिर्द के गांव के लोग भी धीरे-धीरे जमा होने लगे। और श्रद्धालुओं ने शिव मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू कर दी। मंदिर में उपस्थित सुनैना देवी, ममता देवी, राज किशोरी देवी आदि के द्वारा भक्ति गीतों से मंदिर गुंजायमान होने लगी। ग्रामीण सुभाष प्रसाद सिंह, नवलेश कुमार, रामशरण सिंह ने बताया कि यह शिवलिंग सैकड़ों वर्ष पूर्व की है। वो भी स्वयं प्रकट शिवलिंग हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने वालों की मन्नतें भी पूरी होती है।:
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पकरीबरावां (नवादा) निज प्रतिनिधि : प्रखंड के एरूरी पंचायत की रेवार गांव के शिव मंदिर में अद्भुत चमत्कार देखने के लिये लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। शुक्रवार की दोपहर 12 बजे मंदिर के निकट अवस्थित विद्यालय की छात्रा कन्या कुमारी, रोशनी कुमारी को अ*र्द्धनिर्मित मंदिर में स्थापित शिवलिंग में शंकर भगवान की आकृति दिखने लगी। छात्रा ने इसकी सूचना गांव के लोगों को दी। गांव में आग की तरह इस अद्भुत चमत्कार की बात फैल गयी। बस क्या था इर्द-गिर्द के गांव के लोग भी धीरे-धीरे जमा होने लगे। और श्रद्धालुओं ने शिव मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू कर दी। मंदिर में उपस्थित सुनैना देवी, ममता देवी, राज किशोरी देवी आदि के द्वारा भक्ति गीतों से मंदिर गुंजायमान होने लगी। ग्रामीण सुभाष प्रसाद सिंह, नवलेश कुमार, रामशरण सिंह ने बताया कि यह शिवलिंग सैकड़ों वर्ष पूर्व की है। वो भी स्वयं प्रकट शिवलिंग हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने वालों की मन्नतें भी पूरी होती है।:
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खौफनाक इलाका जहां उठती हैं लपटें, रुकती हैं घड़ियां
मॉस्को. रूस के उराल क्षेत्र में स्थित पर्म नामक स्थान (ऍम ज़ोन)विचित्र रहस्यों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि एकेतेरिनाबर्ग से करीब 280 किलोमीटर दूर स्थित पर्म क्षेत्र में दूसरे ग्रहों से आए अंतरिक्ष यान उतरते रहते हैं।
इस स्थान पर कई उड़न तश्तरियों को देखा गया है। इस जगह का दौरा करने वाले हर व्यक्ति को कुछ अज्ञात, रहस्यपूर्ण और चमत्कारिक शक्तियों की उपस्थिति महसूस होती है। इस स्थान पर कुछ रहस्यमयी आवाजें सुनाईं देती हैं, जिनके स्रोत का कभी पता नहीं लगाया जा सका। कई मामलों में रूस का बरमूडा त्रिकोण कहे जाने वाले पर्म जोन में आने वाले बीमार लोग बिना किसी इलाज के ठीक हो गए।
दुनिया की निगाह में पर्म सबसे पहले वर्ष 1989 में आया। मोलेब्का और कामेंका गांवों के बीच सिल्वा नदी के किनारे फैले करीब 44 वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र के रहस्यों का अभी तक खुलासा नहीं हो सका है। इस इलाके में कई बार अचानक आग की तेज लपटें उठती हैं। माना जाता है कि इस क्षेत्र में धरती के नीचे तेल के भंडार हैं। तेल के ऊपर आने से आग की लपटें उठ सकती हैं। इस वैज्ञानिक कारण को मान लेने के बावजूद यह काफी असामान्य घटना है।
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मॉस्को. रूस के उराल क्षेत्र में स्थित पर्म नामक स्थान (ऍम ज़ोन)विचित्र रहस्यों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि एकेतेरिनाबर्ग से करीब 280 किलोमीटर दूर स्थित पर्म क्षेत्र में दूसरे ग्रहों से आए अंतरिक्ष यान उतरते रहते हैं।
इस स्थान पर कई उड़न तश्तरियों को देखा गया है। इस जगह का दौरा करने वाले हर व्यक्ति को कुछ अज्ञात, रहस्यपूर्ण और चमत्कारिक शक्तियों की उपस्थिति महसूस होती है। इस स्थान पर कुछ रहस्यमयी आवाजें सुनाईं देती हैं, जिनके स्रोत का कभी पता नहीं लगाया जा सका। कई मामलों में रूस का बरमूडा त्रिकोण कहे जाने वाले पर्म जोन में आने वाले बीमार लोग बिना किसी इलाज के ठीक हो गए।
दुनिया की निगाह में पर्म सबसे पहले वर्ष 1989 में आया। मोलेब्का और कामेंका गांवों के बीच सिल्वा नदी के किनारे फैले करीब 44 वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र के रहस्यों का अभी तक खुलासा नहीं हो सका है। इस इलाके में कई बार अचानक आग की तेज लपटें उठती हैं। माना जाता है कि इस क्षेत्र में धरती के नीचे तेल के भंडार हैं। तेल के ऊपर आने से आग की लपटें उठ सकती हैं। इस वैज्ञानिक कारण को मान लेने के बावजूद यह काफी असामान्य घटना है।
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हिमालय के पार रहस्यमयी दुनिया
हिमालय के पार मोलेब्का गांव में सेलफोन केवल कुछ ऊंची पहाड़ियों पर ही काम करता है। लोग केवल स्थानीय ऑपरेटर के माध्यम से ही फोन कर सकते हैं। परंतु वहां २गुणा२ मीटर का एक ऐसा स्थान है जहां खड़े होने पर मोबाइल फोन का नेटवर्क बेहतरीन ढंग से काम करता है।
अचानक ठप्प हो जाती हैं इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां
इस क्षेत्र में कई प्रयोगों के दौरान पाया गया कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अचानक काम करना बंद कर देते हैं। कई पर्यटकों की इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां अचानक बंद हो जाती हैं। कई बार तो घड़ियों के समय में बदलाव की घटनाएं भी सामने आईं। इलाके के रहस्यों में शोध कार्यो के लिए गए वैज्ञानिकों में से कई ने स्वीकार किया कि उनको हर समय लगता था कि कोई उन पर हर समय निगाह रखे हुए है।
:
पर्वत श्रृंखलाओं में हिंडोलनाथ की गुफाओं के विशाल शिलाखंडों पर लंबे अरसे से प्रतिदिन अपने आप अंकित होने वाली सिंदूरमय त्रिशूल आकृतियां आज भी लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है।
हिमालय के पार मोलेब्का गांव में सेलफोन केवल कुछ ऊंची पहाड़ियों पर ही काम करता है। लोग केवल स्थानीय ऑपरेटर के माध्यम से ही फोन कर सकते हैं। परंतु वहां २गुणा२ मीटर का एक ऐसा स्थान है जहां खड़े होने पर मोबाइल फोन का नेटवर्क बेहतरीन ढंग से काम करता है।
अचानक ठप्प हो जाती हैं इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां
इस क्षेत्र में कई प्रयोगों के दौरान पाया गया कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अचानक काम करना बंद कर देते हैं। कई पर्यटकों की इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां अचानक बंद हो जाती हैं। कई बार तो घड़ियों के समय में बदलाव की घटनाएं भी सामने आईं। इलाके के रहस्यों में शोध कार्यो के लिए गए वैज्ञानिकों में से कई ने स्वीकार किया कि उनको हर समय लगता था कि कोई उन पर हर समय निगाह रखे हुए है।
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पर्वत श्रृंखलाओं में हिंडोलनाथ की गुफाओं के विशाल शिलाखंडों पर लंबे अरसे से प्रतिदिन अपने आप अंकित होने वाली सिंदूरमय त्रिशूल आकृतियां आज भी लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है।
इन वीरान गुफाओं की ऊंची चट्टानों पर सिंदूर की त्रिशूल आकृति कब और कैसे
बन जाती है, यह रहस्य तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी खुल नहीं पाया है।
स्थानीय शोधकर्ताओं और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार इन गुफाओं में
नाथ परंपरा के एक संत हिंडोलनाथ प्राचीन काल में तपस्या करते थे। उन्हीं के
नाम पर यह तपस्थली हिंडोलनाथ नाम से प्रसिद्ध हो गई। :tiranga::salut:
The ROYAL "JAAT''
21-04-2011, 12:03 AM
कुछ
विद्वानों का मत है कि इस जगह का हंडिया ग्राम नाम भी उन्हीं के नाम पर
पड़ा है। दो बड़ी चट्टानों के बीच स्थित हिंडोलनाथ की गुफाओं की सबसे रोचक और
चमत्कारिक बात यह है कि इसकी चट्टानों पर ताजे सिंदूर से बनी त्रिशूल की
एक आकृति हमेशा नजर आएगी जैसे कोई अभी उसे बनाकर गया हो।
इन गुफाओं में ताजे सिंदूर की त्रिशूल आकृतियों के साथ त्रिशूल की पुरानी आकृतियां भी दिखाई देती हैं। इससे हैरत होती है और मन में सवाल उठता है कि आखिर इन ऊंची पहाड़ियों में कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो तेल और सिंदूर से रोज त्रिशूल की आकृति बनाएगा। :salut:
पहाड़ियां इतनी दुर्गम हैं और उनकी चढ़ाई इतनी सीधी है कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि कोई आकृति बनाने के लिए उनकी चढ़ाई करेगा और फिर नीचे उतरकर गायब हो जाएगा। इस क्षेत्र के लोगों का कहना है कि लोगों ने रात-रात भर जागकर इस रहस्य का पता लगाने की कोशिश की। लेकिन उनकी सभी कोशिशें बेकार हो गई। देर तक जागने के बाद वे हमेशा नींद में गाफिल हो जाते और जब नींद टूटती तो गुफा की चट्टानों पर उन्हें त्रिशूल की नई आकृति बनी हुई मिलती है।
हंडिया के अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर शोध कार्य कर रहे उत्तम बंसल ने अपनी पुस्तक सिद्धोत्तमा नर्मदा में हिंडोलनाथ गुफा के बारे में लिखा है कि हिंडोलनाथ की इन दुर्गम गुफाओं में जाने पर यहां चट्टानों पर सिंदूर से बने त्रिशूल के ताजे निशान के साथ साथ पुराने सिंदूर के त्रिशूल के निशान भी दिखाई देते हैं। इन ताजे सिंदूर से बने त्रिशूलों की नित नवीन सर्जना का वृत्तांत हमें किसी दैवीयशक्ति की ओर धकेलता है। यह कहा जाता है कि ये निशान रात्रि में स्वयमेव उद्भूत होते हैं तथा इनकी उत्पत्ति के पीछे आध्यात्मिक शक्ति का हाथ है।
इन गुफाओं में ताजे सिंदूर की त्रिशूल आकृतियों के साथ त्रिशूल की पुरानी आकृतियां भी दिखाई देती हैं। इससे हैरत होती है और मन में सवाल उठता है कि आखिर इन ऊंची पहाड़ियों में कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो तेल और सिंदूर से रोज त्रिशूल की आकृति बनाएगा। :salut:
पहाड़ियां इतनी दुर्गम हैं और उनकी चढ़ाई इतनी सीधी है कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि कोई आकृति बनाने के लिए उनकी चढ़ाई करेगा और फिर नीचे उतरकर गायब हो जाएगा। इस क्षेत्र के लोगों का कहना है कि लोगों ने रात-रात भर जागकर इस रहस्य का पता लगाने की कोशिश की। लेकिन उनकी सभी कोशिशें बेकार हो गई। देर तक जागने के बाद वे हमेशा नींद में गाफिल हो जाते और जब नींद टूटती तो गुफा की चट्टानों पर उन्हें त्रिशूल की नई आकृति बनी हुई मिलती है।
हंडिया के अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर शोध कार्य कर रहे उत्तम बंसल ने अपनी पुस्तक सिद्धोत्तमा नर्मदा में हिंडोलनाथ गुफा के बारे में लिखा है कि हिंडोलनाथ की इन दुर्गम गुफाओं में जाने पर यहां चट्टानों पर सिंदूर से बने त्रिशूल के ताजे निशान के साथ साथ पुराने सिंदूर के त्रिशूल के निशान भी दिखाई देते हैं। इन ताजे सिंदूर से बने त्रिशूलों की नित नवीन सर्जना का वृत्तांत हमें किसी दैवीयशक्ति की ओर धकेलता है। यह कहा जाता है कि ये निशान रात्रि में स्वयमेव उद्भूत होते हैं तथा इनकी उत्पत्ति के पीछे आध्यात्मिक शक्ति का हाथ है।
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होशंगाबाद
जिला पुरातत्व संघ के सदस्य रहे क्षेत्र के जाने माने पुरातत्व समीक्षक
जगदीश दुबे ने कहा कि हिंडोलनाथ गुफाओं में सिंदूर से बनी त्रिशूल की ये
आकृतियां किसी अदृश्य सिद्ध पुरुष की साधना के प्रतीक हो सकते हैं। पृथक
रेवांचल प्रांत के पक्षधर एवं जिला स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अशोक
नेगी ने बताया कि वे इन गुफाओं में कई बार गए हैं और वहां ताजे सिंदूर से
बनने वाली आकृतियां सहज ही देखी जा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि इन गुफाओं में जाने पर एक ऐसी विलक्षण अनुभूति होती है, जो किसी शिशु को उसकी मां की गोद में या फिर किसी भक्त को अपने प्रभु की शरण में होती है।
हिंडोलनाथ की गुफाएं इस अबूझे रहस्य के लिए दूर-दूर तक चर्चित है। नर्मदा के इस क्षेत्र में आने वाला कोई भी श्रद्धालु इस अनजाने रहस्य के आकर्षण से बच नहीं पाता है और वह इन्हें एक बार
जरूर देखना चाहता है।
उन्होंने कहा कि इन गुफाओं में जाने पर एक ऐसी विलक्षण अनुभूति होती है, जो किसी शिशु को उसकी मां की गोद में या फिर किसी भक्त को अपने प्रभु की शरण में होती है।
हिंडोलनाथ की गुफाएं इस अबूझे रहस्य के लिए दूर-दूर तक चर्चित है। नर्मदा के इस क्षेत्र में आने वाला कोई भी श्रद्धालु इस अनजाने रहस्य के आकर्षण से बच नहीं पाता है और वह इन्हें एक बार
जरूर देखना चाहता है।
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काल से परे जाने का रहस्य खुलेगा!
वॉशिंगटन,काफी समय से विज्ञान कथाओं का प्रिय विषय रहा काल से परे जाने की यात्रा का रहस्य अब अत्यंत सूक्ष्म कणों के माध्यम से खुलने की संभावना बन गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रहस्य का पर्दा जिनेवा में भूमि के नीचे स्थित लार्ज हाइड्रन कोलाइडर (एलएचसी) में उठ सकता है।
एलएचसी एक भीमकाय वैज्ञानिक उपकरण है, जो पार्टिकल एक्सीलेटर के काम को अंजाम देता है। भौतिकी वैज्ञानिकों ने ‘लांग शॉट’ सिद्धांत में प्रस्ताव किया है कि दुनिया के विशालतम ‘एटम स्मेशर’ का इस्तेमाल टाइम मशीन के रूप में किया जा सकता है। इसके जरिए एक विशेष प्रकार के पदार्थ को गुजरे हुए काल में भेजा जा सकता है।
वॉशिंगटन,काफी समय से विज्ञान कथाओं का प्रिय विषय रहा काल से परे जाने की यात्रा का रहस्य अब अत्यंत सूक्ष्म कणों के माध्यम से खुलने की संभावना बन गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रहस्य का पर्दा जिनेवा में भूमि के नीचे स्थित लार्ज हाइड्रन कोलाइडर (एलएचसी) में उठ सकता है।
एलएचसी एक भीमकाय वैज्ञानिक उपकरण है, जो पार्टिकल एक्सीलेटर के काम को अंजाम देता है। भौतिकी वैज्ञानिकों ने ‘लांग शॉट’ सिद्धांत में प्रस्ताव किया है कि दुनिया के विशालतम ‘एटम स्मेशर’ का इस्तेमाल टाइम मशीन के रूप में किया जा सकता है। इसके जरिए एक विशेष प्रकार के पदार्थ को गुजरे हुए काल में भेजा जा सकता है।
The ROYAL "JAAT''
21-04-2011, 01:57 PM
वैज्ञानिकों
ने इसके लिए एक विधि की रूपरेखा पेश की है। इस विधि के तहत 27 किमी लंबे
एलएचसी का इस्तेमाल अवधारणागत कण को गुजरे हुए काल में भेजने के लिए किया
जा सकता है। इस कण को हिग्स सिंग्लेट कहा जाता है।
लाइव साइंस की खबर के अनुसार फिलहाल तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं। इनमें यह सवाल भी है क्या हिग्स सिंग्लेट का कोई अस्तित्व है भी या नहीं और क्या इसे मशीन में उत्पन्न किया जा सकता है।
वेंडरबिल्ट विश्वविद्यालय के भौतिकी वैज्ञानिक टाम वेइलर ने एक बयान में कहा कि हमारा सिद्धांत लांग शॉट है, लेकिन यह भौतिकी के किसी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता या इसमें प्रयोगगत कोई बाधा नहीं है।
लाइव साइंस की खबर के अनुसार फिलहाल तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं। इनमें यह सवाल भी है क्या हिग्स सिंग्लेट का कोई अस्तित्व है भी या नहीं और क्या इसे मशीन में उत्पन्न किया जा सकता है।
वेंडरबिल्ट विश्वविद्यालय के भौतिकी वैज्ञानिक टाम वेइलर ने एक बयान में कहा कि हमारा सिद्धांत लांग शॉट है, लेकिन यह भौतिकी के किसी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता या इसमें प्रयोगगत कोई बाधा नहीं है।
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वनख!डी महादेव श्रद्धा और गहराई का रहस्य बरकरार
मथुरा। करीब चार सौ वर्ष पूर्व जमीन से प्रकट हुए शिवलिंग रूपी वनखण्डी महादेव के दर्शन मात्र से ही सुखद अनुभूति होती है। इस चमत्कारिक शिवलिंग की जमीन के अंदर गहराई का रहस्य आज तक लोग जान नहीं पाये हैं। सभी की मनोकामनाएं पूरी करने वाले वनखण्डी महादेव लोगों में श्रद्धा व विश्वास का जीता जागता उदाहरण बन गये हैं। जिससे उनके मंदिर पर पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है।
करीब चार सौ वर्ष पूर्व कस्बा सुरीर के समीप घनी झाड़ी थी। जिसमें एक साधू कुटिया बनाकर रहते थे। एक दिन उन्हें कुटिया के समीप जमीन में एक पत्थर सा उभरता दिखाई दिया। जिसे उसने खोदना शुरू किया तो वह शिवलिंग के आकार का निकला जिसे देखकर साधू ने गांव के लोगों को यह बात बताई तो तमाम लोग उसे देखने पहुंचे। जमीन से प्रकट हुई शिवलिंग को गांव के अंदर स्थित मंदिर में स्थापित करने के उद्देश्य से उसे खुदाई कर बाहर निकालने में जुट गये। लेकिन जमीन के काफी अंदर खुदाई के बाद भी शिवलिंग की जब लम्बाई की कोई थाह नहीं मिली तो सभी चकित रह गये और उन्होंने उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर दी।
मथुरा। करीब चार सौ वर्ष पूर्व जमीन से प्रकट हुए शिवलिंग रूपी वनखण्डी महादेव के दर्शन मात्र से ही सुखद अनुभूति होती है। इस चमत्कारिक शिवलिंग की जमीन के अंदर गहराई का रहस्य आज तक लोग जान नहीं पाये हैं। सभी की मनोकामनाएं पूरी करने वाले वनखण्डी महादेव लोगों में श्रद्धा व विश्वास का जीता जागता उदाहरण बन गये हैं। जिससे उनके मंदिर पर पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है।
करीब चार सौ वर्ष पूर्व कस्बा सुरीर के समीप घनी झाड़ी थी। जिसमें एक साधू कुटिया बनाकर रहते थे। एक दिन उन्हें कुटिया के समीप जमीन में एक पत्थर सा उभरता दिखाई दिया। जिसे उसने खोदना शुरू किया तो वह शिवलिंग के आकार का निकला जिसे देखकर साधू ने गांव के लोगों को यह बात बताई तो तमाम लोग उसे देखने पहुंचे। जमीन से प्रकट हुई शिवलिंग को गांव के अंदर स्थित मंदिर में स्थापित करने के उद्देश्य से उसे खुदाई कर बाहर निकालने में जुट गये। लेकिन जमीन के काफी अंदर खुदाई के बाद भी शिवलिंग की जब लम्बाई की कोई थाह नहीं मिली तो सभी चकित रह गये और उन्होंने उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर दी।
लेकिन
इस चमत्कारिक शिवलिंग की जमीन के अंदर की गहराई का रहस्य लोगों में कौतूहल
बना रहा। बाद में इस स्थान पर मंदिर की स्थापना के लिए ग्रामीणों ने पहल
शुरू कर दी। जिससे उस समय सम्पन्न परिवार के बोहरे नैन सुख ने ग्रामीणों के
सहयोग से इस मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर का निर्माण होने के बाद इसके
अंदर शिवलिंग की वनखण्डी महादेव के नाम से लोगो ने पूजा-अर्चना शुरू कर दी।
कुछ ही समय में पूजा-अर्चना करने वाले शिव भक्तों को अहसास होने लगा कि
वनखण्डी महादेव सिद्ध चमत्कारिक हैं। धीरे-धीरे सुरीर तथा आस-पास के लोगों
को वनखण्डी महादेव के चमत्कार के बारे में पता ला तो लोग उनके दर्शनों के
लिए आने शुरू हो गये। मंदिर में विराजमान शिवलिंग में इतना आकर्षण है कि
दर्शन करने के बाद भक्तों को सुखद अनुभूति होने का अहसास होता है। शांत एवं
सौम्य वातावरण में स्थित इस मंदिर में जाते हुए लोग स्वयं ही अपने आप को
वनखण्डी महादेव की गोद में बैठे महसूस करते हैं। प्रमुख ज्योतिषाचार्य पं.
विजय कृष्ण शास्त्री ने वनखण्डी महादेव की महिमा के बारे में बताते हुए कहा
कि उनकी पूजा-अर्चना करने वालों को चमत्कार का अहसास हो जाता है और उनकी
मनोकामनाएं भी पूरी होती है।
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दक्षिणी अफ्रीका के प्रांत उत्तरी ट्रांसवाल में पांडुजी नाम की एक अद्भुत
झील है। इस झील के बारे में कहा जाता है कि इसके पानी को पीने के बाद कोई
जिन्दा नहीं रहा और न ही आज तक कोई वैज्ञानिक इसके पानी का रासायनिक
विश्लेषण ही कर पाया है। मुटाली नामक जिस नदी से इस झील में पानी आता है,
उसके उद्गम स्थल का पता लगाने की भी कोशिशें की गईं। मगर इसके बारे में कोई
जानकारी नहीं मिल सकी। खास बात यह भी है कि इस झील का पानी अजीबो-गरीब
तरीके से ज्वार भाटे की तरह उठता है व गिरता है।
सन् 1947 में हैडरिक नामक एक किसान ने झील में नाव चलाने का प्रयास किया। नाव सहित जैसे ही वह झील के बीचों-बीच पहुंचा, रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। हैडरिक और उसकी नाव का कहीं कोई पता नहीं चल पाया। सन् 1953 में बर्न
सन् 1947 में हैडरिक नामक एक किसान ने झील में नाव चलाने का प्रयास किया। नाव सहित जैसे ही वह झील के बीचों-बीच पहुंचा, रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। हैडरिक और उसकी नाव का कहीं कोई पता नहीं चल पाया। सन् 1953 में बर्न
वैसे
तो साल आते और चले जाते हैं। साल 2011 भी आया है और कुछ महीनों बाद बीत भी
जाएगा लेकिन इससे पहले कि ये साल बीत जाए और आप इस साल की खूबियों से
मरहूम रह जाएं। हम बताने जा रहे कुछ बेहद चौंकाने वाली ऐसी बातें जो इस साल
से जुड़ी हैं.....
१. इस साल में पड़ेंगी चार बिल्कुल अनोखी तारीखें - 1/1/11, 1/11/11, 11/1/11, 11/11/11
बर्न साइड का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था, इसलिए वे खाली हाथ ही लौट पडे। घर पहुंचने पर नौवें दिन बर्न साइड की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आंतों में सूजन आ जाने के कारण बर्न साइड की मौत हुई थी। प्रोफेसर द्वारा एकत्रित झील के समीप उगे पौधों के नमूने भी इतने खराब हो चुके थे कि उनका परीक्षण कर पाना मुमकिन नहीं था।
१. इस साल में पड़ेंगी चार बिल्कुल अनोखी तारीखें - 1/1/11, 1/11/11, 11/1/11, 11/11/11
बर्न साइड का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था, इसलिए वे खाली हाथ ही लौट पडे। घर पहुंचने पर नौवें दिन बर्न साइड की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आंतों में सूजन आ जाने के कारण बर्न साइड की मौत हुई थी। प्रोफेसर द्वारा एकत्रित झील के समीप उगे पौधों के नमूने भी इतने खराब हो चुके थे कि उनका परीक्षण कर पाना मुमकिन नहीं था।
बर्न साइड का जो सहयोगी उनके साथ पांडुजी झील का रहस्य जानने गया था, उनकी मौत के एक हफ्ते बाद पिकनिक मनाने समुद्र में गया। वह एक नाव में बैठकर समुद्र के किनारे से बहुत दूर चला गया। दो दिन बाद समुद्र तट पर उसकी लाश पाई गई। आज तक इस रहस्य का पता नहीं लग पाया है कि उसकी मौत महज एक हादसा थी या खौफनाक पांडुजी झील का अभिशाप। इस अभिशप्त झील के बारे में जानकारी हासिल करने वालों की मौत भी इस झील के रहस्य की तरह ही एक रहस्य बनकर रह गई
हाल ही में ब्रिटेन की एक महिला द्वारा शरीर से चुम्बकत्व शक्ति पैदा करने की घटना सामने आई है l ब्रेंडा एलिसन नाम की यह महिला चुम्बक की तरह धातुओ को अपनी ओर खिंच लेती है l ब्रेंडा के अनुशार उसके शरीर में अन्य लोगो की अपेक्षा ज्यादा इलेक्ट्रो मग्नेटिक फिल्ड उत्पन्न होती है जो छोटे-छोटे लौह धातुओ को अपनी ओर आसानी से खिंच लेती है l यहाँ तक की दराज में रखे पैसो को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है l वह हाई इलेक्ट्रोमैगनेटि� � फील्ड का प्रयोग कर बल्ब जला सकती हैं और कार के अलार्म का ट्रिगर भी दबा सकती हैं l ब्रेंडा अपने बच्चो के खिलोने यहाँ से वहा अपनी चुम्बकीय शक्ति से चला लेती है l डाक्टर के अनुसार अधिक तनाव के कारन उनके शरीर में ऐसा परिवर्तन हुआ है l
इन सुरंगों में आज भी छुपा है गहरा राज
रोम और इटली में दूसरी सदी में शवों को दफनाने के लिए केटाकॉम्ब्स बनाए जाते थे। ये एक तरह से अंडरग्राउंड कब्रिस्तान हुआ करते थे। क्रिश्चन और यहूदी दोनों धर्मो के केटाकॉम्ब वहां पर हैं। जानकारों के अनुसार ये प्रथा चौथी सदी तक चली होगी। फिर भी छठीं और सातवीं शताब्दी में लोग यहां आते थे, ये जानकारी यहां की कलाकृतियों से मिलती है।
इसके बाद इन्हें भुला दिया गया। 1578 में इत्तेफाक से एक केटाकॉम्ब मिला था। इसके बाद एंटोनियो बोसियो ने इनकी खोज में कई दशक लगा दिए थे। उनकी रिसर्च 1632 में रोमा सॉटेरानिया के नाम से छपी थी।
रोम और इटली में दूसरी सदी में शवों को दफनाने के लिए केटाकॉम्ब्स बनाए जाते थे। ये एक तरह से अंडरग्राउंड कब्रिस्तान हुआ करते थे। क्रिश्चन और यहूदी दोनों धर्मो के केटाकॉम्ब वहां पर हैं। जानकारों के अनुसार ये प्रथा चौथी सदी तक चली होगी। फिर भी छठीं और सातवीं शताब्दी में लोग यहां आते थे, ये जानकारी यहां की कलाकृतियों से मिलती है।
इसके बाद इन्हें भुला दिया गया। 1578 में इत्तेफाक से एक केटाकॉम्ब मिला था। इसके बाद एंटोनियो बोसियो ने इनकी खोज में कई दशक लगा दिए थे। उनकी रिसर्च 1632 में रोमा सॉटेरानिया के नाम से छपी थी।
The ROYAL "JAAT''
26-04-2011, 10:30 PM
वे
लोग ऐसी अंडरग्राउंड गुफाएं और सुरंगें क्यों बनाया करते थे। क्या ये उनके
छिपने के स्थान थे या फिर इनका संबंध किसी धार्मिक आयोजन से था। एक और
आश्चर्य की बात यह है कि वेनिस में एक भी केटाकॉम्ब नहीं है। वेनिस पूरी
तरह झीलों का शहर है।
इसलिए वहां शहर से बाहर जमीन के ऊपर चर्च और कब्रिस्तान बनाए गए हैं। वैसे तो अब तक बहुत से केटाकॉम्ब्स खोज लिए गए हैं। फिर भी पब्लिक के लिए सेंट एग्नेस, प्रिससिला, डॉमिटिला, सेंट सेबेस्टिएन और सेंट कैलिक्सटस केटाकॉम्ब ही खोले गए हैं। यहूदियों की इस प्राचीन कला को आर्किओलॉजिस्ट समझ नहीं सके हैं।
इसलिए वहां शहर से बाहर जमीन के ऊपर चर्च और कब्रिस्तान बनाए गए हैं। वैसे तो अब तक बहुत से केटाकॉम्ब्स खोज लिए गए हैं। फिर भी पब्लिक के लिए सेंट एग्नेस, प्रिससिला, डॉमिटिला, सेंट सेबेस्टिएन और सेंट कैलिक्सटस केटाकॉम्ब ही खोले गए हैं। यहूदियों की इस प्राचीन कला को आर्किओलॉजिस्ट समझ नहीं सके हैं।
The ROYAL "JAAT''
26-04-2011, 10:43 PM
बहुत ही अच्छा सूत्र हे दोस्त ऐसे ही गति देते रहे
रेप+++
निशा जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद आगे भी आप इसी तरह मेरा मनोबल बढाये और आप भी कुछ जानकारी हमारे साथ शेयर करें
रेप+++
निशा जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद आगे भी आप इसी तरह मेरा मनोबल बढाये और आप भी कुछ जानकारी हमारे साथ शेयर करें
The ROYAL "JAAT''
26-04-2011, 10:43 PM
अद्भुद सूत्र है
धन्यवाद पहले आप रेपो देना शुरू करे उसके बाद कोई अच्छी सी जानकारी यहाँ पोस्ट करें फिर देखना कितने रेपो मिलेंगे हाँ वादा रहा पहला +रेपो धन्यवाद सहित में दूँगा
धन्यवाद पहले आप रेपो देना शुरू करे उसके बाद कोई अच्छी सी जानकारी यहाँ पोस्ट करें फिर देखना कितने रेपो मिलेंगे हाँ वादा रहा पहला +रेपो धन्यवाद सहित में दूँगा
The ROYAL "JAAT''
26-04-2011, 10:45 PM
बहुत ही अच्छा सूत्र बनाया है
निरंतरता बनाये रखें
मित्र रेपो स्वीकार करो
धन्यवाद दोस्त
निरंतरता बनाये रखें
मित्र रेपो स्वीकार करो
धन्यवाद दोस्त
Krish13
27-04-2011, 05:17 PM
अच्छा सूत्र है +रेपो तो बनता है भाई स्वीकार करै और ऐसे ही अद्भुत जानकारियाँ देते रहे
anita
27-04-2011, 09:59 PM
इंडोनेशिया
के कुछ इलाकों की मान्यता के अनुसार नयाइ रोरो किदुल एक दिव्य शक्ति हैं।
समुद्र की इस देवी के वहां कई नाम हैं और इसको लेकर जावानीस व सुडानीस भाषा
में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक नाम है रतू लाउत सेलातन (दक्षिणी सागर
मतलब हिंद महासागर की रानी), दूसरा नाम है गुस्ती कंगजैंग रतू किदुल और
कंगजैंग रतू अयू कैनकोनो सारी।
समुद्र की इस देवी का निचला हिस्सा जलपरी की तरह या फिर सांप की तरह दिखाया जाता है। कहा जाता है कि ये दिन में कई रूप बदलती हैं। इस सुंदर रानी का घर समुद्रतल में ही कहीं है, जहां से ये हिंद महासागर की हिंसक लहरों पर काबू करती हैं। इन कहानियों में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता।
एक सुडानीस कहानी में इसे देवी कदिता कहा गया है। ये पश्चिमी जावा के पजाजरन राज्य की राजकुमारी थी। राजकुमारी एक बार इस दक्षिणी सागर में आ गई थी और यहां काले जादू में फंस गई थी। एक जादूगरनी ने बदला लेने के लिए ऐसा किया था और राजकुमारी को चर्म रोग लग गया था। राजकुमारी ने समुद्र में छलांग लगाई और वह ठीक हो गई थी।
एक अन्य कहानी में बताया गया है कि एक राजा की सिर्फ एक बेटी थी। अपना सिंहासन किसे सौंपे, इसलिए उसने दूसरी शादी की। दूसरी पत्नी गर्भवती हो गई और उसने शर्त रखी कि राजा उसमें और अपनी बेटी में से किसी एक को चुने। अगर वह बेटी को चुनेगा तो वह महल छोड़ देगी।
अगर पत्नी को चुनेगा तो बेटी बाहर हो जाएगी और उसकी संतान को सिंहासन मिलेगा। इसके बाद राजा ने बेटी को महल से निकालने के लिए जादू से उसे चर्म रोग लगवाया। रोग के कारण बेटी महल में नहीं आ सकती थी। ऐसे में उसे आवाज सुनाई दी कि वह समुद्र में जाएगी तो उसका रोग ठीक हो जाएगा। राजकुमारी ने ऐसा ही किया और फिर कभी दिखाई नहीं दी।
राज है गहरा
इंडोनेशिया में एक जलपरी की कहानियां काफी प्रचलित हैं। नयाइ रोरो किदुल कही जाने वाली इस जलपरी को वहां के लोग समुद्र की देवी मानते हैं। कहते हैं कि वह समुद्र की हिंसक लहरों पर काबू रखती है। लोगों की यह मान्यता कितनी सच्ची है, ये कभी साबित नहीं हुआ है।
समुद्र की इस देवी का निचला हिस्सा जलपरी की तरह या फिर सांप की तरह दिखाया जाता है। कहा जाता है कि ये दिन में कई रूप बदलती हैं। इस सुंदर रानी का घर समुद्रतल में ही कहीं है, जहां से ये हिंद महासागर की हिंसक लहरों पर काबू करती हैं। इन कहानियों में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता।
एक सुडानीस कहानी में इसे देवी कदिता कहा गया है। ये पश्चिमी जावा के पजाजरन राज्य की राजकुमारी थी। राजकुमारी एक बार इस दक्षिणी सागर में आ गई थी और यहां काले जादू में फंस गई थी। एक जादूगरनी ने बदला लेने के लिए ऐसा किया था और राजकुमारी को चर्म रोग लग गया था। राजकुमारी ने समुद्र में छलांग लगाई और वह ठीक हो गई थी।
एक अन्य कहानी में बताया गया है कि एक राजा की सिर्फ एक बेटी थी। अपना सिंहासन किसे सौंपे, इसलिए उसने दूसरी शादी की। दूसरी पत्नी गर्भवती हो गई और उसने शर्त रखी कि राजा उसमें और अपनी बेटी में से किसी एक को चुने। अगर वह बेटी को चुनेगा तो वह महल छोड़ देगी।
अगर पत्नी को चुनेगा तो बेटी बाहर हो जाएगी और उसकी संतान को सिंहासन मिलेगा। इसके बाद राजा ने बेटी को महल से निकालने के लिए जादू से उसे चर्म रोग लगवाया। रोग के कारण बेटी महल में नहीं आ सकती थी। ऐसे में उसे आवाज सुनाई दी कि वह समुद्र में जाएगी तो उसका रोग ठीक हो जाएगा। राजकुमारी ने ऐसा ही किया और फिर कभी दिखाई नहीं दी।
राज है गहरा
इंडोनेशिया में एक जलपरी की कहानियां काफी प्रचलित हैं। नयाइ रोरो किदुल कही जाने वाली इस जलपरी को वहां के लोग समुद्र की देवी मानते हैं। कहते हैं कि वह समुद्र की हिंसक लहरों पर काबू रखती है। लोगों की यह मान्यता कितनी सच्ची है, ये कभी साबित नहीं हुआ है।
anita
27-04-2011, 10:01 PM
आपका बहुत बहुत धन्यवाद , मैं ऐसी कोशिश आगे भी करती रहूंगी
anita
28-04-2011, 09:50 PM
4 करोड़ 70 लाख साल पुराना कंकाल
हो सकता है हमारे सबसे पुराने पुरखों में से एक हो। इस मादा कंकाल का नाम इदा है और यह 4 करोड़ 70 लाख साल पुरानी हो सकती है। इदा को इन दिनों लंदन की नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में दिखाया जा रहा है। यह अब तक मानव इतिहास पर रोशनी डाल सकने वाले मिले सभी कंकालों से करीब 20 गुना पुराना है।
इदा का जो कंकाल मिला है वह तीन फुट का है और वैज्ञानिकों की मानें तो यह सभी जीवों की लक्कड़दादी, पक्कड़दादी है। एक अनुमान के अनुसार इदा की मौत एक झील में हुई थी।
यह कंकाल 1983 में जर्मनी में मिला था। इसे पाने वाले को इसकी अहमियत का पता नहीं था। उसने इसे अपनी दीवाल पर सजा रखा था। 2006 में ओस्लो नैचुरल यूनिवर्सिटी के डॉ. जोरन हुरुम की निगाह इस पर पड़ी तो इसकी जांच शुरू की गई।
उनका कहना है कि यह कंकाल ही मानव उत्पत्ति का असली लिंक है। यह एक विश्व विरासत है। एक अन्य अनुसंधानकर्ता डॉ. जेंस फ्रैंजेन ने इसे दुनिया का असली आश्चर्य बताया है। इसे वह दुनिया के आठ वंडर्स में से एक रखते हैं और कहते हैं: यह कंकाल आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित हालत में है। यह उसी ग्रुप से संबंध रखती है जिससे बाद में बंदर, वनमानुष और इंसान जन्मे।
यह उस दौर की बात है जब जीव जगत अलग-अलग रूपों की शक्ल ले रहा था। इदा की आंखें काफी कुछ इंसानी आंखों की तरह हैं और उसका अंगूठा भी इंसानों से काफी मिलता-जुलता है।
इस बारे में हालांकि अभी कई और शोध की जा रही हैं। लेकिन यह कंकाल उस शोध में काफी मददगार साबित हो सकता है।
हो सकता है हमारे सबसे पुराने पुरखों में से एक हो। इस मादा कंकाल का नाम इदा है और यह 4 करोड़ 70 लाख साल पुरानी हो सकती है। इदा को इन दिनों लंदन की नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में दिखाया जा रहा है। यह अब तक मानव इतिहास पर रोशनी डाल सकने वाले मिले सभी कंकालों से करीब 20 गुना पुराना है।
इदा का जो कंकाल मिला है वह तीन फुट का है और वैज्ञानिकों की मानें तो यह सभी जीवों की लक्कड़दादी, पक्कड़दादी है। एक अनुमान के अनुसार इदा की मौत एक झील में हुई थी।
यह कंकाल 1983 में जर्मनी में मिला था। इसे पाने वाले को इसकी अहमियत का पता नहीं था। उसने इसे अपनी दीवाल पर सजा रखा था। 2006 में ओस्लो नैचुरल यूनिवर्सिटी के डॉ. जोरन हुरुम की निगाह इस पर पड़ी तो इसकी जांच शुरू की गई।
उनका कहना है कि यह कंकाल ही मानव उत्पत्ति का असली लिंक है। यह एक विश्व विरासत है। एक अन्य अनुसंधानकर्ता डॉ. जेंस फ्रैंजेन ने इसे दुनिया का असली आश्चर्य बताया है। इसे वह दुनिया के आठ वंडर्स में से एक रखते हैं और कहते हैं: यह कंकाल आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित हालत में है। यह उसी ग्रुप से संबंध रखती है जिससे बाद में बंदर, वनमानुष और इंसान जन्मे।
यह उस दौर की बात है जब जीव जगत अलग-अलग रूपों की शक्ल ले रहा था। इदा की आंखें काफी कुछ इंसानी आंखों की तरह हैं और उसका अंगूठा भी इंसानों से काफी मिलता-जुलता है।
इस बारे में हालांकि अभी कई और शोध की जा रही हैं। लेकिन यह कंकाल उस शोध में काफी मददगार साबित हो सकता है।
anita
28-04-2011, 09:56 PM
साल
के चौथे महीने का पहला दिन। माना जाता है कि इस दिन आपके मजाक को दूसरे
हजम कर ही लेंगे। हालांकि मजाक दूसरे को पसंद आ ही जाए, इसकी गारंटी नहीं
पर इतनी उम्मीद की जाती है कि सामने वाला एप्रिल फूल बनने या उससे बचने के
लिए तैयार रहेगा। एप्रिल फूल मनाने का रिवाज दुनिया में कितना पुराना है,
यह आप एप्रिल फूल बनाने के इन आइडिया को पढ़कर जान सकते हैं। टाइम मैगजीन
ने इतिहास के ऐसे ही टॉप 5 एप्रिल फूल के किस्से पेश किए हैं।
1976 - जीरो ग्रैविटी
एप्रिल फूल बनाने में ब्रिटिश मीडिया हमेशा से आगे रहा है, शायद इसलिए भी कि ब्रिटिश जनता आसानी से फूल बन भी जाती है। 1 अप्रैल 1976 को बीबीसी रेडियो ने एस्ट्रोनॉमर सर पैट्रिक मूर के हवाले से बताया कि सुबह 9 बजकर 48 मिनट पर जुपिटर और प्लूटो एक सीध में आएंगे। इससे कुछ देर के लिए धरती की ग्रेविटी कम हो जाएगी। इसलिए आप उछल-कूद करके जीरो ग्रेविटी का मजा ले सकते हैं। लोग उछलते-कूदते रहे पर जीरो ग्रेविटी कहीं महसूस नहीं की गई।
1957 - नूडल्स का पेड़
बीबीसी चैनल ने एप्रिल फूल के दिन तीन मिनट की खबर चलाई कि स्विट्जरलैंड के स्फैगेटी (नूडल्स) ट्री से बड़ी मात्रा में पैदावार हुई है। इस रिपोर्ट का इतना असर रहा कि लोग फोन करके नूडल्स का पेड़ उगाने के तरीके पूछने लगे। जवाब मिला, एक नूडल को टोमैटो सॉस में डुबोकर रखें और पेड़ उगने की उम्मीद करें।
2007 - जी-मेल पेपर
जी-मेल अपने यूजर्स को ई मेल डिलीट करने के बजाय उन्हें आर्काइव में सेव करने की सलाह देता रहता है। पर इस दफा उसने कागज पर प्रिंटेज ईमेल देने का ऐलान किया। बस इसके लिए यूजर को एक डिमांड करनी थी। साथ ही यह दलील भी दी कि प्रिंटिंग के खर्च की भरपाई पेपर के दूसरी ओर छपे ऐड से कमाई करके कर लिया जाएगा।
1992 - रिसर्च निक्सन
'मैंने कभी कुछ गलत नहीं किया और अब मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा।' यह किसी प्रेजिडेंशल कैंपेन के लिए बढ़िया स्लोगन कतई नहीं हो सकता पर ऐसा ही एक मजाक प्रेजिडेंशल कैंडिडेट रिचर्ड निक्सन के साथ किया गया। रेडियो नेटवर्क के टॉक ऑफ द नेशन प्रोग्राम में कॉमिडियन और निक्सन के नकलची रिच लिटिल और रेडियो नेटवर्क के जॉन हॉकेनबरी ने मिलकर यह स्लोगन बनाकर ऑन एयर किया। गुस्साए श्रोताओं ने निक्सन को सपोर्ट न करने तक का ऐलान कर दिया था।
1962 - ब्लैक एंड वाइट से कलर
1966 तक कलर टीवी बहुतायत में नहीं थे। पर मजाक का शिकार बने स्वीडनवानियों ने नायलॉन के मोजे से ब्लैक एंड वाइट टीवी की स्क्रीन को कलर करने की कोशिश की। असल में स्वीडन के स्वेरिग्ज टीवी ने कथित टेक्निकल एक्सपर्ट के हवाले से दर्शकों को बताया कि नायलॉन की जुराब को टीवी स्क्रीन के सामने पतला कर खींचें इससे लाइट वेवलेंथ मुड़ेंगी और स्क्रीन पर रंगीन तस्वीरें दिखेंगी।
1976 - जीरो ग्रैविटी
एप्रिल फूल बनाने में ब्रिटिश मीडिया हमेशा से आगे रहा है, शायद इसलिए भी कि ब्रिटिश जनता आसानी से फूल बन भी जाती है। 1 अप्रैल 1976 को बीबीसी रेडियो ने एस्ट्रोनॉमर सर पैट्रिक मूर के हवाले से बताया कि सुबह 9 बजकर 48 मिनट पर जुपिटर और प्लूटो एक सीध में आएंगे। इससे कुछ देर के लिए धरती की ग्रेविटी कम हो जाएगी। इसलिए आप उछल-कूद करके जीरो ग्रेविटी का मजा ले सकते हैं। लोग उछलते-कूदते रहे पर जीरो ग्रेविटी कहीं महसूस नहीं की गई।
1957 - नूडल्स का पेड़
बीबीसी चैनल ने एप्रिल फूल के दिन तीन मिनट की खबर चलाई कि स्विट्जरलैंड के स्फैगेटी (नूडल्स) ट्री से बड़ी मात्रा में पैदावार हुई है। इस रिपोर्ट का इतना असर रहा कि लोग फोन करके नूडल्स का पेड़ उगाने के तरीके पूछने लगे। जवाब मिला, एक नूडल को टोमैटो सॉस में डुबोकर रखें और पेड़ उगने की उम्मीद करें।
2007 - जी-मेल पेपर
जी-मेल अपने यूजर्स को ई मेल डिलीट करने के बजाय उन्हें आर्काइव में सेव करने की सलाह देता रहता है। पर इस दफा उसने कागज पर प्रिंटेज ईमेल देने का ऐलान किया। बस इसके लिए यूजर को एक डिमांड करनी थी। साथ ही यह दलील भी दी कि प्रिंटिंग के खर्च की भरपाई पेपर के दूसरी ओर छपे ऐड से कमाई करके कर लिया जाएगा।
1992 - रिसर्च निक्सन
'मैंने कभी कुछ गलत नहीं किया और अब मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा।' यह किसी प्रेजिडेंशल कैंपेन के लिए बढ़िया स्लोगन कतई नहीं हो सकता पर ऐसा ही एक मजाक प्रेजिडेंशल कैंडिडेट रिचर्ड निक्सन के साथ किया गया। रेडियो नेटवर्क के टॉक ऑफ द नेशन प्रोग्राम में कॉमिडियन और निक्सन के नकलची रिच लिटिल और रेडियो नेटवर्क के जॉन हॉकेनबरी ने मिलकर यह स्लोगन बनाकर ऑन एयर किया। गुस्साए श्रोताओं ने निक्सन को सपोर्ट न करने तक का ऐलान कर दिया था।
1962 - ब्लैक एंड वाइट से कलर
1966 तक कलर टीवी बहुतायत में नहीं थे। पर मजाक का शिकार बने स्वीडनवानियों ने नायलॉन के मोजे से ब्लैक एंड वाइट टीवी की स्क्रीन को कलर करने की कोशिश की। असल में स्वीडन के स्वेरिग्ज टीवी ने कथित टेक्निकल एक्सपर्ट के हवाले से दर्शकों को बताया कि नायलॉन की जुराब को टीवी स्क्रीन के सामने पतला कर खींचें इससे लाइट वेवलेंथ मुड़ेंगी और स्क्रीन पर रंगीन तस्वीरें दिखेंगी।
anita
28-04-2011, 09:59 PM
ब्रिटेन
में बच्चों के जन्म का एक बड़ा ही रोचक मामला सामने आया है। यहां सात
पड़ोसी महिलाओं ने करीब सात हफ्तों के अंतराल पर अपने बच्चों को जन्म दिया।
ये सातों मां इन दिनों अपने बच्चों के पहला जन्मदिन मना रही हैं।
साउथ वेल्स के मिस्किन इलाके में रहने वाली इन महिलाओं ने एक ही अस्पताल में अपने बच्चों को जन्म दिया। ये सभी मिस्किन में एक कतार से बने घरों में रहती हैं। 34 वर्षीया निया एडव*र्ड्स ने पिछले साल 10 अप्रैल को सबसे पहले जुड़वां बच्चियों को जन्म दिया। फिर एक के बाद एक उनकी शेष पड़ोसन अगले छह हफ्तों में मां बनीं।
इन महिलाओं में से एक क्रिस्टी डेविस का कहना है कि यह बहुत ही अनोखा और मजेदार अनुभव रहा कि हम सभी लगभग एक साथ गर्भवती हुई। बेटी को जन्म देने वाली क्रिस्टी ने बताया कि जब हमें पता लगा कि हम सभी लगभग एक साथ बच्चों को जन्म देंगी, तो एक महिला ने इस खुशी में अपने घर पर पार्टी रखी। वहां हमने खूब मस्ती की।
क्रिस्टी के अनुसार, अब हम सभी हफ्ते में एक बार पार्क में इकट्ठा होती हैं। फिर हम साथ में कॉफी पीते हैं। इस बीच में हमारे बच्चों को भी एक-दूसरे के साथ खेलने का मौका मिल जाता है। सभी बच्चों को एक साथ बड़े होते देखना बड़ा ही मजेदार है। जब हम सभी एक के बाद एक अस्पताल में भर्ती हुईं, तो वहां डॉक्टर और आया हमें देखकर चौंक गए
साउथ वेल्स के मिस्किन इलाके में रहने वाली इन महिलाओं ने एक ही अस्पताल में अपने बच्चों को जन्म दिया। ये सभी मिस्किन में एक कतार से बने घरों में रहती हैं। 34 वर्षीया निया एडव*र्ड्स ने पिछले साल 10 अप्रैल को सबसे पहले जुड़वां बच्चियों को जन्म दिया। फिर एक के बाद एक उनकी शेष पड़ोसन अगले छह हफ्तों में मां बनीं।
इन महिलाओं में से एक क्रिस्टी डेविस का कहना है कि यह बहुत ही अनोखा और मजेदार अनुभव रहा कि हम सभी लगभग एक साथ गर्भवती हुई। बेटी को जन्म देने वाली क्रिस्टी ने बताया कि जब हमें पता लगा कि हम सभी लगभग एक साथ बच्चों को जन्म देंगी, तो एक महिला ने इस खुशी में अपने घर पर पार्टी रखी। वहां हमने खूब मस्ती की।
क्रिस्टी के अनुसार, अब हम सभी हफ्ते में एक बार पार्क में इकट्ठा होती हैं। फिर हम साथ में कॉफी पीते हैं। इस बीच में हमारे बच्चों को भी एक-दूसरे के साथ खेलने का मौका मिल जाता है। सभी बच्चों को एक साथ बड़े होते देखना बड़ा ही मजेदार है। जब हम सभी एक के बाद एक अस्पताल में भर्ती हुईं, तो वहां डॉक्टर और आया हमें देखकर चौंक गए
anita
28-04-2011, 10:03 PM
उरई।
जवानी की दहलीज पर खड़े उस किशोर ने अपने गांव को बाढ़ से बर्बाद होते
देखा। आंखों में कैद उस विभीषिका ने उसे चैन से सोने नहीं दिया। उससे रहा
नहीं गया। फिर क्या था नदी की धारा मोड़ने का बीड़ा उठा लिया। अपने इस
संकल्प यज्ञ में उसने अपनी जमींदारी तो क्या पूरा जीवन, परिवार और शान ओ
शौकत सब होम कर दिया। पहाड़ का सीना चीर कर नदी की धारा मोड़ दी। गांव तो
बचा लिया, लेकिन उसकी अपनी पूरी जवानी समय की बाढ़ में बह गई।
त्याग और बलिदान की यह यशस्वी गाथा है उरई के गांव उररकरा खुर्द के 90 वर्षीय राजाराम पाठक की। समंदर से बड़े दिल और हिमालय से ऊंचे इरादे वाले इस शख्स को देखकर एकबारगी यकीन ही नहीं होता। पहनने को कपड़े नहीं, गढ़ी [महलनुमा घर] खंडहर हो चुका है और परिवार के साथ टूटे-फूटे कच्चे घर में रह रहे हैं। इसके बाद भी हौसला और सोच तो देखिए कि राजाराम कहते हैं कि वास्तव में गांव को नदी की बाढ़ से बचाकर बरबाद नहीं, धन्य हुए हैं हम।
साल याद नहीं, लेकिन नून नदी की बाढ़ से तबाही का मंजर उन्हें आज भी याद है। बाढ़ सारे घरों को बहा ले गई थी। जमींदार घर के राजाराम की गढ़ी एक ऊंचे टीले पर थी, लिहाजा उन्हें खास फर्क नहीं पड़ा। इसके बावजूद प्रजा समान गांव वालों की बर्बादी उनसे देखी न गई। इस विनाश की वजह तलाशने में जुटे राजाराम ने पाया कि यदि बीच में खड़ा पहाड़ नदी का रास्ता न रोकता तो पानी गांव में निचली बस्ती में घुसने के बजाय सीधा निकल सकता था। बस फिर क्या था, खुद कुदाल लेकर पहाड़ काटने में महीनों जुटे रहे। फिर अपने खर्चे पर मजदूर भी लगा लिए।
आखिर तीन वर्ष में उन्होंने नदी के बहाव को सीधा कर दिया, लेकिन अपना साध्य इतने पर ही पूरा नहीं माना। गांव की बस्ती को ऊंचाई पर बसाने के लिए अपनी गढ़ी के पास जगह दी व खाली हुए नदी के कंकरीले क्षेत्र को खेतों के रूप में विकसित करने के लिए पूरी कगार काटकर मिट्टी बिछानी शुरू कर दी। 20 वर्ष तक अपनी खेती और सारे काम बंद कर राजाराम इसी में जुटे रहे। 100 बीघा का चक तैयार करने के बाद गढ़ी से वहां तक उतरने के लिए उन्होंने अपनी मेहनत से चौड़ा रास्ता भी बनाया। इस बीच उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों की खातिर अपनी तमाम खेती बेचनी पड़ी। इसके बाद चकबंदी हुई तो खेतों पर उनके बजाय गांव समाज का मालिकाना माना गया, पर इन खेतों के प्रति लगाव के चलते राजाराम ने इनके बदले में अपनी असली खेती छोड़ दी। उनके हिस्से में पांच बेटों के बीच मात्र 25 बीघा जमीन आई। इससे खिन्न तीन बेटे उनका साथ छोड़ गए। अब गांव में उनके साथ केवल दो बेटे रहते हैं। मगर राजाराम को जिंदगी से कोई शिकवा नहीं, बल्कि फº है समाज और गांव के कुछ काम आने का
त्याग और बलिदान की यह यशस्वी गाथा है उरई के गांव उररकरा खुर्द के 90 वर्षीय राजाराम पाठक की। समंदर से बड़े दिल और हिमालय से ऊंचे इरादे वाले इस शख्स को देखकर एकबारगी यकीन ही नहीं होता। पहनने को कपड़े नहीं, गढ़ी [महलनुमा घर] खंडहर हो चुका है और परिवार के साथ टूटे-फूटे कच्चे घर में रह रहे हैं। इसके बाद भी हौसला और सोच तो देखिए कि राजाराम कहते हैं कि वास्तव में गांव को नदी की बाढ़ से बचाकर बरबाद नहीं, धन्य हुए हैं हम।
साल याद नहीं, लेकिन नून नदी की बाढ़ से तबाही का मंजर उन्हें आज भी याद है। बाढ़ सारे घरों को बहा ले गई थी। जमींदार घर के राजाराम की गढ़ी एक ऊंचे टीले पर थी, लिहाजा उन्हें खास फर्क नहीं पड़ा। इसके बावजूद प्रजा समान गांव वालों की बर्बादी उनसे देखी न गई। इस विनाश की वजह तलाशने में जुटे राजाराम ने पाया कि यदि बीच में खड़ा पहाड़ नदी का रास्ता न रोकता तो पानी गांव में निचली बस्ती में घुसने के बजाय सीधा निकल सकता था। बस फिर क्या था, खुद कुदाल लेकर पहाड़ काटने में महीनों जुटे रहे। फिर अपने खर्चे पर मजदूर भी लगा लिए।
आखिर तीन वर्ष में उन्होंने नदी के बहाव को सीधा कर दिया, लेकिन अपना साध्य इतने पर ही पूरा नहीं माना। गांव की बस्ती को ऊंचाई पर बसाने के लिए अपनी गढ़ी के पास जगह दी व खाली हुए नदी के कंकरीले क्षेत्र को खेतों के रूप में विकसित करने के लिए पूरी कगार काटकर मिट्टी बिछानी शुरू कर दी। 20 वर्ष तक अपनी खेती और सारे काम बंद कर राजाराम इसी में जुटे रहे। 100 बीघा का चक तैयार करने के बाद गढ़ी से वहां तक उतरने के लिए उन्होंने अपनी मेहनत से चौड़ा रास्ता भी बनाया। इस बीच उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों की खातिर अपनी तमाम खेती बेचनी पड़ी। इसके बाद चकबंदी हुई तो खेतों पर उनके बजाय गांव समाज का मालिकाना माना गया, पर इन खेतों के प्रति लगाव के चलते राजाराम ने इनके बदले में अपनी असली खेती छोड़ दी। उनके हिस्से में पांच बेटों के बीच मात्र 25 बीघा जमीन आई। इससे खिन्न तीन बेटे उनका साथ छोड़ गए। अब गांव में उनके साथ केवल दो बेटे रहते हैं। मगर राजाराम को जिंदगी से कोई शिकवा नहीं, बल्कि फº है समाज और गांव के कुछ काम आने का
anita
28-04-2011, 10:05 PM
लंदन।
ब्रिटेन में जुड़वां बच्चों की एक दुर्लभ घटना सामने आई है। यहां हाल ही
में एक दंपती के जुड़वां बेटियां पैदा हुई हैं। खास बात यह है कि कुछ साल
पहले इसी तारीख पर उनके घर में जुड़वां बेटे पैदा हुए थे। ऐसा 1.7 करोड़
मौकों में एक बारऐसा हो सकता है।
गेट्सहैड में रहने वाले इस दंपती का नाम ट्रेसी और डेवू बेगबान है। ट्रेसी ने इस साल 27 फरवरी को अपनी जुड़वां बेटियों डॉल्सी और एलिसिया को जन्म दिया। तीन साल पहले इसी तारीख को उनके जुड़वां बेटे हुए थे। दोनों बार ही बच्चों का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से हुआ। इस परिवार का नाम गिनीज बुक ऑफ व*र्ल्ड रिकॉ*र्ड्स में दर्ज हो गया है। ब्रिटेन में दो बार जुड़वां बच्चों को एक ही तारीख पर जन्म देने वाला यह पहला परिवार है।
मनोविज्ञान के छात्र रह चुके डेवू अपने बच्चों को लेकर बहुत रोमांचित हैं। उन्होंने कहा कि वाकई में यह बहुत ही शानदार अनुभव है। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि भगवान ने मुझे चार प्यारे-प्यारे बच्चे दिए।
ब्रिटेन में जन्म लेने वाले सभी जुड़वां बच्चों की गणना करने के बाद इस दुर्लभ घटना का आकलन किया गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के चलते जुड़वां बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मगर केवल 30 प्रतिशत जुड़वां बच्चों की शक्ल एक जैसी होती है। उस पर एक ही परिवार में एक ही तिथि पर दो बार जुड़वां बच्चों का पैदा होना वाकई में दुर्लभ है
गेट्सहैड में रहने वाले इस दंपती का नाम ट्रेसी और डेवू बेगबान है। ट्रेसी ने इस साल 27 फरवरी को अपनी जुड़वां बेटियों डॉल्सी और एलिसिया को जन्म दिया। तीन साल पहले इसी तारीख को उनके जुड़वां बेटे हुए थे। दोनों बार ही बच्चों का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से हुआ। इस परिवार का नाम गिनीज बुक ऑफ व*र्ल्ड रिकॉ*र्ड्स में दर्ज हो गया है। ब्रिटेन में दो बार जुड़वां बच्चों को एक ही तारीख पर जन्म देने वाला यह पहला परिवार है।
मनोविज्ञान के छात्र रह चुके डेवू अपने बच्चों को लेकर बहुत रोमांचित हैं। उन्होंने कहा कि वाकई में यह बहुत ही शानदार अनुभव है। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि भगवान ने मुझे चार प्यारे-प्यारे बच्चे दिए।
ब्रिटेन में जन्म लेने वाले सभी जुड़वां बच्चों की गणना करने के बाद इस दुर्लभ घटना का आकलन किया गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के चलते जुड़वां बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मगर केवल 30 प्रतिशत जुड़वां बच्चों की शक्ल एक जैसी होती है। उस पर एक ही परिवार में एक ही तिथि पर दो बार जुड़वां बच्चों का पैदा होना वाकई में दुर्लभ है
B.Rahi
29-04-2011, 11:20 AM
बहुत ज्ञानवर्धक सुत्र हैँ मित्र
The ROYAL "JAAT''
29-04-2011, 11:54 AM
इंडोनेशिया
के कुछ इलाकों की मान्यता के अनुसार नयाइ रोरो किदुल एक दिव्य शक्ति हैं।
समुद्र की इस देवी के वहां कई नाम हैं और इसको लेकर जावानीस व सुडानीस भाषा
में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक नाम है रतू लाउत सेलातन (दक्षिणी सागर
मतलब हिंद महासागर की रानी), दूसरा नाम है गुस्ती कंगजैंग रतू किदुल और
कंगजैंग रतू अयू कैनकोनो सारी।
समुद्र की इस देवी का निचला हिस्सा जलपरी की तरह या फिर सांप की तरह दिखाया जाता है। कहा जाता है कि ये दिन में कई रूप बदलती हैं। इस सुंदर रानी का घर समुद्रतल में ही कहीं है, जहां से ये हिंद महासागर की हिंसक लहरों पर काबू करती हैं। इन कहानियों में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता।
एक सुडानीस कहानी में इसे देवी कदिता कहा गया है। ये पश्चिमी जावा के पजाजरन राज्य की राजकुमारी थी। राजकुमारी एक बार इस दक्षिणी सागर में आ गई थी और यहां काले जादू में फंस गई थी। एक जादूगरनी ने बदला लेने के लिए ऐसा किया था और राजकुमारी को चर्म रोग लग गया था। राजकुमारी ने समुद्र में छलांग लगाई और वह ठीक हो गई थी।
एक अन्य कहानी में बताया गया है कि एक राजा की सिर्फ एक बेटी थी। अपना सिंहासन किसे सौंपे, इसलिए उसने दूसरी शादी की। दूसरी पत्नी गर्भवती हो गई और उसने शर्त रखी कि राजा उसमें और अपनी बेटी में से किसी एक को चुने। अगर वह बेटी को चुनेगा तो वह महल छोड़ देगी।
अगर पत्नी को चुनेगा तो बेटी बाहर हो जाएगी और उसकी संतान को सिंहासन मिलेगा। इसके बाद राजा ने बेटी को महल से निकालने के लिए जादू से उसे चर्म रोग लगवाया। रोग के कारण बेटी महल में नहीं आ सकती थी। ऐसे में उसे आवाज सुनाई दी कि वह समुद्र में जाएगी तो उसका रोग ठीक हो जाएगा। राजकुमारी ने ऐसा ही किया और फिर कभी दिखाई नहीं दी।
3,900 पाउंड यानी 2 लाख 82 हजार रुपये हो। नहीं ना लेकिन अमेरिका में तो एक ऐसा टॉयलेट बन भी गया है। जी हां, अमेरिकी कंपनी कोहेलर ने इतनी कीमत से एक टॉयलेट तैयार किया है, जिसे नुमी नाम दिया है।
समुद्र की इस देवी का निचला हिस्सा जलपरी की तरह या फिर सांप की तरह दिखाया जाता है। कहा जाता है कि ये दिन में कई रूप बदलती हैं। इस सुंदर रानी का घर समुद्रतल में ही कहीं है, जहां से ये हिंद महासागर की हिंसक लहरों पर काबू करती हैं। इन कहानियों में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता।
एक सुडानीस कहानी में इसे देवी कदिता कहा गया है। ये पश्चिमी जावा के पजाजरन राज्य की राजकुमारी थी। राजकुमारी एक बार इस दक्षिणी सागर में आ गई थी और यहां काले जादू में फंस गई थी। एक जादूगरनी ने बदला लेने के लिए ऐसा किया था और राजकुमारी को चर्म रोग लग गया था। राजकुमारी ने समुद्र में छलांग लगाई और वह ठीक हो गई थी।
एक अन्य कहानी में बताया गया है कि एक राजा की सिर्फ एक बेटी थी। अपना सिंहासन किसे सौंपे, इसलिए उसने दूसरी शादी की। दूसरी पत्नी गर्भवती हो गई और उसने शर्त रखी कि राजा उसमें और अपनी बेटी में से किसी एक को चुने। अगर वह बेटी को चुनेगा तो वह महल छोड़ देगी।
अगर पत्नी को चुनेगा तो बेटी बाहर हो जाएगी और उसकी संतान को सिंहासन मिलेगा। इसके बाद राजा ने बेटी को महल से निकालने के लिए जादू से उसे चर्म रोग लगवाया। रोग के कारण बेटी महल में नहीं आ सकती थी। ऐसे में उसे आवाज सुनाई दी कि वह समुद्र में जाएगी तो उसका रोग ठीक हो जाएगा। राजकुमारी ने ऐसा ही किया और फिर कभी दिखाई नहीं दी।
3,900 पाउंड यानी 2 लाख 82 हजार रुपये हो। नहीं ना लेकिन अमेरिका में तो एक ऐसा टॉयलेट बन भी गया है। जी हां, अमेरिकी कंपनी कोहेलर ने इतनी कीमत से एक टॉयलेट तैयार किया है, जिसे नुमी नाम दिया है।
इस बेशकीमती शौचालय में एक टचस्क्रीन कंप्यूटर पैनल और साउंड सिस्टम लगाया गया है। इस साउंड सिस्टम की मदद से लोगों को अपना मनपसंद संगीत या एफएम रेडियो सुनने का मौका मिलेगा। इस टॉयलेट में लोग पानी का प्रैशर और तापमान सामान्य कर सकते हैं। इसमें डियोडराइजर भी लगे हैं और यह इको-फ्रेंडली है। हालांकि यह दुनिया का सबसे महंगा शौचालय नहीं है।
The ROYAL "JAAT''
06-05-2011, 06:19 PM
अजयगढ़ किले का रहस्य बरकार
विंध्याचल पर्वत श्रंखला के समतल पर्वत पर स्थित अजयगढ़ का किला आज भी लोगों के लिए रहस्यमय व आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
नरैनी से 47 किमी. दूर यह धरोहर कालींजर से दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह विशाल किला समुद्र तल से 1744 फिट व धरातल से लगभग 860 फिट ऊंचाई पर स्थित है। इस किले का ऊपरी भाग बलुआ पत्थर का है जो अत्यधिक दुर्गम है। यह धरोहर आज भी उपेक्षित है जो नेस्तनाबूत होने की कगार पर पहुंच चुका है। अजयगढ़ का किला चंदेल शासकों के शक्ति का केंद्र रहा है। वास्तुकला, स्थापत्य कला एवं शिल्य की दृष्टि इसकी तुलना खजुराहों की कला शिल्प से की जाती है। इस कारण किले को मदर आफ खजुराहों भी कहा जाता है। लोगों का मानना है कि अजयगढ़ किला का नाम किसी भी अभिलेख में नहीं मिलता है। प्राचीन अभिलेखों में इस दुर्ग का नाम जयपुर मिलता है। किले से प्राप्त अभिलेखों के अनुसार अजयगढ़ का नाम नांदीपुर भी कहा जाता है। कालींजर किला और अजयगढ़ किला के मध्य की दूरी मात्र 25 किमी. है। कालींजर का नाम शिव से अद्भुत बताया जाता है। अजयगढ़ शिव के वाहन नंदी का स्थान भी कहा जाता है। इस कारण इसका नाम नांदीपुर पड़ा।
विंध्याचल पर्वत श्रंखला के समतल पर्वत पर स्थित अजयगढ़ का किला आज भी लोगों के लिए रहस्यमय व आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
नरैनी से 47 किमी. दूर यह धरोहर कालींजर से दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह विशाल किला समुद्र तल से 1744 फिट व धरातल से लगभग 860 फिट ऊंचाई पर स्थित है। इस किले का ऊपरी भाग बलुआ पत्थर का है जो अत्यधिक दुर्गम है। यह धरोहर आज भी उपेक्षित है जो नेस्तनाबूत होने की कगार पर पहुंच चुका है। अजयगढ़ का किला चंदेल शासकों के शक्ति का केंद्र रहा है। वास्तुकला, स्थापत्य कला एवं शिल्य की दृष्टि इसकी तुलना खजुराहों की कला शिल्प से की जाती है। इस कारण किले को मदर आफ खजुराहों भी कहा जाता है। लोगों का मानना है कि अजयगढ़ किला का नाम किसी भी अभिलेख में नहीं मिलता है। प्राचीन अभिलेखों में इस दुर्ग का नाम जयपुर मिलता है। किले से प्राप्त अभिलेखों के अनुसार अजयगढ़ का नाम नांदीपुर भी कहा जाता है। कालींजर किला और अजयगढ़ किला के मध्य की दूरी मात्र 25 किमी. है। कालींजर का नाम शिव से अद्भुत बताया जाता है। अजयगढ़ शिव के वाहन नंदी का स्थान भी कहा जाता है। इस कारण इसका नाम नांदीपुर पड़ा।
The ROYAL "JAAT''
06-05-2011, 06:24 PM
अजयगढ़
किला प्रवेश करते ही दो द्वार मिलते हैं जो एक दरवाजा उत्तर की ओर दूसरा
दरवाजा तरोनी गांव को जाता है जो पर्वत की तलहटी में स्थित है। पहाड़ी में
चढ़ने पर सर्वप्रथम किले का मुख्य दरवाजा आता है। दरवाजे के दायीं ओर दो
जलकुंड स्थित है जो चंदेलशासक राजवीर वर्मन देव की राज महिषी कल्याणी देवी
के द्वारा करवाये गये कुंडों का निर्माण आज भी उल्लेखनीय है। इस दुर्लभ
किले में अनेकों शैलोत्कीर्ण मूर्तियां मिलती हैं जिनमें कार्तिकेय, गणेश,
जैन तीर्थकारों की आसान, मूर्तियां, नंदी, दुग्धपान कराती मां एवं शिशु आदि
मुख्य है। ऊपर चढ़ने पर दायीं ओर चट््टान पर शिवलिंग की मूर्ति है। वहीं
पर किसी भाषा में शिलालेख मौजूद है। जो आज तक कोई भी बुद्घिमान पढ़ नहीं
सका तथा वहीं पर एक विशाल ताला चांबी की आकृति बनी हुयी है जो मूलत: एक
बीजक है जिसमें लोगों का मानना है कि किसी खजाने का रहस्य छिपा है। हजारों
वर्ष बीत गये परंतु दुर्ग के खजाने का रहस्य आज भी बरकरार है। किले के
दक्षिण दिशा की ओर स्थित चार प्रमुख मंदिर आकर्षण के केंद्र है जो चंदेलों
महलों के नाम से जाने जाते हैं जो धराशायी होने की कगार पर हैं। ये मंदिर
देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि खजुराहों व अजयगढ़ का किला एक ही
वास्तुकारों की कृति है। अजयपाल मंदिर से होकर एक भूतेश्वर नामक स्थान है
जहां गुफा के अंदर शिवलिंग की मूर्ति विराजमान है।
चंदेलकाल के समय कालींजर एवं अजयगढ़ के इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है। उसी समय इन दुर्गो की राजनीतिक सामरिक एवं सांस्कृतिक गरिमा प्राप्त हुयी। चंदेलों के आठ ऐतिहासिक किलों में अजयगढ़ भी एक है।
चंदेलकाल के समय कालींजर एवं अजयगढ़ के इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है। उसी समय इन दुर्गो की राजनीतिक सामरिक एवं सांस्कृतिक गरिमा प्राप्त हुयी। चंदेलों के आठ ऐतिहासिक किलों में अजयगढ़ भी एक है।
BHARAT KUMAR
08-05-2011, 06:28 AM
बहुत अच्छा सूत्र है मित्र! जारी रखना!
jaihind20
08-05-2011, 07:34 AM
बहुत ही अछि जानकारी दे रहे हैं आप इसी तरह सूत्र में और रोचक जानकारिया भरते रहे
Mr. laddi
12-05-2011, 11:05 PM
इसी
प्रकार वोह साधु धुनों को बदल -२ कर अलग -२ तरह की स्वर लहरियों को छेड़ता
रहा और एक के बाद एक करके अलग -२ तरह के कई दायरे सांपो के वहाँ पे बनते
चले गये …. और आखिर में उस साधू ने एक अजीब सी धुन छेड़ी ….. उसके फिज़ा में
गूंजते ही सारा वातावरण अजीब और रहस्यमय सा लगने लग गया ….काफी देर के
बाद उस साधु कि मेहनत रंग ले आयी ….उसने दूर से ही देखा कि दो काले रंग के
किंग – कोबरा जैसे सांप अपने फन आपस में जोड़ कर फैलाए हुए एक ही चाल से
चलते चले आ रहे थे ….और मज़े कि बात यह की उनके जुड़े हुए फनों पर बड़े ही
आराम से किसी शहंशाह की माफिक अपना फन फैला कर एक और सांप बैठा हुआ था …..
जिसकी लम्बाई बड़ी ही मुश्किल से दो फुट के करीब रही होगी …… जब वोह सांप
रूपी सम्राट दो सांपो के फनों पे सवार होकर सबसे आखिर वाले सांपो के दायरे
के पास पहुंचा तो उनको बड़े ही अदब से रास्ते में आने वाले सांपो द्वारा
अगल –बगल हटते हुए आगे जाने का रास्ता दे दिया गया …. इसी प्रकार उनसे
आगे के बाकी के दायरे वाले सांप भी उनको रास्ता देते चले गए ….
मित्र ये कथा अधूरी रह गयी लगती है आगे क्या हुआ ये भी तो बताओ
मित्र ये कथा अधूरी रह गयी लगती है आगे क्या हुआ ये भी तो बताओ
The ROYAL "JAAT''
14-05-2011, 12:15 PM
मित्र ये कथा अधूरी रह गयी लगती है आगे क्या हुआ ये भी तो बताओ
लाडी जी माफ करना बिच में कुछ और पोस्ट होने के कारण में इस कहानी का बाकी हिस्सा पोस्ट करना भूल गया मेरी इस भूल की आपसे और मेरे सब दोस्तों से माफ़ी चाहता हूं आपका बहुत २ धन्यवाद की आपने मेरी गलती का अहसास करवाया.. लीजिए इस कहानी का बाकी हिस्सा
लाडी जी माफ करना बिच में कुछ और पोस्ट होने के कारण में इस कहानी का बाकी हिस्सा पोस्ट करना भूल गया मेरी इस भूल की आपसे और मेरे सब दोस्तों से माफ़ी चाहता हूं आपका बहुत २ धन्यवाद की आपने मेरी गलती का अहसास करवाया.. लीजिए इस कहानी का बाकी हिस्सा
The ROYAL "JAAT''
14-05-2011, 12:19 PM
वोह सफेद दाग ! का बाकी हिस्सा
इसी प्रकार वोह साधु धुनों को बदल -२ कर अलग -२ तरह की स्वर लहरियों को छेड़ता रहा और एक के बाद एक करके अलग -२ तरह के कई दायरे सांपो के वहाँ पे बनते चले गये …. और आखिर में उस साधू ने एक अजीब सी धुन छेड़ी ….. उसके फिज़ा में गूंजते ही सारा वातावरण अजीब और रहस्यमय सा लगने लग गया ….काफी देर के बाद उस साधु कि मेहनत रंग ले आयी ….उसने दूर से ही देखा कि दो काले रंग के किंग – कोबरा जैसे सांप अपने फन आपस में जोड़ कर फैलाए हुए एक ही चाल से चलते चले आ रहे थे ….और मज़े कि बात यह की उनके जुड़े हुए फनों पर बड़े ही आराम से किसी शहंशाह की माफिक अपना फन फैला कर एक और सांप बैठा हुआ था ….. जिसकी लम्बाई बड़ी ही मुश्किल से दो फुट के करीब रही होगी …… जब वोह सांप रूपी सम्राट दो सांपो के फनों पे सवार होकर सबसे आखिर वाले सांपो के दायरे के पास पहुंचा तो उनको बड़े ही अदब से रास्ते में आने वाले सांपो द्वारा अगल –बगल हटते हुए आगे जाने का रास्ता दे दिया गया …. इसी प्रकार उनसे आगे के बाकी के दायरे वाले सांप भी उनको रास्ता देते चले गए ….:salut::tiranga:
इसी प्रकार वोह साधु धुनों को बदल -२ कर अलग -२ तरह की स्वर लहरियों को छेड़ता रहा और एक के बाद एक करके अलग -२ तरह के कई दायरे सांपो के वहाँ पे बनते चले गये …. और आखिर में उस साधू ने एक अजीब सी धुन छेड़ी ….. उसके फिज़ा में गूंजते ही सारा वातावरण अजीब और रहस्यमय सा लगने लग गया ….काफी देर के बाद उस साधु कि मेहनत रंग ले आयी ….उसने दूर से ही देखा कि दो काले रंग के किंग – कोबरा जैसे सांप अपने फन आपस में जोड़ कर फैलाए हुए एक ही चाल से चलते चले आ रहे थे ….और मज़े कि बात यह की उनके जुड़े हुए फनों पर बड़े ही आराम से किसी शहंशाह की माफिक अपना फन फैला कर एक और सांप बैठा हुआ था ….. जिसकी लम्बाई बड़ी ही मुश्किल से दो फुट के करीब रही होगी …… जब वोह सांप रूपी सम्राट दो सांपो के फनों पे सवार होकर सबसे आखिर वाले सांपो के दायरे के पास पहुंचा तो उनको बड़े ही अदब से रास्ते में आने वाले सांपो द्वारा अगल –बगल हटते हुए आगे जाने का रास्ता दे दिया गया …. इसी प्रकार उनसे आगे के बाकी के दायरे वाले सांप भी उनको रास्ता देते चले गए ….:salut::tiranga:
The ROYAL "JAAT''
14-05-2011, 12:21 PM
जब
सांपो के आखरी घेरे को उन्होंने पार किया तो वोह लाल रंग का सम्राट उन दो
सांपो के फनों से उतर कर उन साधू महाराज के बिलकुल ही पास पहुँच गया …..
उधर – ऊपर पेड़ पर चढ़े हुए उस आदमी की हालत का आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते
है … बस गनीमत यह थी कि उस का हार्ट फेल नहीं हुआ था ……इधर – उस साधु
महाराज ने अब उस पुंगी की धुन को बदल दिया था …. और वोह सांप अब रेंगते
हुए उनके जिस्म से होते हुआ उनके सिर पर पहुँच गया था …..इस प्रकार उसने
उनके सारे बदन का भली – भांति से जायजा लिया ….. शायद और यकीनन वोह उनके
बदन के उस हिस्से की तलाश में था कि जोकि उस बोतल वाले द्रव्य के लेप से
अछूता रह गया हो … लेकिन उस सांपो के राजा के हाथ घोर निराशा ही लगी ….
अपनी उस कोशिश में विफल होने के बाद अब वोह उन साधु महाराज के जिस्म से
रेंगते हुए उतरकर उनके सामने अपना फन फैलाऐ हुए गुस्से से लहराने लग गया
था ….लेकिन साधु महाराज अपनी हू मस्ती में उस पुंगी को बजाते ही रहे …. कुछ
देर के बाद वोह सांपो का सम्राट अब उस पुंगी की धुन पे मस्त सा हो चला था
….. वोह साधु महाराज भी शायद इसी वक्त का इंतज़ार कर रहे थे …पुंगी बजाते
हुए ही उन्होंने अपने बिलकुल पास ही रखा हुआ तेज़धार चाक़ू अपने हाथ में बड़ी
ही सावधानीपूर्वक उठा लिया …. और उस साधु ने उचित मौका देखकर उस सांपो के
राजा का अपने दूसरे हाथ में थामे हुए चाकू के एक ही वार से काम तमाम करते
हुए उसके फन को धड़ से अलग कर दिया …..
The ROYAL "JAAT''
14-05-2011, 12:22 PM
उस
सांपो के राजा के मरने भर की देर थी कि गोल दायरों में अपना -२ फन फैला
कर बैठे हुए सभी सांप चुपचाप उदास मन से चले गये जिधर से कि शायद वोह आये
थे …..उन सभी के चले जाने के बाद साधु महाराज ने उस व्यक्ति को आवाज देकर
नीचे बुलाना चाहा … मगर उसकी हालत इतनी पतली थी कि उसको साधु महाराज को
पेड़ पर चढ़ कर हिम्मत के साथ सहारा देते हुए नीचे उतारना पड़ा …..और उसके होश
कुछ देर बाद किसी हद तक सामान्य होने पर साधु महाराज ने उसको आग जलाने के
लिए कुछेक लकड़ियो कि व्यवस्था करने को कहा ….. आग के जलने पर उस साधु ने
अपने साथ पहले से लायी हुई एक छोटी सी कढ़ाही में तेल डाल दिया ….उसके अच्छी
तरह गर्म होने पर उसमें अपने झोले में से कई तरह के मसाले निकाल कर उस
कढ़ाही में डाल दिए …उसके बाद सबसे आखिर में उस म्रत सांप के कई छोटे -२
टुकड़े काट कर के उस कढ़ाही में डाल दिए ….
उस अपनी तरह के इस सृष्टि के अनोखे पकवान के तैयार हो जाने पर साधु ने वोह रोटियां निकाली जो कि वोह आते समय बनवा कर साथ में ले आया था … साधु ने खाना खाने के लिए उस आदमी को भी कहा … लेकिन बहुत जोर देने पर भी वोह किसी भी तरह खाना खाने में उस साधु का साथ देने को राज़ी नहीं हुआ ….तब साधू ने बहुत ही ज़बरदस्ती करते हुए रौब से उसकी हथेली पे उस पकवान का थोड़ा सा मसाला रख दिया कि इसको तो तुमको खाना ही पड़ेगा ….उस बेचारे के होश तो पहले से ही फाख्ता हुए पड़े थे …किसी तरह अपने जी को कड़ा करते हुए डरते – डरते उसने उस मसाले को चाटते हुए निगल सा लिया…
उस अपनी तरह के इस सृष्टि के अनोखे पकवान के तैयार हो जाने पर साधु ने वोह रोटियां निकाली जो कि वोह आते समय बनवा कर साथ में ले आया था … साधु ने खाना खाने के लिए उस आदमी को भी कहा … लेकिन बहुत जोर देने पर भी वोह किसी भी तरह खाना खाने में उस साधु का साथ देने को राज़ी नहीं हुआ ….तब साधू ने बहुत ही ज़बरदस्ती करते हुए रौब से उसकी हथेली पे उस पकवान का थोड़ा सा मसाला रख दिया कि इसको तो तुमको खाना ही पड़ेगा ….उस बेचारे के होश तो पहले से ही फाख्ता हुए पड़े थे …किसी तरह अपने जी को कड़ा करते हुए डरते – डरते उसने उस मसाले को चाटते हुए निगल सा लिया…
The ROYAL "JAAT''
14-05-2011, 12:24 PM
वहाँ
का सारा काम ज़ब तमाम हो गया तब उन्होंने अपना समान समेटते हुए वापिस घर की
राह पकड़ी …..रास्ते में तो डर के मारे उस व्यक्ति का ध्यान खुद पे नहीं
गया … लेकिन जब वोह उस जंगल को पार करके शहर कि आबादी वाले इलाके से थोड़ी
ही दूरी पे पहुंचे थे … तो उस व्यक्ति का ध्यान एकाएक अपने शरीर की तरफ
चला गया … यह देख कर उसकी हैरानी की कोई हद ना रही कि उसका सारा शरीर तो
जैसे चांदी जैसे रंग का हो कर दमकने लग गया था … तब वोह उस साधु के चरणों
पे गिर गया कि यह क्या हो गया है मुझको …अब लोग मुझसे मेरी इस हालत के बारे
में पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा उन सबको ?….साधु ने कहा कि बस इतनी
सी ही बात ! …. उनको तुम कुछ भी कह देना मगर असली बात मत बताना …..लेकिन
वोह व्यक्ति बार -२ उनसे खुद को पहले जैसी हालत में लाने की ही प्रार्थना
करता रहा …तब उस साधु ने उसको यह कहते हुए पहले जैसी अवस्था में ला दिया कि
“ जा रे , तू इतनी सी बात भी गुप्त नहीं रख सकता था”……
The ROYAL "JAAT''
14-05-2011, 12:26 PM
उसके
बाद वोह साधु महाराज अपने अगले गंतव्य की और चले गये और वोह शख्श अपने
होशो – हवाश को दरुस्त करता हुआ किसी ना किसी तरह से अपने घर पहुँच गया …
पूरे दो दिन तक वोह बुखार में अपने घर में ही पड़ा रहा …..बाद में जब उसने
लोगो को अपने साथ घटने वाले उस सारे वाकये को बताया तो किसी ने तो उसकी
बात पे विश्वाश किया और किसी ने नहीं …मगर हर ना विश्वाश करने वाले को
वोह अपनी हथेली पर चांदी के रंग का बना हुआ वोह निशान जरूर दिखलाता …जोकि
साधु द्वारा उसकी हथेली पर रखे हुए उस पकवान के रखे जाने पर बन गया था ……
( एक सत्य घटना पर आधारित – भुक्त भोगी और उस वाकये के चश्मदीद द्वारा जैसे कि बताया गया ):salut::tiranga:
( एक सत्य घटना पर आधारित – भुक्त भोगी और उस वाकये के चश्मदीद द्वारा जैसे कि बताया गया ):salut::tiranga:
choice
14-05-2011, 03:51 PM
बहुत उम्दा सूत्र है पड़ कर ज्ञान में वृद्धि हुई, बहुत ही अछि जानकारी दे रहे हैं आप इसी तरह सूत्र में और रोचक जानकारिया भरते रहे
The ROYAL "JAAT''
14-05-2011, 10:46 PM
बहुत उम्दा सूत्र है पड़ कर ज्ञान में वृद्धि हुई, बहुत ही अछि जानकारी दे रहे हैं आप इसी तरह सूत्र में और रोचक जानकारिया भरते रहे
धन्यवाद दोस्त
धन्यवाद दोस्त
The ROYAL "JAAT''
21-06-2011, 03:12 PM
मित्रों क्या हुआमेरे जाने के बाद आपने इस सूत्र को भुला ही दिया क्या आपको सूत्र पसंद नही आ रहा मुझे अपनी राय जरुर दे
alonboy
23-06-2011, 09:20 PM
+++++++++++++++++रेपोटेसन
saurabhcol
27-06-2011, 11:01 PM
बहुत अच्छी जानकारी है.अ़ब शायद यति अथवा हिममानव के विषय में कल्पनाओं का समापन हो
शुभांक
शुभांक
microgsb
13-07-2011, 08:23 AM
मित्र बहुत बढ़िया सूत्र हैं कृपया इसे जारी रकें धन्यवाद
BHARAT KUMAR
16-07-2011, 04:37 AM
बड़ी रोमांचक घटनाओं का जिक्र किया है! सूत्र को गतिशील रखो रोयल बंधू!
Teach Guru
20-07-2011, 09:00 PM
रोमांच से भरपूर, सूत्र जारी रखें,
लगे रहो बहुत बढ़िया|
लगे रहो बहुत बढ़िया|
mjumbo
23-07-2011, 07:35 PM
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
aur milega dhanyawad
aur milega dhanyawad
vickky681
12-09-2011, 12:56 AM
बढ़िया सूत्र
dharma23
20-09-2011, 08:57 PM
बहतरीन............... कृपया जारी रखे!
jai 123
14-10-2011, 02:25 PM
मित्र
आपका सुत्र रोचक है गतिशीलता के अभाव मे अच्छे सुत्र पीछे चले जाते है
जिनपर नजर ही नही पडती आप अपने रहस्य रोमांच से भरे सुत्र को जारी रखे
gill1313
16-12-2011, 03:36 PM
bahut achha sutar hai dost mai bhe aap ko jankari deta hoon
gill1313
16-12-2011, 03:37 PM
रहस्यमयी 'कब्रिस्तान' यहां मुर्दों को दफनाया नहीं जाता बल्कि उन्हें तो...
gill1313
16-12-2011, 03:38 PM
दक्षिण
इटली के सिसली की यह पुरानी परंपरा वैसे तो रहस्यमयी नहीं है, फिर भी किसी
हॉरर फिल्म की तरह लगती है। वहां पालेरमो का यह कापूचिन कैटाकॉम्ब है। इस
अनोखे कब्रिस्तान में मुर्दो को दफनाया नहीं जाता था, बल्कि उनकी ममी बनाकर
दीवारों पर टांग दिया जाता था। 1599 में ब्रदर सिल्वेस्ट्रो ऑफ गूबियो की
ममी बनाने के साथ यह सिलसिला शुरू हुआ था।
Badtameez
16-12-2011, 03:47 PM
बहुत अच्छा सूत्र है मित्र पढने लायक।रेपो+++
gill1313
16-12-2011, 04:03 PM
281697
अंधेरे रास्ते में बनी सीढ़ियों से गुजरकर आप यहां पहुंचते हैं। इसके द्वार पर लिखा है ‘यहां आने वाले, अपनी सभी उम्मीदें छोड़ दें’। अंदर सैकड़ों शरीर दीवारों पर टंगे हैं। कुछ आंखें फाड़कर ऐसे देख रहे हैं कि लगता है हमें भी अपने दल में शामिल होने की दावत दे रहे हैं। यहां पर शवों को उनके सामाजिक दर्जे और लिंग के अनुसार जगह दी गई है। सबसे पहले इसकी स्थापना करने वाले संतों को जगह दी गई है।
अंधेरे रास्ते में बनी सीढ़ियों से गुजरकर आप यहां पहुंचते हैं। इसके द्वार पर लिखा है ‘यहां आने वाले, अपनी सभी उम्मीदें छोड़ दें’। अंदर सैकड़ों शरीर दीवारों पर टंगे हैं। कुछ आंखें फाड़कर ऐसे देख रहे हैं कि लगता है हमें भी अपने दल में शामिल होने की दावत दे रहे हैं। यहां पर शवों को उनके सामाजिक दर्जे और लिंग के अनुसार जगह दी गई है। सबसे पहले इसकी स्थापना करने वाले संतों को जगह दी गई है।
gill1313
16-12-2011, 04:05 PM
281704
इसके बाद आता है पुरुषों का सेक्शन। सभी ने अपने दौर के हिसाब के कपड़े पहन रखे हैं। इसके बाद है महिलाओं का सेक्शन, जिसमें कुंवारी कन्याओं की पहचान के लिए उनके सिर पर धातु से बना बैंड लगा रहता है। यहां प्रोफेसर, डॉक्टर्स और सैनिकों के सेक्शन भी अलग हैं। 1871 में ब्रदर रिकाडरे ने यह परंपरा बंद करवा दी थी।
इसके बाद आता है पुरुषों का सेक्शन। सभी ने अपने दौर के हिसाब के कपड़े पहन रखे हैं। इसके बाद है महिलाओं का सेक्शन, जिसमें कुंवारी कन्याओं की पहचान के लिए उनके सिर पर धातु से बना बैंड लगा रहता है। यहां प्रोफेसर, डॉक्टर्स और सैनिकों के सेक्शन भी अलग हैं। 1871 में ब्रदर रिकाडरे ने यह परंपरा बंद करवा दी थी।
gill1313
16-12-2011, 04:11 PM
281727281709281730
फिर भी 1920 में रोसालिआ लॉबाडरे नामक एक बच्ची के शव की भी यहां ममी बनाई गई। इसके लिए कौन-सा केमिकल तरीका इस्तेमाल किया गया ये कोई नहीं जानता। उसे देखकर लगता है कि वह सो रही है। कोई नहीं कह सकता कि उसकी मौत 90 साल पहले हो चुकी है। इसलिए इस ममी का नाम स्लीपिंग ब्यूटी रख
जिंदा दीवार में चुना गया, फिर भी पत्थरों पर लिखी अनोखी ‘प्रेमकथा’
फिर भी 1920 में रोसालिआ लॉबाडरे नामक एक बच्ची के शव की भी यहां ममी बनाई गई। इसके लिए कौन-सा केमिकल तरीका इस्तेमाल किया गया ये कोई नहीं जानता। उसे देखकर लगता है कि वह सो रही है। कोई नहीं कह सकता कि उसकी मौत 90 साल पहले हो चुकी है। इसलिए इस ममी का नाम स्लीपिंग ब्यूटी रख
जिंदा दीवार में चुना गया, फिर भी पत्थरों पर लिखी अनोखी ‘प्रेमकथा’
वडोदरा। अगर आप ताजमहल को देखकर यह कहें कि सिर्फ शाहजहां ने ही अपने प्रेम की निशानी को जीवंत रखने के लिए कुछ किया था तो आप गलत हैं। क्योंकि ऐसी ही एक कहानी गुजरात के डभोई नामक गांव में आज भी जिंदा है।
इतिहासकारों के अनुसार यहां रहने वाले हीरा नामक एक प्रख्यात शिल्पकार ने टैन नामक अपनी प्रेमिका को यह अमूल्य उपहार (इमारत) देने के लिए यहां के राजा तक से दुश्मनी मोल ले ली थी। डभोई वडोदरा से 50 किमी और नर्मदा डेम से 64 किमी की दूरी पर स्थित एक गांव है। अगर आपने भी अपने जीवन में किसी से प्रेम किया है तो आपको इस महल की दीवारों, अदभुत कलाकृतियों को निहारने के बाद आपको सच्चे प्रेम की अनुभूति होगी।
gill1313
16-12-2011, 05:29 PM
डभोई
में रहने वाला हीरा इतना प्रसिद्ध शिल्पकार था कि उसका नाम दूर-दूर तक
फैला हुआ था। उसने कई जानी-मानी शिल्पकृतियों की रचना की। एक कार हीरा की
प्रेमिका टैन ने उससे कहा.. तुम पूरे राज्य के लिए एक से एक कलाकृतियां
बनाते हो लेकिन मेरे लिए तुमने अभी तक कुछ भी नहीं बनाया। टैन की यह बात
सुन हीरा ने उसे एक अमूल्य उपहार देने का मन बना लिया। उसने पत्थर एकत्रित
कर डभोई में बिना राजा से अनुमति लिए एक इमारत बनाने का काम शुरू कर दिया।
इसके साथ ही उसने यहां एक तालाब का भी निर्माण करवाया और इसका नाम भी टैन रखा। राजा को जब यह बात पता चली कि हीरा ने बिना अनुमति लिए ही राज्य के पत्थरों का उपयोग किया तो पत्थरों की चोरी के आरोप में उसे जिंदा चुनवाने का आदेश दे दिया। राजा के आदेश के बाद इसी इमारत की दीवारों में हीरा को जिंदा चुनवा दिया गया। लेकिन हीरा की प्रेमिका टैन और कुछ मित्रों ने एक तरफ दीवार में छेद करके हीरा को खाने-पीने का सामान देना जारी रखा, जिससे हीरा कई दिनों तक जीवित रहा।
इसके साथ ही उसने यहां एक तालाब का भी निर्माण करवाया और इसका नाम भी टैन रखा। राजा को जब यह बात पता चली कि हीरा ने बिना अनुमति लिए ही राज्य के पत्थरों का उपयोग किया तो पत्थरों की चोरी के आरोप में उसे जिंदा चुनवाने का आदेश दे दिया। राजा के आदेश के बाद इसी इमारत की दीवारों में हीरा को जिंदा चुनवा दिया गया। लेकिन हीरा की प्रेमिका टैन और कुछ मित्रों ने एक तरफ दीवार में छेद करके हीरा को खाने-पीने का सामान देना जारी रखा, जिससे हीरा कई दिनों तक जीवित रहा।
gill1313
16-12-2011, 05:31 PM
हीरा
ने इस इमारत में जो दरवाजा बनाया था वह लगभग पूरा होने की कगार पर ही था।
इसलिए राजा अब इस दरवाजे को तैयार करवाना चाहते थे। लेकिन अब मुश्किल यह थी
कि दरवाजे पर बनी अदभुत शिल्पकला सिर्फ हीरा ही जानता था। किसी और से
बनवाई गई कलाकृतियां दरवाजे की पूरी सुंदरता को बिगाड़ देते। इसलिए राजा ने
हीरा को आजाद करने का निर्णय ले लिया और उससे वादा किया कि वह
शिल्पकृतियों का सारा काम पूर्ण कर दे, उसकी सजा माफ की जाती है।
राजा के इस निर्णय से खुश होकर हीरा ने सिर्फ दरवाजे का काम ही पूर्ण नहीं किया बल्कि उसने इसके साथ कई और अदभुत कलाकृतियों का निर्माण किया। ऐसी कलाकृतियां, जिसे देखकर ही लोग दांतो तले उंगलियां दबाने पर मजबूर हो जाते हैं।
12वीं शताब्दी में पत्थरों से बनी, स्वस्तिक आकार के चार प्रवेशद्वार, पूर्व में हीरा द्वार तो पश्चिम में वडोदरी, उत्तर में महूडी द्वार तो दक्षिण में नंदौरी द्वारों के साथ बनी यह भव्य इमारत गुजरात की सांस्कृतिक नगरी वडोदरा जिले के डभोई गांव में एक अनोखी प्रेम कहानी का इतिहास आज भी जीवंत रखे हुए है
राजा के इस निर्णय से खुश होकर हीरा ने सिर्फ दरवाजे का काम ही पूर्ण नहीं किया बल्कि उसने इसके साथ कई और अदभुत कलाकृतियों का निर्माण किया। ऐसी कलाकृतियां, जिसे देखकर ही लोग दांतो तले उंगलियां दबाने पर मजबूर हो जाते हैं।
12वीं शताब्दी में पत्थरों से बनी, स्वस्तिक आकार के चार प्रवेशद्वार, पूर्व में हीरा द्वार तो पश्चिम में वडोदरी, उत्तर में महूडी द्वार तो दक्षिण में नंदौरी द्वारों के साथ बनी यह भव्य इमारत गुजरात की सांस्कृतिक नगरी वडोदरा जिले के डभोई गांव में एक अनोखी प्रेम कहानी का इतिहास आज भी जीवंत रखे हुए है
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एक इंसान और नागिन की प्रेम कहानी सुन आश्चर्यचकित रह जाएंगे!
मथुरा।
21वीं सदी में हम पूर्वजन्म में यकीन करें या ना करें, लेकिन यह खबर हमें
सोचने पर मजबूर जरूर कर देती है। मथुरा के पास अगरयाला गांव है। यहां हर
साल नागपंचमी का दिन कुछ खास होता है। यहां रहने वाले एक शख्स के पास एक
नागिन आती है। उसके गले से लिपट जाती है। उसके साथ काफी देर तक रहती है।
फिर गायब हो जाती है।
यहां लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि गांव में रहने वाला लक्ष्मण इस नागिन का पूर्व जन्म में पति था। प्रत्यक्षदर्शियो� � के मुताबिक, नागिन युवक के घर आकर लिपट जाती है। इस अजूबे चमत्कार को देखने के लिए गांव में न केवल आसपास के लोगों का मेला लग जाता है, बल्कि दूर दराज से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए गांव आते हैं।
यहां लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि गांव में रहने वाला लक्ष्मण इस नागिन का पूर्व जन्म में पति था। प्रत्यक्षदर्शियो� � के मुताबिक, नागिन युवक के घर आकर लिपट जाती है। इस अजूबे चमत्कार को देखने के लिए गांव में न केवल आसपास के लोगों का मेला लग जाता है, बल्कि दूर दराज से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए गांव आते हैं।
मथुरा।
21वीं सदी में हम पूर्वजन्म में यकीन करें या ना करें, लेकिन यह खबर हमें
सोचने पर मजबूर जरूर कर देती है। मथुरा के पास अगरयाला गांव है। यहां हर
साल नागपंचमी का दिन कुछ खास होता है। यहां रहने वाले एक शख्स के पास एक
नागिन आती है। उसके गले से लिपट जाती है। उसके साथ काफी देर तक रहती है।
फिर गायब हो जाती है।
यहां लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि गांव में रहने वाला लक्ष्मण इस नागिन का पूर्व जन्म में पति था। प्रत्यक्षदर्शियो� � के मुताबिक, नागिन युवक के घर आकर लिपट जाती है। इस अजूबे चमत्कार को देखने के लिए गांव में न केवल आसपास के लोगों का मेला लग जाता है, बल्कि दूर दराज से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए गांव आते हैं।
लक्ष्मण का जन्म अगरयाला गांव में शंकर महाशय के यहां हुआ था। यह जब सात माह का था तो नागिन उसके सीने पर आकर बैठी थी। पर उसने काटा नहीं। बाद में उसका विवाह जब मथुरा के ही गांव मौरा में सूरजमल की पुत्री गंगा से हुआ तो नागिन उसे डसने लगी। नागिन ने उसे सात बार डसा पर वैद्य ने उसे ठीक कर दिया। तांत्रिकों से ढाक बजवाने पर पता चला कि नागिन पूर्व जन्म में लक्ष्मण की पत्नी थी।
प्रत्यक्षदर्शियो� � के मुताबिक, नागिन ने कहा कि वह लक्ष्मण के पास हमेशा रहना चाहती है, इसलिए गांव में एक मंदिर बनावाया जाए। यहां प्रत्येक नागपंचमी को नागिन लक्ष्मण से मिलने आया करेगी। पिछले आठ साल से वह नागपंचमी के एक दिन पहले आती है। अगले दिन वह चली जाती है।
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नाचती हैं बार बालायें
नाचती हैं बार बालायें
किसी व्यक्ति की मौत होने पर वहां मातम का माहौल होता है। सगे-संबंधी और
रिश्तेदार उसकी मौत पर आंसू बहाते हैं। पर आपने कभी किसी की मौत पर और उसकी
जलती हुई लाश के बीच बार-बालाओं को नाचते हुए देखा या सुना है? यदि नहीं
तो हम आपको बताते हैं। यूपी की धार्मिक नगरी वाराणसी में कुछ ऐसा ही होता
है।
यहां बाबा महाश्मशान नाग मंदिर में एक तरफ लाशे जलती हैं और दूसरी तरफ लड़कियां नाचती हैं। इनका नाच देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता है। क्या आम, क्या खास सब इस नाच के सुरूर में झूमते नजर आते हैं। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी जिनके उपर व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होती है, वो खुद ही इस नाच में शरीक होते है। यह शमां पूरी रात चलता है। जिसमें पूरा शहर जलता है।
यह सब कुछ होता है परंपरा के नाम पर। इसकी दुहाई देकर वो भी बच निकलते है, जिनके कंधों पर समाज सुधारने की जिम्मेदारी होती है। यहां का दृश्य देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। एक तरफ लाश जलाई जा रही है, दूसरी तरफ 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'टिंकू जिया' जैसे गानों पर ठुमके लगते हैं।
स्थानीय रानू सिंह के मुताबिक, नवरात्र में यह कार्यक्रम होता है। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक अकबर के मंत्री मानसिंह ने इस परंपरा की शुरूआत की थी। यहां स्थित शिव मंदिर में लोग मन्नत मांगते थे। इसे पूरा होने पर इस श्मशान के बीच घर की वधूयें नाचती थीं। चूंकि इस समय ऐसा होना संभव नहीं है, इसलिए लोग अपनी मन्नत पूरा करने के लिए कलकत्ता और मुंबई से बार बालायें बुलाते हैं।
यहां बाबा महाश्मशान नाग मंदिर में एक तरफ लाशे जलती हैं और दूसरी तरफ लड़कियां नाचती हैं। इनका नाच देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता है। क्या आम, क्या खास सब इस नाच के सुरूर में झूमते नजर आते हैं। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी जिनके उपर व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होती है, वो खुद ही इस नाच में शरीक होते है। यह शमां पूरी रात चलता है। जिसमें पूरा शहर जलता है।
यह सब कुछ होता है परंपरा के नाम पर। इसकी दुहाई देकर वो भी बच निकलते है, जिनके कंधों पर समाज सुधारने की जिम्मेदारी होती है। यहां का दृश्य देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। एक तरफ लाश जलाई जा रही है, दूसरी तरफ 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'टिंकू जिया' जैसे गानों पर ठुमके लगते हैं।
स्थानीय रानू सिंह के मुताबिक, नवरात्र में यह कार्यक्रम होता है। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक अकबर के मंत्री मानसिंह ने इस परंपरा की शुरूआत की थी। यहां स्थित शिव मंदिर में लोग मन्नत मांगते थे। इसे पूरा होने पर इस श्मशान के बीच घर की वधूयें नाचती थीं। चूंकि इस समय ऐसा होना संभव नहीं है, इसलिए लोग अपनी मन्नत पूरा करने के लिए कलकत्ता और मुंबई से बार बालायें बुलाते हैं।
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कैसे बनी परंपरा
काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान् शिव के मंदिर का निर्माण कराया। वह यहां संगीत का कार्यक्रम भी कार्यक्रम कराना चाहते थे। ऐसे स्थान जहां चिताए ज़लती हों वहां संगीत का कार्यक्रम करने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी। इसलिए राजा ने तवायफें को इस आयोजान में शामिल किया। यही धीरे-धीरे परंपरा में बदल गई। लोग बाबा भूत भावन की आराधना नृत्य के माध्यम से करने से अगले जन्म को सुधारने लगे। इस तरह धर्म की इस नगरी में सेक्स वर्कर को नचा कर मोक्ष का ख्वाब पाला जाने लगा।
काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान् शिव के मंदिर का निर्माण कराया। वह यहां संगीत का कार्यक्रम भी कार्यक्रम कराना चाहते थे। ऐसे स्थान जहां चिताए ज़लती हों वहां संगीत का कार्यक्रम करने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी। इसलिए राजा ने तवायफें को इस आयोजान में शामिल किया। यही धीरे-धीरे परंपरा में बदल गई। लोग बाबा भूत भावन की आराधना नृत्य के माध्यम से करने से अगले जन्म को सुधारने लगे। इस तरह धर्म की इस नगरी में सेक्स वर्कर को नचा कर मोक्ष का ख्वाब पाला जाने लगा।
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